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सेक्युलरिज्म का चश्मा उतारें

सेक्युलरिज्म का चश्मा उतारें

by रवि अय्यर
in देश-विदेश, विशेष, सितंबर २०१९
2

दुनिया भारत को महान समझती है, हमारी आंखों पर पड़ा सेक्युरिज्म का परदा हमें अपनी पहचान को देखने नहीं दे रहा है। दुनिया हमारे नेतृत्व, हमारे अध्यात्म आदि को अपनाने के लिए आतुर बैठी है, हम ही कम पड़ रहे हैं।

भारत, नया भारत बनने की ओर मार्गक्रमण कर रहा है इसकी बानगी दिखाई देने लगी है। हमें इसे समझने की आवश्यकता है। लेख में आने वाले कुछ उदाहरणों से इसे समझा जा सकता है।

पांच-छ: वर्षों पूर्व तक जब देश का नेतृत्व वैश्विक स्तर पर लोगों के सामने आता था, तब उसे अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। परंतु आपने देखा होगा कि जब नरेंद्र मोदी अबु धाबी गए तब उन्हें लेने के लिए सुलतान और उसके सारे परिवार के लोग आए थे। सुलतान ने  सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया था कि मैं यहां एक भव्य मंदिर बनाने के लिए जगह देता हूं। पिछले सत्तर साल में अरब देशों में ऐसा होगा यह कोई सोच भी नहीं सकता था। जबकि 2014 के चुनाव के समय जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने, उस समय मीडिया में कहा जाने लगा कि नरेंद्र मोदी को वोट नहीं देना चाहिए। अगर वे प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो अरब देशों से हमें पेट्रोल मिलना बंद हो जाएगा। आज सारे अरब देशों में नरेंद्र मोदी का प्रवास हो चुका है।  जितना भव्य स्वागत इन देशों में नरेंद्र मोदी का हुआ है, उतना अन्य  किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष या प्रधानमंत्री का नहीं हुआ। उनके देश के जो बड़े-बड़े लोग हैं उनका भी नहीं हुआ।

एक और उदाहरण बताता हूं। डेविड कैमरून ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे।  प्रधानमंत्री चुने जाने के तीन-चार महीने बाद नरेंद्र मोदी वहां गए। उनके स्वागत में सत्तर हजार लोग इकट्ठा हो गए थे। डेविड कैमरून बिना बुलाए यह कहते हुए पहुंच गए कि मैं इस देश का प्रधानमंत्री हूं। देश में कहीं भी कार्यक्रम हो तो मुझे निमंत्रण की क्या जरूरत है? डेविड कैमरून ने बताया कि चुनाव के समय वे पूरे इंग्लैड में प्रवास कर रहे थे। उनकी सभा में 1000 से 2000 लोग उनका भाषण सुनने के लिए उपस्थित रहते थे। लेकिन इंग्लैड में अगर सत्तर हजार लोग एकत्र आए हैं तो यह केवल नरेंद्र मोदी कर सकते है, मैं भी नहीं। नरेंद्र मोदी विश्व स्तर पर कितने लोकप्रिय हैं यह उसका एक उदाहरण मात्र है।

ईरान और इराक का शिया-सुन्नी युद्ध चौदह सौ साल पुराना है। मोहम्मद पैगंबर जब जीवित थे, तभी उनकी एक पत्नी और बेटी के बीच झगड़े शुरू हो गए कि आगे चलकर सारी संपत्ति किसको मिलेगी। ये सम्पत्ति ही शिया-सुन्नी के विवाद का मूल कारण है। उनके दामाद का नाम था शियासत अली। संपत्ति शियासत अली को मिलनी चाहिए ऐसेे कहने वाले शिया बन गए और बाकी जो लोग उनकी पत्नी अलीशा के पक्ष में थे, वे सुन्नी बन गए। तब से यह युद्ध शुरू है। ईरान शियाओं का है और सऊदी अरब सुन्नियों का है।

भारत के विभिन्न पुरस्कारों में से ‘भारत रत्न’ सबसे बड़ा पुरस्कार है, जो किसी क्षेत्र विशेष में उत्तम कार्य करने पर किसी भारतीय को दिया जाता है। विदेशी लोगों को भी हमने ‘जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार’  प्रदान किए हैं जिन्हें प्राप्त करने वालों में नेल्सन मंडेला और मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद शामिल हैं। इसी प्रकार सऊदी अरब का सबसे बड़ा पुरस्कार सुलतान अब्दुलअजीज अलसाऊद के नाम पर है। यह पुरस्कार नवाज शरीफ, परवेज मुशर्रफ या अन्य किसी मुस्लिम राष्ट्र के प्रधानमंत्री को नहीं मिला। यह पुरस्कार मिला भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को।

सऊदी अरब का दुश्मन माना जाता है ईरान, क्योंकि वह शिया देश है। जब नरेंद्र मोदी ईरान गए तो वहां पर भी उनका भव्य स्वागत हुआ। बातचीत के दौरान पहले वहां के शासनकर्ताओं ने कहा कि हम भारत को रुपए की कीमत पर तेल देंगे, डॉलर की नहीं। इसके बाद उन्होंने कहा कि आप हमें तेल के बदले रुपए भी न दें बल्कि हमारे यहां सड़क बनवा दें। इस करार के बाद भारत ने वहां चाबहार बंदरगाह बनवाया और साथ ही बंदरगाह से अफगानिस्तान जाने के लिए हायवे भी बनाया। अब तो चाबहार बंदरगाह से लेकर मॉस्को तक का रास्ता बन गया है। बीच में कई मध्य एशियाई देश हैं। हमारा व्यापार आज भारत से चाबहार, चाबहार से सीधा रूस, अफगानिस्तान, मध्य एशिया तक  शुरू हो गया है। यह भारत की बहुत बड़ी जीत है। भारत के विपक्षी दल और कुछ मीडिया वाले कह रहे थे कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे तो हमारे देश को तेल नहीं मिलेगा, सब मुसलमान देश हमारे दुश्मन बन जाएंगे। परंतु हम सभी देख रहे हैं कि जो मुसलमान देश आपस में दुश्मन हैं वे भी भारत से दोस्ती कर रहे हैं। यह नरेंद्र मोदी का प्रभाव है।

 

विश्व में आज अमेरिका अर्जुन है, चीन भीम है परंतु धर्मराज युधिष्ठिर भारत है ।

 सउदी अरब का सबसे बड़ा पुरस्कार किसी मुस्लिम राष्ट्र प्रमुख को नहीं वरन् भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिला ।

 यमन में फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने का साहस भारत ही कर सका।

 भविष्य में कंम्प्यूटर को कमांड देने की भाषा संस्कृत होगी।

 भारत से पहले बन सकता है अबूधाबी में राम मंदिर।

यमन शिया देश है और सऊदी अरब सुन्नी देश है। उनके बीच में कई वर्षों से युद्ध हो रहा है। सऊदी अरब यमन पर हवाई हमले भी कर रहा है। यमन में नौकरी के लिए गए भारत के चार हजार आठ सौ लोग फंस गए थे। उनका इस युद्ध से कोई लेनादेना नहीं है। वहां उनकी जान को खतरा है। वहां न केवल भारत के लोग फंसे थे, बल्कि अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस आदि अन्य देशों के लोग भी फंसे थे। सभी देश सोच रहे थे कि उन्हें बाहर कैसे निकाला जाए। सभी देश  अपने लोगों को निकालने के लिए सऊदी अरब तथा यमन से युद्ध बंद करने के लिए कह रहे थे। परंतु सभी लोग असफल रहे। उस समय नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब के सुलतान को फोन करके निवेदन किया कि आप कुछ समय के लिए युद्ध विराम कीजिए। सुलतान ने मोदी जी को आश्वासन दिया कि अगले सप्ताह रोज एक घंटे के लिए युद्ध विराम किया जाएगा। इसी तरह यमन से भी निवेदन किया गया कि उनका  अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा खोल दिया जाए। यमन ने भी इसे स्वीकार किया। उस समय जनरल वी.के.सिंह कोे नरेंद्र मोदी के यमन भेजा। जनरल वी.के. सिंह वहां स्वयं खड़े रहे जहां युद्ध हो रहा था और सभी को बाहर निकाला। तब दुनिया भर के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति नरेंद्र मोदी  से निवेदन कर रहे थे कि उनके देश के लोगों को भी बाहर निकाल लें। उस समय भारत के चार हजार आठ सौ लोगों और अलग-अलग देशों के भी कुछ हजार लोगों को बाहर निकाला गया। जो काम रूस, अमेरिका, चीन नहीं कर सके वह भारत ने कर दिखाया।

2017-18 में दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता के लिए एक सर्वे हुआ। पहला क्रमांक था एंजेला मर्केल का, जो कि जर्मनी की चान्सलर हैं। दूसरे क्रमांक पर हैं मैकरॉन और तीसरे क्रमांक पर हैं, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी। आज एंजेला मर्केल का स्वास्थ्य इतना खराब है कि राष्ट्रगीत के समय भी वे खड़ी नहीं रह सकीं। उन्होंने घोषित कर दिया है कि वे आने वाला चुनाव नहीं लड़ेेंगी। इसका मतलब वे पहले क्रमांक पर नहीं रह सकती। फ्रांस में बेरोजगारी बढ़ रही है, वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, इसको लेकर मैकरॉन के खिलाफ फ्रांस में जोरदार आंदोलन चल रहा है। इसलिए वे भी द्वितीय क्रमांक पर नहीं रहेंगे। ट्रंप  का भी अमेरिका में कोई विशेष काम नहीं हुआ है। लेकिन दुनिया में जो सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव हुआ वह भारत में हुआ है। और वहां अभूतपूर्व यश पाकर पूर्ण बहुमत से नरेंद्र मोदी आए हैं। अत: आज अगर यह गणित लगाया जाए तो एक बात ध्यान में आएगी कि प्रथम क्रमांक पर नरेंद्र मोदी होंगे।

महाभारत में पांडवों की विजय में सबसे बड़ा भाग अर्जुन का था। अर्जुन के बिना पांडव जीत ही नहीं सकते थे। आज दुनिया में अर्जुन की तरह अमेरिका है जिसके पास सबसे ज्यादा अणु बम हैं, जो दुनिया को एक बार नहीं सौ बार नष्ट कर सकता है। दुनिया की बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां जैसे डेल कॉपोरेशन, अ‍ॅपल, गुगल, अमेझॉन, मायक्रोसॉफ्ट सभी अमेरिकी हैं। महाभारत में जब दुर्योधन को मारने की बारी आई तो वह क्षमता केवल भीम में थी। आज मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में चीन भीम की तरह है। दुनिया भर के लिए जो सामान चाहिए टेलीविजन, एअर कंडीशन, कार हर चीज चीन बनाता है। महाभारत के बाद जब राजा चुनने की बारी आई तो सभी लोग कृष्ण की ओर देख रहे थे कि वे किसे राजा बनाते हैं। परंतु उन्होंने न अर्जुन को चुना न भीम को। श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को चुना, क्योंकि धर्मराज युधिष्ठिर में बहुत अच्छे गुण हैं। वे सारी दुनिया को समदृष्टि से देखते हैं। उनका कोई शत्रु नहीं है। शत्रु को भी माफ करने का बड़ा उदार मन उनके पास है। आज विश्व में अर्जुन की तरह अमेरिका है, भीम की तरह चीन है, लेकिन दुनिया को साथ लेकर चलने की बात केवल भारत कर सकता है। भारत ही धर्मराज युधिष्ठिर बन सकता है।

हम सभी भगवद् गीता का बहुत आदर करते हैं परंतु उससे कोई सीख नहीं लेते और न ही उसे अपने जीवन का एक भाग बनाते हैं। सन 1971 में तुर्की ने एक पत्र के द्वारा भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा कि हम आपकीभगवद् गीता पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। भारतीय राजदूत ने जब इसके कारणों का पता लगाया तो वहां के एक मंत्री ने बताया कि, “यहां के कुछ छात्र तुर्की की सेना के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे। हमने जब उनके छात्रावास में जाकर देख कि वे किस प्रकार कीपुस्तकें पढ़ रहे हैं। जिन पुस्तकों के बारे में हमें जानकारी नहीं थी, उस पर हमने प्रतिबंध लगा दिया। भगवद् गीता जर्मन भाषा में अनुवादित थी, लेकिन उसका अर्थ मालूम नहीं है इसलिए हमने इस पर प्रतिबंध लगाया। तब भारतीय राजदूत ने उन्हें समझाया कि अगर आप युद्ध पर विराम चाहते हैं तो भगवद् गीता ही आपकी मदद कर सकती है।” यह मामला वहां के समाचार पत्रों में चर्चा का विषय बन गया था। भगवद् गीता पर से प्रतिबंध हटने के बाद वहां के एक विद्यार्थी ने सोचा कि ऐसा क्या है इस किताब में पढकर देखना चाहिए। उसने जर्मन भाषा में अनुवादित उस पुस्तक को पढ़ा। उसे पुस्तक पढ़कर बहुत अच्छा लगा। पुस्तक को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए भगवद् गीता का तुर्की में अनुवाद किया। उस लड़के का नाम था ‘बुलंद एसेविट’, जो कि आगे जाकर तुर्की का सबसे अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहने वाला व्यक्ति बना।

आज दुनिया के अनेक देशों में से जो टॉप 50 यूनिवर्सिटीज  है, वहां मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम में भगवद् गीता अनिवार्य विषय हो गया है। हमने भगवद् गीता को यूनिवर्सिटीज के पाठ्यक्रम में लाया नहीं है और भारत टॉप 100 में पहुंचा नहीं है।

जो हाल भगवद् गीता का है वही संस्कृत का भी है। दुनिया के 300 से भी अधिक विश्वविद्यालयों या अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में संस्कृत सिखाई जाती है। क्योंकि सबका मानना है कि अभी 4जी चल रहा है कुछ समय में 5जी, 6जी आएगा। तब तक की-बोर्ड हट जाएगा, माउस हट जाएगा। आप बोलेंगे और कम्प्यूटर लिखता जाएगा। उसे जब अंग्रेजी, उर्दू, अरेबिक कमांड दी जाएगी तो वह बहुत गलतियां करेगा। परंतु अगर संस्कृत में कमांड दी जाएगी न्यूनतम गलतियां होंगी। कम्प्यूटर से अपना काम कराने के लिए आने वाले वर्षों में दुनिया भर के लोग संस्कृत बोलने लगेंगे। संस्कृत प्रचलित भाषा हो जाएगी। अत: बहुत सारे विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने संस्कृत सिखाना शुरू कर दिया है।

अबु धाबी के सुलतान ने जब वहां के लोगों से कहा कि यहां मंदिर बनाइए तो लोग डर रहे थे कि मंदिर का आकार क्या होगा? उन्होंने सुलतान के सामने दो नक्शे रखे। एक भव्य मंदिर का, जो दूर से दिखे और दूसरा एक कमरे का जिसमें भगवान की मूर्ति रखी हो।  दोनों नक्शों को देखने के बाद सुलतान ने कहा कि ‘मैं आपको स्पष्ट बता रहा हूं, मैंने जगह दी है भव्य मंदिर बनने के लिए। यह एक कमरे में बना हुआ मंदिर मुझे पसंद नहीं है। दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर यहां बनाइए।’ राम मंदिर अयोध्या में बनाने के लिए आपको सेक्युलरों की राय लेनी पड़ती है। हो सकता है अयोध्या में मंदिर बनने के पहले ही अबु धाबी में मंदिर बन जाए।

महात्मा गांधी का एक बहुत प्रिय भजन है ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिए’। यह गीत बहुत वर्ष पूर्व गुजराती भाषा में लिखा गया है।   भारत सरकार ने यह प्रयास किया कि इस गीत को दुनिया भर के उत्कृष्ट गायकों द्वारा गाया जाए वह भी बिना अनुवाद किए अर्थात गुजराती में ही और हमने देखा दुनिया के कई देशों के गायकों ने इसे गाया है।

आज से ठीक 50 साल पहले 1969 में पहली बार गठन हुआ ओआईसी अर्थाात ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज का।  उनका पहला सम्मेलन हुआ रब्बात में। इस्लामिक देश होने के कारण उसमें पाकिस्तान पहुंच गया था। भारत ने कहा कि पाकिस्तान से भी  ज्यादा मुसलमान भारत में हैं, इसलिए हम भी उसमें आएंगे। अत: भारत के प्रतिनिधि के रूप में फकरुद्दीन अली अहमद को वहां भेजा गया। उस समय पाकिस्तान ने उसका विरोध किया और पाकिस्तान के विरोध को मानते हुए ओआईसी ने भारत को निमंत्रण नहीं दिया। फकरुद्दीन अली अहमद के कमरे की बिजली और पानी बंद कर दिया। उनको कार्यक्रम में जाने नहीं दिया गया। अब ठीक 50 साल बाद उसी ऑर्गेनायजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज ने निमंत्रण देकर सुषमा स्वराज को अध्यक्षता करने के लिए बुलाया। सुषमा स्वराज न तो स्वयं मुस्लिम थी और न ही किसी मुस्लिम देश से थी, फिर भी उन्हें निमंत्रण देकर उनको वहां भाषण देने के लिए बुलाया। पाकिस्तान ने इसका पुरजोर विरोध किया। उसने कहा- इससे हमारा अपमान होगा, इस्लाम खतरे में आ जाएगा। ओआईसी के अधिकारियों ने पाकिस्तान को दो टूक लफ्जों में कह दिया आपको आना है तो आइए नहीं आना तो मत आइए। सुषमा स्वराज वहां गईं और उनका बहुत अच्छा भाषण हुआ।

ये सारे उदाहरण साबित करते हैं कि दुनिया आपको महान समझती है, हमारी आंखों पर पडा सेक्युरिझम का परदा हमें अपनी पहचान को देखने नजहा है। दुनिया हमारे नेतृत्व, हमारे अध्यात्म आदि को अपनाने के लिए आतुर बैठी है, हम ही कम पड़ रहे हैं।

                                                                                                                                     लेखक रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक तथा लेखक हैं ।

 

 

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रवि अय्यर

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Comments 2

  1. Datta says:
    6 years ago

    ?

    Reply
  2. डॉ. पवार सुनील says:
    6 years ago

    बोधप्रद व विचारप्रवर्तक

    Reply

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