सीएए विरोध की वास्तविकता?

भारत के अलावा दुनिया में कौन सा देश ऐसा है जो इन्हें शरण देगा? मुसलमानों के लिए तो घोषित रूप से दुनिया में 50 से अधिक देश है, जहाँ उन्हें शरण मिल जाएगी। लेकिन इन हिन्दू, सिख, बौद्ध, और जैनों के लिए तो एकमात्र भारत ही आखिरी उम्मीद है।

देश में दोबारा सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार तेजी के साथ देशहित में ऐतिहासिक कड़े फैसले ले रही है। जिसमें नागरिकता संशोधन कानून भी शामिल है। इस कानून का विरोध होने के कारण देश में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। मोदी सरकार के साहसिक फैसलों से विपक्षियों को ऐसा लगाने लगा है कि यदि लंबे अरसे से अटके – लटके हुए विवाद व मामले आसानी से ऐसे ही सुलझने लगे तो 2024 में भी वह मोदी सरकार को हरा नहीं पाएंगे और फिर से देश में बहुमतों से मोदी सरकार आ जाएगी। जिससे कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों की दुकान बंद हो जाएगी और उनके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह उठने लगेगा।

विपक्षी पार्टियों की संदिग्ध गतिविधियां !

नागरिकता कानून में मोदी सरकार ने केवल इतना ही संशोधन किया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान से धार्मिक भेदभाव व प्रताड़ना का शिकार हुए अल्पसंख्यक समुदाय के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन व ईसाईयों को नागरिकता प्रदान की जाएगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह आदि भाजपा नेताओं के द्वारा बार – बार कहा जा रहा है कि इस कानून से केवल शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी, किसी देशवासी की नागरिकता छिनी नहीं जाएगी। बावजूद इसके विरोध प्रदर्शनों का होना विपक्षी पार्टियों की मंशा और नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। देश की जनता बड़े ही गंभीरता से देशविरोधी प्रदर्शनों को देख रही है। और मौन रूप से अन्दर ही अन्दर आक्रोशित भी है।

देशविरोधी प्रदर्शन क्यों?

क्या नागरिकता कानून का विरोध जायज है ? क्या किसी कानून और सरकार के विरोध के नाम पर देश का विरोध किया जा सकता है ? देश के बहुसंख्यक समाज को गाली दी जा सकती है ? शाहीन बाग का धरना प्रदर्शन देश को क्या सन्देश देना चाहता है ? सरेआम देशविरोधी असामाजिक तत्व देश के टुकड़े – टुकड़े करने की बात करते है। देश के असम और पूर्वोत्तर राज्यों को तोड़ने की बात करते है। क्या देश की एकता – अखंडता को क्षति पहुंचाने वाले लोगों को लोकतंत्र व अभिव्यक्ति के नाम पर खुली छुट दी जा सकती है। दुर्भाग्यवश हमारे देश के संवेदनहीन विपक्षी पार्टियों के सहयोग से अर्बन नक्सली, वामपंथी, पीआईएफ जैसे जिहादी तत्व देश में अराजकता ़फैलाने के लिए दिन – रात जुटे हुए है।

राष्ट्रवाद के उभार से भयभीत राष्ट्रविरोधी ताकतें!

गौरतलब है कि 2014 में मोदी सरकार के आने के पूर्व सब कुछ सही था, देश में शांतिपूर्ण माहौल था। किसी प्रकार का कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हो रहा था। मोदी सरकार के आने के बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि कभी असहिष्णुता के नाम पर अवार्ड वापसी गैंग सक्रीय हो गया, तो कभी मोब लिंचिंग के नाम पर देश को बदनाम किया जाने लगा। जेएनयू में टुकड़े – टुकड़े गैंग सक्रीय हो गया। कुल मिला कर देखा जाए तो स्पष्ट हो जायेगा कि राष्ट्रवाद के उभार और मोदी सरकार के सत्ता में आने से सभी विपक्षी पार्टियों सहित देशविरोधी गतिविधियों में शामिल अर्बन नक्सली, वामपंथी, जिहादी, मिशनरी आदि राष्ट्रविरोधी तत्व बुरी तरह से भयभीत हो गए और उन्हें अपने अस्तित्व पर संकट मंडराता हुआ लगने लगा।

2019 में फिर से बहुमतों के साथ मोदी सरकार आने पर सभी विरोधियों के सीने पर सांप लोटने लगा। जानकारों का मानना है कि धारा 370, तीन तलाक, राम मंदिर, आदि देशहित के निर्णय से विरोधियों के रातों की नींद हराम हो गई। उस समय ये सभी विरोध नहीं कर पाए इसलिए नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर अपनी भड़ास निकाल रहे है। मोदी सरकार से सरहद पार चीन – पाकिस्तान परेशान है और देश के अन्दर विपक्षी पार्टियों सहित देशविरोधी डरे हुए है।

अपने ही तो है, कहां जाएंगे ?

जगजाहिर है कि इस्लामिक देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में गैरमुस्लिमों के साथ कैसा अमानवीय बर्बर अत्याचार किया जाता है। अल्पसंख्यक नाबालिग लड़कियों व महिलाओं का सरेआम अपहरण, धर्मांतरण, सामूहिक बलात्कार, हत्या आदि अनेकानेक प्रकार की नारकीय यातनाएं दी जाती है। इन भयावह प्रताड़ना से त्रस्त होकर वह सभी भारत आते है। भारत के अलावा दुनिया में कौन सा देश ऐसा है जो इन्हें शरण देगा ? मुसलमानों के लिए तो घोषित रूप से दुनिया में 50 से अधिक देश है, जहाँ उन्हें शरण मिल जाएगी। लेकिन इन हिन्दू, सिख, बौद्ध, और जैनों के लिए तो एकमात्र भारत ही आखिरी उम्मीद है। भारत का यह परम कर्तव्य है कि वह उदारतापूर्वक अपने बिछड़े – पिछड़े भाई – बहनों की मदद करें। मोदी सरकार ने अपने इन कर्तव्यों का निर्वाह किया भी है लेकिन विरोधियों को यह रास नहीं आ रहा।

मेनस्ट्रीम मीडिया वाले सच्चाई क्यों नहीं दिखाते ?

किसी भी लोकतांत्रिक देश में मीडिया का अहम रोल माना जाता है। लेकिन भारत में मीडिया दो धड़ों में बंटी हुई दिखाई देती है। एक राष्ट्रवादियों के साथ और दूजी राष्ट्र विरोधियों के साथ खड़ी हुई नजर आ रही है। उदहारण के तौर पर शाहीन बाग़, जेएनयू जैसे विरोध प्रदर्शन को तो वह पुरे दिन कवरेज देती है लेकिन नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के समर्थन में पुरे देश में निकाले जा रहे लाखों की रैली को वह पर्याप्त कवरेज तक नहीं देते। मीडिया की यह दोहरी भूमिका पत्रकारिता पर कलंक के समान है। मीडिया यदि चाहे तो दूध का दूध और पानी का पानी करने की ताकत रखती है। अब मीडिया को तय करना है कि वह किस राह और किस दिशा में जाना चाहती है। अभी हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह ने भी टाइम्स नाऊ के एक कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार से बातचीत के दौरान भी मीडिया की दोहरी भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाये थे और सरेआम खरी – खरी बातें कही थी। जो मीडिया की सच्चाई बयाँ करने के लिए काफी है।

बांग्लादेशियों – रोहिंग्याओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं ?

दुनिया में एकमात्र भारत ही ऐसा देश है, जिसमें करोड़ो की संख्या में अवैध रूप से विदेशी घुसपैठिये यानी बांग्लादेशी – रोहिंग्या रहते है। विपक्षी पार्टियाँ इनके खिलाफ तो एक शब्द नहीं बोलती। बल्कि इनको अपना पूरा समर्थन देकर संरक्षण देती है। वोटबैंक के लालच में घुसपैठियों को पाला पोषा जाता है। तब तो इन्हें कोई तकलीफ नहीं होती लेकिन जो अपने है, भारत माता की जय बोलते है, वन्दे मातरम का गान करते है। ऐसे भारतप्रेमी शरणार्थियों को नागरिकता देने से इन्हें ऐतराज है। जब सरकार घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए एनआरसी जैसा प्रभावी कानून देश में लाना चाहती है तो यही विपक्षी पार्टियाँ एकत्रित होकर इसके विरुद्ध हो हल्ला मचाने लगती है।

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