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एमएसएमई इंडस्ट्रीज खतरे में…

एमएसएमई इंडस्ट्रीज खतरे में…

by सात्विक स्वाइन
in उद्योग, जून- सप्ताह एक, ट्रेंडींग, सामाजिक
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उड़ीसा असेंबली ऑफ स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज का मैं महासचिव हूं। उड़ीसा में इंडस्ट्रीज की हालत बहुत ही खराब है। लोक डाउन होने से अचानक इंडस्ट्रीज को बंद करना पड़ा। गत 4 मई से उद्योगों को शुरू करने की अनुमति सरकार ने दी लेकिन प्रशासनिक मंजूरी लेने में ही 10 से 15 दिन का समय बीत गया। परमिशन लेने में हमें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। ग्रामीण क्षेत्र के कई इंडस्ट्रीज को तो यह भी सूचना नहीं मिली थी कि परमिशन लेना कहां से हैं।

मार्च माह में ही हमने माल सप्लाई कर दिया था लेकिन लोक डाउन होने के बाद से अब तक हमें बकाया राशियों का भुगतान नहीं किया गया है। सरकार और प्राइवेट सेक्टर के पास पैसा होने के बावजूद हमें भुगतान नहीं कर रहे हैं। कोरोना संकट का बहाना बनाकर वह पैसा देने से इंकार कर रहे हैं। यह भी हमारे लिए एक समस्या बन चुकी है।

इसके अलावा मजदूरों का पलायन भी प्रमुख समस्याओं में से एक है। उनके बिना हमारी इंडस्ट्रीज चल नहीं सकती। मजदूरों का कहना है कि यदि वह वापस भी आ जाते तो फिर से संकट आने पर वह अपने गांव जा नहीं पाएंगे। बड़ी मुश्किलों से तो हम अपने घर पहुंचे हैं।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को समस्याओं से कराया अवगत

हमारे एसोसिएशन से 4 हजार से अधिक लोग जुड़े हुए हैं। फूड, फार्मा, एग्रो, इंजीनियरिंग, प्लास्टिक, पैकेजिंग, केमिकल,इलेक्ट्रॉनिक आदि अनेक सेक्टर के उद्योग उड़ीसा में है। इंडस्ट्रीज की आवश्यकताओं के अनुसार राहत देने के लिए हमने सरकार को पत्र भेजा है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी से भी मुलाकात कर हमने इंडस्ट्रीज की परेशानियों से उन्हें अवगत कराया है। इसके अलावा हमें कोसिया और टीसा असोसिएशन ने बहुत मदद की है।

उड़ीसा में एमएसएमई के लिए लाभप्रद सिद्ध नहीं होगी। सरकार ने नियम व शर्तें ऐसी रखी है कि बेहद कम लोग ही इसका लाभ उठा पाएंगे। अभी हाल ही में एक बैठक का आयोजन किया गया था। जिसमें प्रशासनिक अधिकारी सहित बैंक के अधिकारी और एमएसएमई एसोसिएशन के पदाधिकारी शामिल थे। उस बैठक में बताया गया कि जो राहत पैकेज की घोषणा की गई है। उसका ऑपरेशनल गाइडलाइंस अभी नहीं आया है। इसलिए कोई भी बैंक आर्थिक सहायता देने की स्थिति में अभी नहीं है। बैंक अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक हमारे पास गाइडलाइन नहीं आ जाती तब तक हम किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता देने में असमर्थ है।

इंडस्ट्रीज की प्रमुख समस्याएं

अभी हमारी इंडस्ट्रीज के समक्ष दो बड़ी प्रमुख समस्याएं हैं। वह यह है कि मार्केट में हमारा पैसा फंसा हुआ है, पैसा कहीं से नहीं आ रहा है। और दूसरा है रॉ मैटेरियल सोर्स। हर कंपनी का रो मटेरियल का सोर्स कहीं ना कहीं से होता है। जैसे मेरा रॉ मटेरियल गुजरात, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई आदि राज्यों से आता है। वह सभी राज्य स्वयं ही लोक डाउन में फंसे हुए हैं। यह राष्ट्रीय समस्या है। वहां पर फैक्ट्री बंद है हमारा उन राज्यों से रॉ मैटेरियल नहीं आ पा रहा है। इसलिए हमारा भी काम शुरू नहीं हो पा रहा है। जिसके चलते हमारी इंडस्ट्रीज भी बंद पड़ी हुई है।

5% ब्याज दर पर दिया जाए लोन

हम ईएसआईसी भरते हैं, वह हमसे इतना पैसा लेता है तो लॉकडाउन के संकटकाल में वह हमारे वर्करों का वेतन नहीं दे सकता था। ऐसे समय में वह हमारी आर्थिक सहायता नहीं कर सकते क्या ? लेकिन ईएसआईसी ने कोई मदद नहीं दी और नहीं सरकार ने कोई एक्शन लिया है। दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूं कि हमें लोन की जरूरत नहीं है। हमें विवाईवल पैकेज की जरूरत है। जिसमें हमें कुछ छूट मिलती। लोन के ब्याज दरों में कमी करनी चाहिए। सरकार का राहत पैकेज तो एक तरह से मलोन मेलाफ हो गया है। हम तो पहले से ही लोन में डूबे हुए हैं और दूसरा लोन लेकर और भी डूब मरे क्या ? साढ़े 9 प्रतिशत लोन का ब्याज दर है, हमारी मांग है कि हमें 5 % पर लोन दिया जाए और साथ ही बिजली रेट, जीएसटी आदि टैक्सों में छूट दी जाए। सरकार ने यह तो नहीं किया बल्कि उल्टा बोझ और हम पर डाल दिया ।
मार्केट पूरी तरह से डाउन है। बाजार में मांग बिल्कुल नहीं हैं। जो इंडस्ट्रीज चल भी रहे है, उसका सेल नहीं हो रहा है। क्योंकि लोक डाउन है। लोग अपने घरों से बाहर नहीं आ पा रहे हैं।

राज्य सरकार से राहत पैकेज की आखिरी उम्मीद

हमें केंद्र सरकार से बड़ी उम्मीदें थी कि कुछ राहत हमें दी जाएंगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा था कि हमें आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा। उसी तरह हमें भी किसी तरह हाथ पैर चलाकर आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा। इसके अलावा हमारे पास कोई दूसरा मार्ग नहीं है। लेकिन आत्मनिर्भर हम तब बनेंगे जब हम इस संकटकाल में टिके रहेंगे। अब हमारी आखिरी उम्मीद राज्य सरकार से ही है। वह कुछ ना कुछ ऐसा करें कि उद्योग जगत बच जाए। हम सरकार को टैक्स देते हैं। सरकार को हमारी भी कुछ जायज मांगे माननी चाहिए।

राज्य सरकार हमें कुछ सब्सिडी दे दे। लोक डाउन पीरियड में इंडस्ट्रीज को आर्थिक नुकसान हुआ है उसके लिए कुछ आर्थिक पैकेज लाये।

सरकार ख़रीदे देश में बने उत्पाद

इसके अलावा लोकल माल को ही खरीदने की कुछ ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि अगले 5 -10 वर्षों तक सरकार जो भी खरीदी करें उसमें से 50% उड़ीसा का ही बना हुआ माल हो। प्रधानमंत्री मोदी जी ने लोकल को प्रमोट करने के लिए जो वोकल बनने की बात कही है वह बिल्कुल सत्य है। लोकल के प्रचार – प्रसार के लिए हमें वोकल बनना ही पड़ेगा। तभी एमएसएमई उद्योग सुचारू रूप से चल पाएंगे। सरकारों को भी स्वदेशी और प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। यदि हमारी सरकार हमारे ही देश में बने उत्पाद खरीदने लगे तो हमें बाहर एक्सपोर्ट करने की भी जरूरत नहीं होगी। इसी से हमारी अर्थव्यवस्था मजबूती से चल सकती है।

विदेश से आने वाले उत्पाद भारत में बनाई जाए

हमें आईडेंटिफाई करना है कि कौन – कौन से माल हमारे देश में बाहर से आ रहे हैं। उनकी सूची तैयार कर उसे भारत में ही बनाया जाना चाहिए। इस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से अमलीजामा पहनाना चाहिए और सरकार को तकनीकी सहायता के साथ ही आर्थिक सहायता प्रदान कर कंपनियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। वर्तमान समय मे ज्यादातर माल चीन से लाया जाता है और उसे ही तैयार कर मार्केट में बेचा जाता है। तो वह सारा सामान भारत में ही बनना चाहिए। जो भी इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए आगे आएंगे, ऐसे लोगों को विशेष सुविधाएं व सहायता सरकार की ओर से देनी चाहिए।

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