ओसामा, ओबामा और मनमोहन सिंह

ओसामा बिन लादेन और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का नाम एक साथ लेना उचित है, क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन थे। ओसामा बिन लादेन को जीवित अथवा मृत पकड़ने का आदेश अमेरिका ने दिया था। एक मई को ओसामा मारा गया। इस पर ओबामा की टिप्पणी थी-‘जस्टिस हैज बीन डन’-‘न्याय किया गया।’ ओसामा और ओबामा की एक मई की घटना के संदर्भ में डा.मनमोहन सिंह का कोई संबंध नही है। किंतु फिर भी ओसामा बिन लादेन के विनाश का विचार करते हुए, इन तीनों का अलग-अलग संदर्भ में एक साथ विचार करना आवश्यक लगता है।

तीन प्रवृत्ति
ओसामा बिन लादेन, बराक ओबामा और डा. मनमोहन सिंह वस्तुत: तीन व्यक्ति न होकर तीन मानवी प्रवृत्ति हैं। ओसामा बिन लादेन की प्रवृत्ति हिंसाचार की थी। व्यक्तियों को मारने में उसे सुख मिलता था। व्यक्तियों के मारने का काम वह इस्लाम की आड़ में करता था। उसकी दृष्टि से यह कार्य जिहाद था। उसका मत था कि जिनका अल्लाह, मुहम्मद पैगम्बर पर आस्था नहीं है और जो नास्तिक हैं, उनकी हत्या करना पवित्र धार्मिक कर्तव्य है और यही जिहाद है। प्रथम क्रमांक का शत्रु होने के कारण 11 सितंबर, सन् 2001 ई. को उसने अमेरिका पर आतंकवादी हमला करवाया। न्यूयार्क शहर के दो टावर हवाई जहाज से टकराकर ध्वस्त करा दिया। इस हमले की सफलता पर लादेन ने प्रसन्नता व्यक्त की थी।

बराक ओबामा दूसरी प्रवृत्ति के उन्नयाक हैं। वे अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। ओबामा और ओसामा दोनों के नाम में सिर्फ एक अक्षर का फर्क है। इसलिए दो मई को रिर्पोटिंग करते हुए अनेक देशों के संवाददाताओं द्वारा गलती हुई। बीबीसी की हिंदी सेवा का समाचार प्रसारित करते हुए समाचार वाचक ने ‘ओसामा मारा गया’ के बजाया ‘ओबामा मारा गया’ कह दिया। एक अमेरिकी टीवी चैनल पर ‘ओबामा बिन लादेन डेड’ एक पंक्ति का समाचार प्रसारित हुआ, यद्यपि तुरंत ही सुधार लिया गया। दोनों के नाम में सिर्फ एक अक्षर का फर्ख दो प्रकार की मानव प्रवृत्ति का फर्क है।

बराक ओबामा एक शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति हैं। लादने का पता-ठिकाना मिलते ही मारने का आदेश बराक ओबामा ने दिया। लादने पाकिस्तान में है, पाकिस्तान एक सार्वभौम देश है, पाकिस्तान के पास परमाणु बम है, इन किसी भी मुद्दों पर उसने सोच-विचार नहीं किया। हेलीकाप्टर ने 79 कमांडो एबोटाबाद भेज दिया। केवल 40 मिनट में ही ओसामा बिन लादेन को मार करके उसका शव ले आए और समुद्र में दफना दिया। (अर्थात समुद्र में फेंक दिया)। राष्ट्र प्रमुख तेज तर्रार, निर्भय, तत्काल निर्णय लेने वाला उचित निर्णय लेने वाला होना चाहिए। ओबामा की प्रवृत्ति का दर्शन पूरी दुनिया ने किया।

अमेरिका के राष्ट्रपतियों की कड़ी में बराक ओबामा अपवाद नहीं है। तेज तर्रार, निडर छवि वहां के राष्ट्रपति की प्रवृत्ति है। जार्ज वाशिगंटन के समय से ही यह शुरु है। अमेरिका की एकता अटूट रखने के लिए अब्राहम लिंकन ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हुए गृहयुद्ध का भी सामान किया। विलियम मंकिगले अमेरिका के 25 वें राष्ट्रपति थे। उनके कार्यकाल में अमेरिका समुद्री महाशक्ति बना। मनीला पर आक्रमण करके उन्होंने स्पेन का जलोपत डुबो दिया। अमेरिका के 28वें राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन थे। उनके कार्यकाल में प्रथम विश्वयुद्ध शुरु हुआ और उस युद्ध में अमेरिका शामिल हुआ। 32 वें राष्ट्रपति फ्रंकलिन डेलानो रुजवेल्ट थे। उनके समय में पर्ल हर्बर पर जापान का आक्रमण हुआ। उसका नागासाकी और हिरोशिमा पर अणुबम गिरा करके दिया गया। बराक ओबामा ने उसी परम्परा का पालन किया है। तेज तर्रारपन उनकी प्रवृत्ति है।

मनमोहन प्रवत्ति का इतिहास-
डा. मनमोहन सिंह तीसरी प्रवृत्ति हैं। केंद्र में मंत्री रहते हुए वर्ष 1993 में दाऊद इब्राहिम गैंग ने मुंबई में नौ जगहों पर बम विस्फोट किया। लगभग 300 लोग मारे गए। ऐसा ही मुंबई पर दूसरा हमला 11 जुलाई, 2006 को पश्चिम रेलवे की लोकल गाड़ियों पर हुआ। उसमें 174 लोग मारे गए।

तीसरा हमला 26 नवंबर, 2008 ई. को मुंबी के ताजमहल होटल पर किया गया, जिसमें 101 लोग मारे गए। डा. मनमोहन सिंह मार खाने की प्रवृत्ति का प्रदर्शन करते हैं। यह किसी एक व्यक्ति की बात नहीं, बल्कि एक विचारधारा इस्लाम के लिए लोगों की हत्या करने की है। ओबामा की विचारधारा अमेरिका को चुनौती देने वाले को समूल नष्ट कर देने की है। डा. मनमोहन सिंह की विचारधारा रोते रहने और अपने देश के नागरिकों की लाशें गिनते रहने की है। लाल बहादुर शास्त्री और इन्दिरा गांधी के अलावा भारत के सभी प्रधानमंत्रियों की यही विचारधारा है। इसके इतिहास पर एक नजर डालते हैं-

प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के कार्यकाल में सन् 1948 ई. में कश्मीर पर पहला पाकिस्तानी आक्रमण हुआ। एक तिहाई कश्मीर नेहरू ने गवां दिया, कश्मीरी मुसलमानों को पाकिस्तान का समर्थक बनाने और कश्मीर के जख्म को हरा बनाए रखने के लिए पं. नेहरू ही जिम्मेदार हैं। सन् 1977 ई. में भोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

उन्हें पाकिस्तान से स्नेह था। इज्राइल पाकिस्तान की परमाणु भट्टियों पाकिस्तान की परमाणु भट्टियों को नष्ट करना चाहता था। इसके लिए उसे भारत की भूमि का उपयोग करने की जरूरत थी। भोरारजी देसाई ने इंकार कर दिया। पाकिस्तान में भारतीय गुप्तचर सेवा भी उन्होंने रोक दी। इसके लिए पाकिस्तान ने उन्हें ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ पुरस्कार प्रदान किया।

आई.के.गुजराल दूसरे पाकिस्तानी प्रेमी प्रधानमंत्री थे। दक्षिण एशिया में शांति लाने के लिए भारत को बड़ा त्याग करना चाहिए, ऐसी उनकी मान्यता थी। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ सारी गुप्तचर कार्रवाई वीसा देने का नियम शिथिल कर दिए गए। अटल बिहारी बाजपयी द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की उम्मीद थी। उन्होंने वर्ष 1999 में लाहौर की शांति यात्रा की ओर पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छूरा घोंप दिया। उसने कारगिल पर आक्रमण कर दिया। भारत की संसद पर आतंकवादी हमला किया। अटलजी ने आर-पार की लड़ाई को घोषणा तो की, किंतु प्रत्यक्ष में कुछ किया नहीं।

इसी प्रवृत्ति का प्रतिनिधत्व इस समय डा. मनमोहन सिंह कर रहे हैं। इनके समय में मुंबई में रेलवे में बम विस्फोट, दिल्ली, वाराणसी, अजमेर, मंगलुरू इत्यादि शहरों में बम विस्फोट, नवमंबर 2008 में मुुंबई पर आतंकवादी हमला, पुणे में जर्मन बेकरी में बम विस्फोट जैसी मास्टर माइंड पाकिस्तानी थे। मुंबई हमले का सूत्रधार हाफिज सईद, मुंबई लोकल ट्रेन बम विस्फोट का सूत्रधार आजम चीमा, पुणे बम विस्फोट का सूत्राधार यासीन भटकल इत्यादि की सूची बहुत लंबी है। शरणागत प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रधानमंत्री यह सूची पाकिस्तान को देते हैं, बार-बार कहते हैं, ‘‘हम तुम्हारे भाषण की अपेक्षा कार्य पर अधिक विश्वास करेंगे।’’ यह भी कहते हैं कि शांति वार्ता शुरू करने से पूर्व यह बताया जाए कि आतंकवादियों पर क्या कार्रवाई की गयी? पाकिस्तान कोई कार्रवाई कर नहीं रहा है और आतंकवादी हमले रुक नहीं रहे हैं।

ओबामा का ओजस्वी विचार

बराक ओबामा राष्ट्रपति हैं। डा.मनमोहन सिंह दिखावे के प्रधानमंत्री हैं। दोनों की प्रवृत्ति में जमीन-आसमान का अंतर है। बराक ओबामा ने दो मई को राष्ट्र के उद्देश्य पर भाषण दिया। उस भाषण के प्रमुख मुद्दे और सारांश इस प्रकार है-

-आज मैं अमेरिका की जनता को बताना चाहता हूं कि ओसामा बिन लादने मार डाला गया है।

-दस वर्ष पूर्व सितंबर महीने में अमेरिका के इतिहास के एक काले दिवस को आतंकवादी हमला हुआ और दो टावर ध्वस्त हो गए।
-दुनिया ने उस जगह पर स्मारक बनाया है, किंतु किसी ने भोजन की मेज पर थाली कुर्सियों को नहीं देखा। लोगों ने बिना माता-पिता के बच्चों बड़े होते नहीं देखा। बच्चों की बोली का आनंद उनके मां-बाप ने खो दिया, इसे भी दुनिया ने नहीं देखा। उस दिन 3000 लोग मौत के गाल में समा गए और हमारे हृदय एक बड़ा जख्म बन गया।

-11 सितंबर, सन् 2001 ई. को हम सभी एक हो गए। हम सभी अमेरिकी परिवार हो गए।

-हम सबने एक मत होकर यह निर्णय किया कि इस भयानक दुष्कृत्य का न्याय करें। हमें ज्ञात हुआ कि इस घटना के पीछे अलकायदा का हाथ है, यह भी मालूम हुआ कि ओसामा बिन लादने उसका सूत्रधार है। अलकायदा के विरुद्ध हमने युद्ध की घोषणा कर दी।

-विगत् दस वर्षों तक हमारी सेना और आतंकी विरोधी दस्ते ने अथक परिश्रम किया। ओसामा बिन लादने हमारे हथ नहीं लग रहा था।

-आखिर में अगस्त महीने में हमारी गुप्तचर सेवा को अति कष्टकारक प्रयत्न से ओसामा का ठिकाना ज्ञात हुआ। बड़ी सावधानी से उसके रहने के स्थान की जानकारी एकत्र की गयी। अन्तोगत्वा एक सप्ताह पूर्व मैंने निर्णय लिया और ओसामा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश दिया।

-मेरे आदेशानुसार अमेरिका ने एबटाबाद में सैन्य कार्रवाई की। लादेन को मार करके उसका शव ले आये। उसकी मृत्यु हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है। उसकी मृत्यु से आतंकवाद समाप्त हो जाएगा, ऐसा भी नहीं मानना चाहिए।

-मैं बार-बार कहता आया हूं कि यदि ओसामा पाकिस्तान में छिपा होगा, तो वहां घुसकर हम कार्रवाई करेंगे।

-इस युद्ध की कीमत हमें मालू है। अपने सुरक्षा के प्रति हम लापरवाह नहीं रह सकते। अपने लोगों को मारे जाते हुए मकूदर्शक नहीं बन सकता। हम जिन मूल्यों के लिए जाने जाते हैं, उन मूल्यों की हम रक्षा करेंगे। लादेन की आतंकी कार्रवाई में में मारे गए अमेरिकी परिवारों से हम कहना चाहते हैं कि उनके साथ ‘न्याय किया गया है।’

-अनाम गुप्तचरों और आतंक विरोधी दस्ते को मैं सलाम करता हूं। उनका कार्य यशस्वी हुआ, इस बात से उन्हें संतुष्टि मिल रही होगी

-आज की रात्रिबेला में हम स्मरण दिलाना चाहते हैं कि हम जो तय करते हैं, वह करके दिखाते हैं। यही हमारे इतिहास की कहानी है। हमारी जनता की समृद्धि की बात हो, समानता का प्रश्न हो या मूल्यों की रक्षा के संषर्ष का प्रसंग हो, हम सबका समान संकल्प होता है।

-एक बात और याद रखें कि यह कार्य हमने धन अथवा शक्ति के कारण नहीं बल्कि एक राष्ट्र होने के नाते किया। ईश्वर की कृपा से यह ऐसा अविभाजित राष्ट्र है जहां स्वतंत्रता और न्याय सबके लिए है।

-ईश्वर की हम सब पर और संयुक्त राज्य अमेरिका पर कृपा बनी रहे।

इसमें संदेह नहीं कि बराक ओबामा एक अच्छे वक्ता हैं, किंतु के खोखले भाषण नहीं करते। अनेक भाषण में राष्ट्र की विजयनी प्रवृत्ति का दर्शन होता है। पूरा देश एक है,लोगों का निश्चय एक है। 1 मई की कार्रवाई से दुनिया ने यह अमेरिकी विचार देखा।

 

‘गुरु’ का स्मरण करें

ओसामा बिन लादेन राक्षसी प्रवृत्ति का द्योतक है। आज विश्व में इस प्रवृत्ति को जीवित रहने का अधिकार नहीं है। वह अपने विचार और कर्म से मार दिए जाने के योग्य है। डा. मनमोहन सिंह जिस प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वह प्रवृत्ति इन राक्षसों को शक्ति प्रदान करने वाली है। कंस, जरासंध, रावण इत्यादि लादने की प्रवृत्ति के थे। राम और कृष्ण ने इस प्रवृत्ति को नष्ट किया। आधुनिक काल में खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोविंद सिंह ने इस प्रवृत्ति के विरुद्ध युद्ध का आव्हान किया था। उन्होंने हिंदुओं के विस्मृत क्षात्र धर्म को स्मरण कराया। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने मरना और मारना सिखाया। उन्होंने दाढ़ी रखने ेके लिए कहा, तलवार रखने के लिए कहा और सिर पर पगड़ी बांधने के लिए कहा। गुरु के पुत्रों की हत्या करने वाले सिरहिंद के इस्लामी आतंकवादियों को गुरु के शिष्यों ने मार डाला। गुरु गोविंद सिंह का क्षात्र धर्म क्या डा. मनमोहन सिंह अपने आचरण में लाएंगे? क्या भारत में आतंकवादी हमले करने वालों को चुन-चुन करके मारेंगे? क्या वे गुरु गोविंद सिंह की वंश परम्परा को जागृत करेंगे।

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