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विनियोग परिवार- गोरक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य

विनियोग परिवार- गोरक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य

by हिंदी विवेक
in मई-२०१२
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विनियोग परिवार जीवदया, जीवरक्षा, संस्कृति रक्षा के कार्य में पिछले 19 वर्षों से निरंतर संलग्न है। उनके प्रयत्नों से ही गोरक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम हुआ और कई राज्यों में गोरक्षा कानून बने। अन्य जीवों की रक्षा के भी प्रयास सतत चलते रहते हैं। वे संस्कृति की रक्षा के लिए भोगवादी संस्कृति के प्रति समाज जागरण में भी लगे हैं। विनियोग परिवार के अध्यक्ष श्री राजेंद्र जोशी के साथ हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश:‡

विनियोग परिवार की स्थापना कब हुई?

स्थापना तो 1992-93 में हुई, परंतु इसके संस्थापक अरविंदभाई पारेख सेवाभावना से यह कार्य गत 30-35 वर्षों से करते रहे हैं। संस्था का रूप तो 1992-93 में प्राप्त हुआ।

किस उद्देश्य से संस्था की स्थापना की गई?

संस्था स्थापना में मूल उद्देश्य हैं जीवदया, जीवरक्षा, संस्कृति रक्षा। जीवदया संस्कृति रक्षा का ही एक भाग है। इस संस्था को जैन धर्म संघ की बहुत सहायता है, इसलिए जीवदया, जीवरक्षा ये मूलभूत सिद्धांत हैं।

आपने इसमें गाय का विषय क्यों चुना?

जैन धर्मसिद्धांतों में अहिंसा मूलभूत तत्त्व है। चींटी से लेकर हाथी तक प्राणियों का इसमें समावेश होता है। हमारी अर्थव्यवस्था में गाय का अत्यंत महत्त्व है। गाय एक प्रातिनिधिक प्राणी है। हमारे दैनंदिन जीवन में इसका बहुत उपयोग होता है। इसलिए गाय के विकास पर ज्यादा जोर दिया गया है।

गत 50-100 वर्ष से गो-रक्षा अभियान जारी है। उसमें धार्मिक पहलू से युक्तिवाद किया जाता है। परंतु धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है इसलिए धार्मिक मुद्दों पर किए गए तर्कों का अधिक महत्त्व नहीं रहता। इसलिए हमने सोचा कि गाय का आर्थिक उपयोग बड़े पैमाने पर होता है, उन्हें शासन, जनसाधारण, न्यायालय के सामने यदि प्रस्तुत किया जाए तो उसे शीघ्रता से स्वीकार होगा।

यह आर्थिक दृष्टिकोण आप किसानों तक कैसे पहुंचाते हैं?

विनियोग परिवार की ओर से जनजागृति की जाती है। उसके लिए हम मुद्रित साहित्य प्रयुक्त करते हैं। निबंध, छोटी-छोटी पुस्तिकाएं काम में लाते हैं। इससे अब जागृति निर्माण हो रही है। गत 5-10-15 वर्षों में पंचगव्य पर आधारित औषधियां और बड़े-बड़े रोगों पर इनके उपचार सामने आ रहे हैं। गोबर के 10-12 उपयोग हैं ही। यह सारी जानकारी हम लोगों के सामने रखते हैं। धीरे-धीरे लोग स्वीकार भी कर रहे हैं।

विनियोग परिवार की संगठनात्मक रचना किस तरह है?

यह एक पंजीकृत ट्रस्ट है। देशभर में अनेक कार्यकर्ता कार्यरत हैं। हमारे साथ एक और संस्था जुड़ गई है। उसका नाम है अखिल भारत कृषि-गो सेवा संघ। गांधीजी ने 1930 में स्वत: इसकी स्थापना की थी। जब तक विनोबाजी थे, वे इस संगठन के संरक्षक थे। इसका मुख्य कार्यालय वर्धा में है। वर्तमान में केसरी सिंह मेहता इसके अध्यक्ष हैं। उन्होंने संपूर्ण देशभर, विशेषत: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात में एक टीम बनाई है जिसमें 1000 लोग हैं। अवैध मार्ग से कसाईखाने में ले जाई जानेवाली गायों की गाड़ियों को ये रोकते हैं। पुलिस में गुनाह दर्ज कराते हैं, न्यायालय में मामला प्रस्तुत करते हैं। मुक्त किए गए जानवरों को आसपास की गोशालाओं में अथवा पांजरपोल में आश्रय दिलाते हैं। संबंधित गोशाला की यदि उतनी क्षमता न हो, तो उसे आर्थिक सहायता भी पहुंचाते हैं।

आपके जो कार्यकर्ता हैं, उन्हें प्रशिक्षण देने की क्या व्यवस्था होती है?

केसरी सिंह मेहता अलग-अलग स्थानों का दौरा करते हैं। उन-उन स्थानों पर शिविरों का आयोजन करते हैं। कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। कानून का ज्ञान, पशुओं की मुक्ति के बाद करने की कार्यवाही भी समझाई जाती है। हम किसानों तक पहुंचकर भी जागरण करते हैं। गोबर से बनाए गए खाद की जानकारी व उपयोगिता समझाते हैं।

गो-रक्षण के इस कार्य के लिए आपके समाज की अन्य संस्थाओं के साथ कैसे संपर्क आता है?

सरकारी तंत्र के साथ संपर्क आता है। हिंदू संगठनों का हमें खूब समर्थन मिलता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल इत्यादि संस्थाओं की हमें मदद मिलती है। गोरक्षा विषय में बजरंग दल का उल्लेखनीय कार्य है। ये लोग अपने खुद के प्रकाशन में गोरक्षा का महत्व और उसके आर्थिक पहलू हमेशा प्रस्तुत करते ही रहते हैं।

आपका वितरित साहित्य पढ़कर क्या किसानों ने कोई प्रयोग किए हैं?

हमारा साहित्य पढ़कर उन्होंने प्रेरणा प्राप्त की ऐसा कहने के बदले उन्हीं के ही यशस्वी प्रयोग हम अन्य तक पहुंचाते रहते हैं। ये प्रयोग वे लोग साहित्य पढ़कर ही खुद की बुद्धि के उपयोग से करते हैं।

गोवंश रक्षण के लिए विनियोग परिवार ने कौन सा कार्य किया है?

यह कार्य त्रिविध होता है। एक तो संविधान के अनुसार गाय पूर्णतया सुरक्षित है। उसकी हत्या नहीं होती। अवैधानिक रीति से होती है परंतु उसे कानून का पूर्ण बंधन है। वैसा संरक्षण बैल, भैंस, बछडों को नहीं। प्राणी संरक्षण संविधान के अनुसार राज्य का विषय होने से हम राज्य शासन को प्रेरित करते हैं और गोहत्या प्रतिबंधक कानून बनवाने में अगुवाई करते हैं। कर्नाटक में संपूर्ण गोहत्या प्रतिबंध का कानून बनाने के लिए हमारे प्रयत्न चल रहे हैं। इस कार्य के तीन आयाम इस प्रकार हैं-

1) जहां संरक्षक कानून नहीं है, वहां कानून बनवाना।

2) जहां कानून है, परंतु उसमें से बचने के रास्ते निकाले गए हैं वहां उन रास्तों को बंद करवाना।

3) अवैध रीति से चल रही जानवरों की तस्करी रोकने का प्रयत्न करना।

जब राज्य सरकार अथवा मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल संपूर्ण गोहत्या प्रतिबंधात्मक कानून का निर्णय लेते हैं, तो हम वहां के विधि विभाग व प्राणी विभाग के विशेषज्ञों के साथ बैठकर प्राथमिक चर्चा करते हैं। उस कानून को प्रभावी रूप से अमल में लाए जाने की व्यवस्था होगी इसका भी ध्यान हम रखते हैं। राज्य सरकार के साथ संयुक्त रूप से हम काम करते हैं।

गुजरात सरकार ने संपूर्ण गोहत्या बंदी का जो निर्णय लिया उसमें विनियोग परिवार का मुख्य योगदान था। वह भूमिका सही रूप में क्या थी?

वर्ष 93 में गुजरात सरकार ने यह निर्णय ले लिया। गुजरात सरकार में गीताबेन रामाधिया नामक एक गोरक्षक थीं। कसाई ने दिनदहाड़े उनकी हत्या कर दी। संपूर्ण राज्यभर इस घटना का तीव्र विरोध हुआ। तब चिमणभाई पटेल (कांग्रेस) मुख्यमंत्री थे। उनके मंत्रिमंडल ने इन सारे दबाव के सामने नत होकर संपूर्ण गोहत्या बंदी का निर्णय ले लिया।

संविधान में गाय की हत्या पर संपूर्णतया बंदी है। परंतु जो पशु काम करने में अक्षम हो जाते हैं, बूढ़े हो जाते हैं, खेती, परिवहन, प्रजनन में किसी भी काम के नहीं रहते, ऐसे जानवरों की हत्या की जा सकती है। पांच न्यायाधीशों की समिति ने संविधान की इस व्यवस्था के बारे में 1958 में निर्णय लिया। 1992 में गुजरात शासन ने, जब यह कानून बनाया तब कसाइयों ने कानून का विरोध किया और हाईकोर्ट में गए। मध्य प्रदेश सरकार का इसी प्रकार का मामला सर्वोच्च न्यायालय में पड़ा था। इसलिए गुजरात सरकार के साथ हम पक्षकार के नाते जुड़ गए। सरकार को हमने समस्त युक्तिवाद दे दिया। हमने गुजरात शासन को बताया कि मध्य प्रदेश का एक मामला सर्वोच्च न्यायालय प्रलंबित है, इसलिए उसके अंतिम निर्णय तक यह निर्णय रोक रखें। 1995 में मध्य प्रदेश के कानून के बारे में निर्णय हुआ। यह निर्णय गोरक्षा के हित में हुआ। तुरंत गुजरात शासन ने 95 में यह निर्णय किया। गुजरात सरकार सर्वोच्च न्यायालय में जाने के लिए तैयार नहीं थी। शासन को प्रवृत्त किया और सुप्रीम कोर्ट में मामला पेश किया गया। गुजरात शासन, हम और एक जैन संगठन ने मिलकर 98 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया। 2005 में यह मामला बोर्ड पर आया। उस समय पांच न्यायाधीशों की समिति ने निर्णय दिया कि 1958 में कानून बना तब से अब तक लगभग 45 वर्ष बीत गए हैं। इस दौरान परिस्थिति बदल गई है। पशुओं की आयु मर्यादा व कार्यक्षमता बढ़ गई है, वैद्यकीय सुविधाएं बढ़ गईं। बाद में 5 न्यायाधीशों की समिति और उसके पश्चात 7 न्यायाधीशों की समिति बैठ गई। 5 दिन तक तीनों पक्षकारों ने अपना पक्ष पेश किया 5 दिन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया। 1958 के कानून में बदल करके पूर्ण गोहत्या बंदी के कानून का समर्थन किया। जो राज्य कानून लागू करने का इच्छुक होगा, उस राज्य में यदि कानून को चुनौती दी गई तो सुप्रीम कोर्ट का निर्णय शासन के पक्ष में रहेगा ऐसा निर्णय लिया गया। परंतु पूर्ण गोहत्या बंदी लागू करने का अधिकार राज्य शासन को दिया गया। वर्तमान परिस्थिति में 13 राज्यों में यह कानून लागू है। अन्य राज्यों में यह आंशिक रूप में है। यह कानून राज्य में लागू करने में मुख्य अड़चन इस मामले के दौरान दूर हो गई। बचने के रास्ते बंद हो गए।
विनियोग परिवार के विभिन्न कार्यों की जानकारी दीजिए।

एक तो पशुरक्षा तथा जीवदया का काम है। इसके अलावा मुंबई शहर में रास्तों पर रहने वाले कुत्ते हैं। उन्हें महानगरपालिका मार डालती थी। हमने इस बारे में हायकोर्ट में याचिका पेश कर दी। इन कुत्तों का निर्बिजीकरण होना चाहिए इसलिए हम प्रयत्न करते हैं। शासन के प्राणी संरक्षण विभाग ने ऐसे कानून बनाए कि इन्हें मारा न जाए उनका टीकाकरण करके उनकी संख्या घटाई जाए। इसी तरह विविध प्रयोगशालाओं, चिकित्सालयों आदि में पशुओं पर प्रयोग किए जाते हैं। विविध औषधियों के परिणामों का परीक्षण करने के लिए ये प्रयोग जाते हैं। इन पशुओं की देखभाल की व्यवस्था करना, प्रयोगों पर नियंत्रण रखना इसके लिए जो समिति है उसमें योग परिवार के सदस्य हैं।

विनियोग परिवार के कार्यकर्ताओं के बारे में बताइए।

6 ट्रस्टी हैं, बाकी तरुण कार्यकर्ता हैं। कोई चार्टर्ड एकाउंटेंट है, कोई वकील है। ये लोग अपनी-अपनी शिक्षा का उपयोग इस कार्य के लिए करते हैं। किसी भी प्रकार का फॉर्म अथवा शुल्क भर कर हम सदस्य नहीं बनाते। उसकी जरूरत ही नहीं प्रतीत होती। ट्रस्टियों में अरविंद भाई पारेख, मैं स्वयं, अतुलभाई शाह, केसरी सिंह जी मेहता, संजयभाई ऐसे प्रमुख ट्रस्टी हैं। इसके अलावा अतुलभाई शाह के साथ चार्टर्ड एकाउंटेंट, इंजीनियर की टीम है। केतनभाई मोदी हैं। जब कभी कानूनी बात आती है, तो उनका सहयोग रहता है। ऐसे बहुत लोग हैं।

विनियोग परिवार की स्थापना हुए 19 वर्ष बीते हैं। उसकी प्रमुख उपलब्धि क्या है?

एक तो गुजरात सरकार का 2005 में जो कानून बना वह महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुख्य है। दिल्ली में रोज 12,500 पशुओं का कत्ल होता था। कानून के आधार पर हमने उसे घटाकर 2500 करवाया है। मतलब 94 से प्रतिदिन 10,000 पशुओं की रक्षा हम करते आए हैं। बीते दिनों में इतने पशुओं को बचा सके। अकालग्रस्त दिनों में चारा उपलब्ध कराके हजारों, लाखों पशुओं की जान की रक्षा की। भूख से अथवा बूचड़खाने की मौत से हमने उन्हें बचाया।

प्राकृतिक संकट में जो घर टूटते हैं, भूकंप, बाढ़ में जिनके नुकसान हुए ऐसे 700-800 परिवारों का पुनर्वसन किया। विपदाग्रस्त मानव समुदाय तथा पशुओं के हित का काम विनियोग परिवार करता है।

देवनार पशुवध गृह के खिलाफ विनियोग परिवार ने कानूनी याचिका क्यों दायर की है?

महाराष्ट्र म्युनिसिपल एक्ट के अनुसार प्रत्येक शहर में एक कतलखाना होना जरूरी है। वह शहर में एक निश्चित जगह पर ही होता है। उस कतलखाने में उस शहर की मांस की जरूरत के अनुसार और सिर्फ शहर के लिए ही जानवर काटे जाते हैं। वहा दूसरे शहर के लिए जानवर काटने की अनुमति नहीं होती है। इसी क्रम से देवनार कतलखाना बना है, उसे मुंबई महानगर पालिका संचालित करती है।

लेकिन देवनार कतलखाने में जानवर कटाई के लिए महाराष्ट्र म्युनिसिपल एक्ट के तहत बनाए गए नियमों की धज्जियां उडाई जाती हैं। ठाणे और आसपास के शहरों के लिए अथवा शहर के बाहर से यहां जानवर लाकर भी यहां देवनार में काटे जाते हैं, जो 50 प्रतिशत से ज्यादा होता है। यह मांस व्यवसायिक लोग निर्यात के लिए व्यवसायिक दृष्टि से उपयोग मे लाते है।
पशुधन यह प्राकृतिक और राष्ट्रीय संपत्ति है, जिसका कृषि के लिए भी उपयो

ग होता है। मुंबई शहर की जरूरत से ज्यादा और उद्योगिक निर्यात की दृष्टि से पशुधन का काटे जाना गैरकानूनी है और राष्ट्रीय संपत्ति की लूट भी है। हमने इसके खिलाफ याचिका दाखिल की है। हमें पूरा विश्वास है कि हमारे पक्ष मे निर्णय होगा ।

विनियोग परिवार की भावी योजना क्या है?

केंद्रीय स्तर पर संपूर्ण गोहत्या बंदी का कानून बनाने की दृष्टि से हम प्रयत्नशील हैं। यदि वह बन सका तो एक मूलभूत कार्य सिद्ध होगा। उसके बाद पशु संरक्षण के कार्य में गति आएगी। संस्कृति रक्षा के क्षेत्र में भी भोगवादी संस्कृति का मुकाबला करने का प्रयत्न रहेगा। भोगवादी संस्कृति का आक्रमण रोकने का प्रयत्न जारी रहेगा।

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