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एकात्मता की नींव का शिलान्यास

एकात्मता की नींव का शिलान्यास

by pallavi anwekar
in अगस्त-सप्ताह दूसरा, विशेष, संपादकीय
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राम मंदिर बनना इतना महत्वपूर्ण क्यों है, यह प्रश्न अब इतिहास में जमा हो चुका है; क्योंकि राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। पांच अगस्त को भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ मिलकर श्रीराम मंदिर का शिलान्यास किया। इसके साथ ही यह आशा की जानी चाहिए कि श्रीराम मंदिर की नींव में वे सब विमर्श भी दब गए जो विगत कई वर्षों से समाज को दो भागों में बांटने के लिए जानबूझकर एक विशिष्ट वर्ग के द्वारा चलाए जा रहे थे।

दरअसल ये विमर्श भारत की संसदीय प्रणाली में हिंदुत्व के प्रस्थापन के भय से चलाए जाते थे। क्योंकि तथाकथित सेक्युलर इस बात से डरे हुए थे कि अगर भारत का मुखिया हिंदू है, हिंदुत्व उसकी आस्था का विषय है, यह स्थापित हो गया तो विश्वभर में भारत की छवि हिंदू राष्ट्र के रूप में उभरेगी और सभी तथाकथित सेक्युलर लोगों को अपनी दूकानें बंद करनी होंगी।

पांच अगस्त की यह तारीख इसलिए भी महत्वपूर्ण रहीं क्योंकि पिछले साल पांच अगस्त को ही कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को हटाने का निर्णय लिया गया था। लद्दाख और जम्मू कश्मीर दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए। कई लोगों का मानना था कि धारा 370 हटने के बाद देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़क जाएंगे। इसका समर्थन करने वाले लोग समाज में फूट डालने की पुरजोर कोशिश करेंगे। भारत के बाहर जिन लोगों से अलगाववादी समर्थन प्राप्त करते हैं, वे भी भारत में सामाजिक असंतुलन फैलाने की चेष्टा करेंगे।

जिस प्रकार एक बार बड़ा भूकंप आने के बाद कई छोटे-छोटे ‘आफ्टरशॉक्स’ आते रहते हैं उसी प्रकार धारा 370 हटाने के इस निर्णय के बाद कई ऐसी घटनाएं घटीं जिन्हें इस निर्णय के ‘आफ्टर शॉक्स’ के रूप में देखा जा सकता है। शाहीन बाग, दिल्ली के दंगे आदि इसके ही उदाहरण रहे। उस एक भूकंप से छद्म सेकुलरवादी उबरे ही थे कि उन्हें श्रीराम मंदिर के शिलान्यास के रूप में इसके ठीक एक साल के बाद दूसरे भूकंप का झटका लग गया। अब इसके ‘आफ्टरशॉक्स’ लगेंगे कि नहीं यह तो भविष्य में पता चलेगा।

वास्तव में इन ‘आफ्टरशॉक्स’ का खतरा जिन लोगों से है, वे भारत के मूल स्वभाव को नहीं पहचान पा रहे हैं। प्रधान मंत्री ने शिलान्यास के समय दिए गए उनके भाषण में भारत की संस्कृति से श्रीराम को जोड़ा था। उनके भाषण का सार यह था कि श्रीराम के आदर्शों की जड़ें भारतीय संस्कृति में इतनी गहराई तक पहुंची हुईं हैं कि इतने वर्षों तक आक्रांताओं के आक्रमण भी उन्हें उखाड़ नहीं पाए। संस्कृति आंतरिक तत्व है, इसे बाहरी रूपों से जोड़ना सही नहीं है। भारत के अलावा अन्य कई देश हैं जहां श्रीराम पूजे जाते हैं, परंतु इसलिए उस सभ्यता की कोई हानि नहीं हुई, तो भारत जो कि श्रीराम की जन्मस्थली है वहां श्रीराम की पुनर्स्थापना से कोई हानि कैसे हो सकती है?

पिछले साल की पांच अगस्त से इस साल की पांच अगस्त तक के एक साल में भारत की राजनीति और समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। दैनंदिन जीवन के कार्यों में भले ही कुछ अलग न लगता हो परंतु भारत के बहुसंख्यक समाज में फिर से चेतना का संचार हो गया है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सांस्कृतिक रूप से भारत एक था ही अब संवैधानिक रूप से भी हो गया और उसके आराध्य के रूप में भगवान श्रीराम प्रतिष्ठित भी हो गए। सभी हुतात्माओं की कुर्बानी और आंदोलनकारियों के कष्ट फलीभूत हो गए।

इन पांच तारीखों ने आज के समाज पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी डाल दी है, और वह जिम्मेदारी है भारत को एकात्मता के सूत्र में बांधे रखने की। जिस प्रकार राम मंदिर आंदोलन के समय आंदोलनकारियों ने एक दूसरे की जाति पूछकर भाग नहीं लिया था, उन्होंने केवल इसलिए भाग लिया था क्योंकि श्रीराम में उनकी आस्था थी और मंदिर निर्माण उनका लक्ष्य था। उसी प्रकार अब भारत में अपनी आस्था रखकर उसे एकात्म राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखना होगा। हिंदू समाज को अपने जातिगत द्वेशों से ऊपर उठकर सोचना होगा। राजनेताओं को भी यह सोचना होगा कि वोट की राजनीति करने के चक्कर में जानबूझकर या अनजाने में भी भारत को पुन: जातियों में बांटने का काम न किया जाए।

यह जिम्मेदारी उन कथित अल्पसंख्यकों की भी है क्योंकि वे भी भारत का ही एक अंग हैं। उन्हें यह समझना होगा कि जिस तरह उन्हें अपनी मौलिक संस्कृति को सहेजने और संवारने का अधिकार है उसी तरह बाकी के समाज को भी है। अगर वे भारत के सामाजिक तानेबाने में मिलजुलकर रहते हैं तो उन्हें किसी तरह का कोई भय नहीं रहेगा, परंतु अल्पसंख्यक होने का नाजायज फायदा उठाने की लालच में अगर वे तथाकथित सेकुलर गैंग के इशारों पर फिर से समाज को अशांत करने की कोशिश करेंगे तो एक राष्ट्र के रूप में हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।

आज भारत अपनी सांस्कृतिक धरोहर की पुनर्स्थापना से आनंदित है। वह अपनी आत्मा को पहचान रहा है। अपने मानबिंदुओं पर गर्व महसूस कर रहा है। इस भारतीय समाज को इसी तरह एकात्म रखने वाली नींव का शिलान्यास हो चुका है। अब भव्य मंदिर के साथ भव्य भारत का निर्माण करना हम सभी कर्तव्य होगा।

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