दूसरा गांधी!- मई २०११

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दी कल्याण जनता सहकारी बैंक के अध्यक्ष मोहन आघारकर का साक्षात्कार बेहद उपयोगी व आकर्षण के केंद्र है. इसके अलावा सेवा और श्रध्दा के प्रतिक सत्य साईं, इतिहास, स्वास्थ्य, साहित्य, कहानी, व्यंग्य, पर्यावरण, अभ्यारण्य आदि विषयों पर सारगर्भित जानकारियां इस अंक में शामिल की गई है.

क्षितिज फर उभरा धूकेतु

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देश इन दिनों भ्रष्टाचार के विरोध में आंतरिक खलबली से उफन रहा है। इसके प्रतीक के रूफ में अण्णा हजारे एक धूकेतु की तरह क्षितिज फर उभर आए और लोगों ने नैतिकता के बलस्थान के रूफ में उन्हें हाथोंहाथ ले लिया।

भ्रष्टाचार के जाल में फंसा कानून

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भष्टाचार हमारे लोकतंत्र की जड़ों को तेजी से कुतरता जा रहा है। भष्टाचार से निपटने के लिए कई कानून बनाए गए हैं। इससे निपटने के कानूनी मशीनरी भी है।

अण्णा का गांव

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महाराष्ट्र का पूरा खानदेश क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा एक पिछड़ा क्षेत्र है । पानी के अभाव में खेती अच्छी तरह से नहीं हो पाती। उद्योग-धंधों का भी समुचित विकास नहीं हो पाया है।

अण्णा कहते हैं

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2007 में उन्होंने फुलिस सेवा से स्वैच्छिक निवृत्ति ले ली और फिलहाल सामाजिक न्याय के हर आंदोलन में सक्रिय रही हैं। मुख्य सूचना अधिकारी बनने की कोशिश फिछले साल सफल नहीं हो सकी। फिलहाल जन लोकफाल आंदोलन से जुडी हैं। विधेयक की प्रारूफ समिति में उन्हें नहीं लिया गया। उन्होंने कहा, ‘अण्णा का जिसे आशीर्वाद मिल गया उसे देश सेवा के लिए और क्या चाहिए? उनके त्याग से हमें प्रेरणा मिलती है।’

अण्णा हजारे – चेहरे की तलाश

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अण्णा हजारे के आंदोलन की अंधड उ और भारतीय जनमानस ने एक साफसुथरे चेहरे को उभरते देखा। यह एक ऐसा फरिवर्तन है जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अर्फेाा वजूद हमेशा बनाए रखेगा। यदि जनआंदोलनों को विभाजित करना हो तो उसे तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-

भ्रष्टाचार – असंतोष का प्रेशर कुकर

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क्रिकेट में जीत वाली रात में देश भर के युवा और बूढ़े-बच्चे भी खुशी से झूम उठे थे और जिस तरह उस रात सड़कों-गलियों में तिरंगा फहराते हुए नाचे थे, उसे देखकर मेरे एक परिचित ने मोबाइल पर एसएमएस भेजा था: ‘‘काश,भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भी देश ऐसे ही सड़कों पर उतर आये!’’

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