पुट्पर्ती के श्री सत्य साईबाबा अपने-आप में एक चमत्कार थे। उन्होंने जनसेवा को जो विशाल रूप दिया उसकी कोई मिसाल नहीं है। स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम विकास, पेयजल आपूर्ति आदि क्षेत्रों में हुआ कार्य चकित करने वाला है। इस सेवा का एकमात्र उद्देश्य केवल जनता कल्याण था। सत्य साई कहते थे, दुनिया को ईश्वर प्रेम से भर दो, प्रेम का सेवा में परिवर्तन करो, जीव की शिव भाव से सेवा करो, प्रेमशून्य व्यक्ति भूमि का भार है। हमारा वेदांत, हमारा मानव धर्म, हमारा प्रकृति पे्रम, हमारी मानव सेवा का विचार इसी सनातन संदेश को देता रहा है। श्री सत्य साईबाबा ने प्रत्यक्ष कृति में लाकर दिखाया। मनुष्य में ईश्वर को देखने और ईश्वर की इस रूप में सेवा करने के विचार को उन्होंने बलवान बनाया। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी का यह चमत्कार ही है।
शैक्षणिक कार्य
बाबा जब दस साल के थे तभी उन्होंने अपनी माता ईश्वरम्मा को अपने पुट्टपर्ती गांव में बच्चों के लिए स्कूल खोलने का वचन दिया था। उसे उन्होंने पूरा किया। बाद में यह कार्य तेजी से बढ़ने लगा। 1968 में अनंतपुर में प्रथम महिला कॉलेज की स्थापना हुई। अगले ही वर्ष बंगलुर में और 1978 में पुट्टपर्ती में कॉलेज स्थापित किए गए। पुट्टपर्थी का कॉलेज गुरुकुल की अवधारणा पर आधारित है। देश में ही नहीं विदेशों में भी उनकी शिक्षा संस्थाओं का तेजी से प्रसार हुआ। विदेशों में कोई 45 सत्य साईं स्कूल हैं। भारत में भी लगभग उतने ही स्कूल हैं।
मेडिकल क्षेत्र में कार्य
चिकित्सा के क्षेत्र में बाबा का अद्भुत कार्य है। सब से पहले 4 अक्तूबर 1956 को श्री सत्यसाईबाबा जनरल अस्पताल का उद्घाटन बाबा के जन्म गांव पुट्टपर्ती में हुआ था। भक्तों ने श्रमदान कर इस अस्पताल का निर्माण किया था। फरवरी 1984 में अस्पताल को स्कूल के निकट विशाल इमारत में स्थानांतरित किया गया।
उन्होंने अत्याधुनिक सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की स्थापना की। इस अस्पताल में अत्याधुनिक उपकरण, 306 बिस्तर और 12 आपरेशन थिएटर हैं। यह से अस्पताल गरीबों के लिए वरदान साबित हुआ है। बाबा ने 22 नवम्बर 1990 को ऐसे अस्पताल की घोषणा की और ठीक एक साल बाद उसका उद्घाटन किया गया।
श्री सत्यसाई इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सायंसेस नामक दूसरे अस्पताल का उद्घाटन 19 जनवरी 2001 को बंगलुर में तत्कालिन प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। दुनिया के इस सब से बड़े अस्पताल में हृदयरोग व न्यूरो सर्जरी की चिकित्सा बिना किसी भेदभाव के की जाती है।
इसके अतिरिक्त श्री सत्यसाई सेवा संगठन झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीबों के लिए नि:शुल्क चिकित्सा सेवा देता है। कुछ गांव दत्तक लेकर मासिक चिकित्सा शिविर भी लगाए जाते हैं और मुफत दवाएं दी जाती हैं।
पानी परियोजना
रायलसीमा में बेकरी, अनंतपुर, कडप्पा व कुरनूल तहसीलें आती हैं। वहां पानी का हमेशा संकट रहा करता था। लोग कुंए के पानी पर निर्भर होते थे। इस पानी में फलोराइड़ का अंश अधिक होने से लोग अस्थि विकारों से पीड़ित हुआ करते थे। बाबा ने स्वच्छ जल आपूर्ति की यह चुनौती स्वीकार की।
परियोजना का विशाल काम था। इसमें पत्थर तोड़ना, व्यापक पैमाने पर खुदाई करना, दूर तक पाइप लाइन बिछाना, जल संग्रह के लिए रिजर्वायर बनाना, जल शुध्दिकरण के उपकरण स्थापित करना जैसे काम शामिल थे। मार्च 1995 में परियोजना पर युध्दस्तर पर काम शुरू हुआ और सालभर के भीतर ही अधिकांश महत्वपूर्ण काम पूरा हो गया। बाद के छह माह में सारा काम पूरा हो गया। 741 गांवों के दस लाख लोगों तक सालभर पानी की आपूर्ति करना एक चुनौतीभरा काम पूरा हुआ।
पहली परियोजना पूरी होने पर बाबा का ध्यान आंध्र के मेहबूबनगर व मेड़क जिलों पर गया। मेहबूबनगर में 141 गांवों को शुध्द पेयजल की आपूर्ति हुई। लगभग साढ़े चार लाख लोगों की सुविधा हुई। परियोजना पर 30 करोड़ से अधिक खर्च हुआ। मेड़क परियोजना से 179 गांवों को शुध्द पेयजल मिला और करीब साढ़े पांच लाख लोग लाभान्वित हुए।
चेन्नई को पानी की आपूर्ति करने वाली सरकारी योजना ‘तेलुगू गंगा’ विफल हुई। चेन्नई में पानी की समस्या विकराल हो गई। बाबा ने घोषणा की कि कृष्णा नदी का पानी लाने के लिए 150 किमी लम्बी नहर बनाई जाएगी और उसका सारा खर्च साई ट्रस्ट करेगी। परियोजना को सफल बनाने के लिए कंडेलेरूम में स्थापित रिजर्वायर में सुधार आवश्यक था। नहर अधिक गहरी और चौड़ी करना जरूरी था। नहर को आधुनिक तकनीक से मजबूत कर पानी का रिसाव रोकना था। 2002 को आरंभ यह परियोजना पूरी हुई। साई के इस महान कार्य के प्रति श्रध्दा व्यक्त करने के लिए आंध्र सरकार ने इस परियोजना का नाम बदल कर ‘साई गंगा’ कर दिया।
इसके बाद ट्रस्ट ने पूर्व व पश्चिम गोदावरी परियोजनाएं हाथ में लीं। उद्देश्य था इस इलाके में लोगों तक शुध्द जल पहुंचाना। ट्रस्ट ने ये दोनों परियोजनाएं समय पर पूरी कीं। 170 गांवों के आठ लाख लोग इससे लाभान्वित हुए।
ग्रामसेवा
सन 2000 में ग्राम सेवा परियोजना आरंभ हुई। इस परियोजना के अंतर्गत छात्रों के सहयोग से प्रति वर्ष 10 दिन ग्राम सेवा की जाती है। लगभग 100 गांवों के एक लाख लोगों को प्रसाद (अन्न) व वस्त्रों का वितरण किया जाता है। कार्यक्रम के पहले दिन शाम को भोजन पकाने की शुरुआत होती है, जो आधी रात तक चलता है। प्रसाद में हल्दी मिश्रित चावल यानी पुलीहारा, एक लड्डू व मीठा व्यंजन होता है। गांव पहुंचने पर छात्र हर घर जाकर प्रसाद व वस्त्रों का वितरण करते हैं। बाबा कहते थे, इस कार्यक्रम से छात्रों के मन में गरीबों के प्रति आस्था का निर्माण होता है। इससे वे जीवनभर गरीबों की सेवा में अपने को लगा देते हैं।
ग्राम सेवा योजना की पुनर्रचना से ग्राम एकात्मिकृत कार्यक्रम बनाया गया। इस कार्यक्रम के तहत परिवार को केंद्र बनाया गया है। चयनित गांव के हर परिवार और हर परिवार के हर सदस्य को शामिल करने के लिए ग्रामीणों की आवश्यकताओं की पहचान की गई। उन्हें पूरा करने के लिए साधनों का नियोजन, पूरे सेवा कार्य का दो से तीन वर्ष के लिए निगरानी की व्यवस्था और नियत अवधि के बाद उसकी समीक्षा शामिल है। इस योजना के तहत गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि, समाज जीवन, आध्यात्मिक साधना आदि पहलुओं में सुधार अपेक्षित है।
एकात्मिक ग्रामीण विकास के तीन सूत्र हैं शिक्षा व प्रज्ञाबोध, चिकित्सा व्यवस्था और सामाजिक जिम्मेदारी। शिक्षा व प्रज्ञाबोध के अंतर्गत सभी उम्र के बच्चों की शिक्षा शामिल है। व्यापक दृष्टि से देखें तो व्यक्ति को सभी दृष्टि से शिक्षित करने में प्रज्ञाबोध भी शामिल है। प्रज्ञाबोध हृदय से आता है इसलिए साधना का आविष्कार करना होगा। सत्य, धर्म, शांति, प्रेम, अहिंसा के मानवी मूल्यों का आविष्कार महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को शिक्षा और प्रज्ञाबोध के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहकर अपनी वाणी व बर्ताव से मानवी मूल्य प्रदर्शित करने चाहिए।
महिला हितों की रक्षा
ग्राम एकात्मिक कार्यक्रम में महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कई पहलुओं से विचार किया गया है। महिलाओं में साक्षरता, स्त्री शिक्षा से बालमृत्यु में कमी आती है। स्त्री शिक्षा से महिलाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। शिक्षित महिलाएं सामाजिक मुद्दों पर, पर्यावरण रक्षा पर अपने विचार अच्छे ढंग से रख सकती हैं। सार्वजनिक विचारविमर्श व संवाद को इससे सही दिशा मिल सकती है।
रोजगार
ग्रामों में रोजगार का सृजन जरूरी है। जीवन निर्वाह के लिए व्यक्ति को कुछ न कुछ रोजगार मिलना जरूरी है। यदि यह न हो तो उसे आय से परावृत्त करने जैसा होगा। तकनीकी ज्ञान, उत्पादकता, कामगार का शोषण, उत्पादन की मालकियत और उत्पादन के सामाजिक वितरण पर गरीबी का पैमाना निर्भर होता है। इस कार्यक्रम में इसमें बदलाव की दृष्टि से प्रयास किए गए हैं।
स्वास्थ्य रक्षण
स्वास्थ्य रक्षण के क्षेत्र में कृति योजना महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत दस वर्ष तक के बच्चों के लिए कुछ प्रावधान किए गए हैं जैसे कि बीमारी और संसर्गजन्य रोगों के प्रति सुरक्षितता, कुपोषण की जांच, निश्चित अंतराल से दंतचिकित्सा, नेत्र चिकित्सा शामिल है। नवजात शिशु, विकलांग, वयोवृध्द नागरिक आदि के लिए चिकित्सा प्रावधान जरूरी है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए चिकित्सकीय जनगणना, शिविर, विभिन्न माध्यमों से साफसफाई, प्रतिबंधक दवाएं व सामाजिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता निर्माण करना जरूरी है। इसके लिए ग्राम स्तर पर समन्वय जरूरी है।
मूल्य विचार
विकास यानी केवल आर्थिक घटना नहीं है। बहुआयामी प्रक्रिया में मानवीयता की रक्षा के लिए सांस्कृतिक श्रध्दा, रीतिरिवाज, भूतदया का संवर्धन आदि घटक हैं। इस दृष्टि से भारतीय संस्कृति, अध्यात्मिकता का इस कार्यक्रम में समावेश है।
बाबा ने मानवी जीवन को भजनानंद का महामंत्र दिया और भक्तों को करीब ले आए। उन्होंने प्रशांति विव्दन्महासभा की स्थापना वेदशास्त्र, पुरान, रामायण, महाभारत व अन्य धर्मग्रंथों के अध्ययन को बढ़ावा दिया। बाबा के मुख्यालय प्रशांति निलयम में ओंकार, सुप्रभातम स्त्रोत्र व नगर संकीर्तन से दिन की शुरुआत होती है।
‘सत्य साई सेवा समिति’ में सेवा नाम का विशेष महत्व है। बाबा कहते थे, ‘सेवा’ साधना है। सेवा से समाज परिवर्तन हो या न हो, लेकिन व्यक्ति में अवश्य परिवर्तन होगा। सेवक के मन से अहंकार दूर होता है। करुणा और त्याग जैसे दो नेत्र प्राप्त होते हैं। प्रेम की वाणी का लाभ होता है।
बाल विकास कार्यक्रम के तहत निम्न पांच बातें सम्मिलित की गई है स्त्रोत्र पठन व प्रार्थना, भजन व समूह गान, बोधकथा कथन व स्वामी का संदेश, जाप व ध्यान, सामूहिक कार्यक्रम व सामाजिक सेवा कार्य। बाल विकास केवल कुछ अवधि का पाठ्यक्रम नहीं है, अपितु एक विशिष्ट लाभदायक जीवनपध्दति है। बाबा हमेशा कहते थे
हृदय में धर्म (सदाचार) हो
तो चरित्र में सौंदर्य होगा
चरित्र में सौंदर्य होगा तो
घर में एकता रहेगी
घर में एकता हो तो
राष्ट्र में सुव्यवस्था होगी
जब राष्ट्र में सुव्यवस्था होगी तब
दुनिया में शांति रहेगी।
इस तरह बाबा के सेवा कार्य का लक्ष्य दुनिया में मानव कल्याण है।