कोविड-19 के संकट के दौरान सहज बने रहें, आवश्यक सावधानियां बरतते रहें तथा इस महामारी के बाद अपने जीवन के लिए खुद को कैसे तैयार करना है, इसकी तैयारी भी करें। महामारी के इस वर्तमान दौर में शरीर और मन को स्वस्थ रखने के नए दिशानिर्देशों को अपनाना बहुत जरूरी है।
नॉवेल कोरोना वायरस या र्उेींळव-19 अधिकतर कमजोर इम्यूनिटी (रोग-प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों को अपनी चपेट में लेता है। इस श्रेणी में 10 साल से कम उम्र के बच्चे, वृद्धजन, गर्भवती महिलाएं और कुपोषित लोग आते हैं। इनके अलावा किसी भी उम्र के वे लोग भी कोविड-19 से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं जिन्हें पहले से हृदय रोग, मधुमेह, दमा आदि जैसे रोग हैं। यही नहीं, समाज के गरीब, वंचित, बेघर और बेसहारा लोगों पर भी कोरोना की मार पड़ी है। लोगों के मन पर कोरोना वायरस का क्या प्रभाव पड़ता है, उसी के वैज्ञानिकों पहलुओं पर इस लेख में चर्चा की गई है।
मानव मस्तिष्क को भी प्रभावित कर रहा है
कोरोना वायरस
वैज्ञानिक शोध में यह सामने आया है कि कोरोना वायरस फेफड़ों को संक्रमित करने के अलावा हमारे मस्तिष्क को भी प्रभावित कर रहा है। कोविड-19 के मरीजों के उपचार में दुनियाभर के डॉक्टर जुटे हुए हैं। अनेक देशों से इन चिकित्सा योद्धाओं के अनुभव प्राप्त हो रहे हैं जिनमें यह बताया जा रहा है कि कोविड-19 के मरीजों में मानसिक दौरा, मतिभ्रम (हैलुसिनेशन), सूंघने और स्वाद की क्षमता में कमी जैसे लक्षण प्रकट हो रहे हैं। कुछ मरीजों में दृश्य मतिभ्रम
(विजुअल हैलुसिनेशन) की समस्या भी उत्पन्न हो रही है। कोविड-19 वायरस मानव शरीर की कोशिकाओं के जिस रिसेप्टर से जाकर जुड़ता है, उसे ।ब्म्2 कहते हैं। यह रिसेप्टर मनुष्य के दूसरे अंगों जैसे कि तंत्रिका तंत्र और कंकालीय मांसपेशियों में भी मौजूद होते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों का मत है कि इन रिसेप्टर के जरिये कोविड-19 के पीड़ित लोगों में तंत्रिका तंत्र संबंधी विकार और लक्षण प्रकट हो रहे हैं। कुछ कोविड मरीजों की आटोप्सी रिपोर्ट से यह सामने आया है कि उनके मस्तिष्क के ऊतक, हाइपरेमिक (रक्तप्रवाह में रुकावट) या एडेमेटस (कोशिकाओं, ऊतकों में तरल पदार्थों का जमाव) हो गए थे और कुछ की तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरांस) में भी क्षय हुआ था।
कोरोना वायरस के मनोवैज्ञानिक असर
कोविड-19 ने लोगों के जीवन पर बहुत गहरा असर डाला है। इस महामारी की वजह से लोगों के मन में तमाम अनिश्चितताएं घर कर गई हैं। इस बीमारी की जांच कैसे होगी, इसका इलाज कैसे होगा, वैक्सीन या दवा कब तक आएगी और इसके संक्रमण से बचाव की दुश्वारियां- इन तमाम सवालों ने हर उम्र और तबके के लोगों के मन को विचलित कर दिया है। लोगों के मन में भावी जीवन और अस्तित्व को लेकर एक अप्रत्याशित भय भी पैदा हुआ है।
इस कोरोना महामारी के दौरान च्स्व्ै व्छम् नामक एक जर्नल ने भारतीयों के ऊपर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभावों पर एक ऑनलाइन सर्वेक्षण किया है। इसमें यह संकेत मिलता है कि लोगों के मन पर कोरोना महामारी की त्रासदी का गहरा असर हुआ है। इस सर्वेक्षण में यह पाया गया कि कम उम्र के युवाओं, महिलाओं और शारीरिक रोग वाले लोगों के मन पर कोविड-19 का ज्यादा असर हुआ है। इस अध्ययन में एक अनुशंसा यह भी की गई है कि इस महामारी से मुकाबले को लेकर नीतियां बनाते समय नीति निर्माताओं को कोविड-19 के लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभावों को भी संज्ञान में लेने की आवश्यकता है। इस सर्वेक्षण में देश के 64 शहरों में रहने वाले कुल 1106 लोगों से फीडबैक लिया गया था। इनमें से एक तिहाई लोगों ने बताया कि कोविड-19 का उनके मन पर गहरा प्रभाव हुआ है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी विभिन्न आयु वर्ग के लोगों में कोविड-19 से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक प्रभावों और उनसे बचाव के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
सोशल आइसोलेशन में डिप्रेशन को बढ़ा रहा है
कोरोना वायरस
कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर भय और दुश्चिंताओं का बहुत बुरा असर उन लोगों पर भी ज्यादा देखने में आ रहा है, जो अकेलेपन में जीवन गुजार रहे हैं या पहले से किसी मनोरोग से पीड़ित हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण की चेन को ब्रेक करने के लिए भारत सहित दुनिया के तमाम देशों ने नियंत्रण उपाय के तौर पर लॉकडाउन का सहारा लिया। इससे कई स्थानों पर वायरस पर काबू तो पा लिया गया मगर दूसरी तरफ इस फोर्स्ड तालाबंदी से अनेक कमजोर मानसिक स्वास्थ्य वाले लोग डिप्रेशन (अवसाद) में चले गए और कितनों ने आत्महत्या का मार्ग चुन लिया। लाखों लोग बेरोजगार और भुखमरी के शिकार हुए।
अकेलेपन के दौरान व्यक्ति के मन में तमाम नकारात्मक विचार आते हैं और ऐसे विचार व्यक्ति को डिप्रेशन की ओर धकेलते हैं। यहां यह बात भी तय है कि ऐसे ख्याल अधिकतर ऐसे लोगों के मन में आते हैं जो भावुक होते हैं और अपनी भावनाओं पर अक्सर नियंत्रण नहीं रख पाते। कोरोना महामारी से उत्पन्न सोशल आइसोलेशन पूरी दुनिया में इस तरह की मानसिक दशा वाले लोगों के लिए वज्रपात के समान है। अकेलेपन, डिप्रेशन जैसी मानसिक स्थितियों से निकलने में परिजनों और दोस्तों से बातचीत, अपनी रूचि का काम करना, आउटिंग आदि बेहद कारगर और चिकित्सा का काम करते हैं। क्योंकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए संवाद, मेलजोल तथा सामाजिक नजदीकियां बेहद जरूरी होते हैं।
लॉकडाउन के दौरान वृद्धजनों की अपने परिजनों पर निर्भरता ज्यादा बढ़ गई इसलिए इस दौरान उनकी प्रताड़ना के मामले भी बढ़े हैं। इस तरह की प्रताड़ना के कारण बड़ी उम्र के लोगों में डिप्रेशन, हाई स्ट्रेस जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं विकसित हुई हैं। प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित शोध पत्रों से ये तथ्य उद्घाटित हुए हॅु। अनेक देशों ने यह खुलासा किया है कि कोविड महामारी के दौरान वे अपने वृद्ध समुदाय को उपयुक्त सुरक्षा प्रदान कर पाने में विफल रहे। लेकिन हमें यह नहीं भूलना है कि हमारे बुजुर्गों की हिफाजत करना किसी एक परिजन या व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे समाज और देश की जिम्मेदारी है।
कैसे रखें शारीरिक-मानसिक सेहत को चुस्त-दुरुस्त
कोविड-19 महामारी हम सबके लिए एक इम्तिहान जैसा है। इस इम्तिहान में कौन पास होगा और कौन फेल, यह बहुत कुछ हमारी मानसिक सेहत और मजबूती पर निर्भर करेगा। किस तरह हम अपने मन को और मानसिक स्वास्थ्य को चुस्त-दुरुस्त बनाए रख सकते हैं ताकि हम कोविड-19 के संकट के दौरान सहज बने रहें, आवश्यक सावधानियां बरतते रहें तथा इस महामारी के बाद अपने जीवन के लिए खुद को कैसे तैयार करना है, इसकी तैयारी भी करें। कोविड महामारी के वर्तमान दौर में शरीर और मन को स्वस्थ रखने के ये नए मानक (न्यू नार्मल) हैं जिन्हें अपनाना बहुत जरूरी है। यहां कुछ बिंदुओं के माध्यम से कुछ अहम बातों को बताने का प्रयास किया गया है।
* इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम कोविड-19 महामारी, कोरोना वायरस और इसके संक्रमण के विज्ञान को समझें।
* देश-दुनिया की प्रमाणिक स्वास्थ्य एजेंसियों के वेबसाइट से ताजा अपडेट लेते रहें। इनके दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए आवश्यक सावधानियों को अपनाते रहें और वायरस संक्रमण से बचाव के लिए जीवनशैली में उचित परिवर्तन लाएं।
* तनाव को कम करने के लिए टीवी देखना बंद न करें बल्कि कभी-कभी न्यूज चौनल देख लें ताकि नई अपडेट आपको मिलती रहे। सूचना के युग में जागरूकता के लिए यह न्यूनतम आवश्यकता है।
* विटामिन सी और रोग-प्रतिरोध वर्धक संतुलित आहार का सेवन, नियमित व्यायाम और उत्साह मगर उचित सावधानियों (जैसे मास्क, हैण्ड हाइजिन और 6 फुट की फिजिकल डिस्टेंसिंग) के साथ अपना दैनिक कार्य संपन्न करते रहें। व्यायाम न सिर्फ हमारे शरीर बल्कि हमारे दिल और दिमाग की सेहत के लिए भी जरूरी होता है।
* सोशल मीडिया के पोस्ट पर आंख मूंदकर विश्वास न करें, पैनिक न हों और उन्हें क्रास चेक करें।
* अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखें। वास्तव में हमारे मस्तिष्क और रोग-प्रतिरोधक क्षमता का परस्पर गहरा संबंध होता है। रोगजनक सूक्ष्मजीव और रसायन आदि जैसे कारक हमारी रोग-प्रतिरोध प्रणाली को प्रभावित करती है और उसका असर हमारे मन-मस्तिष्क पर होता है। इसलिए अगर हम सकारात्मक और प्रसन्न रहेंगे तो हमारे आत्मविश्वास का स्तर अधिक होगा तथा इससे हमारी इम्यूनिटी बढ़ेगी।
* हल्का-फुल्का तनाव सामान्य है लेकिन ज्यादा और अनियंत्रित तनाव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ज्यादा तनाव मस्तिष्क, इम्यूनिटी, रक्त परिसंचरण तंत्र आदि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है जिसके कारण रक्त शर्करा असंतुलन, उच्च रक्तचाप जैसे विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
* रोजाना 7 से 8 घंटे की अच्छी नींद लें।
* हर समय सतर्क, सजग और जागरूक बने रहें। अपना ध्यान रखने की आदत डालें।
* अपने साथ-साथ अपने बच्चों, परिजनों, माता-पिता, रिश्तेदारों और समाज के जरूरतमंद लोगों का भी ध्यान रखें। ऐसा करने से जिम्मेदारी का बोध होता है और व्यक्ति सकारात्मक सोच से ओत-प्रोत रहता है।
* मेडिकल इमरजेंसी के दौरान काम आने वाले तकनीकी नवाचारों की जानकारी रखें और इनसे जुड़े महत्वपूर्ण मोबाइल ऐप भी इंस्टाल करके रखना उचित है।
कोविड महामारी, डिप्रेशन और आत्महत्या:
क्या कहता है विज्ञान?
कोविड-19 की महामारी के दौरान डिप्रेशन के मामले बढ़े हैं। वैज्ञानिक मत है कि मानसिक कमजोरी और डिप्रेशन आत्महत्या को प्रेरित करते हैं। पेन्सिल्वेनिया के मनोवैज्ञानिक सैमुएल नैप के अनुसार आत्महत्या में अनेक कारक जिम्मेदार होते हैं लेकिन उनमें से कुछ सामान्य कारक ज्यादातर मामलों में देखे जाते हैं। इनमें से एक अहम कारक सामाजिक जुड़ाव की कमी होता है। इसके कारण व्यक्ति स्वयं को अवांछित और दूसरों पर बोझ समझने लगता है।
एक अन्य मनोवैज्ञानिक डॉ. थॉमस जोइनर कहते हैं कि मौजूदा समाज में हम एक-दूसरे से लगातार दूर होते जा रहे हैं। अपने सपनों, आकांक्षाओं-महत्वाकांक्षाओं में मशगूल हो गए हैं। आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के पीछे ऐसी मनोदशा भी जिम्मेदार हो सकती है। बीमारी, बेरोजगारी, नौकरी समाप्त हो जाना, वित्तीय संकट, खराब सामाजिक रिश्ते, अपमान आदि कारण भी व्यक्ति को डिप्रेशन और आत्महत्या की तरफ ले जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अध्ययन यह बताते हैं कि दो तिहाई आत्महत्या के पीछे डिप्रेशन जिम्मेदार होता है। हमारे मस्तिष्क में असंख्य ट्रांसमीटरों में से एक ळ।ठ। रसायन पाया जाता है। पाया गया है कि जो लोग आत्महत्या करते हैं, उनके मस्तिष्क में इस रसायन के रिसेप्टर अनियमित रूप से वितरित होते हैं। मस्तिष्क में ळ।ठ। की भूमिका की तुलना कार के ब्रेक से की जा सकती है। हालांकि इस बारे में विस्तृत वैज्ञानिक प्रमाण और व्याख्याएं मौजूद नहीं हैं तथा इस दिशा में वैज्ञानिक शोध चल रहे हैं।