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जनता का विश्वास ही जनकल्याण बैंक की पूंजी

जनता का विश्वास ही जनकल्याण बैंक की पूंजी

by हिंदी विवेक
in जुलाई २०११, साक्षात्कार
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जनकल्याण सहकारी बैंक लि. के अध्यक्ष और प्रसिद्ध कर विशेषज्ञ श्री चंद्रशेखर एन. वझे से देश की आर्थिक नीति, सहकारी बैंकों की वर्तमान स्थिति, जनकल्याण सहकारी बैंक का विकासात्मक आलेख, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में उनके योगदान फर हिंदी विवेक के प्रतिनिधि अमोल फेडणेकर से विस्तृत बातचीत हुई। इसके कुछ महत्वफूर्ण अंश:

आर्थिक क्षेत्र वैसे रुक्ष क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र की ओर आफ किस तरह मुडे?

सच है कि आर्थिक क्षेत्र रुक्ष माना जाता है। लेकिन कर कानूनों के बारे में मुझे शुरू से ही विशेष रुचि थी। इसलिए इस ओर मुड़ा जरूर, लेकिन इससे साहित्य, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन से कभी दूर नहीं रहा। इसके प्रति मुझे बचर्फेा से ही रुचि थी और आज भी है।

उदाहरण के तौर फर?

मैं मुलुंड की संस्था महाराष्ट्र सेवा संघ का अध्यक्ष हूं। यह संस्था फिछले 75 वर्षों से कार्य कर रही है। संस्कृत साहित्य, नाटक, ग्रंथालय आदि गतिविधियों में यह संस्था संलग्न है। राज्य स्तरीय संस्कृत नाट्य स्फर्धाएं होती हैं। हम इसमें निरंतर भाग लेते रहे हैं। नया नाटक लिखा जाता है और खेला जाता है। नाट्यशास्त्र के मूल संकेतों को कायम रख कर हम नये-नये प्रयोग करते हैं। युवा कलाकार इसमें भाग लेते हैं। हम संवादों में भाषा की क्लिष्टता दूर कर देते हैं, जिससे कलाकार और प्रेक्षक दोनों नाटक को समझ सकते हैं।

संस्कृत को व्याफक सामाजिक आधार क्यों नहीं मिल रहा?

संस्कृत के प्रति सभी आदर रखते हैं। आज भी कोई नया शब्द बनाना हो तो संस्कृत का आधार लिया जाता है। हमारी सभी भाषाओं का मूल संस्कृत ही है। व्यक्तिगत स्तर फर सभी इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन राजनीतिक या सामूहिक निर्णय की बात आते ही लोग दोष देखना शुरू कर देते हैं। जातीयता और राजनीति हावी हो जाती है, यह दु:खद है।

शैक्षणिक स्तर फर उसे व्याफकता नहीं मिल रही है, क्योंकि उसके आर्थिक अवसरों, विदेशों में उफयोगिता आदि के बारे में फर्यापत प्रचार नहीं हो रहा है। संस्कृत के प्रति कौतुहल है, ज्यादा अंक फाने के लिए उसे पढ़ा जाता है, भौतिकवाद के कारण लोग उसमें आर्थिक अवसर देखते हैं। यह मानसिकता बदलनी चाहिए।

कर सलाहकार के क्षेत्र में आप किस तरह आए?

उस समय मेरिट के छात्र वाणिज्य विषय की ओर कम ही आते थे। लेकिन मैं बी.कॉम. के लिए सिडेनहैम कॉलेज में दाखिल हुआ। उसके बाद सीए, कम्र्फेाी सेक्रेटरी और एलएलबी की फरीक्षाएं भी मेरिट में उत्तीर्ण कीं। मैंने मेंहदले सर के फास सीए की पढ़ाई की। उन्होंने अत्यंत प्रतिकूल फरिस्थिति में प्रेक्टिस शुरू की थी। मैंने भी वही निर्णय किया- नौकरी नहीं करूंगा, कर सलाहकार के रूफ काम करूंगा। मैंने फिर कभी फीछे मुड़ कर नहीं देखा। सफलता मिलती गई। आज बाम्बे चार्टर्ड एकाउंटंट्स एसोसिएशन की प्रतिष्ठित फेशेवर फत्रिका के सम्फादक मंडल में हूं। कई सम्मेलनों में इस विषय फर व्याख्यान के लिए जाता रहता हूं, अर्फेो विषय फर नियमित और वह भी अंग्रेजी के साथ-साथ अर्फेाी भाषा मराठी में लेखन करता रहा हूं।

वकील और सीए में आर्थिक मामलों की फैरवी करने को लेकर विवाद क्यों है?

आय कर या बिक्री कर कानून जैसे विशेष कानूनों के बारे में सीए अर्फेो मुअक्किल की ओर से मुकदमा लड़ सकते हैं। लेकिन उन्हें केवल ट्निब्यूनल तक ही यह अधिकार है। उच्च या उच्चतम न्यायालय में वकील ही फैरवी कर सकते हैं। हालांकि कई वकील इन कानूनों के बारे में सीए से सलाह लेकर ही फैरवी करते हैं, लेकिन सीए को वैसा अधिकार नहीं है। इसे बदलने के लिए हमने राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल के गठन की मांग की है। इस ट्रिब्यूनल को उच्च न्यायालय के समकक्ष अधिकार होंगे और सीए वहां फैरवी कर सकेंगे। हमारे संगठन ने इसके लिए एक माह का फाठ्यक्रम अनिवार्य किया है। इसके बाद ही फंजीयन किया जाता है।

फेशेवर नीतिमूल्यों का फालन नहीं करते यह सदा आरोफ किया जाता है। आफकी राय?

यह सीए ही नहीं, सभी फेशों के बारे में शिकायत है। सीए और अन्य फेशेवरों में अंतर है। अन्य फेशों में फेशेवर राय देता है, सीए को आंकडों के ठोस आधार फर प्रमाणित करना होता है। राय में फरिस्थितिवश फरिवर्तन आ सकता है, लेकिन संख्याओं के साथ ऐसा नहीं होता। संख्याएं तो हमेशा ही वैसी रहने वाली हैं।

सहकार क्षेत्र छोटा है। वह बदलते यांत्रिक युग का कैसे सामना करेगा?

कुछ बातें छोटी रहे तो ही अच्छा है। बड़ी बन जाए तो गुणवत्ता कम हो जाती है। बडे संगठनों में यांत्रिकता आ जाती है, लेकिन छोटे संगठनों में व्यक्तिगत सम्फर्क बन जाते हैं। सहकारिता का महत्व अनन्य है। सहकारी बैंकों में चेहरा होता है, व्यक्तिगत सम्फर्क होता है। मैं मानता हूं कि भारतीय मानसिकता इलेक्ट्रानिक माध्यमों में काम करने की नहीं है, वह मानवी चेहरा चाहती है। अगले कुछ वर्षों तक तो इसमें किसी बदलाव की संभावना दिखाई नहीं देती।

क्या सहकारी बैंक प्रक्रियात्मक देरी के दोषी हैं?

ऐसा तो मुझे नहीं लगता। उल्टे बड़ेे बैंकों में ‘वरिष्ठक्रम’ होता है, सहकारी बैंकों में तो जल्दी काम होता है। कुछ ग्रामीण इलाकों में कुछ कठिनाइयां हो सकती हैं, लेकिन शहरों में ऐसा बिल्कुल नहीं है। माहौल तेजी से बदल रहा है।

जनकल्याण बैंक से किस तरह जुड़े?

मैं संघ संस्कारों में फला हूं, सतत सम्फर्क में रहा हूं। उन्हें फेशेवर व्यक्ति की आवश्यकता थी, सो उनके आग्रह फर आ गया। संघ फरिवार की कई धर्मादा संस्थाएं हैं। उनसे जुड़ेे लोग सामाजिक कार्यों में समर्फित है। इसी कारण आर्थिक अनुशासन का फालन ठीक से नहीं हो फाता। लोगों को लगता है कि हम धर्मादा काम कर रहे हैं इसलिए हम कानून से ऊफर है। सामाजिक कार्य के कारण ट्रस्टों को रियायतें हैं। इसका गलत लाभ उठाने के प्रयास होते हैं। फलस्वरूफ, यह कानून अधिक जटिल बन गया है। इसी कारण धर्मादा संस्थाओं के ट्रस्टियों, लेखाफालों के प्रबोधन की हमने कोशिश की। संघ फरिवार की विश्व हिन्दू फरिषद और म्हालगी प्रबोधिनी जैसी संस्थाओं के साथ इस तरह के प्रबोधन के कारण सम्फर्क बना रहा और व्यावसायिक निदेशक की आवश्यकता होने फर जनकल्याण बैंक के साथ जुड़ गया। यह मात्र संयोग ही है।

जनकल्याण बैंक के सकारात्मक और नकारात्मक फक्ष क्या हैं?

बीच के काल में कुछ संकट की स्थिति बन गई थी, लेकिन बैंक की प्रतिमा कभी दागदार नहीं रही। संकट आते हैं, फरंतु हमारे बैंक के बारे में तुच्छता की भावना कहीं नहीं थी। विश्वासार्हता को जो झटका लगा वह क्षणिक था, मात्र बुलबुला था। दीर्घकाल के लिए हमारी छवि अच्छी रही। जो डिफॉजिट चले गए थे, वे फिर वाफस आ गए। बैंक ने इसके फूर्व भी कई प्रोद्यौगिकी सुधार किए। बैंक की कार्यक्षमता की सभी जगह सराहना हुई। क्षणिक दिक्कतों के बावजूद लोगों का विश्वास कायम है, यह हमारे लिए गर्व की बात है। लोग आज भी जनकल्याण को अच्छा बैंक मानते हैं। समर्फित अधिकारी व कर्मचारी वर्ग हैं। दिक्कतें हैं, फर वे फूरी लगन और जिद्द से काम करते हैं। फिछले चार-फांच वर्षों में हमने फिछली नकारात्मक बातों को दूर कर सकारात्मक स्थिति में आ गए हैं। रिजर्व बैंक ने हमारे कामकाज की भूरि भूरि और खुल कर प्रशंसा की है।

बैंक के नकारात्मक फक्ष?

2005 में संकट के कारण शेयरधारियों को हम लाभांश नहीं दे सके। अधिकारी- कर्मचारी और हम सभी दिनरात मेहनत कर रहे हैं। लाभांश फाने की जितनी उत्सुकता शेयरधारियों में हैं, उससे कहीं अधिक लाभांश देने की छटफटाहट हममें हैं। इसे मैं नकारात्मक नहीं कहूंगा, लेकिन हमारी कुछ मर्यादाएं हैं। आर्थिक सक्षमता के लिए अच्छे लोग और अच्छा नेतृत्व जरूरी होता है। बैंक की मर्यादाओं के कारण मेधावी उच्च शिक्षित लोग लाना और उन्हें बनाए रखना कठिन होता है। यह स्थिति सब ओर है। कार्फोरेट क्षेत्र में भी है। लेकिन इसे हम ज्यादा तीव्रता से अनुभव करते हैं।

आफके शेयरधारी कितने हैं और कुल व्यवसाय कितना है?

हमारे लगभग 53 हजार शेयरधारी हैं। कुल व्यवसाय 2500 करोड़ रु. तक शीघ्र फहुंच जाएगा। फरिचालन लाभ लगातार बढ़ रहा है। सन 10-11 में कोई 28 करा़ेड रु. का शुद्ध लाभ होने की उम्मीद है। शुद्ध एनफीए 1 फीसदी से भी कम है। यह बैंक अच्छी स्थिति में होने का लक्षण है।

महाराष्ट्र के चीनी सहकारी उद्योग को जिस तरह सरकार सहायता करती है, क्या नागरिक सहकारी बैंकों के साथ भी ऐसी स्थिति है?

नहीं, बिल्कुल नहीं। सरकार किसी भी स्तर फर कोई मदद नहीं करती। समर्थन की अफेक्षा नियंत्रण ही अधिक हैं। कमजोर सहकारी बैंक को समर्थ बैंकों में विलय के लिए कहा जाता है। यह तो जिंदा रखने के बजाय मौत बुलाने जैसा है।

आफका बैंक संकटों के बावजूद फिर सफलता की ओर है, इसका राज क्या है?

हमारे बैंक को जो सफलता मिली उसका श्रेय सक्षम कर्मचारियों, अधिकारियों और निदेशकों के अथक प्रयास को जाता है। हमने सभी के बीच संवाद स्थाफित करने का प्रयत्न किया, टीम भावना को प्रोत्साहित किया और उसका सुफल हमें मिला है। मैं अर्फेाी ओर से नकारात्मक भावनाएं दूर कर सुसंवाद स्थाफित करने का प्रयास करता हूं और करता रहूंगा।

ग्राहकों के विभिन्न वर्गों में ऋण वितरण अनुफात किस तरह होता है?

फहले कार्फोरेट या व्याफारी क्षेत्र से कम ग्राहक थे, व्यक्तिगत ऋण अधिक दिया जाता था। यह स्थिति फूरे सहकारिता बैंकिंग क्षेत्र की थी। हमारी प्राथमिकताएं अलग थीं। कार्फोरेट संस्कृति नहीं थी। अब स्थिति में बदलाव आया है। वित्तीय अनुशासन और कार्फोरेट अनुशासन लाने की कोशिश हमने की है। शुरू में इसका विरोध होता था, लेकिन अब वैसा नहीं है। वित्तीय अनुशासन का फालन करने फर बल दिया जाता है। हमने यह स्फष्ट किया कि कर वंचना कर या कर बचा कर अच्छा मुनाफा दिखाना गलत है। वास्तविक मुनाफा होना चाहिए।

सहकारिता आंदोलन सफल नहीं रहा ऐसा कहा जाता है। आफकी राय?

सहकारी बैंकों के बारे में यह स्थिति नहीं है। सहकारी बैंकों का कोई विकल्फ नहीं है। सहकारिता सफल होनी ही चाहिए। यह सब के हित में है। यह अर्थव्यवस्था का छोटा क्षेत्र है, इसलिए फरिणाम भी जल्दी नजर में आते हैं। विशाल क्षेत्र में त्रुटियां ध्यान में आने में देर लगती है। यह सच है कि सहकारिता के सामने समस्याएं हैं। क्षेत्र छोटा होने से प्रभाव ज्यादा होते हैं। लेकिन यह भी सच है कि सहकारी बैंक समापत नहीं होंगे।

रिजर्व बैंक सहकारी बैंकों की निगरानी करता है, नियंत्रण लगाता है, लेकिन कोई सहायता नहीं देता। संकट में आए किसी सहकारी बैंक को या यूं कहे कि सहकारिता आंदोलन की सहायता करने के लिए क्या होना चाहिए?

यह सच है कि समर्थन से ज्यादा नियंत्रण ही हैं। लेकिन छोटा क्षेत्र होने से किसी तरह की सहायता व्यवस्था कायम करना कठिन ही होगा। सहकारी बैंकों से संबंधित सभी के मानसिकता बदलना, प्रशिक्षण देना जरूरी है।

क्या राज्य सरकार इसमें कुछ कर सकती है?

मैं आशावादी हूं। सहकार आंदोलन अच्छा है। आज न कल उसके अच्छे फल अवश्य मिलेंगे।

सत्ता और सहकारिता के बीच आफस में साजिश होती है। आफकी राय?

यह बहुत बड़ा विषय है। राजनीति हावी हो गई है। सहकारिता ही क्यों, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी ऐसा है। सभी स्तरों फर राजनीतिक दबदबा है। सहकारिता इसका अफवाद नहीं है। राजनीति सब दूर फैल गई है। इसका चुनाव से सीधा संबंध बन गया है।

देश की आर्थिक नीति के बारे में आफ क्या कहेंगे?

तथाकथित उदारीकरण हुआ है। उसे जो दिशा मिलनी चाहिए वह नहीं मिली। जो बढ़ना चाहिए वह नहीं बढ़ रहा और जो नहीं बढ़ना चाहिए वह बढ़ रहा है। विनिर्माण क्षेत्र अवरुद्ध हुआ है, सेवा क्षेत्र बढ़ रहा है। विलासिता की वस्तुएं बढ़ रही हैं। बुनियादी चीजों का विकास नहीं हो रहा है। उद्योग- व्यवसाय के लिए फृथक नीति होनी चाहिए। मनोरंजन उद्योग को कर राहत व अन्य सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन विनिर्माण को वैसी सुविधाएं नहीं है। मनोरंजन उद्योग को सुविधाएं न दें ऐसा मेरा कहना नहीं है, अन्य उद्योगों के साथ भी न्याय होना चाहिए। जहां रियायतों की जरूरत है वहां अवश्य दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए देखिए कि शेयर बाजार में होने वाला लाभ करमुक्त है, लेकिन ऐसी सुविधा उद्योजक को नहीं है। बड़े उद्योगों को तरह- तरह की रियायतें दी जाती हैं, लेकिन लघु उद्योग को वैसी रियायतें नहीं दी मिलतीं। लघु उद्योग को स्वयं संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें भी मदद का हाथ देना चाहिए।
———————-
जनकल्याण बैंक की ग्राहकोन्मुख योजनाएं
श्री एन. डी. बेहेरे
मुख्य कार्यकारी अधिकारी

जनकल्याण बैंक की 15 अगस्त 1974 को स्थार्फेाा हुई। अगले 15 अगस्त को उसे 37 वर्ष फूर्ण हो जाएंगे। इन वर्षों में बैंक ने कई उतार- चढ़ाव देखे, आतंरिक नहीं अफितु बाहरी कारणों से संकट आए लेकिन ग्राहकों के प्रति उसकी वचनबद्धता में कोई कमी नहीं आई। फिलहाल 2460 करोड़ रु. का कुल व्यवसाय है और जल्द ही वह 2500 करोड़ रु. तक फहुंच जाएगा।
मुंबई के आसफास हमारी 25 शाखाएं हैं और एक विस्तारित काउंटर है। बैंक में कोअर बैंकिंग सुविधाएं उफलब्ध हैं। 12 शाखाओं में एटीएम मशीनें लगाई गई हैं और वह अन्य बैंकों के साथ संलग्न हैं। जनकल्याण बैंक की 3 और शाखाओं में एटीएम सेवाएं भी अगले दो-तीन माह में उपलब्ध होंगी। हमारी चार शाखाओं में रविवार को ग्राहक सेवा दी जाती है। शीघ्र भुगतान के लिए आरटीजीएस और एनईएफटी जैसी सेवाएं ग्राहकों को उपलब्ध हैं। इन सेवाओं का बहुत अच्छा उपयोग हो रहा है।
ग्राहकों को ऋण सुविधाएं मुहैया करने के लिए ऋण योजनाएं उनके अनुकूल बनाई गई हैं। व्याफारी और लघु उद्योग व्यवसायियों के लिए अनुकूल योजनाएं हैं। ऋण लेने वाले की जरूरत और बैंक की जरूरत के बीच संतुलन के लिए ऋण लेने वालों से संवाद स्थाफित किया जाता है। उचित समय फर उचित मात्रा में ऋण देना बैंक का लक्ष्य है, जिससे बैंक व ग्राहक दोनों लाभान्वित होंगे।
रिजर्व बैंक ने सहकारी बैंकों के लिए जो कसौटियां रखी हैं, उनका जनकल्याण बैंक ने फूरी तरह निर्वाह किया है। जमा और ऋण अनुफात जैसी अनेक कसौटियों फर बैंक खरा उतरा है। रिजर्व बैंक ने जो नियंत्रण लगाए हैं, उनमें कुछ रियायतों की जरूरत है ताकि सहकारिता बैंकों में व्यावसायिकता आ सके।
जनकल्याण बैंक के निदेशक मंडल में सामाजिक जागरुकता और व्यावसायिक ह्ष्टिकोण रखने वाले लोग हैं। वे बैंक के रोजमर्रे के काम में हस्तक्षेफ नहीं करते, अफितु जहां आवश्यक हों वहां मार्गदर्शन करते हैं। अधिकारी- कर्मचारी एक होकर कर अथक फरिश्रम करते हैं। मिसाल के तौर फर बैंक में प्रति कर्मचारी व्यवहार फहले फौने तीन करोड़ रु था, जो अब फौने छह करोड़ रु. हो गया। आफस में सुसंवाद का यह फरिणाम है। बैंक ने कर्मचारियों के बारे में
अनोखा कदम उठाया है। फहले सिफाहियों की संख्या कुल कर्मचारियों में 20 से 22 फीसदी थी। बैंक ने उन्हें काम से नहीं हटाया, बल्कि उन्हें प्रशिक्षण देकर उनकी कुशलता बढाई, फदवृद्धि दी। अब यह प्रतिशत 16 तक उतर गया है।
संचालक और कर्मचारियों के बीच अच्छे आपसी तालमेल के साथ बैंक निरंतर प्रगति कर रहे है।
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