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कोरोना: डर के आगे जीत है

कोरोना: डर के आगे जीत है

by मुकेश गुप्ता
in जून- सप्ताह तिसरा, ट्रेंडींग
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हाल में कई अनुभवों से साबित हो गया है कि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति का मनोबल टूटने से ही कई बार उसकी मौत हो जाती है। इसलिए दोस्त-नाते-रिश्तेदार और स्वयं मरीज को भी मनोबल टूटने नहीं देना चाहिए, बल्कि साहस के साथ मुकाबला करना चाहिए। लोग अवश्य ठीक हो रहे हैं। याद रहे डर के आगे जीत है।

भारत में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है जो डर गया वह मर गया, जो चीन से निकले वायरस कोरोना पर भी सटीक बैठती है। जिस तरह सांप के जहर से ज्यादा उसके डर से अधिक लोग मरते हैं, उसी तरह कोरोना वायरस के डर से अधिक लोग मर रहे हैं। ऐसा कहना अतिशयोिे नहीं है; क्योंकि कोरोना लाइलाज बीमारी नहीं है। भले ही कोरोना की वैक्सीन अभी नहीं बनी है, बावजूद इसके भारत में बड़ी संख्या में कोरोना से संक्रमित लोग ठीक हुए हैं और लगातार हो रहे हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि डर के आगे जीत है।

‘जान भी और जहान भी’ के मंत्र को साकार करना होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट ́ के नाम अपने संबोधन में ’जान भी और जहान भी’ की बात कही थी अर्थात हमें कोरोना के साथ ही जीना होगा, लड़ना होगा, संघर्ष करना होगा और विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ना होगा। कोरोना से बचाव के लिए मोदी सरकार ने लॉकडाउन घोषित कर पूरे देश भर में जागरूकता अभियान के साथ ही सुरक्षा के सभी आवश्यक इंतजाम कर लिए हैं। राज्य सरकार भी अपने स्तर पर कोरोना से निपटने में लगभग सक्षम हो चुकी है। लॉकडाउन की समाप्ति और ’अनलॉक 1’ के साथ ही सरकार द्वारा कम-अधिक मात्रा में छूट प्रदान की गई है।

’जान भी और जहान भी’ के मंत्र को साकार करने का अब समय आ गया है। हमें अपने परिवार के भरण-पोषण और रोजगार के लिए आगे आना चाहिए। सभी जरूरी सुरक्षा एहतियात का पालन करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को गति देनी होगी। कोरोना के डर का माहौल खत्म करना होगा और यह साबित करना होगा कि डर के आगे जीत है।

सांप और मेंढक की प्रेरक कहानी

कोरोना संकट काल में सांप और मेंढक की प्रेरक कहानी मुझे बेहद प्रासंगिक लगी। इन दिनों सोशल मीडिया पर यह काफी वायरल हो रही है। एक समय की बात है, एक विषधर सांप अपने जहर का खूब बखान मेंढक के समक्ष कर रहा था। तब मेंढक ने उससे कहा कि आपके जहर से नहीं बल्कि आपके डर से लोग मरते हैं। तब सांप ने कहा कि इसे साबित करके बताओ। मेंढक ने कहा ठीक है हम एक प्रयोग करते हैं। एक व्यिे को मैं काटूंगा तब तुम फुफकारते हुए सामने आना और दूसरे व्यिे को तुम काटना और उसके सामने मैं आऊंगा। योजना अनुसार मेंढक ने एक व्यक्ति को काटा और छुप गया उस व्यक्ति के सामने सांप फुफकारता हुआ नजर आया। सांप के काटने के डर से कुछ समय बाद उस व्यक्ति  की मृत्यु हो गई। दूसरे व्यक्ति को सांप ने काटा और वह छुप गया उसके सामने मेंढक आ गया। व्यक्ति ने सोचा कि मेंढक ने काटा होगा। वह उसे नजरअंदाज करता हुआ आगे बढ़ चला और उसे कुछ नहीं हुआ। इस प्रयोग से यह साबित हो गया कि सांप के जहर से नहीं बल्कि उसके डर से अधिकतर लोगों की मौत होती है। सांप के जहर की तरह कोरोना वायरस का भी हाल है इसलिए मैं कहता हूं कि डरना मना है।

कोरोना संक्रमण से ठीक हुए सुभाष मालाडकर की कहानी, उनकी जुबानी

मुंबई के उपनगर मालाड़ पूर्व के कुरार गांव स्थित दत्तवाडी में मैं रहता हूं। एक समाजसेवक होने के नाते मेरा लोगों से मिलना जुलना लगा रहता है। मेरी आयु 51 वर्ष है और मुझे डायबिटीज भी है। कोरोना वायरस मुझे कैसे हुआ इसका मुझे भी कुछ पता नहीं चला। मेरे ससुर की तबीयत ठीक नहीं थी उन्हें लेकर मैं अस्पताल में गया था। उन्हें अस्पताल में ले जाने के बाद जांच रिपोर्ट में पता चला कि वे कोरोना से संक्रमित हैं। इसकी जानकारी मिलते ही मुझे टेंशन हो गया क्योंकि मैं ही उनके साथ था। इसके बाद तुरंत ही मैं अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ त्रिवेणी नगर में 1ारंटाइन हो गया। इस दौरान मेरी तबीयत अचानक बिगड़ गई और कमजोरी महसूस होने लगी। मुझे सांस लेने में दि ̧त आ रही थी और तेज बुखार हो गया। इलाज के लिए बोरीवली के एक निजी अस्पताल में मैं भर्ती हो गया। वहां पर कुछ ही दिनों में लाखों का बिल बन गया। शिवसेना विधायक सुनील प्रभु ने हमें सहयोग किया और आधे से भी अधिक बिल में छूट दिलाई। बोरीवली के ही स्थानीय मनसे नेता और हमारे पारिवारिक सदस्य नयन कदम ने मुझे बहुत सहयोग दिया और बोरीवली के भगवती अस्पताल में मुझे शिफ्ट करवाया। इस दौरान पी/नॉर्थ मनपा के प्रभाग समिति अध्यक्ष एवं भाजपा के नगरसेवक विनोद मिश्रा और संजय पराडकर ने भी हमें सहायता प्रदान की।

जीवनदायिनी है भगवती अस्पताल

भगवती अस्पताल में कोरोना के इलाज की बेहतरीन व्यवस्था की गई है। वहां पर मेरी बहुत अच्छे से सेवा चिकित्सा की गई। डॉक्टर, नर्स एवं अन्य कर्मचारियों का व्यवहार और सेवा भाव सराहनीय व प्रशंसनीय है। प्राइवेट अस्पताल से कहीं अधिक सुविधाएं भगवती अस्पताल में दी जा रही हैं। बीएमसी का अस्पताल मरीजों के लिए संजीवनी की तरह जीवनदायिनी है। कोरोना से संक्रमित अनेक मरीज यहां से पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने घरों में गए हैं। मेरे भाई सुनील को भी कोरोना संक्रमण हुआ था। उसे भी मीरा रोड से लाकर भगवती अस्पताल में भर्ती किया गया। वह भी ठीक हो कर घर आ गया है।

मेरे परम मित्र रणजीत पटेल का अनमोल सहयोग

कहते हैं, संकट के समय जो काम आए वही सच्चा मित्र कहलाने के लिए यो1⁄2य होता है। कृष्ण सुदामा की मित्रता को चरितार्थ करते हुए रणजीत पटेल ने अपनी जान की परवाह किए बिना दिन-रात मेरी सेवा की। उसकी मैं जितनी तारीफ करूं उतनी कम ही है। कोरोना संक्रमण होने के डर से अपने ही अपनों से दूर हो रहे हैं लेकिन मेरे मित्र ने एक पल के लिए भी मेरा साथ नहीं छोड़ा। रंजीत पटेल के परिवारजनों ने भी हमारी निस्वार्थ भाव से खूब सेवा की। उसके दोस्तों ने भी उसे समझाया और डराया कि ’तुझे भी कोरोना हो जाएगा, तू मत जा सुभाष के पास’, लेकिन उसने किसी की एक

मनोबल बढ़ते ही मैं ठीक हो गया

कोरोना का संक्रमण होते ही मैं पूरी तरह से डर गया था। रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही मैं ह ̧ा-ब ̧ा रह गया। मेरी हालत और खराब हो गई। जब मैं प्राइवेट अस्पताल में भर्ती होने के लिए गया तब अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। उस समय मैं एक बेड पर लेट गया और तुरंत मुझे गहरी नींद आ गई। एक घंटे के बाद मेरी नींद खुली तो पता चला कि मुझे बीते 1 घंटे से जगाया जा रहा था। लोगों को यह भी शंका हो रही थी कि कहीं मेरा देहांत तो नहीं हो गया। 14 मई को ऐसा भी दिन आया जब मैंने जीने की आस ही छोड़ दी थी और मान बैठा था कि आज मेरा जीवन खत्म हो जाएगा। मैं नहीं बचूंगा। उस दिन अजीब तरह की बेचैनी हो रही थी। मेरा मनोबल टूट चुका था। मैं पूरी तरह से हताश और निराश हो चुका था लेकिन ईश्वर कृपा से मैं बच गया। उसके बाद से मुझ में अचानक सकारात्मक बदलाव आने लगे। मेरे परिवारजनों, दोस्तों एवं डॉक्टरों आदि की सेवा भावना से मुझे प्रेरणा मिली, प्रोत्साहन मिला, जिससे धीरे-धीरे मेरा मनोबल बढ़ने लगा। दवाओं और दुआओं का मुझ पर असर होने लगा। अपनों का स्नेह – प्यार और ईश्वर पर अटूट भरोसे के कारण मुझ में नवचैतन्य का संचार हुआ और मेरा मनोबल बढ़ने लगा। मुझे ऐसा लगता है कि मेरा मनोबल बढ़ने के कारण ही मैं इस बीमारी से ठीक हो पाया हूं। मैं अपने अनुभव के आधार पर बस इतना ही कहना चाहता हूं कि किसी भी हाल में हताश, निराश एवं उदास ना हों। अपना मनोबल टूटने न दें। भगवान पर विश्वास रखकर और उनके शरण में जाकर कोरोना से डरे नहीं बल्कि लड़े। जीत आपकी निश्चित है।

                                                                     -सुभाष मालडकर, अध्यक्ष संतोषी नवरंग मित्र मंडल, दत्त वाड़ी, कुरार गांव, मलाड

न सुनी। सही मायनों में वह दोस्ती के लिए एक मिसाल बन गया है। इसके लिए मैं जीवन भर उसका आभारी रहूंगा।

बेटी ने निभाई बेटे की भूमिका

मेरे बहन की एक सुपुत्री है उत्कर्षा महाडिक (सोनू) जिसकी उम्र 27 साल है। वह शादीशुदा है और एक बच्चे की मां है, गोरेगांव में रहती है। रोजाना वह गोरेगांव से बोरीवली और मीरा रोड के हॉस्पिटलों का च ̧र काटकर हम दोनों भाइयों की सेवा कर रही थी। मैं उसे बेटी नहीं बल्कि बेटा ही मानता था। उसने यह साबित भी किया और एक बेटे की भूमिका निभाकर हम सभी का दिल जीत लिया। अपनी 3 साल की छोटी बच्ची को छोड़कर हमारी सेवा के लिए अस्पताल में आना-जाना, यह कोई मामूली बात नहीं है। इसके लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए जो मेरे बेटे यानी बेटी के पास है। उस पर हम सभी को गर्व है। मैं मानता हूं कि मेरे भाई सुनील की जान उसने ही बचाई है। भगवान उसे बहुत सुखी रखे, यही प्रार्थना मैं ईश्वर से करता हूं।

भारत में डर का माहौल नही है

कोरोना एक दो साल तक जाने वाला नहीं है। उसे हमें हमारी जिंदगी का हिस्सा बनाना पड़ेगा। जिस तरह हम डेंगू मलेरिया के संक्रमण के साथ जी रहे हैं उसी तरह कोरोना के साथ भी हमें जीना होगा। तीन माह पूर्व जिस तरह कोरोना वायरस का डर लोगों के मन में था, वह धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। स्थितियां सकारात्मक हो रही हैं और कोरोना वायरस को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। जिन लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ है उनमें से लगभग 80% लोगों में पहले से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है और लगातार इसमें सुधार हो रहा है। यदि किसी व्यिे को डायबिटीज, अस्थमा, हाइपरटेंशन,  कोलेस्ट्रॉल  की बीमारियां नहीं हैं और वे बहुत ज्यादा नशे का आदी नहीं हैं, ऐसे लोगों को कोरोना कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। वह बहुत जल्द ठीक हो जाएगा। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के अनुसार 10 से 20 दिनों के बीच वह जल्द ही स्वस्थ हो जाएगा।

कोरोना के विषय में मुख्य बात यह है कि वह एक आरएनआई वायरस है जो कि 6 तरह की अलग थीसिस में आता है। भारत की बात करें तो वैसे भी भारतीयों में पहले से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है क्योंकि विभिन्न प्रकार की बीमारियों से लड़ते-लड़ते उनमें प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है। इसलिए भारत में अन्य देशों की तुलना में दो गुनी रफ्तार से कोरोना संक्रमण नहीं फैला। यदि कोरोना से बचाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु प्राकृतिक स्वास्थ्यवर्धक आहार जितना अधिक मात्रा में लेंगे उतना अच्छा है। इसके साथ ही योग को महत्व देंगे तो और ज्यादा अच्छा रहेगा। मल्टी विटामिन सी का सेवन करें तो रोग प्रतिरोधक क्षमता और बढ़ेगी। इससे कोरोना वायरस से लड़ने में सहायता मिलेगी। गर्म पानी का सेवन अधिक मात्रा में करें। आयुर्वेदिक हर्ब जैसे नींबू, हल्दी, अदरक मिलाकर चाय या काढ़ा बनाकर लेने से शरीर को बल मिलेगा और चुस्ती फुर्ती बनी रहेगी। यह प्राकृतिक रूप से ब्लड थिनर एजेंट है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी फिजिकल डिस्टेंस का पालन करें। सेल्फ कोलेस्ट्रॉल से ही कोरोना वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है। दूसरों को बचाने से पहले स्वयं को बचाइए, इससे संक्रमण नहीं फैलेगा।

भारत में डर का माहौल नहीं है बल्कि भारत के लिए यह बहुत ही अच्छा माहौल है। एक अच्छा सुनहरा अवसर है। भारत में जब भी कोई संकट आया है चाहे वह पाकिस्तान से निकला आतंकवाद हो या चीन से निकला वायरस कोरोना हो, हम तब – तब जात, पात, धर्म, भेद व राजनीति से ऊपर उठकर एकजुट हुए हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि भारतीयों ने चीन के सामानों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। वे स्वदेशी वस्तुएं खरीद रहे हैं। यह राष्ट्रिय हित में बहुत ही अच्छा सकारात्मक परिवर्तन है।

बुजुर्गों का रखें विशेष ध्यान

कोरोना के संक्रमण काल में हमें बड़े बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। बुजुर्ग तो घर में रहकर लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का बहुत अच्छे से पालन कर रहे हैं। उन्हें संक्रमण इसलिए हो रहा है क्योंकि घर का ही कोई ना कोई सदस्य नियमों व सुरक्षा एहतियात का पालन नहीं कर रहा है। ऐसे लोगों को बड़ी विनम्रता से समझाना चाहिए कि यह गलत है और उनसे सुरक्षा नियमों व एहतियातों का पालन करवाना बेहद जरूरी है।

                                  -डॉ.प्रदीप पांडे,- डायरेक्टर – एटलांटिस मैक्स मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल

भारत को अब इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ेगा।

हमारे पास दो ही विकल्प हैं

हमारे पास मात्र दो ही विकल्प हैं- एक या तो आप इस बीमारी को लेकर हायतौबा मचाते हुए समय गुजार दे या फिर अपना स्व आकलन कर भविष्य की योजनाओं पर अमल करना शुरू करे। आप कहां गलत थे, कहां सही थे, हमारी कमजोरी और मजबूती क्या है? स्वयं का विश्लेषण करने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। लॉकडाउन के पूर्व हर व्यिे अपने अपने कामों में इतना व्यस्त था कि उसे स्वयं की ताकत पहचानने का भी समय नहीं मिला। मैंने कॉरनटाईन किए हुए ऐसे अनेकों को देखा है कि बाहर निकलने के बाद किसी ने योग करना शुरू किया है, किसी ने कुकिंग शुरू किया है, किसी ने फल- सब्जी आदि नया व्यवसाय शुरू किया है। सभी ने स्वयं को स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया है।

’बर्न द बोट्स ’ युद्ध से ले सकते हैं प्रेरणा

कई वर्षों पहले एक योद्धा के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती आ गई थी। उसे एक शिेशाली सेना से युद्ध लड़ना था। योद्धा के पास बहुत ही कम संसाधन और सैनिक थे जबकि विरोधी सेना के पास उससे 10 गुणा ज्यादा सैनिक और हथियार थे। बावजूद इसके योद्धा ने युद्ध लड़ने का निर्णय लिया। वह नदी के रास्ते जहाजों से दुश्मन देश की सरहद पर पहुंच गया। जहाज पर से सैनिकों व हथियारों को उतारने के बाद उसने जहाजों को जलाने का आदेश दिया। इसके बाद योद्धा ने अपने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा ’आप देख रहे हैं कि सारे जहाज जला दिए गए हैं, अब हम तब तक वापस नहीं जिंदा लौट सकते जब तक हम जीत नहीं जाए, हमारे पास जीत के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।’ योद्धा की सेना ने अत्यंत साहस व शौर्य – पराक्रम का प्रदर्शन किया और वह युद्ध जीत गए। उन्होंने पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा इसलिए वे जीत गए। ज्यादातर लोग जोखिम से बचने के लिए बैकअप प्लान बनाते हैं। लक्ष्य को प्राप्त करने में आने वाली मुसीबतों और प्रतिकूल परिस्थितियों में बैकअप प्लान आप की सबसे बड़ी कमजोरी बनकर आपको लक्ष्य से भटकने के लिए मजबूत करता है। असफल लोगों के पास बचने का एकमात्र साधन होता है कि वे मुसीबत आने पर अपने लक्ष्य को बदल देते हैं और सफल लोग मुसीबत आने पर रास्ते बदलते हैं लक्ष्य नहीं।

भारत भी कोरोना के खिलाफ युद्धरत है। जिस तरह डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस, सफाई कर्मी, मीडिया आदि कोरोना योद्धा लड़ रहे हैं उसी तरह भारत के हर नागरिक को कोरोना योद्धा बनना पड़ेगा। सभी आवश्यक सुरक्षा एहतियात बरतते हुए हमें अपने कर्तव्य का पालन करना होगा। हम कोरोना के खिलाफ यह युद्ध जरूर जीतेंगे।

’बर्न द बोट2स’ से प्रेरणा लेकर जो बेरोजगार हैं नौकरीपेशा है वे स्वयं का आकलन करें। स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाए। नया व्यवसाय, स्वरोजगार, स्वदेशी आदि के लिए वर्तमान भारत सरकार सहायता प्रदान कर रही है। देश में पहली बार ऐसी सरकार आई है जिन्होंने स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनने का मौका दिया है, प्रोत्साहित किया है। नौकरीपेशा से जुड़े 10 हजार से 20 हजार महीना कमाने वाले युवक स्वदेशी स्वरोजगार द्वारा 25 से 30 हजार रुपये आसानी से कमा सकते हैं। उनमें एक नए आत्मविश्वास का निर्माण होगा और आगे जाकर वह एक सफल व्यवसायी, व्यापारी और उद्योजक बनेंगे।

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मुकेश गुप्ता

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