नदी का स्वास्थ्य

हमारी परम्परा ने नदी को एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में देखा है, जो सामाजिक, सांस्कृतिक व भोगौलिक परिवेश को अपने में समेटे हुए प्रवाहित होती है। नदियाँ साक्षी हैं मनुष्य के उस आचार-व्यवहार की जिसके मूल में प्रकृति के साथ साहचर्य का भाव एक मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित रहा। नदियाँ और उनके किनारे बसने वाले जीव-जंतु, पहाड़, वन, वनवासी, सब मिलकर एक जीवन तंत्र बनाते हैं। यह तंत्र इसलिए है क्योंकि इसमें एक अनुशासन है। यह अनुशासन थोपा हुआ नहीं बल्कि स्वाभाविक है। किंतु पिछले कुछ दशकों से जब से समाज ने नदियों और प्राकृतिक संसाधनों को उपभोक्ता की नजर से देखना शुरू किया है, इस जीवन तंत्र की लय टूटने लगी है। प्रकृति के साथ हमारे संबंध की कड़ी साहचर्य न होकर बाजार हो गया है। परिणाम स्वरूप नदियाँ ही नहीं उनका पूरा परिवेश जिसमें जैव-विविधता, कृषि, लोक संस्कृति, आजीविका शामिल हैं, सभी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। नदियों का नालों में बदलना या सुखना सिर्फ एक भोगौलिक बदलाव नहीं बल्कि संस्कृति का रस विहीन शुष्क हो जाने जैसा है।

नदी एक जीवमान इकाई है, उसका स्वास्थ्य भी अच्छा-बुरा होता रहता है। नदी के विभिन्न तंत्र स्वयं को स्वस्थ रखते हुए संपूर्ण नदी को स्वस्थ बनाए रखते हैं। नदी में स्वयं को स्वस्थ रखने की वैसी ही शक्ति होती है जैसे किसी मनुष्य अथवा अन्य जीवों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है। वह कई कारणों से बीमार भी होती है। लम्बे समय तक ध्यान न दिया जाए तो वह विभिन्न प्रकार के असाध्या रोगों से पीड़ित हो जाती है। अतः मनुष्य की तरह प्रत्येक नदी का भी नियमित स्वास्थ्य परीक्षण होना चाहिए।

नर्मदा समग्र के संस्थापक एवं पूर्व केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री, स्व. अनिल माधव दवे जी द्वारा ‘नर्मदा नदी स्वास्थ्य सूचकांक’ की कल्पना कर इस पर वर्ष २०११-१२ में कार्य आरंभ किया था। इसी कड़ी में विद्यार्थियों और सामाज को साथ लेकर Community Based Monitoring System आधारित ‘जल परीक्षण कार्यक्रम’ का संचालन संस्था द्वारा वर्ष २०१४-१७ तक किया गया।

जिस प्रकार सभ्य समाज में मनुष्य के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाता है। उसके बीमार होने पर उपचार किया जाता है। बीमारी असाध्य न बने इस हेतु भागीरथ प्रयत्न किए जाते हैं। वैसे ही प्रयत्नों कि आवश्यकता नदी व उसके जलग्रहण क्षेत्र में भी सतत् होते रहना चाहिए। इसकी पहली आवश्यकता है की उसके स्वास्थ्य की निरंतर निगरानी होती रहे। इस हेतु नर्मदा समग्र ने नर्मदा नदी स्वास्थ्य सूचकांक की रचना की। वर्ष २०११-१२ और २०१४-१७ में उसके विभिन्न पहलुओं को परखने और समझने के लिए समाज के साथ मिलकर इस दिशा में कार्य किया। इस कार्य से निकले परिणाम, निष्कर्ष एवं अन्य जानकारियों का संकलन कर रिपोर्ट “Developing an Information Management System for Narmada River Health Index” तैयार की गई है जिसे ISBN भी आवंटित हुआ।

नर्मदा समग्र द्वारा नर्मदा नदी स्वास्थ्य सूचकांक संबंधित रिपोर्ट Developing an Information Management System for Narmada River Health Index कि प्रथम प्रति केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी को अगस्त २०१९ में भेंट कर नर्मदा जी के विषय में और संस्था द्वारा किए जा रहे कार्यों व प्रयासों के बारे में अवगत कराया गया। माननीय मंत्री जी ने इस प्रयास कि सराहना करते हुए इसे अधिक जनोन्मुखी बनाने की आवश्यकता प्रतिपादित की। इसमें अन्य आयामों पर अधिक अध्ययन व कार्य करने के लिए सुझाव दिए।

नर्मदा जी मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है और इसका जल कुछ राज्यों के लिए बिजली, कृषि व पेयजल का प्रधान कारण है। बदलते परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता है कि हम इसके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें और इसके विभिन्न पहलू जैसे जल की मात्रा, गुणवत्ता, जलग्रहण क्षेत्र में मिट्टी का स्वास्थ्य, समाज का व्यवहार, उद्योगों व रासायनिक कृषि से हो रहे दुष्परिणाम, अवैध खनन, वन घनत्व में कमी, जलीय जीवन, जैव-विविधता इत्यादि आयाम जो नदी के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं उनका वैज्ञानिक, सामाजिक और पर्यावरणीय अध्ययन करना चाहिए।

नदी स्वास्थ्य सूचकांक को लेकर दुनिया भर में प्रयास व अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। नदी तंत्र के सूचकों को लेकर कई प्रकार के अनुसंधान हुए भी हैं, पर ज़्यादातर जल की गुणवत्ता से संबंधित ही हैं। कई अन्य सूचक या नदी परिस्थितिकी के अन्य आयामों पर भी अलग से कार्य हुए हैं और हो भी रहे हैं लेकिन इन सबको समग्रता से देखने व उस पर कार्य की आवश्यकता है।

इसमें कोई दो मत नहीं की माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा देश को स्वच्छ भारत का जो नारा दिया, स्वच्छ भारत अभियान जो चलाया यह बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसके प्रभाव सबके सामने है। लोगों में जागरूकता आइ है, हम सब थोड़ा ही सही प्रयास करने लगे हैं स्वच्छता बनाए रखने का। नर्मदा समग्र द्वारा विगत दस वर्षों से स्वच्छता को लेकर विशेष करके नदी के किनारों, घाटों पर सफ़ाई को लेकर, लोगों को नदी व उसके आस-पास गंदगी न करने को लेकर चल रहे कार्य को भी और बल मिला। इससे इतना तो तय है की जब समाज और सरकार कुछ गतिविधियों को साथ में लेकर चलती है तो वह निश्च्यित ही सफल होती है। और अकेले कार्य करने की जगह जब एक टीम की तरह काम होता है तो उसके प्रभाव भी अलग ही होते हैं।

दवे जी कहते थे “इस महत्वपूर्ण समय में जब सरकार और समाज पानी के काम के लिए साथ आ रहे हैं, हम भी हमारी नदियों को सदानीरा बनाने हेतु अपनी भूमिका तय करें। अपने विचारों की क्रियान्विती हेतु हमें चार स्तरों पर सोचना चाहिए, मैं क्या करूँ, हम क्या करें, समाज क्या करे और सरकार क्या करे? इन बिंदुओं पर विमर्श करने से हमें नदियों के प्रति अपने विचार और व्यवहार को बदलने हेतु एक कार्ययोजना अवश्य मिलेगी।”

दुनिया भर में कई लोग, संस्थाए अपने विवेक-विचार से नदियों और उनके आस-पास के जीवन को संरक्षित करने की मुहिम में लगे हैं। हमारे देश में भी एसे प्रयास हो रहे हैं। मगर जितनी बड़ी चुनौती है, उसे देखते हुए हमें और अधिक लोगों, समुदायों, संगठनों, विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों को जोड़ना होगा।

नर्मदा स्वास्थ्य सूचकांक को लेकर अनिल माधव दवे जी द्वारा २०१२ में लिखित —

नर्मदा हो या अन्य कोई छोटी-बड़ी नदी सब पानी का जीवित प्रवाह है, ‘‘जीवित तंत्र है’’। अपने जल ग्रहण क्षेत्र से वे जल लेती हैं, जंगलों से साँस लेती हैं, उसके विभिन्न तंत्र स्वयं को स्वस्थ रखते हुए संपूर्ण नदी को स्वस्थ बनाये रखते हैं। नदी में स्वयं को स्वस्थ बनाने की वैसी ही शक्ति होती है जैसे किसी मनुष्य अथवा जीव में उससे व्यवहार करने वाले लोग उनमें बनी हुई सामाजिक रचनाएँ, उद्योग, सरकारी नीतियाँ व व्यवहार उसे अस्वस्थ या स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इस प्रकार सभ्य समाज में प्रत्येक मनुष्य के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाता है। उसके बीमार होने पर उपचार किया जाता है। बीमारी असाध्य न बने इस हेतु भगीरथ प्रयत्न किये जाते हैं वैसे ही प्रयत्नों की आवश्यकता नदी व जलग्रहण क्षेत्र में भी सतत् होती रहना चाहिए। इसकी पहली आवश्यकता है कि उसके स्वास्थ्य की निरंतर निगरानी होती रहे। अगर कहीं किसी भी रूप में कोई रोग ध्यान आए तो उसका तत्काल निदान किया जाना चाहिए। इस हेतु नर्मदा समग्र ने नदी स्वास्थ्य सूचकांक कार्यक्रम की रचना की। वर्ष में तीन-चार बार उसके विभिन्न पहलुओं को परखना उद्देश्य था और है ताकि होने वाले किसी भी प्रकार के नकारात्मक प्रभाव अर्थात रोगों को समय रहते समझ लें। इन स्वास्थ्य सूचकांकों से जो निष्कर्ष निकलेंगे वे भविष्य में प्रयत्नों की दिशा तय करेंगे यह अपेक्षा है।

जिस तरह देश में उच्च गुणवत्ता वाले एम्स जैसे मानवीय चिकित्सा संस्थन आकार लिये हुए हैं बहुत ही अच्छा हो कि वैसे ही देश की नदियों के स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिये नदी आयुर्विज्ञान संस्थान बने जो नदियों के स्वास्थ्य पर सतत् निगरानी रखते हुए सरकार, समाज व सामाजिक संगठनों के कार्यों की दिशा तय करें।

This Post Has 5 Comments

  1. Sir
    नदी/तालाब के पारितंत्र मैं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से व्यवहार में लाये जाने वाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रथाएँ

  2. Unfortunately, the Narmada example is totally inappropriate considering how Narmada was treated when Mr Dave was Environment Minister or the govt of his party has been treating it.

  3. Anonymous

    अत्यंत गंभीर एवं महत्वपूर्ण विषय पर बहुत ही सहज एवं ज्ञानवर्धक लेख। निश्चय ही माँ नर्मदा समेत अन्य नदियों के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है।

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