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फुहारों के रंग : पर्यटन विशेष

फुहारों के रंग : पर्यटन विशेष

by हिंदी विवेक
in जून २०११, पर्यटन
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मानसून शब्द सुनते ही मन प्रफुल्लित हो उठता है। इस मौसम में मानो प्रकृति सभी सजीव और निर्जीव जगत को अपनी तरफ आने का आह्वान करने लगती है। मानव हो या पशु-पक्षी, जड़ क्या चेतन सबमें एक नये रंग और तरंग का संचार होने लगता है। किसान हो या व्यापारी, बच्चे हों या जवान या बूढे, लेखक हो या फिल्मकार सभी में कल्पना के पंख लग जाते हैं। रिमझिम बारिश की बूंदें सबको एक नयी दुनिया में ले जाती हैं। लेकिन अब मानसून ने पर्यटकों को भी अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है। देश में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम में ऐसे स्थलों का विकास हुआ है, जो बारिश के महीनों में पर्यटकों के आकर्षण के बड़े केंद्र बन गये हैं। हम आपको यहां ऐसे शीर्ष 5 पर्यटन केंद्रों के बारे में बता रहे हैं, अपने बजट के अनुसार जिनका आप आनंद उठा सकते हैं:-

लेह (लद्दाख)

लेह टाउन जम्मू-कश्मीर के लद्दाख इलाके में सिंधु घाटी के करीब स्थित है। समुद्र से इसकी ऊंचाई 3,505 मीटर है। सन् 1974 में जब से लद्दाख क्षेत्र को विदेशियों के लिए खोला गया, तब से यह पर्यटकों का पसंदीदा स्थल बन गया है। लेह, बर्फीले लद्दाख में प्रवेश का सबसे खूबसूरत और आम प्रवेश द्वार है।

क्या देखें-

इस संबंध में एक उल्लेखनीय और खास बात यह है कि लेह पहुंचकर आपको जो देखना है वह तो देखेंग ही, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए चुना गया माध्यम (सड़क या वायुमार्ग) भी आपके पर्यटन को मस्ताना बना सकता है। क्योंकि सड़क मार्ग से रास्ते में बड़ा मनोरम प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलता है। लेह टाउन बौद्ध मठों और ऐतिहासिक स्मारकों से भरा-पूरा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण शांति स्तूप है। 800 साल पुराना काली मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। यहां पर स्थित 17वीं शताब्दी का बना लेह पैलेस भी है। यह पारंपरिक तिब्बती स्टाइल में बना हुआ है, जो लेह को मनमोहक रूप प्रदान करता है। लेह के दक्षिण में थिक्से मठ से सूर्यास्त का दृश्य देखते ही बनता है। हेमिस गोंपा मठ को लद्दाख का सबसे पुराना, सबसे महत्वपूर्ण और संपन्न मठ माना जाता है।
प्रकृति और साहसिक गतिविधियों में रुचि रखनेवाले पर्यटकों के लिए यहां काफी कुछ है।
लेह के इर्द-गिर्द हाइकिंग और पैराग्लाइडिंग का शौक पूरा कर सकते हैं। इसके अलावा ट्रेकिंग (लिकिंग से तेमिस्गाम या स्पिटुक से मार्खा घाटी), पहाड़ों पर चढ़ाई, वाटर राफिटंग और सफारी की भी सुविधा मौजूद है।

लद्दाखी तीज-त्यौहार भी आपका ध्यान खींचने की क्षमता रखते हैं। लद्दाख त्यौहार सितंबर में पड़ता है। जून-जुलाई में दो दिवसीय हेमिस फेस्टिवल का आयोजन होता है। ये पारंपरिक नृत्य, संगीत और रंग-बिरंगी वेश-भूषा से आपका परिचय कराते हैं। लेह से झंस्कार नदी के किनारे-किनारे, और दुनिया में सबसे ऊंचाई पर स्थित सड़क के ये दो सफर आपके लिए कभी न भूलने वाला सफर साबित होता है। इस दौरान आपको झूलते ग्लेशियर, हरियाले गांव, बौद्ध मठ और हिमालय की ऊंची चोटियों को देखने का मौका मिलता है। गौरतलब बात ये है कि इन यात्राओं के लिए आपको लेह के डीएम की पूर्व मंजूरी लेनी पड़ती है।

बेहतर समय

मई से सितंबर का समय लेह के पर्यटन के लिए सबस अच्छा समय है। इस समय मौसम गरम होता है। मानसून के महीने में देश के दूसरे हिस्सों की तरह लद्दाख में बारिश नहीं होती।

कैसे जाएं-

दिल्ली, जम्मू और श्रीनगर से लेह के लिए नियमित उड़ानों की सुविधा उबलब्ध है। साल में समय-समय पर बर्फ जब पिघलती है, तो सड़क से भी यहां पहुंचा जा सकता है। हर साल जून से अक्तूबर के बीच मनाली-लेह हाइवे और श्रीनगर से लेह सड़क जून से नवंबर के बीच खुला रहता है। इन पर बस, जीप और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध रहती है। समय और स्वास्थ्य को देखते हुए सड़क का सफर काफी मजेदार हो सकता है- प्राकृतिक दृश्य गजब के होते हैं।

खास सुझाव

लेह पहुंचने के बाद आप तुरंत कुछ भी करने से पहले कम-से-कम दो दिन एक ही जगह रहकर यहां के मौसम में खुद को ढलने का अवसर दें और पर्याप्त पानी पीयें । क्योंकि लेह काफी ऊंचाई पर स्थित है, इससे पैदा होनेवाली बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं। गर्मी के दिनों में भी रात में खूब ठंडक पड़ती है, इसलिए गर्म कपड़े साथ में रखें। विमान से यहां पहुंचने से रवाना होना ज्यादा मुश्किल भरा होता है। पीक सीजन में फ्लाइट की काफी मांग होती है, इसलिए बुकिंग एडवांस में करें। दिन में अंतिम फ्लाइट की बुकिंग न करें तो ही अच्छा है। ठहरने की सुविधा अच्छी है।

फूलों की घाटी

यह पार्क उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में नेपाल और तिब्बत की सीमा पर स्थिति है। मानसून के महीने में यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अपनी पूरी रवानी पर होता है। हिमालय की गोंद में स्थित इस घाटी की बर्फीली पृष्ठभूमि 300 तरह के फूलों से लगता है मानो चटखीले रंगों की चादर बिछी हुई है। पूरा पार्क 87.5 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 1982 में इसे नेशनल पार्क घोषित कर दिया गया। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर भी घोषित किया है।

फूलों की इस घाटी में पर्यटन का संचालन सरकारी तौर पर होता है। यह सात दिनों का होता है। इसमें आनेवाले खर्च में आपके ठहरने का खर्च भी शामिल होता है। प्रसिद्ध बद्रीनाथ का तीर्थस्थल पार्क में ही स्थित है। हिंदुओं को लोकप्रिय चार धामों में से एक है। फूलों की घाटी की सैर के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है।

फूलों की घाटी अप्रैल से अक्तूबर के बीच पर्यटकों के लिए खुली रहती है। ऐसा इसलिए कि साल के बाकी समय में यहां बर्फ की चादर बिछी होती है। यहां पर पर्यटन के लिए सब से अनुकूल समय जुलाई से अगस्त का होता है। क्योंकि पहले मानसून के बाद पार्क रंगीन फूलों से खिल उठता है।
एक उल्लेखनीय बात है कि पार्क में दिन के समय ही यानी 6 बजे सुबह से 6 बजे शाम तक ही घूम सकते हैं। पर्यटकों को घंघरिया से पार्क में प्रवेश कर फिर उसी दिन उन्हें वापस भी होना पड़ता है।

फूलों की घाटी में सड़क, रेल और वायु मार्ग तीनों माध्यमों से पहुंचा जा सकता है। सबसे नजदीक का हवाई अड्डा देहरादून (295 किमी) और सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन ऋषिकेष (276 किमी) है। गोविंद घाट वह सबसे नजदीक ठिकाना है, जहां से सड़क मार्ग से 13 किमी का सफर कर पहुंचा जा सकता है। तेज, संकरे और घुमावदार पहाड़ी रास्तों से होते हुए आपको बेस कैंप घाघरिया तक जाना होता है। घाघरिया से फिर 3 किलोमीटर और चलना पड़ता है जब घाटी की वास्तविक शुरुआत होती है और रंब-बिरंगे फूलों का हसीन नजारा दिखायी देने लगता है।

खास सुझाव

फूलों की घाटी का पैदल सफर काफी थकाऊ साबित होता है। लेकिन इस घाटी का नजारा इतना जादुई और मनोरम है कि आप स्वयं को सातवें आसमान में महसूस करते हैं। घाघरिया से मुख्य घाटी तक का पूरा रास्ता अनूठे किस्म के फूलों और वनस्पतियों से भरापूरा है। अक्सर बारिश की बूंदों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए साजो-सामान से लैस रहें। अपने पास खान-पान की सामग्री भी रखें। जुलाई से सितंबर के बीच काफी भीड़-भाड़ रहती है, इसलिए ठहरने के लिए पहले से ही बुकिंग करा लें।

गोवा

गोवा के बारे में क्या आपको पता है कि यह देश का सबसे छोटा और सामाजिक तौर पर खुला किस्म का राज्य है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो 1961 तक यह पुर्तगाल का औपनिवेश रहा था। आज भी औपनिवेशिक प्रभाव साफ तौर पर देखा और महसूस किया जा सकता है। गोवा का समुद्री तट करीबन 100 किमी लंबा है। इसके बीच पर्यटकों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।

मानसून के समय गोवा पर्यटकों का आह्वान करता लगता है।जून से सितंबर के समय जब मानसून की बारिश अपने पूरे शबाब पर होती है, तब गोवा की प्राकृतिक रौनक सैकड़ों गुना बढ़ जाती है। बारिश की बूंदें वातावरण में ताजगी और रोमांस की रंगीनियां घोल देती हैं। प्रकृति हरी-भरी हो जाती है। गोवा का परंपरागत रूप-रंग मानो अपनी पूरी गहराई के साथ उभर आता है। मानसून में स्थानीय गोवा-वासियों की जीवन-शैली को करीब से देखने का मौका मिलता है।

विशेष आकर्षण

मानसून के दौरान गोवा के सुरम्य वन्य जीव अभयारण्य मोलेम नेशनल पार्क, कोटिगाव वन्य जीव अभयारण्य और बोंडला का प्राकृतिक सौंदर्य बढ़ जाता है। बोंडला में एक अजायबघर है और हिरण सफारी पार्क है, जो बच्चों के लिए बड़ा आकर्षण है। बारिश के मौसम में बेहिसाब ऊंचाई से गिरते दूधसागर जलप्रपात का पानी पर्यटकों को सम्मोहित करता है। इस मौसम में गोवा में देखने लायक जो एक अन्य स्थल है वह है: सवोई का स्पाइस प्लांटेशन। यहां पर पोंडा से घने जंगलों और पहाड़ियों से होकर पहुंचते हैं। यह सफर काफी सुहाना होता है। पणजी से मांडोवी नदी की शाम की नाव यात्रा भी काफी मजेदार होती है। काफी लोग गोवा की नदियों में मछली पकड़ने का भी आनंद उठाते हैं।

मानसून में गोवा के पर्यटन की एक और खास वजह से होती है, वह है: त्यौहार। इस मौसम का सबसे लोकप्रिय त्यौहार जून के अंत में मनाया जानेवाला सावो-जोवा है। इसमें पुरुष गांव के लबालब भरे कुएं में कूदकर उसमें छोड़ी हुई फेना (स्थानीय शराब) की बोतल बाहर निकालते हैं। गोवा की गणेश चतुर्थी भी देखने लायक होती है।

गोवा देश के विभिन्न हिस्सों से वायु, रेल और सड़क मार्ग से भली-भांति जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग का सफर काफी थकाऊ और ऊबाऊ हो सकता है। इसलिए रेल मार्ग या फिर हवाई मार्ग काफी सुविधाजनक और आरामदायक है। कोंकण रेलवे से मुंबई से गोवा 10 घंटे में पहुंचा जा सकता है। गोवा के लिए कोंकणकन्या एक्सप्रेस सबसे लोकप्रिय ट्रेन है।

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