देश की थाली में उतरता चांद

हमारे देश में एक परंपरा अरसे तक रही है। बच्चों का मन बहलाने के लिए चांदनी रातों में थाली में पानी भरकर उसमें चांद उतरता दिखाया जाता था। यह एक मनभावन खेल था, पर क्या पता, ऐसे ही खेलों ने हमारे देश के मन में चांद को पाने की ललक पैदा की हो। भारत बेशक अभी इंसान को सिर्फ अंतरिक्ष में भेजने का ख्वाब देख रहा है, उसकी आंखों से चंद्रमा पर इंसान को उतारने का सपना अभी दूर है, लेकिन उसका दूसरा चंद्रयान पृथ्वी के इकलौते प्राकृतिक उपग्रह यानी चंद्रमा की नई खोज के मिशन पर 22 जुलाई, 2019 को रवाना हो चुका है। एक दशक बाद ही दूसरा चंद्रयान भेजने के लिए भी कलेजा चाहिए। खास तौर से तब, जबकि हर कोई गरीबी का हवाला देकर हमारे स्पेस प्रोग्राम पर सवाल उठाता हो और खुद अमेरिका चांद पर दोबारा जाने की योजनाओं को लंबे अरसे तक स्थगित रख चुका हो। हालांकि इधर अमेरिका में भी अब चांद को फिर से छूने की तमन्ना जाग उठी है। उसकी स्पेस एजेंसी- नासा की योजनाओं के मुताबिक 2024 में वह एक बार फिर मून मिशन को साकार करने जा रही है, पर बहुत मुमकिन है कि अबकी बार उसका इरादा व्यावसायिक ज्यादा होगा। इस पर चाहें तो हम हैरानी जता सकते हैं कि इसरो की योजना इससे अलग नहीं है और इसीलिए चंद्रयान-2 को प्रक्षेपित करने वाली एजेंसी इसरो को नासा से दो हाथ आगे माना जा सकता है। यानी जिस मकसद से नासा अपने चंद्र अभियानों पर दोबारा फोकस कर रही है, उस मकसद को पाने के लिए इसरो का चंद्रयान-2 अपने मिशन पर निकल चुका है। पर यहां एक सवाल है कि आखिर चांद को फिर से छूने और करीब से जानने-पहचानने का अब मकसद क्या है। असल में इसके कुछ जवाब चंद्रयान-1 से मिल चुके हैं और अब कुछ और सवालों के जवाब चंद्रयान-2 से मिलने की भरपूर उम्मीद है।

चंद्रयान-1 ने क्या पाया था, यह जानकारी लेने से पहले इसे जानना जरूरी है कि आखिर चंद्रयान-2 से हमने क्या उम्मीदें लगा रखी हैं। यहां एक दिलचस्प संयोग यह है कि भारत ने चंद्रयान-2 को तकरीबन उन तारीखों में छोड़ा है, जब अमेरिका मानव के चंद्रमा पर उतरने के 50वीं वर्षगांठ मना रहा है। इसे संयोग इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि इससे पहले कई बार चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण विभिन्न वजहों से टलता रहा है और हाल में ही 15 जुलाई 2019 के इसके रॉकेट में कम दबाव की स्थिति ने महज 56 मिनट पहले मिशन रुकवा दिया था। बहरहाल, इस संयोग से परे एक दुर्लभ बात यह होगी कि चंद्रयान-2 चांद के अब तक अपरिचित रहे दक्षिणी ध्रुव पर करीब 48 या 50 दिन बाद सितंबर के पहले हफ्ते में लैंड करेगा। चंद्रयान-1 सिर्फ चांद की कक्षा में परिक्रमा करता रहा था, जबकि यह मिशन चंद्रमा पर अवतरण का है। मानवता के इतिहास में पहला मौका होगा, जब कोई यान पहली बार चंद्रमा के इस जटिल हिस्से में पहुंच की कोशिश कर रहा है। इसरो की मानें तो चांद का दक्षिणी ध्रुव कई मायनों में भावी चंद्रमिशनों के द्वार खोलने वाला साबित होगा। इसकी वजहें हैं। पहली तो यह कि हमेशा छाया में रहने वाले इस हिस्से के बेहद ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में जमी हुई बर्फ के भंडार हो सकते हैं, जो पानी का बड़ा स्रोत होंगे। यहां जीवाश्मों का खजाना मिल सकता है। यहां हीलियम-3 जैसा बहुमूल्य खनिज मिलने की भी उम्मीद जताई जा रही है। एक टन हीलियम की मौजूदा कीमत करीब 5 अरब डॉलर हो सकती है और अंदाजा है कि चंद्रमा से ढाई लाख टन हीलियम-3 पृथ्वी तक ढोकर लाया जा सकता है। यह ऐसी अकूत संपदा होगी, जिसकी कीमत कई लाख करोड़ डॉलर मानी जा रही है। इसरो ने दक्षिणी ध्रुव की चट्टानों में लोहे के अलावा मैग्नीशियम, कैल्सियम आदि की मौजूदगी का अंदाजा लगाया है। इसे अनुमान कहने से आशय यह है कि दक्षिणी ध्रुव की अभी तक कायदे की पड़ताल चंद्रमा की परिक्रमा कर चुके पहले के मून मिशनों से नहीं हो पाई है, हालांकि इसके संकेत उन्होंने अवश्य दिए हैं। यह खोजबीन बिना वहां रोवर उतारे मुमकिन नहीं है, जिसकी पहली कोशिश चंद्रयान-2 अपने रोवर- प्रज्ञान की मार्फत करेगा।

यूं समझिए कि चांद पर ये खनिज मिले, वहां भरपूर पानी मिला तो न सिर्फ चंद्रमा पर इंसानी बस्तियां बसाने की संभावनाओं को एक ठोस आधार मिल जाएगा, बल्कि इससे चांद ही नहीं, बल्कि पृथ्वी के निर्माण के नए रहस्यों का खुलासा हो सकता है। हालांकि ज्यादा बड़ा फायदा यह हो सकता है कि भविष्य में मंगल आदि ग्रहों को भेजे जाने वाले स्पेस मिशनों के लिए संसाधन मुहैया कराने और पड़ाव के रूप में चंद्रमा का इस्तेमाल हो सकता है। एक और जरूरी बात का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ की चंद्रमा के प्रति दिलचस्पी बढ़ने की एक बड़ी वजह यह भी है कि आगे चलकर चंद्रमा को दुर्लभ अंतरिक्षीय सूचनाओं के केंद्र के रूप में विकसित किया जाने वाला है। यानी चंद्रमा पानी, खनिजों की मौजूदगी के साथ मानव रिहाइश की संभावनाओं से जुड़े जो तथ्य वहां भेजे जा रहे यानों के जरिए उपलब्ध करेगा, उनसे हमें यूनिवर्स के जन्म से लेकर ब्रह्मांड में और आगे बढ़ने से जुड़ी वे सारी सूचना मिल सकेंगी जो शायद इस पूरी कायनात के रहस्य खोलकर रख देंगी।

जहां तक चंद्रयान-1 की कामयाबी की बात है, तो संक्षेप में जानना बेहतर होगा कि 22 अक्टूबर, 2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में भेजा गया यह मिशन करीब एक साल (अक्टूबर 2008 से सितंबर 2009 तक) संचालित किया गया था और 312 दिन की अवधि में इससे चंद्रमा पर पानी के पहले निशान देखने का सौभाग्य भारत के हिस्से आया था। चंद्रमा की सतह से करीब सौ किलोमीटर ऊपर चांद के तकरीबन हर हिस्से के ऊपर से गुजरे चंद्रयान-1 ने पता लगाया था कि चंद्रमा के ध्रुवीय इलाकों में पानी की भारी मात्रा बर्फ की शक्ल में मौजूद हो सकती है। यह वाकई पानी ही है, इसकी पुष्टि तब हुई थी, जब चंद्रयान-1 के साथ भेजे गए अमेरिका के मून मिनरलॉजी मैपर (एम-3) ने वहां से एकत्रित डाटा का विस्तृत अध्ययन किया। नासा का यह अध्ययन पीएनएएस जर्नल में प्रकाशित हुआ था। यह अध्ययन चांद की ऊपरी पतली परत में हाइड्रोजन और ऑक्सिजन की मौजूदगी तथा उनके रासायनिक संबंध पर केंद्रित था। एम-3 द्वारा चंद्रमा पर पानी के अस्तित्व की पुष्टि इसी अध्ययन का परिणाम था। इससे पहले चांद से धरती पर लाए गए नमूनों की जांच करने वाले शोधकर्ता लगभग चालीस वर्षों में इतना ही कह पाए थे कि चांद पर कभी कुछ पानी जरूर रहा होगा। लेकिन इसे साबित करने के लिए उनके पास कुछ नहीं था। वर्ष 2009 में अमेरिका ने भी चांद पर लूनर रिकॉनेसां ऑर्बिटर (एलआरओ) भेजा था, जिसने चांद पर मौजूद चट्टानों की संधियों में पानी खोजा था। एलआरओ ने ही चांद के उत्तरी ध्रुव पर बर्फ की मौजूदगी भी बताई थी।

हम यह बात बेखटके कह सकते हैं कि चंद्रयानों की बदौलत भारत (इसरो) ने तकनीक के एक अहम पड़ाव पार कर लिया है। जिस तरह चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी की तसदीक कर भारत के खाते में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि डाली थी, उसी तरह मुमकिन है कि चंद्रयान-2 भी कामयाबी की नई इबारत भारत के माथे पर लिखे। यह बहुत मुमकिन है कि जिस तरह अभी गणित के शून्य पर होने वाली कोई भी बातचीत भारत के जिक्र के बिना पूरी नहीं होती है, उसी तरह आगे चलकर चंद्रमा पर कोई भी वैज्ञानिक चर्चा भारत के बिना अधूरी रहेगी। यही नहीं, वर्ष 2022 तक भारत जिस तरह गगनयान से तीन भारतीय यात्रियों अंतरिक्ष में भेजने की योजना पर काम कर रहा है, उससे हमारा देश अंतरिक्ष में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा। ये अंतरिक्ष कार्यक्रम असल में भारत की पिछलग्गू देश की छवि तोड़ रहे हैं और एक नई मान्यता स्थापित कर रहे हैं कि भारत अब वो देश है, जिसने फैसले लेना शुरू कर दिया है।

बना रहे इसरो के रॉकेटों का दम

चंद्रयान बेशक हमारे लिए महत्वपूर्ण है, पर उससे ज्यादा जरूरी है कि हमारे रॉकेटों का दम बना रहे। एक साथ 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण करने के कीर्तिमान रचने के अलावा स्पेस मार्केट के बिजनेस और भावी अंतरिक्ष अभियानों का सारा दारोमदार इन्हीं रॉकेटों पर टिका है। ऐसे में कोई एक चूक हमारे अंतरिक्ष अभियानों की हवा निकाल सकती है, अंतरिक्ष बाजार में इसरो के रुतबे की हवा निकाल सकती है। ध्यान रखना होगा कि जिस अपोलो-11 ने नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन को 50 साल पहले चांद पर उतारा था, उसे वहां तक ले जाने वाले रॉकेट सैटर्न-5 ने इससे पहले 13 नाकामियां झेली थीं। बल्कि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने तो अपने ताकतवर रॉकेट एन-1 की लगातार चार नाकामियों के बाद चांद पर रूसी वैज्ञानिकों को उतारने के सपने को हमेशा के लिए मुल्तवी कर दिया था, अन्यथा तो 60 के दशक में स्पेस की होड़ में वह अमेरिका से आगे ही चल रहा था।

बहरहाल, आज अगर भारत एक नई उड़ान पर है, तो इस उड़ान में उसके सपनों को साकार करने में अहम भूमिका इसरो के ताकतवर रॉकेटों की है। ये रॉकेट सफलता के नए कीर्तिमान रचते हुए अपनी क्षमता और योग्यता साबित कर रहे हैं। इसमें 22 जुलाई को चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण पहले की सबसे बड़ी कामयाबी 14 नवंबर,18 को स्पेस में नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-29 को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित करने वाले 640 टन वजनी रॉकेट जीएसएलवी (मार्क-3 डी-2) की है। देश में विकसित इस तीसरी पीढ़ी के रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 ने एक ओर जहां यह आश्वस्त किया है कि इसरो अब 2022 तक चांद पर इंसान भेजने के अपना मिशन पूरा करने के काम में बेहिचक जुट सकता है। दूसरी ओर यह भी साबित किया है कि भारी उपग्रहों को स्पेस में भेजने का काम अब तक रूस, अमेरिका जैसे देश करते रहे हैं, उसमें भारत की योग्यता अब बराबरी की है।

रॉकेट साइंस के क्षेत्र में जीएसएलवी मार्क-3 की कामयाबी का स्तर यदि हम नापना चाहें तो इसकी एक कसौटी अमेरिका के शुरुआती चंद्र मिशन ही होंगे। अमेरिकी स्पेस एजेंसी- नासा ने अपने जिस यान अपोलो-11 से नील आर्मस्ट्रांग को चांद पर भेजा था, उसका वजन 4932 किलोग्राम था। यानी यदि किसी देश का रॉकेट 5 टन तक का वजन अंतरिक्ष में ले जाने की हैसियत रखता है, तभी उसे चंद्रमा पर इंसान भेजने के सपने के बारे में सोचना चाहिए। उल्लेखनीय है कि जीएसएलवी मार्क-3 से भेजे गए संचार उपग्रह जीसैट-29 का वजन 3,423किलोग्राम था और यह रॉकेट 4 टन तक के उपग्रह को अंतरिक्ष में ले जा सकता है। इससे चंद्रमा पर इंसान भेजने की भारत की दावेदारी पुख्ता होती है और यही वजह है कि बाहुबली कहे जा रहे इस रॉकेट की कामयाबी को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहा था। साथ ही, इसरो के प्रमुख के. सिवन ने भी कहा था कि इसरो के इस सबसे भारी लॉंन्चर ने हमारी आशाओं को जगा दिया है।

हालांकि यह सही है कि इसरो को अपोलो-11 वाली कामयाबी के करीब पहुंचने में पांच दशक लग गए हैं। यह भी सही है कि अमेरिका की प्राइवेट स्पेस एजेंसी- स्पेसएक्स के रॉकेट फॉल्कन-9 की 23 टन वजनी सैटेलाइट अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता के मुकाबले जीएसएलवी मार्क-3 अभी सिर्फ आठ टन वजन स्पेस में ले जा सकता है, लेकिन ध्यान रखना होगा कि नासा या अमेरिकी निजी स्पेस कंपनियों के मुकाबले इसरो की कामयाबियां बेहद कम खर्च में हासिल की गई हैं। ध्यान रखना होगा कि स्पेस की नई होड़ में अब विजेता वही देश और स्पेस एजेंसी होगी, जो बेहद कम लागत में और अत्यधिक सटीकता के साथ अपने स्पेस अभियान चलाएंगी। इस नजरिए से देखें तो इसरो ने दोनों मोर्चों पर अपनी काबिलियत दिखाई है। इसमें अहम बात उपग्रहों को स्पेस में ले जाने वाले भरोसेमंद रॉकेट विकसित करने की है क्योंकि अब आगे की स्पेस रेस इन्हीं पर टिकी है।

कुछ तथ्य

–    चंद्रयान-2 करीब 3850 किलो वजनी है

–    चंद्रयान के साथ ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम), रोवर (प्रज्ञान) भेजे गए हैं।

–    ऑर्बिटर एक साल चांद की कक्षा में 96 किलोमीटर ऊपर रहकर चक्कर लगाएगा। यह धरती और चांद पर उतरे लैंडर से संपर्क रखेगा।

–    लैंडर विक्रम का प्रमुख काम रोवर को चांद पर उतारना है। वह चांद की सतह पर भूकंप का भी पता लगाएगा।

–     रोवर प्रज्ञान चांद की सतह में आधा किलोमीटर की दूरी तय करेगा। इस दूरी में ही वह वहां मौजूद खनिजों का पता लगाएगा। रोवर का एक पहिया चांद की सतह पर अशोक स्तंभ और दूसरा पहिया इसरो के प्रतीक की छाप छोड़ेगा, जो उस पर उकेरे गए हैं।

–    लैंडर और रोवर दोनों ही धरती के 14 दिन यानी चंद्रमा के एक दिन के बराबर सक्रिय रहेंगे

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  1. भंवर लाल रीणवा

    ऊतम

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