श्रीगुरुजी की चीन के संदर्भ में चिंता और चिंतन

रा.स्व.संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने चीन की आक्रामकता और विस्तारवादी नीतियों के बारे में बहुत पहले सतर्क किया था। 1962 में श्रीगुरुजी की ये बातें सच साबत हुईं, फिर भी कांग्रेस की चीन के प्रति नीतियों में बहुत अंतर नहीं आया। आज का भारत-चीन संघर्ष उसीका नतीजा है। श्रीगुरुजी की चीन के प्रति चिंता व उनका चिंतन आज भी उतना ही सामयिक है, जितना उस समय था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रहितों के संदर्भ में समाज को जागृत करने का कार्य करता है। प्रारंभ में संघ कार्य के उद्देश्य की  सफलता के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूज्यनीय केशव बलिराम हेडगेवार जी ने अपने संपूर्ण जीवन को राष्ट्र समर्पित कर दिया था। डॉक्टर जी के अविश्रांत परिश्रम को गुरुजी अनुभव कर रहे थे। डॉक्टर जी के बाद रा. स्व. संघ के राष्ट्रकार्य को सार्थक बनाने के लिए श्रीगुरुजी ने अपने आप को पूरी तरह से समर्पित कर दिया था। अपने जीवन की अंतिम सांस तक श्रीगुरुजी ने संघ कार्य के पौधे को एक विशाल वृक्ष के रूप में रूपांतरित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। श्रीगुरुजी की राष्ट्रभक्ति बेमिसाल थी। जिस प्रकार से सांसों के बिना जीवन नहीं चल सकता, उसी प्रकार से राष्ट्रकार्य के बिना समाज जीवन नहीं चल सकता। भारत माता केवल जमीन का टुकड़ा नहीं है। भारत माता की ओर गौरवपूर्ण दृष्टि से देखने का हमारा दृष्टिकोण होना अत्यंत आवश्यक है। अपनी मातृभूमि के सम्मान पर कोई चोट हम सह नहीं सकते। प्रत्येक व्यक्ति मे राष्ट्रहित को लेकर सजगता अत्यंत आवश्यक है। संपूर्ण जीवन में राष्ट्रहितों का दृष्टिकोण लेकर समर्पित भाव से कार्य करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूज्यनीय गोलवलकर गुरुजी के चीन की आक्रामकता और विस्तारवाद के प्रति दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। आज देश के सामने बढ़ती हुई चीन की खुराफातों को देखते हुए ये विचार बहुत समीचीन हैं।

1949 को स्वतंत्र हुए चीन ने 1950 से ही भारत के खिलाफ अपना विस्तारवाद प्रारंभ किया था। 1950 से भारत के उत्तर और पूर्वोत्तर सीमा में चीनी सैन्य के लिए रास्ता बनाना, वहां की भारतीय सीमाओं में अपना विस्तार बढ़ाने की छुपी कार्रवाई चीन ने प्रारंभ की थी। 1951 में एक अखबार में श्रीगुरुजी ने एक लेख लिखा था और कहा था कि चीन का चरित्र विस्तारवादी है। भविष्य में उसके भारत पर आक्रमण करने की संभावना है। उस समय तिब्बत के संदर्भ में चीन की आक्रामक गतिविधियां चल रही थीं। उन गतिविधियों को समझकर श्रीगुरुजी ने यह अनुमान लगाया था। उस समय भारत की सरकार को सतर्क रहने की चेतावनी देते वक्त श्रीगुरुजी ने कहा था, भारत ने चीन को तिब्बत की भूमि बहाल करके बहुत बड़ी गलती की है। यह भारत सरकार को दूर की सोचने की समझ ना होने जैसा है। इसके परिणाम आने वाले भविष्य में भारत को भुगतने पड़ेंगे। उस समय भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाय के साथ ‘हिंदी-चीनी भाई भाई’ की घोषणा देकर चीन से भाईचारा बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे। चीन के बंधुभाव में पंचशील के तत्व किस प्रकार से समाए हुए हैं और वह पंचशील के तत्व भारतीय परंपरा की विचारधारा से किस प्रकार से जुड़े हुए हैं इस बात पर नेहरू भावुक होकर भाषण देते थे। भारत देश की सामान्य जनता इस घोषणा से प्रभावित हो गई थी। भारत की जनता भी ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ के नारे में अपने भारत देश का सुनहरा भविष्य देखने लगी थी। ऐसे समय में चीन के साम्राज्य विस्तार और आक्रामकता का भारत सरकार को चेतावनी देने वाले एक ही व्यक्ति थे और वे थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक  पूजनीय माधव सदाशिव गोलवलकर यानी पूजनीय श्रीगुरुजी।

सन 1962 में श्री गुरुजी चित्तौड़ के एक कार्यक्रम में भाषण दे रहे थे। उस समय उन्होंने कहा, मुझे पक्की जानकारी मिली है कि चीन भारत पर आक्रमण करने वाला है। चीन की नीति से बेखबर होकर अपने प्रधानमंत्री ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ की घोषणा के साथ लाल किले पर चीन के प्रधानमंत्री का स्वागत करने में मशगूल हैं। लेकिन ऐसा होते हुए भी विस्तारवादी चीन भारत पर आक्रमण करेगा ही। राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से श्रीगुरुजी ने यह बात सरकार को बताई थी। लेकिन श्रीगुरुजी के इस वक्तव्य पर उस समय बहुत तीखी प्रतिक्रिया राजनीतिक और पत्रकारिता क्षेत्र में आई थी। इस समय कोलकाता के एक दैनिक के संपादक ने लिखा था, यह बहुत बेतरतीब बात हो रही है। अगर ऐसा होता तो भारत सरकार को पहले इस बात का पता लगता। और इस भाषण के दो दिनों के बाद ही आकाशवाणी से यह चौंकाने वाली खबर आई कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में भारत पर सीधे-सीधे आक्रमण कर दिया है। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह बात स्वीकार की थी कि हम बडे भ्रम में आ गए थे। ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ का नारा लगाने वाले और पंचशील तत्वों का उद्घोष करने वाले चीन ने भारत की पीठ में खंजर घोंप दिया था।

विस्तारवादी चीन से सतर्क रहने की चेतावनी श्रीगुरुजी ने 7-8 साल पहले भी दी थी। लेकिन उस समय भी श्रीगुरुजी की बातों को अनसुना कर दिया गया। भारत के साम्यवादी चीनी सेना को भारत की मुक्ति की सेना कहकर उसका स्वागत करते थे। ऐसे समय में श्रीगुरुजी शांत बैठे नहीं रहे। मनोबल बढ़ाने के लिए सरकार को सभी तरह का सहयोग करने का आवाहन उन्होंने राष्ट्र के नागरिकों और संघ के स्वयंसेवकों को किया था। चीन जैसा प्रबल शत्रु घर में घुस आया है। ऐसे समय में आपस में राजनीति करते रहना यह बहुत बड़ी गलती होगी। अभी हम सभी नागरिकों को अपने मतभेदों को भूलकर कंधे से कंधा मिलाकर एक अभेद्य शक्ति के रूप में खड़ा रहना आवश्यक है। देश के सामने खड़ा हुआ अपना शत्रु  , चीन का मुकाबला करने वाली अपनी सरकार और सरकार के साथ खड़ी हुई भारतीय जनता इनमें एक विचारसूत्र होना चाहिए। इसके विपरीत अन्य कोई भी विचार हमारे मन में आना नहीं चाहिए। इस प्रकार का प्रगट आवाहन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने देश को किया था। इसी समय भारत की सुरक्षा की दृष्टि से जल्द से जल्द परमाणु बम बनाने की आवश्यकता पर भी उन्होंने बल दिया था। चीन के विस्तारवाद से बचने के लिए यह एक उपाय उन्होंने उस समय सुझाया था।

 

जब तिब्बत पर चीन ने आक्रमण किया था, उस समय विश्व दो गुटों में बंटा हुआ था। एक गुट विश्व शांति जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार रखता था। दूसरा गुट कम्युनिज्म का पुरस्कार करने वाला था। भारत इनमें से किसी भी गुट में समाविष्ट ना होकर उसने अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखा था। अपनी गुट निरपेक्षता नीति के आधार पर भारत ने तिब्बत के सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक एवं धार्मिक नेता दलाई लामा को अपने यहां आश्रय दिया था।

कम्युनिज्म समर्थक गुटों का कहना था कि रूस और चीन पूंजीवाद और सामंतशाही के पंजे से दुनिया को मुक्ति देने वाले राष्ट्र हैं। इस कारण चीन का हेतु पवित्र है, यह उनकी की धारणा थी। इस कारण रूस और चीन के हेतु के खिलाफ जो व्यक्ति या संगठन शंकाएं व्यक्त करता था, उन पर वामपंथी विचारक टूट पड़ते थे। लेकिन ऐसे समय में श्रीगुरुजी का कहना था कि शब्दो का आकलन होने के लिए हम भारतीयों को ’मुक्ति’ शब्द का अर्थ अत्यंत ध्यान से समझ लेना चाहिए। हर संप्रदाय की एक विशिष्ट प्रकार की परिभाषाएं होती हैं। उनके प्रमुख शब्दों के भारतीय परंपरा में जो रूढ़ अर्थ हैं, उससे कई गुना अलग अर्थ होते हैं। चीन के ’मुक्ति ’ इस शब्द का प्रयोग इस प्रकार से किया जा रहा है कि सामान्य नागरिक मुक्ति शब्द को भारतीय अर्थ से ध्यान में लेकर उसकी ओर आकर्षित हो रहा है। मुक्ति का भाव व्यक्त करने वाली चीन की मुक्ति सेना आज हमें आकर्षित कर रही है। लेकिन आने वाले भविष्य काल में ’मुक्ति और मुक्ति सेना ’ का हिंसक स्वरूप हमें ध्यान में आएगा। तब तक बहुत समय गुजर गया होगा। भारत देश को चीन से सतर्क करने वाली अनेक बातें श्रीगुरुजी ने अपने वक्तव्य मे बार-बार कही थीं। मुक्ति का मंत्र देने वाली चीन सेना ने जब तिब्बत पर आक्रमण किया तब ’कम्युनिस्ट मुक्ति का शिकार तिब्बत’ यह लेख लिखकर श्रीगुरुजी ने देश को आगाह किया था कि चीन किस तरह साम्राज्य विस्तार की लालसा, विस्तारवाद और निरंकुशता का नया रूप है।  साथ में तिब्ब्तत में चीन ने जो विजय पाई थी उस विजय पर आनंद व्यक्त करने वाले भारतीयों को उन्होंने सतर्क करते हुए कहा था, तिब्बत में चीनी विजय के उपरांत आनंद उत्सव करने वालों, आने वाले भविष्य में अपने भारत देश में भी यह मुक्ति सेना अपना आतंक ढहाने वाली है।

सत्ता के नशे में चूर हो चुके कांग्रेस शासन ने श्रीगुरुजी की समय-समय पर दी चेतावनियों पर कभी गौर नहीं किया, ना कभी उस पर अध्ययन करने की जरूरत समझी। चीन के संदर्भ में श्रीगुरुजी ने जब जब अपने वक्तव्य किए तब ’एक पागल व्यक्ति का प्रस्ताव’ कहने का दुस्साहस कुछ राजनीतिक लोगों ने किया था। तिब्बत और चीन के संदर्भ में भविष्य में आने वाले संकटों के संदर्भ में श्रीगुरुजी ने जो चेतावनियां दी थीं, वे कितनी सही थीं, कितनी सटीक थीं यह बात थोड़े समय में ही सिद्ध हो गई। कांग्रेस सरकार द्वारा श्रीगुरुजी की इन चेतावनियों को नजरअंदाज करना कांग्रेस की बहुत बड़ी ऐतिहासिक गलती तब साबित हुई जब चीन ने भारत की पीठ में खंजर घोंपकर भारत पर आक्रमण किया था। इस अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना से भारत की प्रतिष्ठा पर आंच आ गई थी।

1962 के पहले ही श्रीगुरुजी ने भविष्यवाणी की थी कि चीन भारत पर आक्रमण करेगा, हमे सतर्क रहने की आवश्यकता है। जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब श्रीगुरुजी जैसे महापुरुष की दूरदृष्टि ने सबको आश्चर्यचकित कर दिया था। चीन के आक्रमणकारी रवैये पर श्रीगुरुजी ने कहा था कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना है कि भारत ने आरंभ में ही तिब्बत पर चीन का स्वामित्व शिकार करने की बहुत बड़ी गलती की थी। शुरू में ही चीन के विरोध में हम खड़े होते तो आज चीन हम पर आंखें नहीं तरारता। वास्तविक रूप में भारत सरकार सीमा प्रश्न के संदर्भ में अत्यंत उदासीनता रखती है और तिब्बत के बाद हमें जागृत रहने की आवश्यकता है ऐसी बातें जब हमने की थीं तो देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, वह इतनी बंजर भूमि है कि वहाँ घास का एक तिनका भी नहीं ऊगता (नॉट ए ब्लेंड ऑफ ग्रास ग्रोज देयर। अपने ही देश की सीमा प्रांत के संदर्भ में देश के प्रधानमंत्री के ये उद्गार कितने दुखदायीहैं। इस प्रकार की बातें कहकर कांग्रेसी विचारधारा के देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस देश की भूमि का अपमान किया था।

जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा की ओर से भारत पर आक्रमण किया था, जिस समय चीनी सैन्य असम की ओर कूच करने लगा, उस समय तेजपुर के प्रशासन का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था। जिलाधिकारी और उच्च पदाधिकारियों ने जनता को शहर छोड़ने की हिदायत दी थी। स्टेट बैंक के नोटों के बंडल जला दिए गए थे। सिक्के और कुछ रुपए पानी के तालाब में फेंक दिए गए। उसी रात को आकाशवाणी से पंडित जवाहरलाल नेहरू ने असम की जनता के सामने अपना विषय रखते हुए कहा था, मेरा हदय असम की जनता के साथ दुखी हो रहा है। इस बात का छुपा हुआ अर्थ असम की जनता ने यह निकाला था कि भारत ने असम को बचाने की अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है। असम की जनता को नेहरू ने शत्रु की दया पर छोड़ दिया है। ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने टोलियां बनाकर भारतीय सेना के अधिकारियों से सहयोग करना प्रारंभ किया। असम में निर्माण हुई स्थिति के कारण वहां के लोगों ने पलायन किया था। वहां के घर और संपत्ति खुली पड़ी थी। भारतीय सेना की मदद से रात-दिन पहरा देकर बांग्लादेशी घुसपैठियों से खुले पड़े घरों और संपत्तियों को लूटने से संघ स्वयंसेवकों ने बचा लिया था। ऐसे समय में संघ ने असम की जनता से संवाद निर्माण करके एक समिति स्थापन करने का निश्चय किया। हमें पराजय को स्वीकार नहीं करना है, हम अपने संरक्षण और सुरक्षा की योजना करके चीनी सेना  के सामने डट कर खड़े रहेंगे। उनके साथ संघर्ष करेंगे। इस प्रकार का विचार असम की जनता रा. स्व. संघ से मिलकर बना रही थी। लेकिन कुछ ही दिनों में चीन ने अपनी तरफ से युद्धबंदी की घोषणा की और उसके बाद सारी परिस्थितियां सामान्य हो गईं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में संघ के स्वयंसेवक असम और अन्य जगह पर निरंतर मैदान में डटे रहे, संघ के स्वयंसेवकों ने सरकारी प्रयासों को और विशेष रूप में भारतीय सेना के जवानों को अपने जान की परवाह ना करते हुए समर्पित भाव से सहयोग किया था। इस कार्य से उत्साहित होकर देश के प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 26 जनवरी 1963 के  गणतंत्र दिवस समारोह में सहभागी होने के लिए संघ के स्वयंसेवकों को आमंत्रित किया था। यह निमंत्रण केवल दो दिन पहले ही मिला था। तीन हजार से ज्यादा स्वयंसेवकों ने अपने पूर्ण गणवेश के साथ अत्यंत उत्साह से गणतंत्र दिवस के पथ संचलन में हिस्सा लिया था। उस समय निकले विशाल और भव्य पथ संचलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक आकर्षण का केंद्र बन गए थे।

1962 के चीनी आक्रमण में भारत का दारुण पराभव होने के कारण भारत के पड़ोसी देशों का भारत के प्रति रवैया  डांवाडोल हो गया था। भारत का पड़ोसी देश नेपाल चीन की तरफ झुकने लगा था। नेपाल नरेश के मन में भारत के संबंध में कुछ विषयों पर खटास थी। श्रीगुरुजी 1963 में नेपाल गए थे। उस समय नेपाल नरेश के साथ उनकी मुलाकात हुई। उस मुलाकात में नेपाल नरेश ने श्रीगुरुजी के सामने ये सब बातें कही थीं। श्रीगुरुजी ने नेपाल नरेश को आश्वासन दिया था कि भारतीय प्रशासन के कानों तक आपकी बात पहुंचाने का हम प्रयास करेंगे। नेपाल से भारत आने के बाद श्रीगुरुजी ने लाल बहादुर शास्त्री और पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर नेपाल नरेश से हुई वार्तालाप का तपसील दे दिया। उस पत्र में श्रीगुरुजी ने यह बात भी दर्ज की थी कि भारत को अत्यंत सम्मान और सौहार्द से नेपाल के संदर्भ मे विचार करना चाहिए। चीन की विस्तारवादी और साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर भारत को नेपाल के संदर्भ में अपने उद्देश्य और नीति स्पष्ट करनी आवश्यक है। उद्देश्य और नीतियों के संदर्भ में नेपाल नरेश के मन में विश्वास निर्माण करना भी अत्यंत आवश्यक है। श्रीगुरुजी के इस पत्र पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सहमति व्यक्त करते हुए तुरंत जवाब दिया। आगे दो साल के बाद 1965 में जब अटल बिहारी वाजपेयी, लाल बहादुर शास्त्री से से मिले थे, तब लाल बहादुर शास्त्री ने कहा, नेपाल के लिए पार्श्वभूमि श्रीगुरुजी ने मेरे नेपाल प्रवास के पहले ही निर्माण कर दी थी। भारत और नेपाल की मैत्री दृढ़ करने में गुरुजी का बहुत बड़ा योगदान है। श्रीगुरुजी ने कहा था, नेपाल के साथ जल्द से जल्द भारत के अच्छे सबंध निर्माण होने आवश्यक हैं। नेपाल नरेश के साथ फिर से अच्छे संबंध प्रस्थापित करना कठिन बात नहीं है। आखिरकार नेपाल की विचारधारा की जड़ें भारत से जुडी हैं। अगर भारत सरकार नेपाल से अपने संबंध प्रस्थापित करने में असफल होती है, तो आने वाले भविष्य में सीमा प्रदेश में समस्या और बढ़ सकती है। ये विचार आज भी सामयिक लगते हैं।

वास्तविक बात यह है कि 1949 में चीन में कम्युनिस्ट शासन स्थापन होने के बाद से ही चीन के भारत विरोधी विचार प्रकट होने लगे थे। उस समय भी साम्राज्यवाद- साम्यवाद और विस्तारवाद की महत्वाकांक्षा लेकर चीन अपने प्रयास कर रहा था। 1949 के बाद कम्युनिस्ट शासन ने 13 सालों तक विस्तारवादी नीतियों का अवलंब किया था। भारत के साथ कभी मित्रता, कभी विरोध, कभी शांति की चर्चा और आखिर में 1962 के युद्ध के माध्यम से भारत का विश्वासघात किया। अपनी निर्धारित नीति चीन ने भारत के विरोध में उपयोग में लाई थी। ऐसे समय में श्रीगुरुजी का कहना था, दुनिया में जो बलवान है वह अपने से दुर्बल घटकों पर आक्रमण करते हैं। चीन के पंचशील और सह-अस्तित्व के संदर्भ में हमें ज्यादा उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। राष्ट्र के रूप में हमें अपने आप को जीवित रखना है तो, हमें बलवान होकर विश्व के सामने खड़ा होना पड़ेगा। ऐसा होने पर भारत देश के ऊपर कोई टेढ़ी नजर करके देखने का दुस्साहस नहीं करेगा। इस प्रकार से श्रीगुरुजी भारत को सामर्थ्यशाली बनाने की दिशा में मार्गदर्शन कर रहे थे। 23 दिसंबर 1962 को दिल्ली के रामलीला मैदान पर एक सभा में श्रीगुरुजी ने कहा था कि पंडित नेहरू के हाथ बलवान करो ऐसा कहा जाता है। परंतु आज वर्तमान की जरूरत इस प्रकार से है कि पंडित नेहरू अपने हाथ और हदय दोनों मजबूत करें। राष्ट्र के प्रजातांत्रिक जीवन और संपूर्ण मातृभूमि की स्थायी रक्षा के लिए भारत को जितना सामर्थ्यवान होने की आवश्यकता है, उतना हम जरूर करेंगे, यह संकल्प नेहरू जी के हदय में निर्माण होना अत्यंत आवश्यक है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्रहित के संदर्भ में विचार करते हुए समर्पित किया था। उनका कहना था कि, भारत देश सामर्थ्यवान होना चाहिए। अन्य देश भारत देश की सहानुभूति के लिए लालायित हो। जब कोई हमारी तरफ या हमारी सीमाओं की तरफ आंख उठाकर देखने का प्रयास करेगा तो हम अपने बाहुबल से उसे सीमा के पार ढकेल सके। ऐसी सोच के लिए प्रखर राष्ट्रभक्ति की आवश्यकता होती है। प्रखर राष्ट्रभक्ति के अधिष्ठान पर ही यह बात हो सकती है। श्रीगुरुजी के विचारों का भावविश्व राष्ट्ररक्षा से जुड़ा हुआ था। जिस भूमि पर घास का एक तिनका भी नहीं ऊगता ऐसी भूमि भारत में  रहे या ना रहे उससे भारत देश का क्या बिगड़ता है, इस प्रकार के देश को आत्मघात की ओर धकेलने वाले विचार जब भारत देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू व्यक्त करते थे। वह समय  पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस के विचारों का अंधेपन से समर्थन करने का था। ऐसे समय में कांग्रेसी सत्ताधारियों के खिलाफ श्रीगुरुजी ने प्रखर राष्ट्रवाद की भाषा का जो प्रयोग किया वह अत्यंत उचित बात थी। ऐसे समय में गुरुजी भारत देश को खंडित होने से बचाने का संदेश दे रहे थे। बता रहे थे कि, राष्ट्र कोई धर्मशाला नहीं है। देश की सत्ता पर विराजमान लोगों से देश की जनता के मन में आत्मघात करने वाले भाव निर्माण करने वाली भाषा को बंद करने का संदेश गुरुजी अपने कार्य और वक्तव्य से निरंतर दे रहे थे।

भारत विभाजन के बाद तीन राजनीतिक विचारधाराएं भारत में थीं। नेहरू के विचारों के मानने वाली कांग्रेसी विचारधारा, दूसरी कम्युनिस्टों और उनके बुद्धिजीवियों की विचारधारा, तीसरी मुस्लिम विचारधारा। अपने अपने उद्देश्य को लेकर तीनों विचारधाराएं   बड़े जोरशोर से काम कर रही थी; ताकि उनके राजनीतिक उद्देश्य पूरे हो सके। ऐसे समय में गुरुजी का इस भारत की पृष्ठभूमि पर उपस्थित होना यह नियति की ही कोई रचना होगी।

श्रीगुरुजी राष्ट्र वैभवशाली, शक्ति संपन्न हो इसका निरंतर चिंतन किया करते थे। श्रीगुरुजी ने राष्ट्र को सम्मानित करने के महान कार्य में अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। आज वर्तमान में भारत और चीन में जो संघर्ष हो रहा है उस संघर्ष के प्रारंभ होने के पहले से ही श्रीगुरुजी ने चीन के संदर्भ में चिंता और चिंतन  व्यक्त की था। पंडित जवाहरलाल नेहरू की कांग्रेस ने चीन के संदर्भ में अपनी नीतियां उस समय तय की थीं, इन्हीं नीतियों के कारण देश के सामने चीन का भीषण संकट खड़ा हो गया। आज  70 सालों बाद भी कांग्रेस का रुख बदला नहीं है। आज भी कांग्रेस चीन से फंड लेकर चीन की समर्थन ही कर रही है। सात दशकों में समय बदला है, पर कांग्रेस की नीति अब तक नहीं बदली है। लेकिन राष्ट्रीय हितों की नीति को लेकर आगे बढ़ने वाली मोदी सरकार आज सत्ता पर विराजमान है। अब चीन के संदर्भ में भारतीय नीति जैसे को तैसा की है। भारत ने वह नीति स्पष्ट भी की है। इस स्थिति का लाभ लेकर आर्थिक, राजनीतिक, सामरिक जैसे अन्य स्तरों पर हमें अपनी पहल करना जरूरी है। हम सभी देख रहे हैं, चीन को टक्कर देते हुए भारत आगे बढ़ रहा है। आने वाले समय में हमें इसका लाभ उठाना चाहिए। सात दशक पहले श्री गुरुजी ने चीन के संदर्भ में जो चिंता और चिंतन स्पष्ट किया था उस पर हमें पूर्ण विश्वास के साथ आगे बढ़ने पर चिंतन करने की आवश्यकता है।

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This Post Has One Comment

  1. Chander Kant Mallick

    परम पूजनीय गुरु जी की दूरदृष्टि अत्यंत विलक्षण व
    प्रशंसनीय है।

    इसका प्रचार और अनुकरण हमें करना होगा।

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