ऐसी दरिंदगी पर क्या कहें क्या न कहें ?

पूरे देश में उबाल है। वास्तव में हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक 26 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक बर्बर दुष्कर्म एवं हत्या ने फिर एक बार पूरे देश को हिला दिया है। 2012 के निर्भया कांड की सिहरन भरी यादें ताजा हो गईं हैं। इन दोनों घटनाओं को जघन्यतम अपराधों की श्रेणी में क्या नाम दिया जाए, इसके लिए शब्द तलाश करना मुश्किल है। हर विवेकशील व्यक्ति व्यथित एवं क्षुब्ध है। हालांकि चारों दरिंदे पकड़े जा चुके हैं। जिस तरह के सबूत उनके खिलाफ मिले हैं उनके आधार पर उनको सजा मिलनी भी तय है। स्थानीय बार एसोसिएशन ने तय किया है कि कोई वकील उनका मुकदमा नहीं लड़ेगा। किंतु प्रश्न उससे बड़ा है। आखिर देश के एक महत्वपूर्ण मेट्रो शहर में यदि रात के साढ़े नौ बजे के बीच चार लोग किसी पढ़ी – लिखी प्रोफेशनल लड़की के साथ ऐसा करने का दुस्साहस कर सकते हैं तो आम शहरों और कस्बों में इससे बुरी दशा होगी। हैदराबाद की घटना के ठीक दूसरे दिन तमिलनाडु और झारखंड में सामूहिक बलात्कार की घटना हो गई। राजस्थान में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या हो गई तो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में पुलिस की कार में एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार हुआ। इसके पहले बिहार के राजगीर की घटना सुर्खियों में थी जहां एक नाबालिग लड़की से 11 लोगों ने सामूहिक बलात्कार कियां। आज वह लड़की विक्षिप्त अवस्था में है। पता नहीं और कितनी घटनाएं हो रही होंगी जो हमारे संज्ञान में भी नहीं आतीं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा वर्ष 2016 में जारी आंकड़ो के अनुसार, देश के बीस लाख से अधिक की आबादी वाले 19 प्रमुख शहरों में दुष्कर्म की सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं। वर्ष 2016 में देश में महिलाओं के साथ दुष्कर्म के कुल 38,947 मामले दर्ज हए थे। इसके अनुसार हर दिन औसतन 107 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुईं जिनमें से करीब 33 प्रतिशत यानी लगभग 13,803 मामले अकेले देश की राजधानी दिल्ली के थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार भारत में हर 54वें मिनट में एक महिला के साथ दुष्कर्म की घटना होती है। सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ वीमेन के हिसाब से भारत में प्रतिदिन 42 महिलाएं यौन दुष्कर्म का शिकार होतीं हैं। इस हिसाब से प्रत्येक 35 मिनट में एक दुष्कर्म होता है। अध्ययन यह भी बताता है कि यौन अपराधों में 27 प्रतिशत अपराध पड़ोसियों द्वारा किए जाते हैं। वहीं 22 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं जिनमें शादी के झांसे के नाम पर महिला का यौन शोषण किया जाता है। नौ प्रतिशत घटनाओं में तो परिवार के सदस्य ही शामिल पाए गए। 2016 में पॉक्सो कानून के तहत बच्चियों के साथ दुष्कर्म के 64,138 मामले दर्ज हुए। इस दौरान देश भर में बच्चों के खिलाफ कुल अपराध के मामलों में 13.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ‘वर्ल्ड विजन इंडिया’ द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार देश का हर दूसरा बच्चा यौन उत्पीड़न का शिकार है। प्रत्येक पांच में से एक बच्चा यौन उत्पीड़न के खौफ से खुद को असुरक्षित महसूस करता है। हर चार में से एक परिवार ने बच्चे के साथ हुए यौन शोषण की शिकायत ही दर्ज नहीं करवाई। पीड़ितों में लड़के – लड़कियों की संख्या लगभग बराबर बताई गई है। लगभग 98 प्रतिशत मामलों में बच्चों के परिचित या संबंधी ही यौन शोषण के आरोपी निकले। महिला एवं बाल विकास मंत्रलय ने भी अपनी रिपोर्ट में देश के 53.2 फीसद बच्चों के यौन शोषण का शिकार होने की बात स्वीकारी है। दिल्ली पुलिस के क्राइम रिकॉर्ड के अनुसार हर हफ्ते करीब दो बच्चों के साथ यौन शोषण होने के मामले दर्ज होते हैं। यूनिसेफ द्वारा वर्ष 2005 से 2013 के बीच किशोरियों पर किए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि भारत की 10 प्रतिशत लड़कियों को 10 से 14 वर्ष से कम उम्र में तथा 30 प्रतिशत को 15 – 19 वर्ष के बीच यौन र्दुव्यवहार से गुजरना पड़ा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में प्रत्येक 155 मिनट पर 16 से कम उम्र के एक बच्चे तथा प्रत्येक 13 घंटे पर 10 से कम उम्र के एक बच्चे का यौन शोषण होता है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2016 में न्यायालयों दुष्कर्म के 1,52,165 मुकदमे चल रहे थे।

ये आंकड़े हमारे देश में महिलाओं, बच्चियों और बच्चों के साथ यौन अपराध की स्थिति बयान करते हैं। हालाकि बलात्कार के अनेक मामले जांच के बाद झूठे भी पाए गए। सहमति से यौनाचार भी संबंध बिगड़ने पर बलात्कार के मुकदमे के रुप में सामने आ जाते है। किंतु हमारे देश में आम दुष्कर्म और बर्बर दुष्कर्म की स्थिति भयावह है, इसे स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं है। हैदाराबाद की जितनी बात सामने आई है अगर वह सच नहीं होता तो सहसा उन पर विश्वास करना कठिन होता। पूरे घटनाक्रम से साफ है कि चारों दरिंदों ने योजनाबद्ध तरीके से बलात्कार, हत्या एवं उसका शव जलाने की घटना को अंजाम दिया। उसने लड़की को टॉल प्लाजा पर अपनी गाड़ी लगाकर जाते देखा था और लौटने का इंतजार कर रह थे। मृतका की बहन के अनुसार मेरी बहन ने मुझे रात 9.22 बजे फोन किया था। वह कई लोगों के साथ गाड़ियों के बीच थी और बोली कि मैं बहुत डर रही हूं। कुछ ही मिनट बाद जब दोबारा बहन ने फोन किया तो स्विच ऑफ आने लगा। साफ है कि उन हैवानों ने ही फोन छीनकर बंद कर दिया। उन दरिंदों ने पहले उस लड़की की स्कुटी का एक टायर पंचर किया। जब वह लौटी तो उसकी मदद का प्रस्ताव देकर आगे ले गए और फिर एक जगह जहां उनकी ट्रक थी उसके पीछे जबरन ले जाकर वह सब किया जिसकी कल्पना कोई दुःस्वप्नों में भी नहीं कर सकता। इन दरिंदों ने स्वयं शराब पी और जबरन लड़की को भी पिलाने की कोशिश की। एक – एक ने कई – कई बार बलात्कार किया। पुलिस की जांच से सामने आया है कि दो आरोपियों, शिवा और नवीन ने पहले नैशनल हाइवे 44 पर शम्शाबाद और शादनगर के बीच पहले रास्ते की रेकी की। वहीं, उन्होंने चट्टनपल्ली गांव में एक अंडरपास के नीचे शव को जलाया था। ये दोनों पीड़िता की बाइक से आगे चल रहे थे जबकि शव के साथ बाकी दोनों आरोपी ट्रक में थे। शिवा और नवीन ने शव जलाने के लिए पहले दो – तीन दूसरी जगहें भी खोजी थीं लेकिन लोगों के होने की वजह से वहां नहीं रुके। हाइवे पर जब अंडरपास देखा तो वहां सन्नाटा देखकर शव को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद वे चले गए लेकिन बाद में फिर लौटे, यह देखने के लिए कि शव पूरी तरह जला है या नहीं।

इस पूरे घटनाक्रम के कई पहलू हैं। इसमें सबसे पहला है पुलिस प्रशासन की भूमिका। लड़की का फोन स्विच ऑफ होने पर परिवार टॉल प्लाजा पर उसे खोजने पहुंचा। नहीं मिलने पर पुलिस थाने पहुंची। लेकिन पुलिस कह रही है कि दूसरे थाने जाओ। दूसरे थाने में भी आरंभ में पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया। अगर पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की होती तो संभवतः उस दुर्भाग्यशाली लड़की को दरिंदों के चंगुल से छुड़ाया जा सकता था। गुस्से में लोग फिर से कानून को कड़ा करने की मांग कर रहे हैं। संसद में भी कानून – कानून शब्द ज्यादा सुनाई दिया। सच यह है कि कानून हमारे यहां है। निर्भया कांड के बाद 2013 में निर्भया कानून बना। वह अत्यंत ही कड़ा कानून है जिसमें लड़कियों को घुरने से लेकर स्पर्श करने तक को अपराध की श्रेणी में ला दिया गया है। इसमें संशोधन भी किया गया। उसी समय बाल यौन शोषण पर भी पॉस्को जैसा कड़ा कानून बना। मोदी सरकार ने इसी वर्ष पॉस्को कानून में संशोधन कर 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ यौन दुष्कर्म पर फांसी की सजा दी। बच्चों के साथ दुष्कर्म पर भी कड़ा कानून बना दिया गया है। कानून को लागू करने की जिम्मेवारी तो पुलिस की है। हैदराबाद में पुलिस महकमा यह समझने को तैयार ही नहीं था कि एक लड़की का फोन बात करते – करते स्विच ऑफ हो गया तथा वह समय पर घर नहीं लौटी तो अनहोनी हो सकती है। पुलिस के व्यवहार की यह ऐसी त्रासदी है जो इस तरह के ज्यादातर मामलों में सामने आती है। यौन अपराधी इतने दुस्साहसी हो गए हैं कि वो सामूहिक बलात्कार करते हुए वीडियो बनाते हैं और लड़की को धमकी देते हैं कि यदि किसी को बताया तो वीडियो वायरल कर दूंगा। तमिलाडु के कोयम्बटूर में यही हुआ। एक पार्क में जन्म दिवस मनाने गई लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार कर वीडियो बनाया और धमकी दिया। लेकिन लड़की ने माता – पिता को बताया और मामला दर्ज हो पाया। बिहार के राजगीर में नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद तो बलात्कारियों ने अपना बनाया हुआ वीडियो वायरल भी कर दिया। इसको दुस्साहस नहीं तो और क्या कहेंगे ? लड़की के परिवारवाले यह मानकर की इससे इज्जत चली जाएगी चुप रह गए। वीडियो से लड़की की पहचान हुई और फिर वहीं जब लड़की को लेकर कुछ लोग थाने पहुंचे तो वहां प्रभारी ने उसी पर प्रश्न दागना शुरु कर दिया। वहां भी लोगों को सड़क पर उतरना पड़ा।

पुलिस की ऐसी शर्मनाक भूमिका बार – बार सामने आती है। आखिर इसका अंत कब होगा ? ऐसे ज्यादातर बर्बर अपराधों के साथ कानून – व्यवस्था की एजेंसियों की विफलता सामने आती है। हैदराबाद में तीन पुलिसवाले तत्काल निलंबित कर दिए गए हैं। हालांकि कायदे से उन पर मुकदमा दर्ज होना चाहिए था। लेकिन राजगीर के मामले में तो यह भी नहीं हुआ। जाहिर है, पुलिस को कानून के अनुरुप संवेदनशील एवं त्वरित कार्रवाई की मानसिकता पैदा करने के लिए काफी कुछ करने की आवश्यकता है। जब भी ऐसी घटना होती है हमारे राजनेता आक्रोश और दुख व्यक्त करते है। इस समय भी संसद में यही हुआ है। जितना कड़ा कानून बन गया है वह पर्याप्त है। इसमें पुलिस की जिम्मेवारी भी तय है। मूल बात ऐसे मामलों में पुलिस की मानसिकता और आचरण में बदलाव का है। इसके लिए निस्संदेह, पुलिस को अलग से छोटे प्रशिक्षण की आवश्यकता है। पुलिस की अगंभीरता से अपराधियों का हौंसला बढ़ता है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि अगर किसी प्रभावी परिवार का मामला हो तो पुलिस अपने – आप सक्रिय हो जाती है। सामान्य लोगों के साथ पुलिस का व्यवहार बदला रहता है। वैसे अपने – आप में यह भी आश्चर्य का विषय है कि हैदराबाद जैसी जगह लड़की को स्कुटी के साथ ले जाने, उसे घंटों ट्रक की आड़ में रखकर बलात्कार करने से लेकर हत्या तथा शव जलाने तक किसी पुलिस वाहन की नजर नहीं गई ! यह अनुभव आ रहा है कि एक विशेष समुदाय बहुल क्षेत्र के आसपास अपराध की ज्यादा घटनाएं हो रहीं है। कुछ राज्यो में सरकार की वोट बैंक नीति को देखते हुए पुलिस सामान्यतः उनको नजरअंदाज करती है। यह खतरनाक प्रवृति है। इसके साथ न्याय में देरी, ऐसा सच है लगता है जिससे निकलने का कोई उपाय ही नहीं। निर्भया कांड के 12 वर्ष बाद अपराधियों की सजा क्रियान्वित नहीं हुई है। एक अपराधी ने तो जेल में ही आत्महत्या कर लिया। एक नाबालिग होने के कारण छोटी सजा काटकर बाहर आ गया। चार अपराधियों को न्यायालय फांसी की सजा दे चुका है। इसे संयोग कहें या और कि हैदराबाद घटना के दूसरे दिन ही दिल्ली सरकार ने इनमें से एक की दया याचिका खारिज करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दिया है। जाहिर है, माहौल को देखते हुए उनको निकट भविष्य में फांसी पर लटकाया जा सकता है। फास्ट ट्रैक न्यायालयों की संख्या तो बढ़ाने की आवश्यकता है ही, लेकिन फास्ट ट्रैक न्यायालय अगर त्वरित सुनवाई कर फैसला दे देता है तो भी उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय तक काफी समय लगता है। यह हमारे देश की स्वतंत्र न्यायपालिका की जिम्मेवारी है कि ऐसे मामलों की निचले स्तर के फास्ट ट्रैक न्यायालय के साथ – साथ उच्चतम न्यायालय तक नियत अवधि में सुनवाई करने के नियम बना दे। यह न्यायपालिका को करना पड़ेगा।

इसके साथ हमें समाज की भूमिका पर भी विचार करना होगा। आज शहरों की हालत यह है कि अगर दो – चार अपराधी या मनचले किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ करें तो हम बगले झांकते निकलने की कोशिश करते हैं। आम सोच यह है कि कौन झंझट मोल ले। ऐसी अमानवीय कायरता के रहते अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा ही। हम नहीं सोचते कि कल हमारे परिवार के साथ भी ऐसा हो सकता है। शहरों में मनुष्य प्रायः स्वयं को अकेला पाता है इसलिए किसी तरह के झंझट से बचना चाहता है। यह मानसिकता बदलनी होगी और सबसे बढ़कर हमारी सामाजिक संस्कृति लड़कियों को लेकर रुढ़िवादिता का शिकार है। यह आम धारणा है कि अगर लड़की के साथ बलात्कार की बात सार्वजनिक हो गई तो परिवार की इज्जत चली जाएगी और फिर इसकी शादी तक नहीं होगी। यह सोच निराधार नहीं है। समाज के बड़े वर्ग का व्यवहार इसी तरह का होता है। लड़की और परिवार को तरह – तरह के उलाहने और छींटाकशी का सामना करना पड़ता है। लेकिन इससे बाहर निकलना ही होगा। इस व्यवहार के कारण न जाने कितने बलात्कारी अभ्यस्त अपराधी हो जाने के बावजूद हमारे – आपके बीच घूमते रहते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि लड़कियों – महिलाओं के साथ यौन दुराचार का कानूनी पहलू तो है और यह महत्वपूर्ण है लेकिन इसका सामाजिक – सांस्कृतिक पहलू भी काफी मायने रखता है।

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