हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
गुलाम कश्मीर की आजादी जरूरी

गुलाम कश्मीर की आजादी जरूरी

by प्रमोद भार्गव
in देश-विदेश
0

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इंदौर में कहा है कि ‘जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370  हटाए जाने के बाद अब सरकार जल्दी ही पाक अधिकृत कश्मीर पर बड़ा कदम उठा सकती है। क्योंकि पीओके भारत का हिस्सा है और उसे भारत में मिलाना हमारा दायित्व है। इस विलय के संबंध में सर्वसम्मति से संसद में प्रस्ताव भी पारित होते रहे हैं। 1994 में पीवी नरसिंह राव की सरकार केंद्र में रहने के दौरान इस बाबत एक प्रस्ताव पारित हुआ था। चूंकि पीओके भारत का हिस्सा है। इसलिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीओके क्षेत्र की बनाई गईं चौबीस सीटे फिलहाल खाली रखनी पड़ती हैं।‘ जावड़ेकर का यह बयान भारत सरकार के पीओके के परिप्रेक्ष्य में भविष्य का नजरिया स्पष्ट करने वाला है। इस बयान से पाकिस्तान की कोशिश होगी कि वह कश्मीर में दखल देने की बजाय पीओके को यथास्थिति में बनाए रखने के लिए सजग रहे। दरअसल भारत कश्मीर मुद्दे पर अब तक नाकाम इसलिए रहा,  क्योंकि उसने आक्रामकता दिखाने की बजाय रक्षात्मक रवैया अपनाया हुआ था। इससे लाखों पंडितों को विस्थापन का दंश तो झेलना पड़ा ही यह पूरा इलाका आतंक व अलगाव की चपेट में भी आ गया। नतीजतन 42000 से भी ज्यादा लोगों को मौत के मुंह में जाना पड़ा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि विभाजन की जिस अव्यावहारिक व अप्राकृतिक मांग के आगे नेहरू समेत हमारे तत्कालीन नेता जिस तरह से नतमस्तक होते चले गए,  उससे न केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि पाक अधिकृत कश्मीर, भारत, पाकिस्तान और बंग्लादेश को भी विभाजन का दर्द झेलना पड़ा है। जबकि विभाजन के समय ही यह साफ लगने लगा था कि यह अखंड भारत की विरासत को खंडित करने की अंग्रेजी हुकूमत की कुटिल चाल है। बावजूद कांग्रेस नेता यह नहीं समझ पाए कि जो शेख अब्दुल्ला ‘मुस्लिम कांफ्रेंस का गठन कर कश्मीर की सामंती सत्ता से मुठभेड़ कर रहा है, उसे शह मिलती रही तो वह भस्मासुर भी बन सकता है ? 1931-32 में शेख की मुलाकात नेहरू तथा खान अब्दुल्ल गफार खान से हुई। इन्हें सीमांत गांधी भी कहा जाता है। इस गुफ्तगू से शेख को इतनी ताकत और द़ृष्टि मिली कि शेख ने अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’  से मुस्लिम शब्द हटा दिया और ‘नेशनल’जोड़ दिया। जिससे राष्ट्रीयता का भ्रम हो। इसी समय जिन्ना ने पृथकतावादी अभियान चला दिया। फिरंगी शासक तो चाहते भी यही थे कि भारत को आजादी धर्म के आधार पर बंटवारे की परिणति में हो। आमतौर से ऐसा माना जाता है कि कश्मीर समस्या 1947 के बाद पनपी व विकसित हुई। जबकि वास्तव में इसकी शुरूआत जम्मू-कश्मीर के महाराजा गुलाबसिंह के दरबार में ‘अंग्रेज रेजिमेंट’ की नियुक्ति के साथ ही हो गई थी। किंतु अंग्रेज नाकाम रहे। इसी समय दुर्भाग्य से कश्मीर के गिलगिट क्षेत्र के राजा रणवीर सिंह का देहांत हो गया। अंग्रेजों ने शोक में डूबे राज-परिवार की इस कमजोरी को एक अवसर माना और सक्रियता बढ़ा दी।

दरअसल अंग्रेजों ने 1885 में ही यह योजना बना ली थी कि किसी भी तरह जम्मू-कश्मीर के दुर्गम व सुरक्षित क्षेत्र गिलगिट व बाल्टिस्तान पर कैंजा करना है। जिससे अमेरिका की सैन्य गतिविधियों के लिए एक सुरक्षित स्थान मिल सके। अमेरिका इसे सोवियत संघ पर शिकंजा कसने की द़ृष्टि से उपयुक्त क्षेत्र मान रहा था। लिहाजा अंग्रेजों ने षड्यंत्रपूर्वक इस क्षेत्र को ‘गिलगिट एजेंसी’ नाम देकर 1889 में अपने कैंजे में ले लिया। इसके अधीनता में आते ही सिंधू नदी के पूर्व और रावी नदी के पश्चिम तट तक समूचे पर्वतीय भू-भाग पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया। इस समय गिलगिट में प्रतापसिंह राजा रणवीर सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में शासक थे। प्रतापसिंह अंग्रेजों की साजिश का शिकार हो गए। गुलाब सिंह की मृत्यु के बाद हरिसिंह जब राजा बने तो 1925 में उनकी आंखें खुलीं और गिलगिट की साजिश को समझा। तब हरिसिंह ने हिम्मत व सख्ती से काम लेते हुए अपनी सेना गिलगिट भेजकर अंग्रेजी सेना को गिलगिट छोड़ने को विवश कर दिया और यूनियन जैक उतारकर कश्मीरी झंडा किले पर फहरा दिया। यह अप्रत्याशित घटनाक्रम अंग्रेजों को एक शूल की तरह चुभता रहा।

1930 में जब स्वतंत्रता आंदोलन एक प्रखर राष्ट्रवाद के रूप में देशव्यापी हो गया तो इस राजनीतिक समस्या के हल के बहाने लंदन में गोलमेज सम्मेलन आहूत किया गया। भारतीय राजाओं के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में हरिसिंह ने इसमें हिस्सा लिया। यहां हरिसिंह ने गिलगिट बाल्टिस्तान समेत, संपूर्ण जम्मू-कश्मीर को ‘संघीय राज्य‘ बना देने की पुरजोर पैरवी की। किंतु यह मांग अंग्रेजों की मंशा के अनुकूल नहीं थी, इसलिए सिरे से खारिज कर दी। यहां अंग्रेजों ने गिलगिट क्षेत्र से हरिसिंह द्वारा अंग्रेज सेना की बेदखली की गई थी,  उसके प्रतिकार स्वरूप साजिश तो रची ही, औपनिवेशिक कूटनीति व भारत को विभाजित करने की मंशा को फलीफूत देखने के नजरिए से शेख अब्दुल्ला को महत्व देकर उसे कश्मीरी शासक के विरुद्ध उकसाना शुरू कर दिया। नतीजतन शेख ने अलगाववादी संगठन ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ की नींव डाल दी। इसी दौरान शेख की मुलाकात नेहरू से हुई, जो मित्रता में बदल गई।  1932 से ही शेख ने कश्मीर पर नाजायज कैंजे के लिए जंग छेड़ दी।

इसके बाद से लेकर 1947 तक के कालखंड में 1942 की अगस्त क्रांति और दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जब फिरंगी हुकूमत के खिलाफ जबरदस्त असंतोष और सशस्त्र संघर्ष की घटनाएं आम हो गईं तो अंग्रेजों ने अनुभव किया कि अब भारत पर नियंत्रण संभव नहीं है, तब उन्होंने भारतीय रियासतों के विलीनीकरण के लिए धार्मिक व क्षेत्रीय उपराष्ट्रीयताओं को भी उकसाना शुरू कर दिया। फलत: शेख समेत अनेक हिंदू व मुस्लिम नरेशों में एक नए स्वतंत्र देश पर राज करने की मनोकामना अंगड़ाई लेने लगी। जबकि रियासतों का विलय भारतीय राष्ट्र को अखंड भारत का रूप देकर एक सशक्त व एकीकृत संविधान द्वारा संचालित राजनीतिक ईकाई का निर्माण करना था। इसी समय शेख ने स्वतंत्र कश्मीर का सुल्तान बनने का सपना देखना शुरू कर दिया। मुस्लिम लीग तो जिन्ना के नेतृत्व में पहले से ही मुसलमानों के लिए पृथक मुस्लिम देश बनाने की मांग कर रही थी।

1946 में शेख ने हरिसिंह के विरुद्ध ‘महाराजा कश्मीर छोड़ों आंदोलन‘ छेड़ दिया। 20 मई 1946 को शेख ने श्रीनगर की मस्जिदों का दुरुपयोग करते हुए सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के ऐलान कराए। नतीजतन शेख की गिरफ्तारी हुई और उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई। इस गिरफ्तारी के बाद कश्मीर की स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में थी। किंतु यह गिरफ्तारी नेहरू हो रास नहीं आई। नेहरू ने शेख की गिरफ्तारी को गलत ठहराते हुए दिल्ली के राजनीतिक हलकों में हरिसिंह को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। नेहरू शेख को छुड़ाने के लिए इतने उतावले हो गए कि जब देश स्वतंत्रता संग्राम की निर्णायक लड़ाई लड़ रहा था, तब 19 जून 1946 को नेशनल ऐयरवेज के हवाई जहाज से लाहौर होकर रावलपिंडी पहुंचे और फिर रावलपिंडी से कार द्वारा श्रीनगर पहुंच गए। यहां के कश्मीरी पंडितों ने नेहरू को समझाइश दी कि आपको गुमराह किया जा रहा है, महाराजा अपनी जगह सही हैं। किंतु नेहरू को ये शब्द कानों में पिघले शीशे की तरह लगे।  हरिसिंह ने नेहरू का कहना नहीं माना तो ‘सत्याग्रह‘ की घोषणा कर दी। मित्रता के भुलावे में नेहरू द्वारा की गई यह भूल और शेख को छुड़ाने की जिद्द व जुनून कालांतर में ऐतिहासिक भूल साबित हुए। हरिसिंह ने कठोरता बरतते हुए नेहरू के हठ को सर्वथा नकार दिया और उन्हें हिरासत में लेकर कश्मीर की सीमा से बाहर का रास्ता दिखाकर रिहा कर दिया।

नेहरू ने इस आचरण को नितांत अव्यावहारिक माना और हरिसिंह से बदला लेने का संकल्प ले लिया। इसलिए देश की 562 रियासतों को विलय करने का जो दायित्व पटेल बड़ी चतुराई से संभाल रहे थे, उसमें एक जम्मू-कश्मीर का दायित्व नेहरू ने जबरदस्ती अपने हाथ ले लिया। इसी कालखंड में 24 अगस्त 1946 को नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बना दी गई। यह वह दौर था, जब पूरे भारत में सांप्रदायिक दंगों के साथ अनिश्चितता, अविश्वास एवं अराजक वातावरण छाया हुआ था। इसी समय 20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने ऐतिहासिक घोषणा की, कि जून 1948 तक भारत को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। इस घोषणा के परिणाम की जिम्मेवारी एडमिरल लुइस माउंटबेटन को सौंपी गई। 24 मार्च 1947 को वायसराय के रूप में माउंटबेटन ने भारत के प्रशासनिक दायित्व अपने हाथ में ले लिए। माउंटबेटन ने अलग-अलग गोपनीय मुलाकातें कांग्रेसी नेताओं से कर के भारत विभाजन का संकल्प गांधी के विरोध के बावजूद ले लिया। अंततोगत्वा 4 जुलाई 1947 को ब्रिटेन की संसद के दोनों सदनों में ‘भारतीय स्वतंत्रता विधेयक-1947‘ पेश कर दिया, जो मत-विभाजन से पारित हो गया। 18 जुलाई 1947 को ब्रितानी हुकूमत ने अनुमोदन भी कर दिया। इसी विधेयक के तहत भारत को धर्म के आधार पर दो स्वतंत्र औपनिवेशिक राज्यों में बांट दिया गया।

जम्मू-कश्मीर रियासत का विलय नेहरू के हाथ में होने के कारण असमंजस में रहा। डोगरा राजा हरिसिंह जहां कश्मीर की स्वतंत्र राज्य की परिकल्पना कर रहे थे, वहीं उनके प्रधानमंत्री रामचंद्र काक पाकिस्तान के साथ विलय पर विचार कर रहे थे, क्योंकि उनकी पत्नी यूरोपियन थीं, इसलिए उनकी आंखें मुंद गईं थीं। इसी अनिश्चिता के दौर में 22 अक्टूबर 1947 को शेख की शह पर पाक फौज जीपों व ट्रकों पर सवार होकर कश्मीर में चढ़ी चली आई। इस संकट से मुक्ति के लिए हरिसिंह विवश हुए और उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को विलय-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद 27 अक्टूबर 1947 को कबिलाइयों को बेदखल करने के लिए हवाईजहाज से सेना भेज दी गई। भारतीय सैनिकों ने कबिलाईयों को खदेड़ दिया, किंतु दुर्गम क्षेत्र होने के कारण मुजफराबाद का पीओके, गिलगिट व बाल्टिस्तान क्षेत्र पाक के कैंजे में बना रहा। इस परिप्रेक्ष्य में नेहरू जल्दबाजी में संयुक्त राष्ट्र संघ चले गए। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् ने इसे विवादित क्षेत्र घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप युद्धविराम तो हो गया, लेकिन कश्मीर की शासन व्यवस्था को लेकर नेहरू, हरिसिंह और शेख के बीच ‘दिल्ली समझौता’ हुआ। इस समझौते के आधार पर ही नेहरू ने शेख के सुपुर्द जम्मू-कश्मीर की कमान सौंप दी। इसके बाद कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए 370 का अनुच्छेद पटेल और अंबेडकर के विरोध के बावजूद जोड़ दिए गए। लिहाजा अब वह समय आ गया है, जब गुलाम कश्मीर माने जाने वाले पीओके, गिलगिट व बाल्टिस्तान को पाक के शिकंजे से मुक्त कराकर जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बनाया जा सकता है।

 

लेखक, साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं। 

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: abroadeducationabroadlifeaustraliaeuropehindi vivekhindi vivek magazineindiainternationalmbbsmiddle eaststudyabroadusa

प्रमोद भार्गव

Next Post
वनवासी बहनों की २०,००० राखियाँ

वनवासी बहनों की २०,००० राखियाँ

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0