देश के सर्वोच्च पद की गरिमा बढानेवाले : प्रणव मुखर्जी

आज शाम को पुर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित प्रणब मुखर्जी जी के मृत्यू की खबर सभी माध्यमों पर आ गई। गत दो सप्ताह से वह फेफडों के संसर्ग के कारण रुग्णालय मे भर्ती थे। उनके मृत्यू की खबर किसी भी समय आ सकती है, इस बात का अंदाजा देश के लोगों को था और वह आ गई। देश ने एक कर्तव्यदक्ष और कतृत्ववान व्यक्तित्व को खोने का भाव मन मे निर्माण हुवा है। भारतीय राजनीति से जुडी उनकी यादे ऐसी ही गरिमामय रही है।

राष्ट्रपति चुनाव के वोटों की गिनती पूरी होने के बाद प्रणब मुखर्जी को भारत के 13 वें राष्ट्रपति के रूप में विजेता घोषित कर दिया गया । तभी कुछ सवाल बहुत सारे लोगों के मन और दिमाग में घूम रहा था। वह सवाल इस प्रकार से थे की प्रणब मुखर्जी किस प्रकार के राष्ट्रपति साबित होंगे ? क्या प्रणब मुखर्जी कांग्रेस की परंपरा से जुड़े हुए अब तक के अन्य राष्ट्रपति की तरह रबर स्टैंप बन जाएंगे? या अब तक के अपने व्यक्तित्व की तरह वह यहा भी सक्रिय रहेगी?  संविधान को जिस प्रकार से अपेक्षित होता है उस प्रकार  उनका व्यवहार राजनीति से  अलग रहेगा? सत्ता पर विराजमान भाजपा सरकार और प्रणव कुमार मुखर्जी की राजकीय विचारधारा एक दूसरे को पूरक नही है, ऐसे में उनका व्यवहार निष्पक्ष होगा?  इस प्रकार के विभिन्न सवाल देश के गणमान्य नेता और जनता के मन में भी थे।

राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करते ही पूरी तरह से राजनीति से निष्क्रिय होकर काम करना पड़ता है। अलग बैठकर सरकार का काम देखना पडता हैं। यह सिर्फ  देखते रहना, कर्मठ व्यक्ति के लिए कठिन बात होती है। प्रणब मुखर्जी की पूर्ण आयु  कांग्रेसी राजनीति में गई थी । जिनका दिमाग राजनैतिक ढंग से सोचने का अधीन हो गया हो ऐसा व्यक्ति  राष्ट्रपति बनने के बाद उसे राजनीति के सारे मोर्चों से निष्क्रिय होना पडता है। लेकिन दूसरी तरफ संविधान राष्ट्रपति से अपनी आंख खुली रख कर जागृत रहने की अपेक्षा करता है ।  इसी अवस्था में राष्ट्रपति को देश और संविधान के हित में निर्णय लेने पड़ते हैं।

ऐसी स्थिति में मोदी सरकार के साथ प्रणव मुखर्जी के संबंध मधुर रहे। लेकिन जब भी उन्हें कोई बात नागवार लगी तब  उन्होंने खुलकर अपने विचार व्यक्त किए थे। अध्यादेश के मामले में कई बार सार्वजनिक तौर पर आपत्ति जताई थी। किसी भी संसदीय प्रणाली में अध्यादेश को एक आपातकालीन उपाय के रूप में देखा जाता है। बार-बार अध्यादेश लाने में कहीं न कहीं कार्यपालिका की निरंकुशता की झलक मिलती है। जो लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है। राष्ट्रपति के रूप में मुखर्जी प्रणब मुखर्जी लोकतांत्रिक परंपराओं को और मजबूत होते देखना चाहते थे। ऐसे समय में भी प्रणब मुखर्जी ने स्पष्ट रूप में देश के लिए आदर्श बन हमारा संविधान देश की गरिमा  रखनेवाली बात रखी थी। संसद में देश के विभिन्न मुद्दों पर गंभीर चर्चा पहले भी होती थी। राज्यसभा उत्कृष्ट वक्ताओं से भरी थी । लेकिन अब विरोधी पक्ष के व्यवधान और बहिष्कार से सदन का नुकसान हो रहा था । तब संसद की कार्यवाही बाधित होने से सबसे अधिक नुकसान विरोधी पक्ष का होता है। ऐसे समय मे सत्ताधारी और विरोधी पक्ष दोनों को प्रणव मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में खरी खरी सुनाने  में कोई हिचक नहीं दिखाई।  राष्ट्रपति इस नाते प्रणब मुखर्जी का केंद्र सरकार और विपक्ष पर सही नियंत्रण  समय-समय  पर रहा है। इसी कारण प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति काल में  जनता में यह उम्मीद बनी रही की राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च मंच है और वो इसी प्रकार से ही होना चाहिए।

गत  ६० सालों में भारतीय जनता की धारना बनती गई है की राष्ट्रपति सिर्फ रबर स्टैंप होता है। इस कारण  संविधान की जो व्यवस्था है उस व्यवस्था को  ठीक से लागू करवाने मे कांग्रेसी राष्ट्रपति नाकामयाब रहे थे । लोकतांत्रिक राज्यसत्ता के नियंत्रण का  राष्ट्रपति यह एक अलग ही उपकरण है। राष्ट्रपति किसी बील को वापस कर दे या उस पर पूछताछ भी करें तो विराजमान सरकार की हालत पतली हो जाती है। गत ६० सालों में कांग्रेस ने अपने अंकुश में रहने वाले व्यक्तित्व को ही राष्ट्रपति पद पर रखा था। उनसे रबर स्टेम की तरह काम करवा कर लिया था। इसी कारण राष्ट्रपति भारतीय जनता को बेचारा लगता था। लोगों के मन में राष्ट्रपति को लेकर जब भी बात आती थी तो कहते थे कि  वह बेचारा तो रबर स्टैंप है। प्रणब मुखर्जी ने अपने कृतित्व से इस श्रृंखला को तोड़ दिया था।

प्रणव कुमार मुखर्जी यानी बहुआयामी व्यक्तित्व, संकट मोचन, चाणक्य ,वन मैन थिंक टैंक ,जागृत स्मरण शक्ति, संस्थागत घटना और सभी बातों का एनसाइक्लोपीडिया। उनके अंदर का कुशल सांसद देश ने समय-समय पर अनुभव किया है । संसद में उनके द्वारा  उपस्थित किया गया विचार या मुद्दा किसी को भी सोचने पर मजबूर करता था। इसी कारण उनके विवाद और चर्चा को विरोधक भी दाद देते थे। उन्होंने भारत सरकार के मंत्रिमंडल में तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया हुआ है । इंदिरा गांधी, नरसिंह राव और मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री थे। संगठनात्मक तौर पर उनकी विश्वसनीयता इतनी थी की इंदिरा गांधी ने उनकी विश्वसनीयता की आदत पर कहा था कि ” प्रणव मुखर्जी से कोई बात उगलना आसान नहीं,  क्योंकि उनके सिर पर हथोड़ा भी मारोगे तो उनके मुंह से धुआं  निकलेगा पर बात कभी बाहर नहीं निकलेगी ।( किसी समय वह धूम्रपान करते थे) भारत ने अपनाये  आर्थिक उदारीकरण से भारत की अर्थव्यवस्था में जो दूरगामी परिवर्तन दिखाई दिए। इस कार्यकाल में अर्थमंत्री इस नाते उनका भी सहभाग अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। पिछले पांच दशक में राजीव गांधी का कार्यकाल  छोड़कर प्रधानमंत्री पद पर देश का कोई भी नेतृत्व हो,  उनके दाहिने हाथ के रूप में प्रणब मुखर्जी को देखा जाता था। पश्चिम बंगाल में लोग फुटबॉल के ज्यादा दीवानी है । लेकिन प्रणव जी क्रिकेट प्रेमी थे। यह भी एक अजब इत्तेफाक वाली बात है, भारत ने दो बार १९८३ और २०११में क्रिकेट का विश्व कप जीता और दोनों बार केंद्र में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी थे। एक बार प्रणव मुखर्जी  ने मजाक में भारतीय  क्रिकेट के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को बधाई देते हुए कहा था कि अगर भारत को हर बार विश्व कप जितना हो तो उन्हें ही वित्त मंत्री बना दे।

राजनीति  में आने से पहले वह अध्यापक थे। वैसे उन्होंने अपना करियर पत्रकार के तौर पर शुरू किया था । राजनीतिक शास्त्र  विषय में उन्होंने दो बार स्नातकोत्तर पदवी हासिल की है। वह राजनीति में ६०  के दशक में आए। उनकी राजनीतिक गुरु पश्चिम बंगाल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अजय मुखर्जी रहे हैं। जब नील आर्मस्ट्रांग चांद पर पहुंचे थे उसी दिन १९६९ में प्रणब मुखर्जी पहली बार कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के सदस्य बने थे। उन्हे  दिल्ली लाने का श्रेया इंदिरा गांधी को दिया जाता है।दिल्ली की राजनीति में आने के बाद फिर प्रणब मुखर्जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसके बाद १९७५ ,१९८१, १९९३ और १९९९ वे राज्यसभा पहुंचे। लोकसभा  के लिए पहली बार २००४ में  चुने गए। अपनी राजनैतिक जीवन में १९७३ में पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए थे। बाद में वह कई बार मंत्री बने।


अब तक वे वित्त मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री के अलावा योजना  आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। २००८ में उन्हें पद्मभूषण से भी नवाजा गया था। इससे पहले १९९७ में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद भी घोषित किया गया था । भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। २००४ के चुनाव के बाद सभी को इस प्रकार की धारणा थी कि प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी को चुना जाएगा। सोनिया गांधी को सभी स्तर से कठोर विरोध होने के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद स्वीकारने से इंकार किया। लेकिन सोनिया यह भारतीय राजनीति मे  सत्ता बाहय केंद्र बनी रही। सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी का प्रधान मंत्री पद के लिए  चुनाव ना करते हुए उन्होंने मनमोहन सिंह जी को प्रधानमंत्री और प्रणब मुखर्जी को रक्षा मंत्री किया । प्रणब मुखर्जी देश के रक्षा मंत्री थे तब मुंबई पर पाकिस्तान का आतंकी हमला हुआ था। हमला होने के बाद अमेरिका के उस समय के परराष्ट्र मंत्री कोंडोलीसा राइस ने प्रणब मुखर्जी के साथ दूरभाष पर बात की थी।  उस समय अमेरिका पाकिस्तान की चिंता बहुत करती थी । मुंबई पर पाकिस्तानी  आतंकवादीयों ने किया हुआ हमला इतना जबरदस्त था ,  इस हमले का जवाब पाकिस्तान पर हमला करके भारत देगा? यह सवाल अमेरिका को सता रहा था । उस समय प्रणव मुखर्जी ने  अमेरिका के पर राष्ट्र मंत्री कोंडोलीसा राइस को स्पष्ट रूप में कहा था , “भारत की सहनशीलता कि एक मर्यादा है।आप पाकिस्तान  को आधुनिक हथियार देते हो। वह उन हथियारों का उपयोग भारत के विरोध में करता है। ”

जब  सोनिया गांधी कांग्रेस मे सुपर पावर थी, उस समय तमिलनाडु में जयललिता ने कांची कामकोठी पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी को झूठे आरोपों में कैद की था । वह दिवाली का पहला दिन था। हिंदू समाज पर किया बहुत बड़ा आघात था।  तब कैबिनेट मीटिंग में प्रणब मुखर्जी ने इस विषय पर कठोर टीका करते हुए प्रश्न उपस्थित किये थे। “सेकुलरिज्म के मूलभूत विषय  सिर्फ हिंदू साधु – संतों पर ही लागू होते? ईद के दिन किसी मुस्लिम धर्म पंडित को अटक करने की हिम्मत यह राज्य सरकार दिखा सकती है ?”

प्रणव मुखर्जी  का एक शब्दों में वर्णन करना हो तो वह बहुत चिवट प्रवृत्ति के थे। जीवन मे आने वाली आपदाओं से संघर्ष करने की उनकी प्रवृत्ति दाद देने लायक थी। १९८४ मे  राजीव गांधी प्रधानमंत्री होने के पश्चात प्रणब मुखर्जी जी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया गया। उसके बाद उन्हें कांग्रेस कार्य समिति से भी निकाल दिया गया। और तुरंत बाद कांग्रेस पक्ष से भी उन्हें निलंबित किया गया। ऐसे में प्रणब मुखर्जी ने १९८६ में राष्ट्रीय समाजवादी पक्ष की स्थापन की थी। इस प्रयास में उन्हे कोई यश नहीं मिला। १९८८ में उन्होंने अपना पक्ष कांग्रेस में विलीन किया। और फिर कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। अपनी राजनीतिक आयु में जिस कांग्रेसी विचारधारा से वह बंदे थे ,उसी विचारधारा से उन्हें बाहर किया गया था। इस बुरे पड़ाव से भी वह सही सलामत बाहर निकले ऐसे प्रणब मुखर्जी आगे चलकर  देश के राष्ट्रपति  पद पर विराजमान हो गये थे।

लिखने -पढ़ने के शौकीन प्रणव मुखर्जी  ने अपनी अत्यंत व्यस्त राजनीतिक जिंदगी के बावजूद चार किताबें लिखी है। राष्ट्रपति पद से विराजमान होने के बाद सक्रिय राजनीति से अलग होकर समाधान से शांतता से पुर्व राष्ट्रपति अपना आगे का जीवन व्यतीत करते है। लेकिन राष्ट्रपति पद से  निवृत्ति  के बाद भी मुखर्जी के अंदर की जिज्ञासा, उनके अंदर की उत्कंठा उन्हे  शांत बैठने नहीं देती थी। अपनी प्रतिभा और दीर्घ  राजनैतिक अनुभव के कारण  वह निरंतर  सक्रिय रहे।

वह संस्कृत के अच्छे जानकार थे । स्वयं श्लोक पढ़ते थे और पूजा अर्चना में उसका उपयोग भी करते थे । उनके संदर्भ में बताया जाता है कि जब भी उनको आराम से बैठने का मौका मिलता था । तब उनका व्यवहार कई बार बच्चों जैसा लगता था। वह कभी उनकी पसंद के रविंद्र संगीत सुनते थे । तो कभी उषा उतथुप  के डिस्को गाने सुनते थे।  कुमार सानू के गाने भी उन्हें बहुत पसंद थे।और वह उन्हें अकेले में  गुनगुनाया भी करते थे। उनकी पत्नी सुभ्रा मुखर्जी संगीत समूह का संचालक थी। प्रणब मुखर्जी को इंदरजीत और अभिजीत दो बेटे और  शर्मिष्ठा एक बेटी है।  शायद कम लोगों को मालूम होगा कि उनके बेटे इंद्रजीत से केवल उनका खून का रिश्ता नहीं है। दरअसल इलाहाबाद के कुंभ मेले में उन्हें एक यतिन बालक मिला था। जिसे उन्होंने अपने बच्चों की तरह पाला पोसा, इंद्रजीत वही है। बेटी शर्मिष्ठा एक जानी-मानी नर्तकी है। प्रणब मुखर्जी ने  कभी वैभवशाली जीवन शैली नहीं अपनाई। वह इंदिरा गांधी की कैबिनेट में नंबर दो की हैसियत मे थे। इस के बावजूद तभी से राष्ट्रपति होने तक अन्य मंत्रियों के मुकाबले वह छोटे बंगले में रहा करते थे। बडे बंगले की उन्होंने  कभी इच्छा नही जताई अथवा कोई प्रस्ताव को नही किया। उनका कहना यही था कि मेरी जरूरतें बहुत कम है।  मैं, मेरा परिवार और मेरी किताबें जहां सुकून से रह सकती है इतनी जगह मुझे काफी है। लेकिन इस प्रकार की सादगी से रहने वाले प्रणव मुखर्जी को 300 से ज्यादा कमरों और सैकड़ों एकड़ क्षेत्रफल में फैले रायसिना हिल के राष्ट्रपति भवन में अपने जिंदगी के एक राजनीतिक पारी व्यतीत करने का अवसर मिला। नियति भी कभी मन के विरोध में बहुत सारी बातें करने को मजबूर करती है , यह इस बात का उत्तम उदाहरण है।

वैचारिक सहमति-असहमति और संघर्ष हम भारतीयों के संस्कार में बैठा हुआ है। लेकिन इसका मतलब किसी विचारों से घृणा करना यह नहीं होता है। विचारों के स्तर पर किसी संगठन या व्यक्ति से मतभेद होना एक बात है । उससे किसी प्रकार का संबंध ना रखना दूसरी बात है। अपनी राजनीति साधने के लिए आजकल की राजनीतिज्ञ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में जिस प्रकार से बयान देते हैं। संघ का भय दिखाकर राजनीति में अपना स्थान बनाने का प्रयास करते हैं। लेकिन  पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपनी राजनैतिक पृष्ठभूमि को दरकिनार करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह मे संघ कार्यालय मे उपस्थित रहे थे। संघ विचारधारा के समर्थन में अपना वक्तव्य दिया था। प्रणब मुखर्जी की यह कृति उन सारे नेताओं के गाल पर दिया हुआ एक करारा तमाचा  था जो  संघ के संदर्भ मे गलत धारणाऐ  फैलाने का प्रयास करते हैं। प्रणव मुखर्जी ने यह संदेश सभी तक पहुंचाया था कि संघ के संदर्भ में गलत धारणाएं फैलाना यह लोकतंत्र विरोधी है। भारतीय राजनैतिक वातावरण के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। सत्ता मे विराजमान भाजपा सरकार  और राष्ट्रपति प्रणब  मुखर्जी की राष्ट्रीय विचारधारा कभी एक दूसरों से मिलती-जुलती नहीं रही थी। मौजूद इसके  भी अपनी विचारधाराओं का कारण दिखाकर उन्होंने मोदी सरकार से कोई संघर्ष निर्माण नहीं किया।  हां ! जब जब समय रहा तब तब किसी भी मर्यादाओं का भंग ना करते हुए संविधानिक शब्दों में उन्होंने सरकार को खरी-खोटी सुनाई है। पूर्व राष्ट्रपति  प्रणब मुखर्जी जी के व्यक्तित्व के बारे में जब हम सोचते हैं तो एक बात खुलकर सामने आती है , व्यक्ति की राजकीय विचारधारा का रंग किसी भी प्रकार का हो। लेकिन वह व्यक्तित्व की विशेषताओं और कर्तृत्व  के कारण हमेशा सभी से उभर कर उपर आता है। कुछ लोग अपने कर्तृत्व के कारण बड़े होते हैं, और इसी कारण उन्हें पद भी बड़े-बड़े मिलते हैं। ऐसे थे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी  जिन्होंने अपने अलौकिक कार्य से देश के सर्वोच्च पद की प्रतिष्ठा बढाई थी। ऐसे स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी को हिंदी विवेक परिवार भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित करता है।

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  1. इस आलेख में बहुत ज्यादा त्रृटियां है , वर्तनी के अलावा भी और प्रणव या प्रणब ??? बेहद जल्दबाजी में प्रूफ रिडिंग कमजोर रह गई है.

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