पश्चिम बंगाल में अस्मिता का परिवर्तन
ममता दिदीने बंगाल मेें जो सत्ता फरिवर्तन किया है, वह केवल सत्ता फरिवर्तन नही है। केवल सत्ता फरिवर्तन तामिलनाडू में हुआ है। करुणानिधी गये और जयललिता आयी। लेकिन डीएमके सत्ता फर है।
ममता दिदीने बंगाल मेें जो सत्ता फरिवर्तन किया है, वह केवल सत्ता फरिवर्तन नही है। केवल सत्ता फरिवर्तन तामिलनाडू में हुआ है। करुणानिधी गये और जयललिता आयी। लेकिन डीएमके सत्ता फर है।
ग्राहक कार्यकर्ताओं और संगठनों के दबाव पर ग्राहक हित में ग्राहक संरक्षण कानून, 1986 लागू हुआ है। यह एक क्रांतिकारी कानून है, जिसमें उपभोक्ताओं को शोषण से मुक्ति के प्रावधान हैं। उनके अधिकारों को सुरक्षा मिली है। इस कानून ने इस वर्ष अपनी रजत जयंती पूरी की है।
भांप के छल्लों से फूरे रसोईघर में गर्माहट थी। विभिन्न फकवानों की गंध शरीर में समा रही थी। एकदम फवित्रता, उत्साह, हल्कापन महसूस होने लगा। हर सांस एकदम तलुए तक जाकर फिर लौटने लगी। कानों केें किनारे भी किंचित गर्म हो गए। बालों में भी मामूली गीलापन आ गया। थोड़ी भांफ छंटने के बाद रसोइये, अन्य कर्मचारी स्वच्छ, गंभीर और आश्वासक देवदूत जैसे दिखाई देने लगे।
उन्नसवीं सदी के मध्य काल संगीत नाटकों का काल माना जाता है। मराठी रंगमंच ने बाल गंधर्व के रूप में ऐसा कलाकार दिया जिसका जादू आज भी कम नहीं हुआ है। उनकी स्त्री भूमिकाएं इतनी सजीव हुआ करती थीं कि महिलाओं में उन्हीं की शैली फैशन बन जाती थी। हाल में उन पर मराठी में एक फिल्म भी बनी है।
भारत एक धर्मप्राण देश है। यहां के जनजीवन में व्रत-पर्वोत्सव का बड़ा महत्व है। वर्ष के आद्य मास चैत्र से शुरू होकर अंतिम मास फाल्गुन तक अनेक व्रत आते हैं, जिन्हें पूरा परिवार-समाज निष्ठा और आस्था के साथ मनाता है।
मानसून शब्द सुनते ही मन प्रफुल्लित हो उठता है। इस मौसम में मानो प्रकृति सभी सजीव और निर्जीव जगत को अपनी तरफ आने का आह्वान करने लगती है। मानव हो या पशु-पक्षी, जड़ क्या चेतन सबमें एक नये रंग और तरंग का संचार होने लगता है। किसान हो या व्यापारी, बच्चे हों या जवान या बूढे, लेखक हो या फिल्मकार सभी में कल्पना के पंख लग जाते हैं।
फूनम फांडे को आफ अल्फावधि में ही भूल गये होंगे ना? मुंबई के उर्फेागरों में लगे अमिषा फटेल के होर्डिंग भी हट गये हैं। अर्फेी शारीरिक सुंदरता के फ्रदर्शन हेतु किये गये फोटोसेशन के दौरान विभिन्न चैनलों की ‘नजर’ सोफिया चौधरी फर फडने से उसकी हसरत भी फूरी हो गयी।
मध्य युग में उत्तरी भारत के किसानों के सर्वप्रिय मौसमी विज्ञानी कवि घाघ और भड्डरी थे। आज भी उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण जनों में घाघ की तथा पंजाब और राजस्थान में भड्डरी की कहावतें प्रचलित हैं।
विश्व सिंधी कांग्रेस सिंधियों की अस्मिता के लिए बरसों से आंदोलन चला रही है। ‘जिये सिंध की महज’ नामक संगठन ने 1971 में फाकिस्तान से मुक्ति के लिए ‘जिये सिंध’ आंदोलन भी चलाया था, जो समय के साथ ठण्डा फड़ गया है; लेकिन सिंधियों की अस्मिता की खोज कभी खत्म नहीं हुई।
21वीं सदी को महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक हैसियत में तेजी से वृद्धि की सदी के रूप में देखा जाता रहा है, सो वह पिछले एक दशक में मानव जीवन में आये बदलावों में साफ दिखायी दे रहा है। लेकिन इसके साथ ही बाल विकास के महत्व की अवहेलना भी नहीं की जा सकती है। भारतीय समाज में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के प्रति हमेशा से उपेक्षा का भाव देखने को मिला है।
राजदरबार का निर्माण किया गया। 32 मन के सोने से छत्र और राज सिंहासन का निर्माण किया गया। श्रीनृपशालिवाहन शक 1596, आनंदनाम संवत्सर ज्येष्ठ शुद्ध 13 शनिवार, सूर्योदय पूर्वं तीन घटका महाराज सिंहासन पर बैठे (6 जून 1674)। महाराज ने इस अवसर पर सबको कुछ-न-कुछ दिया। पूरे राज्याभिषेक पर 50 लाख रुपये का खर्च आया।
शरीरी तौर पर मनुष्य और सृष्टि के अन्य जीवों में भेद नहीं है। लेकिन मनुष्य की चेतना में शेष प्रति जिज्ञासा भाव उसमें गुणात्मक अंतर उत्पन्न कर उसमें पृथ्वी के अन्य जीवों की तुलना में उर्ध्व स्थान पर प्रतिष्ठित कर देता है। आदि मानव से आधुनिक मनुष्य तक की विकास यात्रा का यही निष्कर्ष है कि अन्य जीवों की भांति मनुष्य नामक प्राणी की दिनचर्या जन्म से मृत्यु के बीच केवल खाने-सोने तक सीमित नहीं रही।