भारत को नई  उचाईयां  देनेवाला प्रेरणादायी भाषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कोरोना के कार्यकाल में पांचवी बार भारतीय जनता को संबोधित किया। इस संबोधन में नरेंद्र मोदी ने कोरोना को लेकर आई हुई विपदा पर भारतीय जनमानस को झकझोरते हुए राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभाव की भूमि निर्माण की है। भारत के जन मन में ,उनके स्वप्नों मे एक  संकल्प का बीजारोपण किया है। संकल्प है “आत्मनिर्भर भारत ” का। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन करते वक्त आत्मनिर्भर भारत का संकल्प  संपूर्ण देश के सामने प्रस्तुत किया है। कोरोना  के कारन  पूरे विश्व और भारत मे  सब कुछ समाप्त होते हुए दिखाई दे रहा है। ऐसी भावनाओं में भारत की जनता भी अपना मानस तैयार कर बैठी थी । ऐसे समय मे  नरेंद्र मोदी ने 130 करोड़ भारतीयों को महत्वपूर्ण उद्देश्य दिया है । संकट के समय में जो नेता अपनी जनता को  सपने और उद्देश्य देता है , नेता या नेतृत्व इसे ही कहते हैं। घोर संकट  समय में भी राष्ट्र जीवन मे परिवर्तन के सुनहरे  अवसर होते है । उस अवसर को पहचानते हुए नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत  के सामने  महान उद्देश्य रखा हुआ है। उन्होंने भारत वासियों के सामने स्वदेशी को अपनाकर भारत को  आत्मनिर्भर भारत बनने का  प्रस्ताव रखा है ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत का जो सपना हमरे सामने रखा है।  हम सभी भारतीय यह बात मन में  पूरी तरह से ठान ले तो भारत देश को नई ऊंचाई पर ले जाने का एक प्रेरणा पर्व कोरोना यह अवसर बन सकता है।
 गत 70 सालों में राजनीति करते वक्त जिन गलत नीतियों को हमने अपनाया है, उसी नीतियों के दुष्परिणाम आज हमारा देश भुगत रहा है । अमीरों और गरीबों में खाई बढ़ती जा रही है । बेरोजगारी , झुग्गी झोपड़ी  बेतहाशा बढ़ती ही जा रही है। बड़े शहरों में बनी बड़ी-बड़ी बहुमंजिला  इमारते झुग्गी झोपड़ी और  ग्रामीण इलाकों में रहने वाले  देश की अधिकांश आबादी का मजाक उड़ा रही है।  अमीर-गरीब ,शहर -गांव, मालिक -मजदूर इस प्रकार के भेद उत्पन्न करने वाली रचना देश की आजादी के समय अंग्रेज हमरे भारत में छोड़ गए थे। स्वदेशी, स्वदेशी और स्वधर्म  आधारित अपनी व्यवस्था को  अंग्रेजों ने बड़ी कूटनीतियों  के साथ  तोड़ मोड़ कर रखा था । महात्मा गांधी जी का ” ग्राम  विकस”,  पंडित दीनदयाल उपाध्याय का “एकात्म मानववाद”  जिसमें भारत एवं भारतीयता का दर्शन होता है ।
महात्मा गांधी जी के ग्राम विकास के चिंतन मे  80% ग्रामीण जनता के विकास के नीति पर बल दिया था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म  मानववाद में मनुष्य के समग्र विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी।लेकिन आज तक अपनी राजनीती और दलगत स्वार्थों  से ऊपर उठकर समग्र भारत विकास की  अर्थनीति  स्वीकार नहीं की थी । जिससे समग्र भारत के विकास के रास्ते खुल सकते हैं। भौगोलिक ,संवैधानिक, शैक्षणिक विकास के साथ-साथ अपने सांस्कृतिक और स्वाधीनता को कायम रखने वाले विचारों  को विशेष महत्व होता है। वह विचारधाराएं राष्ट्र जीवन का मुख्य आधार होती है । विदेशी शासन स्वदेशी संस्कृति पर पहला प्रहार करते है। भारतीय परतंत्र में ब्रिटिशों ने हमारे  स्वदेशी संस्कृति के साथ यही किया। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आज भी हमारे त्यौहारों,उत्सवों,  बच्चों के जन्म दिवस कार्यक्रमों में, जीवन से जुड़ी हुई सभी महत्वपूर्ण खरीदारी में , विवाह से लेकर मृत्यु तक  के सभी संस्कारों में  विदेशी  चीजों की मजबूत पकड़ महसूस होती है ।
जिस देश ने विदेशियों के खिलाफ सदियों तक जंग लड़ी है ।  ऐसे भारत देश में आधुनिकता के नाम पर  विदेशी चीजें अपनाना गौरवपूर्ण महसूस किया जाता है । यह मानसिक और बौद्धिक पारितंत्र नहीं तो और क्या है? आज यह मानसिक और बौद्धिक परतंत्रता अपने देश के लिए बाधक बन रही है । हम स्वतंत्र हो गए हैं परंतु हमारा आकर्षण केंद्र हमारे राष्ट्र के बाहर है । यह बात हमारे लिए अत्यंत घातक है।जब किसी देश की जनता के मन से राष्ट्र भाव का अभाव होता है ,तो वहीं पर राष्ट्र की समस्याओं का जन्म होना प्रारंभ होता है। यह बात कठोर है पर सत्य है। इस प्रकार के हीन भाव से राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता। हम भारतियों को  विरासत मे मिले कर्तृत्व,व्यापार, उदयोग और जीवन शैली को भूलकर हम  राष्ट्र जीवन में बलवान नहीं बना सकते। आज के वर्तमान में बुद्धि ,बल, ज्ञान , विज्ञान यह सब  श्रेष्ठ है। लेकिन ऐसा होते हुए भी दुनिया के सामने  आत्म  सम्मान और आत्मनिर्भरता के साथ  प्रगट होना अत्यंत आवश्यक होता है।

 अर्थनीति में  अर्थ – सुरक्षा देश के स्वावलंबन के आधार पर होती है। आज हमें आत्मनिर्भर बनना है ,तो महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल जी के विचारों को लेकर ही हमें आगे बढ़ना जरूरी है। भारत के सभी गांवों का विकास होना चाहिए। अंतिम श्रेणी में बैठे हुऐ भारत के हर नागरिक का विकास होना चाहिए।  स्वदेशी क्या है? सारी दुनिया के दरवाजे  भारत के लिये व्यापार मे  पूरी तरह बंद करना ऐसा स्वदेशी का अर्थ  नहीं है। जों मेरे देश में बनता है , मेरे गांव में बनता है,  मेरे घर में बनता है। मेरे देश , गांव  के व्यक्ति का रोजगार जहां निर्माण होता है। उन चीजों को मैं अपना लूंगा।  उन  चीजो को मैं अपने उपयोग के लिए खरीद लूंगा। जो चीजें  मेरे देश में बनती है , उन चीजों को ही खरीद लूंगा। जो चीजें अपने देश में बनती नहीं है और हमारे जीवन के लिए आवश्यक है ऐसी चीजों को  मैं  आवश्यक हो तो बाहरी देश से  खरीदूंगा। मेरे जीवन में उपयोग में आने वाली सभी चीजे विदेशी ही होनी चाहिये इस  गंदी आदत को मैं बदलूंगा । इस प्रकार का संकल्प करना अत्यंत आवश्यक है।इसी प्रकार  की आदत से हम अपने देश की प्रकृति और  भविष्य  बदल सकते है। यही  स्वदेशी विचार है।
  स्वदेशी को अपनाएं बिना कोई भी अर्थ -तंत्र अपने देश को सफल  और आत्म निर्भर नहीं बना सकता।आज दुनिया एक गांव  की तरह है यह बात सही है।  लेकिन जब दुनिया इस प्रकार से नहीं थी तभी अंतर  राष्ट्रीय व्यापार चलते थे ।  राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय  व्यापार लेन-देन के तत्वों पर चलता है। दोनों तरफ के फायदे की व्यवहार पर चलता है।और व्यापार करने की नीतियां इसी प्रकार की होती है। लेकिन आज  अंतरराष्ट्रीय व्यापार  और जागतिकीकरण के नाम पर चीन  जैसे राष्ट्र को हम सिर्फ देते ही जा रहे हैं।  लेन-देन के सही मायने में दौनों तरफ से सही प्रमाण मे व्यापार होता है तो उसे व्यवहार कहते हैं । चीन जो भारत के साथ कर रहा है उसे  व्यापारिक ठगी कहते हैं। चीन ने भारत के ऊपर लादा हुआ व्यापार कहते हैं।आज हमारे देश में ज्यादातर घरेलू व्यवसाय है।  स्वदेशी व्यवसाय में अपने जीवन के लिए आवश्यक सारी चीजें बनती है । आज हमारे देश की बहुत सारी कंपनियां  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  स्पर्धा करने लगी है । ऐसे समय मे भारत के सभी नागरिकों को भारतीय चीजों या भारत मे उत्पादित वस्तुओ के खरीदारी पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जिस दिन यह बातें 100% होने लगेगा  उसी दिन हम कह सकते हैं आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत देश अपने कदम आगे बढ़ा रहा है।
“मुझे भारत की दैवी शक्ति पर ,भारत की विरासत पर  विश्वास है। मैं मेरी आंखों से देख रहा हू की फिर एक बार  मेरी भारत माता जाग उठी है ।मेरी भारत माता जगतगुरु के स्थान पर विराजमान हो रही है।” यह स्वामी विवेकानंद जी ने भारत के उत्थान के संदर्भ में देखा हुआ सपना था। भारत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने संबोधन में स्वामी विवेकानंद जी के उसी सपने को फिर से  जाग्रत करने का प्रयास किया है।
नरेंद्र मोदी  के भाषण में राष्ट्र संकल्प था। वह संकल्प भारत देश को पुन: उन्नत के शिखर पर ले जाने का है। अर्थात राष्ट्र निर्माण का है।  आत्मनिर्भर भारत देश की  संकल्पना से नरेंद्र मोदी ने भारत के 130 करोड़ जन-जन को आवाहन किया है । यह देश किसानों, मजदूरों , नौजवानों  का है । माता, बेटी ,बहनों का देश है।  इस देश  के उत्थान के लिए ऋषि ,मुनि, आचार्य ,शिक्षक, वैज्ञानिकों, समाज सेवकों की पीढ़ी दर  पीढ़ी के कोटि-कोटि जनों ने अपने समर्पण से भारत को यहां तक पहुंचाया है । ऐसे भारत देश के उद्धार के लिए नरेंद्र मोदी  ने “आत्मनिर्भर भारत”  का मंत्र हमे दिया है, संदेश हमें दिया है , संकल्प हमें दिया है। इस  मंत्र, संदेश और संकल्प को लेकर हमे चलते रहना चाहिए । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ने  आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना का  बीजारोपण किया है। कोई जादू की छड़ी घुमाई और संकल्प पूरा हो गया इस प्रकार का तो यह काम है नहीं। और इतना आसान भी यह काम नहीं है। यह काम अकेले सरकार से होने वाला नहीं है। जो काम सरकार से होता नहीं है ,वह जन भागीदारी से होता है। यह काम सभी भारतवासियों को मिलकर करना है।आइए कुछ करने का समय अब आया हुआ है ।चलो स्वदेशी के माध्यम से भारत को आत्म निर्भर करने का संकल्प लेकर हम चलते हैं ।  आत्मनिर्भर  भारत के लिए भारत के स्वदेशी का जीवन जीने का हम संपर्क करते हैं । उस संकल्प पर निरंतर चलने का प्रयास करते हैं। तो आज का कोरोना का पर्व भारत को  नई ऊंचाईयों पर ले जाने का प्रेरणा पर्व  बन सकता है। आप सोचिए  130 करोड़ देशवासी  एक साथ  स्वदेशी की ओर अपने कदम बढ़ाए तो देश का चित्र किस प्रकार से होगा ? चलो , इस चित्र को साकार करने के लिए अपने आप को राष्ट्रहित की कसौटी पर साकार करते हैं ।

This Post Has 5 Comments

  1. Anonymous

    कोरोना च्या वैश्विक संकट समयी प्रकर्षाने हे सर्व कळत पण आमचा स्वार्थ व भौतिक सुखाच्या मागे धावण्याच्या शर्यतीत मागेतर रहाणार नाहीत ना ही चिंता स्वस्थ बसू देत नाही व याचे प्रमुख कारण राष्ट्राच्याप्रति निष्ठा,प्रेम,त्याग या भावनांचा अभाव । लेखाची अतिशय चांंगल्या शब्दात मांडणी ।।

  2. Vidya Sharaff

    Nice article sir

  3. Surekha Varghade

    अमोलजी इस लेख मे स्वदेशी का अर्थ बहुत अच्छी तरह समझा दिया है पाठको और लोगों को| बहुत अच्छा लेख है मतलब समझमे आ जाए तो लोगोमे मी परीवर्तन आंही जाएगा|

  4. Anonymous

    Good article

  5. Deoraj Singh

    Very good article , congratulations to you Sir

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