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वैश्विक महत्व साबित करने की भारत की सफल रणनीति

वैश्विक महत्व साबित करने की भारत की सफल रणनीति

by अमोल पेडणेकर
in विशेष
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भारत ने चीन को एशिया की क्षेत्रीय शक्ति के रूप में बड़ी चुनौती दी है। इससे चीन की साम्राज्यवादी व विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश लगने की स्थिति पैदा हो गई है। चीन की तिलमिलाहट व सीमा क्षेत्रों में टकराव का कारण भी यही है। यही क्यों, अमेरिकी, जापान, आस्ट्रेलिया जैसी वैश्विक महाशक्तियां भी चीन को खतरा मानती हैंं और उसके खिलाफ लामबंद हो गई हैं। यह चीन के प्रति भारत की विदेश नीति की सफलता ही है।

एशिया महाद्वीप में भारत और चीन के संबंधों में जिस प्रकार से दरार निर्माण हो रही है उसे विश्व पटल पर नजरअंदाज नहीं कर सकते। प्रशांत महासागर और एशिया महाद्वीप में गत कुछ महीनों से भारत और चीन के बीच की जो गतिविधियां अत्यंत प्रखर रूप से सामने आ रही हैं, उनसे भारत और चीन के बीच प्रत्यक्ष युद्ध की संभावनाएं निर्माण हो रही हैं। इस कारण एशिया में सामरिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। भारत और चीन अपनी-अपनी सामरिक तैयारियों में जुटे हैं, जापान भी आपने सैन्य चुप्पी तोड़कर चीन के सम्मुख विरोध में खड़ा होने का प्रयास कर रहा है। इस ध्रुवीकरण के कारण वैश्विक राजनीति गरमाई हुई है।

वैश्विक विचारकों का कहना है कि यह भारत और चीन की दो उभरती बड़ी शक्तियों के बीच का संघर्ष है। जब इन दोनों मे युद्ध व्यापक होता दिखाई देगा तब अन्य शक्तिशाली देश भी इसमें शामिल होने के लिए उत्सुक होंगे। छोटे-छोटे देश भी अपने विरोधी देशों के खिलाफ अपनी ताकत का खेल खेलने का प्रयास करते हैं। यह भी कहते हैं कि भारत जैसे उभरते देश के चीन जैसे ताकतवर देश से आगे निकल जाने के प्रयास के कारण ही इन दोनों देशों में संघर्ष शुरू हो चुका है। कोरोना वायरस को विश्व चीन की उपज समज रहा है, जिससे चीन की छवि संपूर्ण विश्व मे मलिन हो गई है। चीन जैसा प्रभावशाली राष्ट्र अपनी खराब होती स्थिति को संभालने के प्रयास में भारत से संघर्ष को युद्ध तक ले जाने का प्रयास करता है। वर्तमान समय में प्रशांत महासागर और एशिया परिसर में भारत और चीन के बीच संघर्ष से जो हालात दिखाई दे रहे हैं वे हालात हमें यह बात का बयां करते हैं कि भारत और चीन में जिस प्रकार से अपनी समर्थता सिद्ध करने के लिए संघर्ष है; उसी प्रकार से अमेरिका भी प्रभावशाली राष्ट्र है। अमेरिका के प्रभाव को चीन के माध्यम से दिन प्रतिदिन चुनौती दी जा रही है।

भारत अपनी विदेश नीति को पुनर्निर्धारित करने की कोशिश कर रहा है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय प्रमुख ताकतों के साथ अपने सम्बंधों को बेहतर बनाने का संकल्प नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता मे आने के बाद किया गया। उस संकल्प को लेकर किए गए प्रयासों का फल भी भारत को मिल रहा है। भारत के साथ चीन का विवाद बढ़ने का बड़ा कारण भारत की अमेरिका के साथ बढ़ती घनिष्ठता भी है। भारत विश्व की अन्य ताकतों के साथ भी अपने संबंध बढ़ाने में अत्यंत सावधानी से प्रयास कर रहा है। आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस जैसे प्रभावशाली देशों से भारत के संबंध बेहतर बनते जा रहे हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति में चीन का प्रभाव जिस तरह बढ़ता जा रहा था और वह एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय शक्ति के रूप मे उभर रहा था, उसी तरह भारत भी एशिया की क्षेत्रीय ताकत के रूप में कदम बढ़ा रहा था। भारत की विदेश नीति भविष्य को ध्यान में रखकर किए गए उल्लेखनीय प्रयासों के कारण विशेष रूप से आकार ले रही है। भारत विश्व की प्रमुख शक्तियों में अपना स्थान बनाने में कामयाब हो रहा है। ये सब बातें चीन को रास नहीं आ रही हैं। प्रशांत महासागर और एशिया क्षेत्र में अपने अपने प्रभाव बढ़ाने के लिए अमेरिका, भारत, चीन, जापान ये बड़ी शक्तियां आगे बढ़ रही हैं। इनके ध्रुवीकरण से होने वाली गतिविधियां एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में बढ़ते तनाव और संघर्ष का कारण बनी हुई हैं। राष्ट्रसंघ इस स्थिति में क्या कर पाएगा इस प्रश्न का उत्तर देना फिलहाल संभव नहीं है।

वैश्विक शक्ति का केंद्र बनने के लिए चीन अमेरिका के साथ कई दशकों से स्पर्धा कर रहा है, लेकिन उसे अभी विशेष सफलता नहीं मिली है। इसलिए उसने विकल्प के रूप में कुछ साल अपनी सामरिक ऊर्जा को एशिया महाद्वीप पर केंद्रित किया है। एशिया क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए सैन्य शक्ति पर चीन ने जोर दिया है। यह करते वक्त चीन ने आर्थिक क्षेत्र में सम्पन्नता प्राप्त करने का चित्र विश्व के सामने खड़ा किया। अमेरिका को एशिया क्षेत्र और विश्व के रखवाले के रूप में निगरानी करने में मशगूल रख दिया।

युद्ध शास्त्र के जानकार कहते हैं कि विश्व में उभरती हुई शक्तियों में युद्ध शुरू होने की संभावना अधिक होती है। क्योंकि ये शक्तियां अपनी क्षमता के अनुरूप विश्व में अपना प्रभाव और प्रतिष्ठा हासिल करने की कोशिश करते रहते हैं। अमेरिका एक प्रभावशाली शक्ति है। पिछले कुछ सालों से अमेरिका के प्रभुत्व को चीन द्वारा लगातार चुनौती दी जा रही है। एशिया – प्रशांत महासागर क्षेत्र में अस्थिरता निर्माण करने के लिए यह स्थिति भी जिम्मेदार है। वास्तव में विश्व शक्ति बनने के भारत के प्रयास अभी अभी शुरू हुए हैं। अमेरिका, चीन, जापान प्रशांत महासागर -एशिया क्षेत्र की प्रबल शक्तियां हैं। उन शक्तियों में प्रवेश की भूमिका भारत की अभी अभी शुरू हुई है। विश्व की महाशक्तियों के संतुलन पर विचार करने वाले विचारकों का कहना है, 2040 तक दुनिया मे चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएं होंगी- अमेरिका, चीन, भारत और जापान। इस कारण इन राष्ट्रों में वैश्विक और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं बढ़ रही हैं। उनकी विदेश नीति में आक्रामकता आ रही है।

हाल ही के महीनों में भारत और चीन के बीच जो तनाव बढ़ रहा है उससे और भविष्य में होने वाले संघर्ष को लेकर संपूर्ण विश्व चिंता में है। कोरोना वायरस के कारण चीन की प्रतिमा विश्व में मलिन होने और उसकी घरेलू कठिनाइयों के कारण विश्व का ध्यान बंटाने के लिए वह भारत के साथ आक्रामकता दिखाने का प्रयास कर रहा है। सीमा विवाद के मसले पर भारत ने चीन के प्रति आक्रामक विदेश नीति का अवलंब किया है। चीन की आक्रामकता को अपेक्षा भारत ने कई गुना ज्यादा जवाब अभी-अभी हुए संघर्ष में दिया है। चीन ने अपने सीमा क्षेत्र में सैन्य टुकड़ियों की तैनाती बढ़ाने के लिए सीमा विवाद का बहाना ढूंढा है। भारत चीन को जिस प्रकार से टक्कर दे रहा है, वह चुनौती चीन के लिए कठिन बनती जा रही है। जो आर्थिक और राजनीतिक महत्व चीन को एशिया में क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर प्राप्त हुआ है, कहीं वह आर्थिक और राजनीतिक महत्व भारत हासिल कर ना ले, यह चीन की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। भारत की सबसे बड़ी चिंता अब जर्जर होता पाकिस्तान नहीं है बल्कि वास्तविकता में चीन ही है।

1962 में चीन के हाथों हुई पराजय का मनोवैज्ञानिक घाव भारत पर अभी भी है। भारत उसमें निकट भविष्य में विश्वास भरा परिवर्तन लाना चाहता है। चीन भी एक विकासशील राष्ट्र है। लेकिन भारत उसे विस्तारवाद और साम्राज्यवाद की महत्वाकांक्षा रखने वाली आक्रामक शक्ति के रूप में भी देखता है। चीन की इस आक्रामक महत्वाकाक्षांओं का भारत के हितों पर परिणाम होता है। इस कारण चीन की विस्तारवादी और साम्राज्यवादी नीतियों के विरोध में भारत सख्त रुख का विश्व को संकेत दे रहा है। उसमें भारत को बड़ी मात्रा में सफलता भी मिल रही है। डोकलाम और अभी अभी हुए सीमा संघर्ष में भारत ने राजनीतिक और सैन्य बल दोनों स्तरों पर चीन को मात दी है। इस प्रकार का फिलहाल दृश्य दिखाई दे रहा है।

गत 6 सालों में भारत की चीन के प्रति नीतियों में जो परिवर्तन हुआ है, उसे देखते हुए चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे देशों को अपने प्रभाव में लेने का प्रयास शुरू किया है। अरुणाचल जैसे सीमावर्ती भागों को अपना प्रदेश कहकर सीमा लांघने का भी प्रयास किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और वैश्विक संगठनों में भारत को सदस्यता का समर्थन नहीं करना, अमेरिका -भारत परमाणु समझौते का विरोध करने की मंशा जैसे अनेक मुद्दे हैं जिनके माध्यम से भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षा और क्षेत्रीय एवं वैश्विक विकास को रोकने का चीन प्रयास कर रहा है। चीन ने भारत को हमेशा क्षेत्रीय शक्ति के रूप में ही देखा है। चीन ने हरदम कोशिश की है कि वैश्विक राजनीति मे भारत कमजोर रहे। इस कारण इतना विरोध करने के बावजूद भी भारत का विकास वैश्विक स्तर पर हो रहा है, जो चीन के लिए बड़ी चुनौती है। जैसे जैसे भारत की सफलता और कामयाबी की कहानी विश्व पटल पर जोरशोर से सुनाई दे रही है, वैसे वैसे विश्व के शक्तिमान देश भारत के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने में आग्रही है। अमेरिका द्वारा भारत के साथ संबंध बढ़ाने की शुरुआत होते ही, चीन में भारत के संदर्भ में नकारात्मक बदलाव होने लगा। चीन ने भारत के साथ कड़ाई से पेश आना शुरू किया। चीन ने स्वयं भारत के चारों ओर भारत के पड़ोसी राष्ट्रों से अपने संबंध बढ़ाकर भारत की अधिक घेराबंदी करनी शुरू की। इसके जवाब में भारत सीमा क्षेत्रों में अपनी तरफ से मूलभूत ढांचे में सुधार करके चीन के साथ सामरिक स्तर पर बराबरी करने की कोशिश कर रहा है। भारत ने सेना की टुक़डियां, भारी लडाकू टैंक, सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों का सुधार करना, सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत के लड़ाकू विमान उतारने के लिए हवाई पट्टियों का निर्माण करना प्रारंभ किया। चीन ने भारत को उकसाने के लिए ने केवल सीमावर्ती क्षेत्र में अपनी सड़कों का जाल बनाया है, बल्कि अपने सैन्य दल को बड़ी मात्रा में भारत की सीमा के नजदिक लाकर खड़ा किया है है। लेकिन भारत चीन को जैसे का तैसा जबाब देने लगा है। चीन 1962 की दृष्टि से भारत को देख रहा है और भारत कह रहा है कि यह नया भारत है कड़ा जवाब देगा। चीन की आंखों में आंखें डालकर और जैसे को तैसा जवाब देने की भारत की पद्धति चीन बौखला गया है। ये बातें भी भारत और चीन के बीच झगड़े की मुख्य वजह बनी हैं।

गत 6 सालों में भारत अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध बनाकर अपनी विदेश नीति को नया आयाम दे रहा है। अमेरिका भारत को एक बहुत करीबी सहयोगी के रूप में देखता है। एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती हुई दखलंदाजी के प्रत्युत्तर में अमेरिका ने अपनी रक्षा नीति में आवश्यक संशोधन करना शुरू किया है।

भारत के साथ अपने रिश्ते बढ़ाकर अमेरिका अपने प्रतिस्पर्धी चीन की आक्रामकता को कम करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका के लिए भारत प्रशांत महासागर और एशिया उपमहाद्वीप में उभरती शक्ति है। इस क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण देश के रूप में अमेरिका भारत को देखता है। चीन से बढ़ती परेशानी को देखते हुए भारत भी अमेरिका के करीब जा रहा है। भारत, अमेरिका और जापान एक संयुक्त शक्ति के रूप में चीन पर दबाव निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं। जापान के अड़ोस- पडोस में एशिया क्षेत्र में जो छोटे छोटे देश हैं उन देशों में स्वतंत्रता, लोकतंत्र, मानवाधिकार तथा कानूनी राज्य के मूल्यों का प्रचार-प्रसार करने की इच्छा व्यक्त की है। इन प्रयासों में भारत के सहयोग की अपेक्षा जापान ने की है। भारत इसमें स्वाभाविक रूप में सहयोगी है। अमेरिका, भारत और जापान इन तीन महाशक्तियों के साथ आने से एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन के विरुद्ध में बडी चुनौती निर्माण हुई है। जापान ने स्पष्ट कर दिया है कि वह चीन को अपने देश के लिए सैन्य खतरा मानता है। आने वाले कुछ वर्षों में ही जापान को चीन से मुकाबला और संघर्ष करना पड़ेगा। साथ में तायवान के मुद्दे पर शांतिपूर्ण अथवा सामरिक जो भी हल निकालने का मार्ग है, वह जापान चाहता है। इससे जापान ने चीन को यह संकेत दे दिया है कि युद्ध की स्थिति में तायवान की हितों की रक्षा में यदि अमेरिका खड़ा होता है तो जापान मदद के रूप में तायवान के पक्ष में खड़ा होगा। इस पृष्ठभूमि में भारत जापान के बढ़ते संबंधों का अलग महत्व है।

नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद श्रीलंका, थाईलैंड के साथ भारत ने अनेक समझौते किए हैं। आस्ट्रेलिया के साथ भारत के संबंध में पहले से ही प्रगाढ़ हैं। भारत-आस्ट्रेलिया संबंधों में और गति आ रही है। आस्ट्रेलिया अभी भारत के साथ आर्थिक एवं राजनीतिक संबंध बनाने के बारे में व्यवहारिक ढंग से आगे बढ़ा है। दोनों देशों के बीच हुए समझौतों में रक्षा संबंध, आतंकवाद के विरोध में कार्रवाई से लेकर व्यापार और सुरक्षा मार्ग के लिए समुद्री रास्तों की सुरक्षा एवं विकास तक के विषय समाविष्ट हैं।
एशिया और समूचे विश्व में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में चीन अपने आपको देखता है। भविष्य में वैश्विक शक्ति के रूप में स्थान प्राप्त करने मे भारत देश चीन के सामने कठिनाइयां निर्माण कर सकता है। इस कारण भारत, जापान जैसे देशों को चीन अपनी सीमा के इर्द-गिर्द सत्ता केंद्र बनाने से रोकने की कोशिश करेगा। अमेरिका अपने सामरिक उद्देश्य को प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है। चीन भी अपनी साम्राज्यवाद और विस्तारवाद की महत्वाकांक्षाओं को सुनिश्चित रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। विदेशी पूंजी, निर्यात बाजार, वैश्विक – राजनीतिक प्रभाव, क्षेत्रीय नेतृत्व जैसे अन्य कई तरह के विषयों मे भारत को चीन अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है। ऐसे में प्रशांत महासागर और एशिया क्षेत्र में चीन के साम्राज्यवादी और विस्तारवादी प्रभाव को रोकने में क्या भारत कामयाब होगा? अपने आप को एशिया की प्रमुख शक्ति के रूप में प्रस्थापित करने पर भारत की विदेश नीति केंद्रित हो गई है। चीन की वर्तमान क्षमताओं को रोकना और एशिया उपमहाद्वीप में भारत का क्षेत्रीय प्रभाव निर्माण करना कितना संभव हो पाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन प्रशांत महासागर और एशिया उपमहाद्वीप में भारत अपने उद्देश्य को आकार देते हुए वैश्विक स्तर पर अपना महत्व साबित करने की रणनीति में सफल होता हुआ निश्चित ही दिखाई दे रहा है।
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अमोल पेडणेकर

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