बहाना

वो मैडम जो इस बात से परेशान रहती थीं कि लोग उनके पति को बेवड़ा कहते हैं। उनका परिचय कराने में भी हिचकती थी। बड़े शान से न्यूज़ चैनल के स्क्रीनशॉट पूरे सोशल मीडिया पर इस टैग लाइन के साथ चस्पा करी हैं ‘प्राऊड वाइफ’ जिसमें उनके पति लाइन में खड़े सोशल डिस्टैसिंग की धज्जियां उड़ा रहे हैं। वे न्यूज़ चैनल को ट्वीट कर रही हैं कि उनके डियर हबी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जाए, वे अपनी जान की परवाह किए बगैर इसलिए युद्ध कर रहे हैं ताकि देश की अर्थव्यवस्था को सहारा दिया जा सके। वे सच्चे राज्य भक्त और देशभक्त हैं। गरीबों को खाना खिलाने में, राशन देने में सरकार का खजाना खाली हो गया। व्हाट्सएप पर भी पढ़ रहे थे ‘इन फॉटी फाइव डेज विदाउट लिकर, बट गवर्नमेंट कान्ट’। जिन्होंने अर्थव्यवस्था में सहयोग करने के लिए शराब खरीदी उन्हें युगों युगों तक याद किया जाएगा।

इतिहास में शामिल होने का अवसर भला क्यों छोड़ा जाए। मैडम जी ने लिखा मेरे ‘हबी’ ऐतिहासिक काम कर रहे हैं। सरकार को इन शराबियों की जरूरत हमेशा रहती है। चुनाव के समय फ्री में पीकर सरकार बदलते हैं और खरीद कर पिएंगे तो अर्थव्यवस्था बदल देंगे। और यह सब पढ़कर यह सब शराब बांकुरे पड़े थे और इसकी सेटेलाइट पिक्चर देखकर मिस्टर ट्रंप ने भाषण दे डाला ‘इंडिया को कोरोना का वैस्किन मिल गया है और वह बता नहीं रहा है।’ इस बात से भारत और अमेरिका के रिश्ते बिगड़ सकते हैं। यहीं नहीं कुछ लोगों के रिश्ते रिश्तेदारों से भी बिगड़ रहे हैं। किसी रिश्तेदार की मौत पर बीस लोग भी इकट्ठे नहीं हो सकते थे पर शराब की क्यू में देखकर रिश्तेदारों ने अपने रिश्ते तोड़ लिए, मौत के गम में शामिल नहीं हुए लेकिन अपना गम कम करने के लिए इतनी देर तक गर्मी में भुने जा रहे हैं। वैज्ञानिक इस बात पर भी रिसर्च कर रहे हैं कि ठंड में नोटबंदी की लाइन में कुछ लोग अल्लाह को प्यारे हो गए, पर भरी गर्मी में इन्हें कुछ ना हुआ।

कुछ दिनों पहले के सोशल मीडिया के फ्लैश बैक पर जाना जरूरी है ताकि इस ऐतिहासिक घटना को संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में समझा जा सके। जब से लॉकडाउन हुआ पूरा सोशल मीडिया शराबी हो गया था। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा सब पर शराब और शराबी के गाने और शेर चस्पा हो रहे थे। ऑनलाइन फेंटेसी से कुछ लोग शराब पीने का मुगालता पाल रहे थे जैसे पहले महिलाएं साड़ी
की फोटोज के साथ एक दूसरे को टैग कर रही थीं। अब शराब की खाली ग्लासों में कोल्ड ड्रिंक या शरबत भरकर टैगिंग चल रही थी। ज्यादा समझदार और समर्थ लोगों ने शराब का भी कुछ स्टॉक जमा कर लिया था क्योंकि वे समझ गए थे लॉकडाउन कुछ
महीनों के लिए उनकी लाइफस्टाइल में शामिल होने आ गया है और शराब के बगैर रह नहीं पाएंगे। कुछ नहीं कर पाए तो शराब वाले जब शराब पीने के टिक टॉक बना रहे थे बड़ी शान से चुराए शेर सुना रहे थे।

मैं शराबी हूं बड़ी शान से कहता हूंजो पीते
नहीं, वे मर जाते हैं

ये बिना शराब वाले शाम की चाय के साथ खाने के साथ वीडियो बना रहे थे। इनकी भी शामें शुरू होती थीं मयखाने से, शराब से, साकी से, जाम से। अब अंगूर की बेटी की जगह अन्य पीकर ही संतोष कर रहे हैं और शराब वाले दोस्तों को नसीहतें दे रहे हैं- शराब छोड़ दो यारो! पर वे दोस्त जवाब में कह रहे थे शराब चीज ही ऐसी है ना छोड़ी जाए।

कुछ शराबियों को बिना शराब के दौरे पड़ने लगे थे। घरेलू हिंसा के रिकॉर्ड बन रहे थे। शराब प्रेमी अब प्रेमिका के विरह के नहीं बल्कि शराब की विरह के गीत लिख रहे थे।

दीवाने हो गए, नहीं मिलती अब शराब

तेरे दीदार को तरस गए, वो प्रियतमा शराब।

पर दूसरी ओर कुछ दार्शनिक पियक्कड जगजीत जी ये गजल गुनगुना रहे थे-

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं

ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं

इसका भावार्थ यह है जब वे अपनी माशूका से मिलते थे तो शराब पीना मजबूरी थी क्योंकि माशूका के नखरे उठाने में गम और परेशानी होती थी। अब लॉकडाउन में माशूका से नहीं मिलते तो कोई ग़म नहीं इसलिए शराब नहीं पी रहे, और लॉकडाउन की इस तन्हाई को एंजॉय कर रहे हैं।

कुछ जो अपनी पत्नियों की आंखों को सुंदर मानते थे, उनकी आंखों को धोकर पीने लगे हैं। जो पत्नी और सुंदरता को विरोधाभासी मानते हैं वे चलयंत्र याने मोबाइल पर सुंदरियों के दर्शन कर कृतार्थ हो रहे हैं। उनकी आंखों के पास से मोबाइल को धोकर बूंद- बूंद पी रहे हैं और मस्ती में गा रहे हैं-

ये हल्का-हल्का सुरूर है,

तेरी नज़रों का कुसूर है

या फिर-

तेरी निगाह से ऐसी शराब पी मैंने

कि फिर ना होश का दावा किया मैंने।

यह सब देखकर सरकार के होश उड़ गए, खास राज्य सरकारों के। ये शराबी अगर सुधर गए, सुंदर आंखों से पीकर ही मदहोश होने लगे तो शराब से आने वाले भारी भरकम राजस्व का क्या होगा। सुंदर आंखों पर तो कर नहीं लगा सकते। सरकारों ने व्हाट्सएप पर सर्कुलेट किया- ‘प्यारे बेवड़ों वापस आओ, जो नहीं पीते वो भी आओ। तुम्हें राज्य का राजस्व बुलाता है।’ राज्य सरकारों ने भी आनन-फानन में शराब की दुकानें खोल दीं। कुछ जांबाज बड़ी हुई दाढ़ियों के साथ, कुछ शेव, शूज के साथ युद्ध मैदान की ओर निकलने लगे। घर वालों ने विरोध किया तो फिर शायरी की टांग तोड़ी-

मैं पीता नहीं पीने बुलाया गया है

इस समय देश को जरूरत है मेरी।

किस्मत में लिखा था पी, तो पीना ही पड़ेगा वरना किस्मत का लिखा गलत हो जाता। पत्नी ने बेलन दिखाई, पिता ने डांट लगाई, तो धार्मिक प्रवचन किया। आप लोग शराब की महिमा नहीं जानते, यह तो सुरो और देवताओं का पेय है, इसलिए ही तो सुरापान करते हैं। देवी मां भी मदिरापान करके दानवों का संहार करती हैं। इस समय कोरोना नाम के दानव ने त्राहि-त्राहि मचा रखी है। मुझे मदिरापान करना ही पड़ेगा। बेलन से कुटाई करने वाली धर्मपत्नी, धर्म के नाम पर समझ गई और पतिदेव का तिलक किया। एक अपनी पत्नी को समझा रहे थे अल्कोहल वाले सैनिटाइजर से हाथ धोकर कोरोना को हरा सकते हैं तो सोचो अल्कोहल पी लेंगे तो पूरे के पूरे सैनिटाइज हो जाएंगे। मीडिया पर सैनिटाइजर की शक्ति को देख कुछ लोग इतने प्रभावित हुए थे घर का सैनिटाइजर ही पीकर खत्म करने लगे थे, उनके घर वालों ने भी अनुमति दे दी। पर अमर्त्य सेन जैसी आर्थिक समझ रखने वालों को इन तर्कों से समझाना आसान न था। उन्हें पियक्कडों ने यू समझाया, देश की अर्थव्यवस्था ने आज उन्हें पुकारा है। देश ने पुकारा है तो जाना ही पड़ेगा। शराब हो या जहर तो देश के लिए पीना ही पड़ेगा। देश की अर्थव्यवस्था को
सहारा देना है। भारत को विेशगुरु बनाने के लिए, अर्थतंत्र को मजबूत बनाने के लिए उन्हें जाना होगा। राज्य का राजस्व बढ़ाने के लिए खुद का खजाना खाली करना पड़े तो क्या गम है? उनकी पत्नियों की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। वे अपने
पतियों की कल्पना सैनिकों की वर्दी में करने लगे।

कुछ ने इसलिए राहत की सांस ली की उनके पति छः सौ रुपए की वाइन तीन, चार हजार में खरीद रहे थे। कुछ महंगी स्कॉच पीने लगे थे। बच्चों की पढ़ाई के लिए जमा पैसे शराब में बहाए जा रहे थे। पर यहां भी दो गुट बन गए। एक इस पक्ष में था जो महिला अधिकारों का परचम लेकर खड़ा जाता है उनका कहना था शराब पीकर ये आदमी फिर शैतान बनकर मार पिटाई करेंगे। दूसरा गुट वह जो कह रहा था बिना शराब के ये ज्यादा शैतान बन गए थे। मुंबई में कुछ ऐसी दुकानें भी थीं, जहां महिलाएं शराब की लाइन में लगी थीं। खुद दबाकर पीने वालों ने कहा- इनको शर्म नहीं आती, शराब पीती हैं। तो भई यह तो वह बात हुई तुम्हारा खून- खून है हमारा खून पानी। क्यों नहीं पी सकती ये? देवी मां भी तो मदिरापान करती है। पर सच के पीछे का सच यह था कि उनमें से कुछ अपनी जान दांव पर लगाकर पति या बेटे के लिए शराब खरीद रही थीं।

एक सीक्रेट बात बता दें हम भी लाइन में दिख गए कुछ लोगों को और हमें लोग मैसेज पर मैसेज करने लगे। अब हम क्या सफाई दे कि शराबियों की लाइन कि हमारे घर तक आती थी। घर में सब एक दूसरे से कहते रहते थे सामान लेने तू जा, तू जा। पर उस रोज सब ने कहा- मैं ले आता हूं। कोई दूध लेने निकला, कोई अनाज, मिले सारे शराब की दुकान के पास।

कोई किसी पर उंगली नहीं उठा सकता जैसे कोई भी राज्य, दूसरे राज्य पर कहां उठा रहा है। सब तो एक थाली के चट्टेबट्टे हैं। पहली बार देश में सारे राज्यों ने एकता दिखाई, शराब के मामले में अब हमारा मन देशभक्ति से सराबोर होकर गा उठा। हम सब एक हैं। सब जानते हैं शराब ही की कमाई वैट से आती है। मंत्रियों के शौक भी तभी पूरे होंगे जब राज्य मालामाल होंगे वैसे अब भी बहुत से मंत्री इतने अमीर हैं, कि अपने माल से ही राज्य के गरीबों को साल भर खाना खिला सकते हैं

शराब के बिना बहुत से लेखक और पत्रकार परेशान थे क्योंकि इनका कहना है लेखक को चाहिए कलम में सियाही और रगों में शराब। यह हर लेखक के लिए नहीं पर कुछ लेखक बिना पीए जी नहीं सकते, लिख भी नहीं सकते। शराब की दुकानें खुलने की बात पर इस तबके में भी हलचल मच गई। सोचा भीड़ कम होगी तो ले आएंगे। पर हाय री किस्मत दूसरा दिन नसीब ही नहीं हुआ तो फिर यह शराब के शेरों से ही अपना गम बिसरने लगे। एक दोहेकार ने लिखा-

बंद दुकानें खुल गईं, बिकने लगी शराब

लंबी-लंबी लाइनें कहते रहो खराब

इंतजार खत्म होगा मिलन फिर तुमसे होगा

हे मदिरा तुम प्रेयसी तुमसे वियोग सहन ना होगा।

पर सरकार ने अगर ये दुकानें खोलीं तो क्यों खोलीं। जानेंगे तो सरकार पर फूल बरसाएंगे। पता है केरल में शराब के गम में एक परिवार के नौ लोगों ने आत्महत्या कर ली। कर्नाटक में एक मजदूर ने खुदखुशी कर ली। तलाक और घरेलू हिंसा बढ़ने लगी। सरकार का दिल पिघल गया। और शराब की दुकानें खोलने का निर्णय लेना पड़ा। एक बात दीगर है कि ‘किलिंग टू बर्ड्स विथ वन स्टोन’ वाला मामला हो गया। पियक्कड़ भी खुश होंगे। खजाना भी भरेगा जिनके पास पैसा है वही तो खरीदेंगे।

अब यहां जो भीड़ है उसका विश्लेषण भी बता दें। शराबी दो तरह के होते हैं- पहले वे जो ‘जॉय ऑफ ड्रिंकिंग’ वाले हैं। कभी-कभी सेल्फ सैटिफेक्शन के लिए पीते हैं। ऐसे लोग ‘टॉनिक’ जैसी दुकानों के सामने खड़े होकर सभ्यता से खरीद रहे थे। दूसरे वे जो नशे के लिए शराब पीते हैं। ये लोग सोशल डिस्टसिंग की धज्जियां उड़ा रहे थे। मार पिटाई गालीगलौज़ कर रहे थे। चड्डियां फाड़ रहे थे। तीसरे वे जो ब्लैक मार्केटिंग करने के लिए खरीद रहे थे।

पर हां ये सब झूम बराबर झूम शराबी, या हमका पीनी है, पीनी है, हमका पीनी गाकर राज्यों की मरणासन्न अर्थव्यवस्था को म्यूजिक थेरेपी से ठीक कर रहे थे। पर सरकार ने सोचा नहीं था कि सिर मुंडाते ही ओले पड़ जाएंगे। ऐसे नज़ारे सामने आएंगे जिनको देख शर्म वालों की नजरें शर्म से झुक जाएंगी। वे सोच में पड़ जाएंगे, क्या इसलिए थाली बजाई थी, दीप जलाए थे? भारत की इन तस्वीरों पर विदेशों में क्या प्रतिक्रिया हुई होगी। तौबा-तौबा! खैर आनन-फानन में दुकानें बंद करनी पड़ीं। अब शराब के तलबगार नए नए सजेशंस दे रहे हैं। चाहते हैं इन्हें सरकार तक पहुंचाया जाए।

सजेशन नंबर एक- जिनके मोबाइल नंबर का अंतिम डिजिट एक है उन्हें 1 तारीख को बुलाए। जिनका दो उन्हें 2 तारीख को बुलाए। इसी तरह सब को बुलाए।

सजेशन नंबर दो- विदेशों में जैसे शराब एसेशियल्स के साथ मिलती है भारत में भी मिले।

सजेशन नंबर तीन- फैमिली डॉक्टर प्रिस्क्रीप्शन में अपने पेशेंट को शराब प्रिस्क्राइब करें।

सजेशन नंबर चार – जरूरी सामानों की तरह शराब की होम डिलीवरी कराई जाए।

सजेशन नंबर पांच- अगली बार जब दुकानें खोली जाए इस बात का ध्यान जरूर रखा जाए कि एक तरफ़ माशूका का घर हो दूसरी और शराब की दुकान।

कुछ किस्मत वाले थे, जहां से लाइन शुरू हुई थी, वहां प्रेमिका का घर था। खिड़की पर खड़ी प्रेमिका का दीदार भी कर लिया था, दूसरी ओर मयकदा था ही। बिना पुट्ठे पर पुलिस का डंडा खाए बिना सड़क पर लोट लगाए माशूका को भी देख लिया, जाम
होठों से लगा लिया।

जो शराबियों को कोस रहे हैं उनके लिए इनका संदेश यह है-

नशे में कौन नहीं है, ये बताओ जरा किसी को दौलत का नशा है, किसी को सत्ता का, किसी को रूप का नशा है, किसी को कायदे का।

हम भी उनके इस तर्क से सहमत हैं, सरकार भी। इनके गम से गमगीन सरकार को अपने खजाने की भी चिंता है। अब
सरकार क्या कदम उठाती है देखेंगे ‘हम लोग’।

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