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प्रौद्योगिकी की भाषा

प्रौद्योगिकी की भाषा

by रमेश पतंगे
in ट्रेंडींग, सामाजिक
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अपने देश में क्रांति की भाषा करने वाली कुछ विचारधाराएं हैं। एक विचारधारा वर्ग क्रांति की भाषा करती है। उसे मार्क्सवादी कहते हैं। दूसरी विचारधारा जातियों के अंत की क्रांति की बात करती है, और तीसरी विचारधारा जातिअंत एवं वर्ग क्रांति के सामयिकीकरण की भाषा करती है। मार्क्स के विचारों की क्रांति सर्वप्रथम रूस में हुई, बाद में चीन, क्यूबा, उत्तर कोरिया, दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों में कम्युनिस्‍ट क्रांति हुई। उन्होंने मजदूरों के स्वर्ग के सब्जबाग दिखाए। प्रत्यक्ष में स्वर्ग कैसा रहा इसके अनेक रंजक किस्स्से हैं। एक फ्रेंच, एक ब्रिटिश और एक उत्तर कोरियाई संग्रहालाय देखने गए। एडम और ईव का चित्र उन्होंने देखा। अंग्रेज ने कहा, ‘देखिए, एडम ईव को सेब दे रहा है। पत्नी को सम्पत्ति में हिस्सा देने की ब्रिटिश परम्परा है, इसलिए यह चित्र हमारा है।’ फ्रेंच ने कहा, ‘एकदम गलत। एडम और ईव नग्न हैं। यह फ्रेंच पद्धति है, इसलिए यह चित्र हमारा है।’ उत्तर कोरियाई ने कहा, ‘आप दोनों गलत हैं। यह हमारा चित्र है। हम वस्त्रहीन तो हैं ही, हमें खाने को भी नहीं मिलता। फिर भी हमें बताया जाता है कि आप स्वर्ग में हैं।’ मार्क्स की क्रांति से सामान्य जनता भिखारी बन जाती है, यह कुछ देशों का इतिहास है।

जातिअंत की क्रांति संविधान ने रेखांकित की है। जब बुनियादी परिवर्तन अचानक होते हैं, तब उसे क्रांति कहते हैं। जातिअंत की क्रांति इस तरह अचानक होने की बिलकुल संभावना न होने से संविधान के मार्ग से यह क्रांति कराने का मार्ग निर्देशित किया गया है। हमारा संविधान सब को अवसरों की समानता प्रदान करता है। जातिभेद, धर्मभेद नहीं करता और कानून के राज्य का मार्ग बताता है।

जातिअंत और मार्क्स की वर्ग क्रांति दोनों का समन्वय और सामयिकीकरण असंभव है। पहला कारण यह है कि वर्ग और जाति समव्याप्त कल्पनाएं नहीं हैं। एक वर्ग में अनेक जातियां आती हैं, और ये जातियों अपनी जाति की भावनाओं के प्रति सजग होती हैं। मार्क्स का रास्ता हिंसा का है। संविधान का मार्ग अहिंसक क्रांति, कानून का पालन करने और संवैधानिक नीतियों का पालन करने का है। जातिअंत का संवैधानिक मार्ग और मार्क्स का मार्ग दोनों परस्पर विरोधी मार्ग हैं। इन दोनों में समन्वय संभव नहीं है।

हर समाज का एक स्वभाव होता है। अपना स्वभाव हिंसा के मार्ग से परिवर्तन कराने का नहीं है। हम स्वभाव से ही अहिंसावादी हैं। भगवान बुद्ध ने जो बहुत बड़ी सामाजिक क्रांति की, उसका मार्ग अहिंसक था। महात्मा गांधी ने अहिंसक मार्ग से ही संघर्ष किया। डॉ.बाबासाहब का मार्ग भी अहिंसक ही था। हिंसा के मार्ग से चलने वालों के पीछे समाज कभी खड़ा नहीं होता। उदाहरण ही देना हो तो पालघर में जो हिंसा हुई उससे पूरा देश सकते में है। कोई उसका समर्थन नहीं करता।

विश्व में तीन क्रांतियों का महत्व विशद किया जाता है। अमेरिकी राज्यक्रांति, फ्रेंच राज्यक्रांति और रूसी राज्यक्रांति। इन तीनों क्रांतियों ने सम्बंधित देशों का इतिहास ही बदल दिया। इन क्रांतियों के पूर्व समाज का वैचारिक प्रबोधन और धार्मिक प्रबोधन विपुल मात्रा में हुआ है। ये तीनों क्रांतियां हिंसक क्रांतियां हैं। नई व्यवस्था निर्माण करने के लिए लाखों लोगों को अपना जीवन होम करना पड़ा। तीनों क्रांतियां रक्तरंजित रही हैं। विश्व के अनेक देशों में साजिश के तहत सत्ता पलट दी जाती है। उसे भी क्रांति कहते हैं। समाज व्यवस्था परिवर्तन की क्रांति और इस तरह की सत्ता पलटने की क्रांति एक नहीं होती। क्रांति शब्द दोनों जगह होने पर भी उसके अत्यंत भिन्न अर्थ हैं।

समाज में आमूल परिवर्तन कराने के लिए की जाने वाली क्रांति सदा हिंसक ही होती है, ऐसा नहीं है। वैज्ञानिक क्रांति इस श्रेणी में आती है। पहली औद्योगिक क्रांति १७६० से शुरू हुई। इस क्रांति से मानव-श्रम के बजाय भांप की शक्ति से चलने वाले कारखाने स्थापित हुए। उत्पादन के साधनों और प्रणालियों में बुनियादी परिवर्तन हुए। रोजगार के लिए खेती पर निर्भर रहने वालों की संख्या घटती गई। शहर बढ़ने लगे। पूंजी को महत्व प्राप्त हो गया। कोयला, भिन्न-भिन्न धातुओं का महत्व प्रचंड मात्रा में बढ़ गया। कारखानों में काम करने के लिए कुछ योग्यताएं निर्माण करनी पड़ीं। इसके अनुकूल शिक्षा प्रणाली विकसित हो गई। शहरों में झुग्गियां बढ़ने लगीं। उनकी समस्याएं पैदा हो गईं। अनेक श्रमिकों से खूब काम कराया गया। उनके कामगार संगठन खड़े हुए। केवल पैसा ही पूंजी नहीं है, बल्कि श्रम भी पूंजी है, यह विचार आगे आया। पूंजीवाद के विकास के लिए व्यक्तिवाद की कल्पना अवतीर्ण हुई। निजी सम्पत्ति का अधिकार निर्माण हुआ। इस सब की रक्षा करने वाली गणतांत्रिक राज्य-प्रणाली विकसित होती गई। समाज के ताने-बाने में आमूल परिवर्तन होता गया।

इसके बाद दूसरी औद्योगिक क्रांति बिजली की खोज के बाद हुई। भांप की शक्ति की अपेक्षा विद्युत की शक्ति का उपयोग शुरू हुआ। यंत्रीकरण का युग शुरू हुआ। यंत्र पर एक ही प्रकार का काम करने वाला श्रमिक वर्ग निर्माण हुआ। विशाल कारखाने स्थापित होने लगे। इससे श्रमजीवी और बुद्धिजीवी इस तरह दो वर्ग निर्माण हो गए। उन्हें ब्ल्यू कॉलर व व्हाइट कॉलर कहा जाने लगा। इसमें से मध्यमवर्ग सामाजिक स्थैर्य का आधार बना। उत्पादित माल के लिए बाजार जुटाने के लिए वैश्विक संघर्ष शुरू हो गया। इससे उपनिवेशवाद का जन्म हुआ। जिनके पास यांत्रिक ताकत थी, उन्होंने एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों को गुलाम बना दिया।

कंप्यूटर क्रांति तीसरी औद्योगिक क्रांति मानी जाती है। इसका आरंभ १९७० के दशक में हुआ। आल्विन टॉफलर ने ‘फ्यूचर शॉक’ ग्रंथ में इस क्रांति के भविष्य में क्या परिणाम होंगे इसे ७० के दशक में ही बता दिया था। कंप्यूटर क्रांति से साक्षरता की परिभाषा ही बदल गई। केवल अक्षरों से पहचान याने साक्षरता नहीं है। कंप्यूटर साक्षर होना अनिवार्य हो गया। इस कंप्यूटर क्रांति के साथ ही सूचना और प्रौद्योगिकी (technology) का विस्फोट हो गया। पारंपारिक व्यवसाय धीरे-धीरे खत्म होते चले गए। इस प्रौद्योगिकी के विकास की गति इतनी जबरदस्‍त रही कि कल की प्रौद्योगिकी आज अर्थहीन होने लगी। कोडॅक कम्पनी कैमरा और उसकी फिल्म बनाने वाली विश्व की सबसे अगुवा कम्पनी थी। अरबों का उसका कारोबार था। डिजिटल कैमरे का युग आया और कम्पनी इतिहास बन गई। बड़े-बड़े कारखाने और उनकी उत्पादन प्रणालियां बदलती गईं। मुंबई की सभी कपड़ा मिलें बंद पड़ गईं। लेकिन कपड़ा उत्पादन नहीं रुका। वह नई प्रौद्योगिकी के सहारे होने लगा। मुंबई के दो-ढाई लाख मिल मजदूर बेरोजगार हो गए। उन मिलों की जगहों पर अब सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवा उद्योग खड़े हो गए। उनमें काम करने वाला श्रमिक वर्ग व्हाइट कॉलर वर्ग है। उसे यूनियन आदि की आवश्यकता महसूस नहीं होती।

आज हम चौथी औद्योगिक क्रांति से गुजर रहे हैं। इस चौथी औद्योगिक क्रांति पर Klaus Schwab की  The Fourth Industrial Revolution – नामक बहुत महत्वपूर्ण किताब है। यह चौथी औद्योगिक क्रांति पूर्व की तीन क्रांतियों की तुलना में हर मामले में भिन्न हैं। यह डिजिटल क्रांति है। इस क्रांति से स्वायत्तता का युग आरंभ हुआ। कम से कम मानव श्रम का इस्तेमाल कर उत्पादन करने की प्रणाली का विकास हो रहा है। नए-नए शब्दों को इस क्रांति ने जन्म दिया है जैसे कि रोबोटिक, थ्रीडी प्रिंटिंग, स्वयंचलित वाहन, प्लेटफार्म बिजनेस, ह्यूमन जिनोमी प्रोजेक्ट, डिजायन बेबी आदि। नई-नई किस्म की धातुएं आ रही हैं जैसे कि Grathene नामक धातु स्टील से भी २०० गुना अधिक मजबूत है। मानवी बाल से भी दस लाख गुना पतली हो सकती है। बिजली और उष्णता की उत्तम वाहक है। यह विश्व की सबसे महंगी धातु है। उसका जैसे-जैसे उपयोग होता जाएगा वैसे-वैसे पहले के यंत्र और उत्पादन प्रणालियां बदलती जाएंगी।

और एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता है और वह है इंटरनेट ऑफ थिंग्ज। इसका अर्थ यह होता है वस्तु, सेवा, स्थान की परस्पर संलग्णता। इसका उदाहरण देना ही हो तो मुंबई जैसे शहर में हम कहीं खड़े होते हैं। गूगल एप्प में जाते हैं, वाहन बुक करते हैं और हम जहां हों वहां उबेर की गाड़ी आकर खड़ी हो जाती है।

चौथी औद्योगिक क्रांति के परिणाम समाज व्यवस्था पर, आर्थिक व्यवस्था पर, राजनीतिक व्यवस्था पर क्या होंगे इसका गहन अध्ययन करने की जरूरत है। प्रौद्योगिकी हमेशा जाति-निरपेक्ष व वर्ग-निरपेक्ष होती है। प्रौद्योगिकी किसी विशिष्ट जाति के विकास के लिए निर्माण नहीं होती। उसी तरह वह किसी विशिष्ट वर्ग के लाभ के लिए भी निर्माण नहीं होती। केवल विज्ञान के सिद्धांत का किस तरह उपयोग किया जाए यह बताती है। ऐसा होने पर भी प्रौद्योगिकी समाज में विषमता बढ़ाने का कारण बनती है। पहली औद्योगिक क्रांति से इस चौथी औद्योगिक क्रांति तक का यही अनुभव है। ‘दी फोर्थ इंडस्ट्रीयल रेवलुशन’ के लेखक कहते हैं, “The scale and breadth of the unfotding technological revolution will usher in economic, social and cultural changes of such phenomenal proportims that they are almost impossible to envisage. Nevettheless, this chapter describes and analyses the potential impact of the fourth industrial revolution on the economy, business, governments and countries, society and individuals.” याने लेखक यह कहना चाहते हैं कि ‘‘यह क्रांति किस तरह के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाएगी इसका अनुमान लगाना बहुत कठिन है।”

अपने समाज का विचार करें तो हमारे समाज में इन चारों क्रांतियों में जीने वाले समूह हैं। मानव श्रम, पशु श्रम पर चलने वाले वाहन हमारे यहां हैं। बैलगाड़ियां हैं, घोड़ागाडियां हैं, गन्ने का रस निकाले वाले मानव श्रम पर चलने वाले पेराई यंत्र भी हैं। दूसरी क्रांति में बिजली अब तक भी जिनके पास नहीं पहुंची हैं ऐसे करोड़ों लोग हैं। कंप्यूटर को न छूने वाले भी करोड़ों लोग हैं। समता और विषमता की भाषा में कहना हो तो पहली, दूसरी और तीसरी औद्योगिक क्रांतियों से वंचित करोड़ों लोग इस देश में हैं। यह औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न हुई विषमता है। उसका जाति की विषमता से कोई रिश्ता नहीं है। उसका स्वरूप मूलतया आर्थिक है। आईटी क्षेत्र में काम करने वाला साल में १०-१५ लाख रु. कमाता है। बैंक में काम करने वाला उससे एक-चौथाई भी नहीं कमाता। और, असंगठित क्षेत्र में काम करने वाला आर्थिक दलदल में फंसा हुआ है। चौथी औद्योगिक क्रांति के रोजगार पर होने वाले परिणाम अत्यंत गंभीर होंगे।

चौथी औद्योगिक क्रांति के लेखक कहते हैं, “The reasons why the new technology revolution will provoke more upheaval than the previous industrial resolutions are those already mentioned in the introduction: speed (everything is happening at much faster pace than ever before), breadth and depth (so many radical changes are occurring simultaneously), and the complete transformation of entire systems.”

वैश्विक विषमता की समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं ही। इसमें प्रौद्योगिकी से उत्पन्न विषमता जुड़ने वाली है। उसका मुकाबला करने के अनेक मार्ग हैं। इसका एक मार्ग याने वंचित समाज को साक्षर करने का है। चौथी औद्योगिक क्रांति में जो प्रोद्यौगिकी साक्षर होंगे वे ही आगे बढ़ेंगे। पहले साक्षर बनाने के लिए अनेक महान लोगों ने स्कूल खोले। आज नई प्रौद्योगिकी और विज्ञान के स्कूल-कॉलेज खोलने की जरूरत है। क्रांति की भाषा भावनाएं भड़काने के लिए अच्छी होती है, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए विज्ञान की भाषा ही उपयोगी होती है। यही इस युग का मंत्र है।

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