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झोमेटो का मुस्लिम प्रेम

झोमेटो का मुस्लिम प्रेम

by pallavi anwekar
in विशेष
5

जबलपुर के अमित शुक्ला द्वारा झोमेटो के मुस्लिम डिलिवरी बॉय से डिलवरी न लेने का मामला अब तक काफी तूल पकड चुका है। झोमेटो ने भी इस पर पलटवार करते हुए ये जाहिर कर दिया है कि वह धर्म के नजरिए अपने व्यापार को नहीं चलाएगा। अर्थात अगर कोई ग्राहक यह चाहता है कि झोमेटो उसका खाना किसी मुसलमान डिलिवरी बॉय के हाथों न भिजवाए तो झोमेटो अपने ग्राहक की इस मांग को पूरी नहीं करेगा।

इस पूरे मामले को अगर शुद्ध व्यापारिक दृष्टि से देखा जाए तो झोमेटो के लिए उसका ग्राहक भगवान होना चाहिए, क्योंकि व्यापार में तो  ग्राहक ही भगवान होता है। और इस आधार पर ग्राहक की आवश्यकता की पूर्ति करना उसका कर्तव्य है। अगर ग्राहक को जैन भोजन भी किसी मुस्लिम के हाथ से लेने में कोई दिक्कत नहीं है तो कोई बात नहीं परंतु अगर कोई ‘शुद्ध मांसाहारी’ खाना भी किसी मुसलमान के हाथ से नहीं लेना चाहता तो यह उसकी इच्छा है। अगर सेंडविच बनाने से पहले ये विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं कि वे ब्राउन ब्रेड में बने या सफेद ब्रेड में तो किसी ग्राहक को यह चुनने का अधिकार क्यों नहीं कि पहुंचाने वाला हिंदू हो या मुसलमान।

चलिए अब हम सब अपनी आंख पर तथाकथित धर्म का चष्मा चढ़ा लेते हैं। ये करने के लिए जानबूझकर इसलिए कह रही हूं क्योंकि अभी तक सामान्य हिंदू नागरिक को इस बात से कोई फरक नहीं पडता था कि वह जिस ऑटो में बैठा है वह कोई मुसलिम चला रहा है या वह जिस ठेले से सामान खरीद रहा है वह किसी मुलमान का है या उसके यहां जो इलेक्ट्रिशियन या प्लंबर आता है वह मुलसमान है या जो पिज्जा या अन्य खाना वह मंगवा रहा है उसे कोई मुसलमान लेकर आ रहा है।

परंतु अब जब सोशल मीडिया पर आने वाली खबरें, सीसीटीवी में दिखने वाले फुटेज के वीडियो धीरे-धीरे दर्शा रहें है कि किस तरह ये घर के काम करने वाले लोग वास्तविक रूप से उस क्षेत्र की रेकी कर रहे होते हैं, लोगों की आंखे खुलनी स्वाभाविक है।

इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर जैसे लोग जब आपके घर के अंदर घुसेंगे तो जाहिर है आपके घर का पूरा अंदाजा उन्हें लग जाएगा।
आप जब ऑनलाइन खाना मंगवाते तो भी आपका मोबाइल नंबर और अन्य जानकारियां देते हैं, इनके माध्यम से आप तक पहुंचना आसान हो जाता है। और हैरानी की बात यह है कि ये काम करने वाले अधिकतर लोग मुसलमान ही हैं।

कई मामलों में यह बात सामने आई है कि लव जिहाद या किसी बस्ती से हिंदुओं के पलायन की शुरुआत भी यहीं से होती है। पहले ये मुस्लिम लडके घर तक पहुंचते हैं फिर घर के लोगों तक। अगर उद्देश्य लव जिहाद है तो निशाना उस घर की लडकियां बनती हैं और अगर घर खाली कराना है तो निशाना पूरा परिवार बनता है।

चूंकि घर के अंदर पहुंच हो चुकी है और फूड ऑर्डर से लडकी का नंबर मिल चुका है तो आगे की प्रोसेस क्या होगी यह तो हम सभी जानते हैं। खैर, ये तो कोई भी ग्राहक किसी भी कम्पनी के साथ कर सकता है फिर ‘बेचारे’ झोमेटो को ही दोष क्यों दिया जाए? तो भैया! जवाब ये है कि झोमेटो का तो ट्रैक रिकॉर्ड ही खराब है। इसके डिलिवरी बॉय के द्वारा खाना ‘चखकर’ फिर डिलिवर करने का मामला तो जगजाहिर है। याद न हो तो यू ट्यूब पर दोबारा देख लें। और मुसलमानों के बारे में तो यह प्रसिद्ध है (कितना सच है इसका कोई तथ्य नहीं है) कि वे अगर किसी काफिर को मुसलमान बनाना चाहते हैं तो उसके खाने में थूक मिला देते हैं। इस प्रकार के वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=Fb-1Rj46o5k

अगर अगर इन दोनों घटनाओं को किसी सामान्य हिंदू ग्राहक के नजरिए से देखा जाए जो सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो को सच मानता हो तो वह निश्चित ही सावन के महीने में जिसे हिंदू धर्म में मुसलमानों के रमजान जितना ही पवित्र माना जाता है, किसी मुसलमान के हाथ से डिलिवरी नहीं लेना चाहेगा।
वैसे भी अगर हमदर्द जैसी कम्पनियों को यह हक है कि वह अपनी कम्पनी में सिर्फ मुस्लिम को ही जॉब दे सकती हैं अन्यों को नहीं तो क्या किसी हिंदू ग्राहक यह हक नहीं है कि वह भी किसी हिंदू से ही डिलिवरी चाहे?

झोमेटो को किसी धर्म के बारे में नहीं लेकिन अपनी कम्पनी के भविष्य के बारे में जरूर सोचना चाहिए क्योंकि अगर सचमुच ऑर्डर करने के बाद स्क्रीन पर किसी मुसलमान डिलिवरी बॉय का नाम देखकर लोगों ने डिलिवरी रद्द करनी शुरू कर दी कम्पंनी भट्टा बैठने में देर नहीं लगेगी।

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Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubjective

pallavi anwekar

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रास्ते की बाधा

रास्ते की बाधा

Comments 5

  1. Girish Tilak says:
    6 years ago

    ही तुलना गैरलागू आहे असं मला वाटतं.
    हलाल – no हलाल ची तुलना अंडेविरहित केक च्या ऑर्डरशी होऊ शकते. झोमाटा ने अशीच भूमिका घेतली असती.

    हा विषय नको त्या दिशेने वाहत गेला.

    बियाणा पासून ते ताटात अन्न येईपर्यंत खूप मोठी supply chain असते. कुठकुठे कोण कोण सहभागी झाले आहे हे बघायला लागलो तर कठीण होऊन जाईल.
    आणून देणारा कोणत्या पंथाचा आहे त्यामुळे फरक पडतो असं अगदी नक्की नाही. पण supply chain मधल्या सगळ्यांचा आपण खातो त्या अन्नावर बरा वाईट प्रभाव पडतो हे नक्की.
    स्वयंपाक केलेल्या व्यक्तीचे गुणदोष, त्यावेळच्या त्याच्या भावना अन्नात उतरतात हे बऱ्याच जणांना माहीत आहे. त्यामुळे अनेक जण परान्न घेत नाहीत.

    पेशवांच्या काळातील एक उदाहरण आहे. एकदा पेशवांच्या घरी नेहमीच्या ऐवजी दुसऱ्या आचाऱ्याने स्वयंपाक केला. नंतर घरात काहीतरी दुःखद घटना घडली. पंडिताने त्या आचाऱ्याची, जो सात्विक होता, सखोल चौकशी केली. तेव्हा आढळले की शेतात ज्या मजुराने स्वयंपाकासाठी भाजी कापली, तो वाईट चालिरितीचा होता !!

    बहुसंख्य असलेल्या हिंदूंचा मुस्लिमांकडे बघण्याच्या दृष्टिकोण पूर्वग्रदूषित नसावा. त्यांच्याशी संपर्क, संवाद साधावा. त्यांच्यातील गावागावात असलेल्या “अब्दुल कलाम”, “दारा शिकोह” ह्यांचा शोध घ्यावा, त्यांना आदर्श म्हणून मान्यता मिळावी असा प्रयत्न करावा.
    असा सकारात्मक विचार व्हावा.

    गिरीश टिळक
    ठाणे

    Reply
  2. विजय मराठे says:
    6 years ago

    Good article

    Reply
  3. डॉ. विवेक वडके says:
    6 years ago

    इसका एक सही इलाज यह है, कि मिश्राहारी हिंदू ‘झटका’ मांस का आग्रह करें. ऐसा करनेसे हिंदू खाटीक समाज को काम मिलेगा.

    Reply
  4. Richa Pandey says:
    6 years ago

    Very well written article and good explanation of the facts.

    Reply
  5. Anonymous says:
    6 years ago

    ग्रहक की पसंद नपसंद का ख्याल तो रखना ही पडे़गा ।

    Reply

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