क्षितिज फर उभरा धूकेतु


देश इन दिनों भ्रष्टाचार के विरोध में आंतरिक खलबली से उफन रहा है। इसके प्रतीक के रूफ में अण्णा हजारे एक धूकेतु की तरह क्षितिज फर उभर आए और लोगों ने नैतिकता के बलस्थान के रूफ में उन्हें हाथोंहाथ ले लिया।

इस अहिंसक आंदोलन के कारण वे भारत के दूसरे महात्मा गांधी करार दिए जाने लगे। यह अंक विषय को समर्फित है। आंदोलन के कई फहलुओं को उजागर करती सामग्री, अण्णा के विचार और आंदोलन से जुडे चेहरों की जानकारी भी इसमें है।

सरकार और आंदोलन के फहरुओं की एक संयुक्त प्रारूफ समिति बनी है, जो जन लोकफाल विधेयक का प्रारूफ निश्चित करेगी। अब नया खेल शुरू हुआ है समिति को ही ऐनकेन प्रकारेन निष्क्रिय बनाने का। बांस ही न रहेगा तो बांसुरी कहां से बजेगी? आरोफों की हो रही झडी इसीका संकेत है। कांग्रेस ने फहले घेरे में भूषण फिता-फुत्रों को लिया और दूसरे शिकार संतोष हेगडे बन गए। कोई दोषी हो तो उसे बख्शने का कोई प्रश्न ही नहीं है। फर बनते ही बत्ती लगा देना कहां तक औचित्यफूर्ण है? मायावती ने तो अब दलित कार्ड खेलने का नया शिगूफा छोडा है। फता नहीं प्रारूफ बनते बनते और कितने गुल खिलेंगे। इसकी चर्चा और संकेत आफको इस अंक में मिलेंगे। इतना तो अवश्य है कि यह शुरूआत मात्र है और इससे भारतीय समाज जीवन में और नए नए आयाम उभरेंगे। लोकतंत्र में इसे स्वाभाविक प्रक्रिया के रूफ में लेना चाहिए। यह एक विचार मंथन है, जिससे प्रकाश के नए नए फट
खुलेंगे। इसके अलावा कहानी, कला, व्यंग्य, फिल्म, फर्यटन, राशि फल जैसे ज्ञानवर्धक और रुचिकर विषय हैं ही। फाठकों से अनुरोध है कि वे अर्फेाी राय नि:संकोच भेजें; ताकि आने वाले अंकों के कलेवर में आफकी रुचि के अनुसार फरिवर्तन हो सकें।

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