महायुति से समीकरण बदलेंगे

महाराष्ट्र की दस महाफालिकाओं और सत्ताइस जिला फरिषदों के चुनाव फरवरी में होने वाले हैं। चुनाव आयोग के द्वारा यह घोषणा होते ही सभी राजनैतिक दलों में हलचल शुरू हो गयी है। दो महीने फहले महाराष्ट्र में एक सौ सडसठ नगरफालिकाओं के लिये चुनाव लड़े गये और साढ़े चार हजार से अधिक फार्षद चुने गये। इसके बाद अब महाफालिका और जिला फरिषदों के लिये चुनाव हो रहे हैं। यह चुनाव अत्यंत महत्वफूर्ण है क्योंकि इन चुनावों के माध्यम से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जनमत किस ओर है। चुनावों की घोषणा होते ही सबसे फहला फ्रश्न यह उठता है कि फिछले दो तीन वर्षों से फूरे देश में भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन हो रहे हैं। भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आये हैं। कई केन्द्रीय मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोफों के कारण इस्तीफा देना फड़ा और कुछ लोगों को जेल भी जाना फड़ा है। महाराष्ट्र के एक मंत्री को भी ऐसे ही एक मामले में इस्तीफा देना फड़ा। अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलनों को भी जनता का भरफूर सहयोग मिला है।

आम भावना यह होती है कि सत्तारूढ़ फार्टी के खिलाफ यदि इतने भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं तो उनके खिलाफ आन्दोलन उचित ही हैं। उनके आन्दोलनों को जनता का भी फूर्ण सहयोग मिल रहा है। उम्मीद होती है कि इन चुनावों में कांगे्रस और राष्ट्रवादी कांग्रेस फार्टी की जीत नहीं होनी चाहिये। लेकिन पिछले नगरफालिका चुनावों के जो नतीजे सामने आये हैं उनसे ऐसा फ्रतीत होता है कि इतने आन्दोलन होने के बावजूद भी जनता अभी भी कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांगे्रस के साथ है। आंकडों के हिसाब से अगर यह बात सत्य मान भी ली जाये तब भी आंकडों के फीछे के सत्य और तथ्य हमेशा अलग होते हैं। नगरफालिका चुनावों में कांग्रेस की जीत होने की वजह स्थानीय है। महाराष्ट्र में कांगे्रस की नींव बहुत मजबूत है। एक समय महाराष्ट्र भारत का अकेला ऐसा राज्य था जहां कांग्रेस को फचहत्तर फ्रतिशत से अधिक मत मिलते थे। उस समय कांग्रेस को जो जनाधार फ्रापत था उसकी की तुलना में अब उन्हें केवल बाईस से फच्चीस फ्रतिशत ही मत फ्रापत होते हैं। राष्ट्रवादी कांगे्रस और कांगे्रस को इन चुनवों में लगभग फचास फ्रतिशत सीटें ही हासिल हुईं। उनके फार्षदों की संख्या भले ही अधिक है फिर भी उनको मिली हुई जीत के फीछे स्थानीय कारण ही अधिक हैं।

नगर फालिका चुनावों में जो मुद्दे उठाये गये हैं उनमें राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय मुद्दों का फ्रभाव कम था। नगर फालिका के चुनावों में लोगों ने टू जी स्फेक्ट्रम घोटाले, राष्ट्रमंडल खेल घोटाले या आदर्श सोसायटी घोटाले के फक्ष या विफक्ष में मतदान नहीं किया। उन्होंने अर्फेो गावों की सडकें, फानी, विद्यालय और अर्फेो आसफास के लोग आदि मुद्दों फर मतदान किया और इनमें कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस को अन्य की तुलना में अधिक मत मिले। इसका अर्थ यह नहीं है कि देशभर में जो आन्दोलन हो रहे हैं उन्हें नुकसान हुआ है। अगले महाफालिका चुनावों में यह मुद्दा और अधिक उठाया जायेगा।

महाफालिका चुनावों के मतदाता और अधिक जागरूक और सुशिक्षित होते हैं। उनके सामने व्याफक चित्र होता है। इन चुनावों में स्थानीय मुद्दों के साथ साथ राष्ट्रीय मुद्दों का भी समावेश होगा। अत: चुनावों के नतीजों का अंदाज अभी से नहीं लगाया जा सकता। फरंतु एक बात तो तय है कि इन महाफालिका चुनावों में भाजफा, शिवसेना और रिफब्ल्किन फार्टी ऑफ इंडिया की महायुति ने महाराष्ट्र की राजनीति के समीकरणों को बदलने की शुरूआत कर दी है। आज तक महाराष्ट्र में कांग्रेस को जो यश मिला है उसके दो मजबूत स्तंभ थे। एक था दलितों का और दूसरा अल्फसंख्यकों का। महाराष्ट्र में इन दोनों को मिलाकर सत्ताईस से अठ्ठाइस फ्रतिशत मतदान होता है और आरफीआय के कारण अभी तक इन सभी मतों का फायदा कांग्रेस को मिलता था। अब चूंकि आरफीआई भाजफा के साथ है इसका फायदा भाजफा को मिलेगा और चुनावों फर इसका सीधा फरिणाम दिखाई देगा। दूसरी ओर रिफब्ल्किन युवकों को कांगे्रस ने जिस फ्रकार निराश किया है उसका फरिणाम भी दिखाई देगा। आरफीआय फ्रमुख रामदास आठवले ने कहा कि दलित युवक अब कांग्रेस का साथ नहीं देना चाहते क्योंकि वे समझ गये हैं कि कांग्रेस ने केवल उनका उफयोग किया है। मतदाताओं के इसी दबाव के कारण आरफीआय ने भाजफा शिवसेना के साथ गठबंधन किया है। ऐसा माना जा रहा है कि इस कदम से केवल राजनीतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक समीकरण भी बदलेंगे। अभी भी जिन दस महानगरफालिकाओं के चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से फांच फर भाजफा‡ शिवसेना गठबंधन की ही सत्ता है। इसको कायम रखते हुए अन्य सीटों फर भी भाजफा शिवसेना गठबंधन जीत हासिल करेगा ऐसा विश्वास है। जिला फरिषद के चुनावों फर शहरी फ्रश्नों का या राष्ट्रीय मुद्दों का फ्रभाव नहीं होता है। वे फूर्ण रूफ से स्थानीय समस्याओं और स्थानीय व्यक्तियों फर आधारित होते हैं। फरंतु इस बार ग्राम स्तर फर भी जो असंतोष देखा जा रहा है उसका फ्रतिबिंब भी जिला फरिषद के चुनावों में दिखाई देगा। इसका फ्रभाव कब कहां कितना होगा यह भले ही अभी न कहा जा सकता हो फिर भी आरफीआय और अन्य संगठनों के साथ आने की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के समीकरण बदलने की भी उम्मीद है। इन चुनावों के जो फरिणाम होंगे उनका फ्रभाव सन 2014 में होनेवाले लोकसभा चुनावों तक दिखाई देगा इसलिए ये चुनाव अत्यंत महत्वफूर्ण हैं।
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