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कोसिया इंडस्ट्रियल एसोसिएशन  एमएसएमई को राहत  पैकेज का लाभ नहीं मिलेगा

कोसिया इंडस्ट्रियल एसोसिएशन एमएसएमई को राहत पैकेज का लाभ नहीं मिलेगा

by संदीप पारेख
in उद्योग, जून- सप्ताह एक, ट्रेंडींग, सामाजिक
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सरकार एमएसएमई से जुड़े लोगों से बात नहीं करती, उनसे सलाह मशविरा नहीं करती, उनकी मांगों को वह नहीं सुनना चाहती। इसलिए राहत पैकेज का उसे लाभ नहीं मिलेगा। समय रहते यदि सरकार ने उचित कदम नहीं उठाए तो एमएसएमई क्षेत्र के 25 से 30 प्रतिशत उद्योग बंद हो जाएंगे।

टीसा और कोसिया इंडस्ट्रियल एसोसिएशन से मैं जुड़ा हुआ हूं। दोनों ही एमएसएमई के अंतर्गत आते हैं। टीसा के सभी सदस्य ठाणे जिले के हैं। लगभग 3500 सदस्य हमारे ठाणे जिले के हैं। बीते 44 वर्षों से टीसा काम कर रही है और कोसिया राष्ट्रीय स्तर का संगठन है जो 27 वर्षों से कार्यरत है। पूरे भारत में कुल 27 एसोसिएशन हमारे साथ जुड़कर कार्य कर रही है। देश के सभी राज्यों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हैं। हम सभी की एक एपेक्स बॉडी है। एमएसएमई के तहत ज्यादातर इंजीनियरिंग उद्योग आते हैं और इसके साथ ही टेक्सटाइल्स, केमिकल, रबर, पेपर आदि अनेक प्रकार के उद्योग शामिल हैं।

उद्योगों के निवेश में आएगी कमी और बढ़ेगी बेरोजगारी

कोरोना संकट के कारण हमारा उद्योग तो पहले से ही स्लोडाउन हो गया था लेकिन अब हमारा उद्योग भी संकट में आ गया है। मजदूरों के पलायन ने हमारी समस्या को और बढ़ा दिया है। हमारे पास श्रमिकों की बहुत ज्यादा कमी हो गई है। केवल ठाणे जिले से लगभग 8 लाख मजदूर पलायन कर चुके हैं। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितना बड़ा पलायन है। लगभग 80 प्रतिशत के करीब मजदूर अपने गावों में चले गए हैं और वे इतने जल्दी आने वाले नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि मांग में कमी आने से और ऑर्डर कैंसल होने से भी उद्योगों को नुकसान हो रहा है। हमारे उद्योग में सरकारी और निजी निवेश अभी आने की कोई उम्मीद नहीं है। इससे लोगों की नौकरी जाने का खतरा और अधिक बढ़ गया है। आने वाले समय में बेरोजगारी का संकट भी बढ़ेगा।

एमएसएमई को होगा सर्वाधिक आर्थिक नुकसान

बीते 3 माह से हमारा लाईट बिल,भाड़ा, कर्मचारियों का वेतन आदि फिक्स खर्च तो हो रहा है लेकिन पैसा आ नहीं रहा है। इससे उद्योग जगत पर चौतरफा मार पड़ रहा है और भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस आर्थिक घाटे से उबरने की कोई राह दिखाई नहीं दे रही है। इसलिए आर्थिक संकट एवं मंदी की संभावना बढ़ गई है। सरकार ने कह दिया है कि आप 6 महीने बाद पैसा भरो लेकिन ब्याज नहीं छोड़ा है। ब्याज पर ब्याज भी लेने वाले हैं। अभी जो समस्या आने आने वाली थी वह 6 महीने बाद आएगी। इसमें एमएसएमई क्षेत्र को ही ज्यादा नुकसान होगा। सरकार ने जो राहत पैकेज का ऐलान किया है वह सिर्फ दिखावा है उसका लाभ एमएसएमई को नहीं मिलने वाला। वह सिर्फ एक छलावा है। आज तक एमएसएमई को सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है और आगे भी मिलने की उम्मीद कम ही है।

एमएसएमई क्षेत्र में जो 3 लाख करोड़ रूपये पैकेज की जो घोषणा की गई है उसमें केवल 20 प्रतिशत कोलेटरल फ्री अतिरिक्त कर्ज देने का प्रावधान किया गया है। लेकिन इसका भी फायदा एमएसएमई को ज्यादा मिलने वाला नहीं है। एमएसएमई के अंतर्गत माइक्रो, स्मॉल और मीडियम इंडस्ट्रीज आती हैं। साढ़े छः करोड़ एमएसएमई

हैं पूरे भारत में और उसमें कुल 97 प्रतिशत माइक्रो इंडस्ट्रीज आती है। जिनका निवेश 25 लाख तक है, उन्हें माइक्रो कहा जाता है। 2 प्रतिशत स्मॉल में आता है और एक प्रतिशत मीडियम में आता है। इसमें माइक्रो इंडस्ट्रीज को कोई ़फायदा होनेवाला नहीं है क्योंकि वह बिजनेस लोन के आधार पर काम नहीं करते बल्कि पर्सनल लोन के आधार पर काम करते हैं। ऐसे में उनको अतिरिक्त रूप से 20 प्रतिशत लोन कैसे मिलेगा? और 20 प्रतिशत लोन लेना इतना आसान नहीं है। बहुत ज्यादा पेपर वर्क करना पड़ता है। उसमें भी बैंकों की शर्तें होती हैं। लोन देना या नहीं देना बैंकों के हाथ में है।

सरकार आर्थिक पैकेज का लाभ नहीं देना चाहती?

जिस कंपनी में 100 कर्मचारियों की संख्या है और उनमें से 90 प्रतिशत कर्मचारी, जिनका वेतन 15 हजार से कम है ऐसे कर्मचारियों का पीएफ 6 माह तक सरकार देगी। सरकार की इस योजना का लाभ भी मिलने की उम्मीद बेहद कम है क्योंकि बहुत कम कंपनियां ऐसी होगी जो इन नियमों के तहत लाभ लेने की स्थिति में होगी। सरकार को हमने सुझाव दिया था कि 90 प्रतिशत के बजाय 50 प्रतिशत किया जाए ताकि अधिक संख्या में कर्मचारियों को लाभ मिल सके। मुझे ऐसा लगता है कि सरकार हकीकत में आर्थिक पैकेज का लाभ देना ही नहीं चाहती। केवल 2 प्रतिशत को ही फायदा मिलेगा, अन्य को नहीं। हमारी मांग है कि हमें ब्याज में विशेष छूट दी जाए। जब तक लॉकडाउन ख़त्म नहीं होता तब तक हम जो 10 प्रतिशत ब्याज देते हैं, उसके बदले 5 प्रतिशत ही हमसे ब्याज लिया जाए। यदि इस तरह की कोई छूट हमें मिलती है तो कुछ राहत जरूर मिलेगी और हम संघर्ष करने की स्थिति में आ जाएंगे।

चीन की तर्ज पर उद्योगों को दी जाए सहूलियत

हमें सब्जबाग दिखाया जा रहा है कि चीन से निकलकर विदेशी कंपनियां भारत आने वाली हैं। आप उन्हें छोड़िए। जब वे आएंगी तब देखा जाएगा लेकिन जो हमारी स्वदेशी कंपनियां हैं उन्हें बचाने पर हमारा फोकस होना चाहिए। यदि भारत की ही कंपनियां संघर्ष नहीं कर पाएंगी और उन्हें ही आर्थिक नुकसान होगा तो विदेशी कंपनियां भारत में क्यों आएगी? चीन से भारत की आर्थिक दृष्टि से तुलना करना ठीक नहीं है। पहले चीन की तर्ज पर नीति नियमों सहित आर्थिक ढांचा तो विकसित करो। कंपनियों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए कुछ छूट तो दो। इसके बाद बड़ी बड़ी बातें करो। जो देश कंपनियों को सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं ऐसे देशों में कंपनियां जाएंगी। व्यापार की दृष्टि से भारत का माहौल ठीक नहीं है।

भारत की सुधार प्रक्रिया सुस्त

आर्थिक मोर्चे पर सरकार विेफल होती दिखाई दे रही है। जिस तरह विदेशों में कंपनियों को विशेष छूट दी जाती है, वैसे भारत में नहीं दी जाती इसलिए निवेश के मामले में भारत का रेटिंग भी डाउन हो रहा है। एक असलियत यह भी है कि दुनिया की बड़ी – बड़ी कंपनियां भारत को निवेश के लिए बेहतर विकल्प नहीं मानतीं। सरकार की नीतियां अमल में नहीं आ पा रही हैं।

200 करोड़ का टेंडर एमएसएमई को नहीं मिलेगा

पैकेज में एक और बात कही गई है कि सरकारी 200 करोड़ का टेंडर हम विदेशी कंपनियों को नहीं देंगे बल्कि एमएसएमई को देंगे। इसमें भी सच्चाई यह है कि कोई भी एमएसएमई से जुड़े उद्योग 200 करोड़ के टेंडर भर नहीं सकते। इसलिए यह भी किसी बड़े इंडस्ट्रीज के पास ही जाएगा। मुझे तो यह पैकेज कम और बजट ज्यादा दिखाई दे रहा है।

सरकार की विेशसनीयता पर उठते सवाल

दूसरी बात मैं यह बताना चाहता हूं कि सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि जो 20 लाख करोड़ का पैकेज है, जो जीडीपी का 10 प्रतिशत है। यह बिलकुल गलत बात है। कुछ कंपनियों ने तथ्यों के साथ इसे चुनौती दी है और कहा है कि यह मात्र जीडीपी का 1 प्रतिशत ही पैकेज है। इस तरह की झूठी बातों पर सरकार की विेशसनीयता पर सवाल उठते हैं।

30 प्रतिशत एमएसएमई इंडस्ट्रीज बंद होने की कगार पर

सरकार एमएसएमई से जुड़े लोगों से बात नहीं करती, उनसे सलाह मशविरा नहीं करती, उनकी मांगों को वह नहीं सुनना चाहती। वह केवल बड़े – बड़े उद्योग घराने और इंडस्ट्रीज से ही बातें करके अपनी नीतियां बनाती हैं। फिक्की जैसे बड़े – बड़े संगठनों और बिल्डरों से वह पूछते हैं कि एमएसएमई के लिए क्या करना चाहिए? मैं कहता हूं कि उनको हमारे एमएसएमई की समस्या और चुनौतियों के बारे में क्या पता है? मेरा मानना है कि एमएसएमई से जुड़े राष्ट्रीय एसोसिएशन से चर्चा करके यदि राय बनाई जाती तो पैकेज लाभदायक होता। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि समय रहते यदि सरकार ने उचित कदम नहीं उठाए तो एमएसएमई क्षेत्र के 25 से 30 प्रतिशत उद्योग बंद हो जाएंगे, जिसके चलते रोजी रोजगार का संकट और बढ़ जाएगा।

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