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उद्योजक सेवा पुरुष मिलिंद कांबले

उद्योजक सेवा पुरुष मिलिंद कांबले

by रवीन्द्र गोले
in मई-२०१२, सामाजिक
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‘नौकरी करने के लिए नहीं, नौकरी देने के लिए हम पैदा हुए हैं। उद्योग में सफलता प्राप्त करें। अपना छोटा‡बड़ा उद्योग स्थापित करें और सफल बनें। सम्मान से जीयें। नौकरी मांगते रहने की अपेक्षा नौकरी देने वाले बनें।’ यह संदेश है श्री मिलिंद कांबले का।

1991 में वैश्वीकरण के कारण हमारे देश में सभी क्षेत्रों में क्रांति हुई। नई प्रौद्योगिकी के साथ परम्परागत उद्योग बंद होने लगे अथवा वैश्वीकरण की दौड़ में वे टिक नहीं पाए। इसका विपरीत प्रभाव परम्परागत व्यवसाय करने वाले समाज पर, दलितों पर, वंचित घटकों पर हुआ। लेकिन संकट को अवसर मान कर आगे कदम रखने वाले भी बहुत होते हैं। ऐसे लोगों का संगठन बनाकर श्री मिलिंद कांबले आज देशभर में ‘डिक्की’ का संजाल बना रहे हैं। इस संगठन के माध्यम से दलित समाज के युवकों को उद्योग प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और उनके उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने का काम होता है।

दलित उद्यमियों की क्षमता और कौशल्य समाज के सामने पेश करने के उद्देश्य से श्री कांबले ने 2010 में पुणे में और 2011 में मुंबई में ‘दीप एक्सपो’ का आयोजन किया था। उन्होंने 2004 में ‘दलित इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज’ (डिक्की) नाम से संस्था का गठन किया। संगठन का लक्ष्य दलित समाज में उद्यम की चेतना जगाना और नए उद्यमी खड़े करना है। इस संस्था की स्थापना के पीछे एक सामाजिक कारण भी है। 2003 के आसपास निजी उद्यमों में दलित समाज को आरक्षण देने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हुआ था। उस समय बड़े‡बड़े उद्योग समूहों ने कहा था कि ‘हम जाति नहीं जानते। हम गुणवत्ता को मानते हैं। जो अपनी गुणवत्ता साबित करेंगे उन्हें हम अवसर देंगे।’ यह गुणवत्ता और क्षमता को साबित करने के लिए दलित समाज आगे आए इसलिए इस संस्था की स्थापना की गई। दलित समाज में उद्यमियों का सृजन करना इसका लक्ष्य है।

श्री मिलिंद कांबले लातूर जिले के चोबली गांव के निवासी हैं। नांदेड के इंजीनियरिंग कॉलेज से अध्ययन पूर्ण करने के बाद उन्होंने अ. भा. विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में तीन वर्ष काम किया। सामाजिक समरसता और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर उनकी श्रध्दा के विषय हैं। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के प्रति श्री मिलिंद कांबले की असीम भक्ति है। इसी कारण सन 2001 में उन्होंने ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर डॉट कॉम’ नामक वेबसाइट बनाई। इस वेबसाइट का लोकार्पण तत्कालिन प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों हुआ था। अ.भा. विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने सामाजिक समरसता मंच और अ. भा. विद्यार्थी परिषद व्दारा आयोजित ‘फुले‡आंबेडकर संदेश यात्रा’ के अवसर पर सम्पूर्ण महाराष्ट्र में 4700 किमी की यात्रा की थी।

श्री मिलिंद कांबले का दृढ़निश्चय था कि, नौकरी नहीं करूंगा, उद्यमी ही बनूंगा। पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में थम जाने पर उन्होंने पुणे में अपने एक मित्र की सहायता से भवन निर्माण व्यवसाय आरंभ किया। पहला काम मिला बृहन्महाराष्ट्र चेम्बर ऑफ कॉमर्स महाविद्यालय की कम्पाउंड दीवार बनाने का। काम आरंभ हुआ और फिर श्री कांबले ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जिस प्रकार का लक्ष्य था वैसी लगन भी थी। कोई भी काम मन लगाकर और गुणवत्तापूर्ण करने की वृत्ति है। इससे उन्हें काम मिलता चला गया। कृष्णा घाटी विकास परियोजना के अंतर्गत कई बांधों का काम शुरू हुआ। बांध व नहरें बनाने वाली कई प्रसिध्द कम्पनियां ये काम करने लगीं। ‘मिश्रा एसोसिएट्स’ उनमें एक थी। श्री मिलिंद कांबले इस कम्पनी के सब‡कांट्रेक्टर बन गए। ‘पिंपलगांव जोगे बायीं नहर’ का एक करोड़ रु. का काम उन्होंने सालभर में पूरा किया। बाद के काल में कोंकण रेलवे, पुणे‡मुंबई एक्सप्रेस वे का घाट सेक्शन, खंबाटकी सुरंग इत्यादि काम उन्होंने पूरे किए। इस तरह 70 करोड़ रु. के टर्नओवर वाली ‘मिश्रा एसोसिएट्स’ के वे भागीदार बन गए। उनका कहना है कि ‘सब‡ कांट्रेक्टर से पार्टनर’ तक की उनकी यात्रा केवल गुणवत्ता व कार्यक्षमता के कारण ही हो सकी।

सन 2005 में श्री कांबले ने ‘फार्च्यून कंस्ट्रक्शन’ नामक अपनी कम्पनी शुरू की। इस कम्पनी का टर्नओवर 2 करोड़ रु. का है और पुणे इलाके में उसे प्रतिष्ठित कम्पनी का गौरव प्राप्त है। इस प्रगति के बारे में वे कहते हैं, ‘चुनौती स्वीकार करें, मेहनत करें, सफलता आनेआप आप तक चलकर आएगी। निरंतर कड़ी मेहनत से कोई भी चुनौती पूरी की जा सकती है।’ श्री कांबले को अब भी संतोष नहीं है। वे कहते हैं, ‘मेरे बहुत बड़े सपने हैं। उनका पूरा होना अब शुरू हो गया है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुझे और बहुत समय जूझना पड़ेगा।’

अपने उद्यम में सफल होने पर लोग अमुमन समाज से दूर हो जाते हैं। अपने में उलझ जाते हैं और सामाजिक कर्तव्यों के प्रति अनदेखी करते हैं। मिलिंद कांबले इसके अपवाद हैं। उन्हें अपने उद्यम में सफलता पाते समय समाज की व्याप्त दुरावस्था और दैन्य भी दिखाई दे रहा था। अपने दीन, हीन, वंचित समाज बंधुओं के प्रति उनके दिल में कचोट थी। इसी कारण ‘डिक्की’ की स्थापना का उन्होंने निर्णय किया। दलित समाज के उद्यमियों को भारतीय उद्योगों के मुख्य प्रवाह में शामिल किया जाना चाहिए यह श्री कांबले की भूमिका है। वे कहते हैं, ‘दलितों की समस्याएं दुहरी हैं। पहली यह कि दलित होने से अस्पृश्यता की आंच वे सह चुके हैं। अब भी यह समाज असहाय, वंचित, गरीब है। उनमें आत्मसम्मान जागृत कर उन्हें खड़ा करना होगा। दूसरा पहलू यह है कि सभी परम्परागत व्यवसाय दलित समाज के पास थे। कला थी, कौशल्य था। लेकिन वैश्वीकरण के दबाव से ये परम्परागत व्यवसाय अब खत्म हो रहे हैं। इस दोहरी समस्या पर विचार करें तो कठोर परिश्रम और उद्यमशीलता के संवर्धन के बिना और कोई विकल्प दिखाई नहीं देता। इसीलिए मैंने डिक्की की स्थापना की।’

डिक्की के माध्यम से श्री कांबले ने युवकों के लिए विभिन्न योजनाएं तैयार की हैं। भारत में युवाओं की संख्या काफी है। श्री कांबले डिक्की के जरिए उनका मार्गदर्शन करते हैं। नया उद्योग आरंभ करने के लिए प्राथमिक जानकारी, योजनाएं, संबंधित संस्थाएं, वित्त पोषण करने वाली संस्थाएं आदि जानकारी युवकों को उपलब्ध है। दलित उद्यमियों को संगठित करने और सरकार की ओर से सहायता पाने की कोशिश की जाती है। सम्पूर्ण महाराष्ट्र में विभिन्न जिलों में 1500 से अधिक दलित उद्यमी डिक्की के सदस्य हैं। इस संस्था का नाम अब राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लिया जाने लगा है। इस संबंध में श्री कांबले ने कहा, ‘डिक्की के माध्यम से हम भले ही दलित उद्यमियों को संगठित कर रहे हैं, फिर भी हमारा मुख्य उद्देश्य दलित समाज के आर्थिक सशक्तिकरण का है। यदि तेजी से आर्थिक सशक्तिकरण करना हो तो औद्योगिक क्षेत्र में कदम रखने के सिवा विकल्प नहीं है।’

अपने समाज बंधुओं के लिए डिक्की की स्थापना करने वाले श्री कांबले डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के सपनों का समाज खड़ा करना चाहते हैं। ‘सम्पूर्ण समाज एक है, सभी लोग समान हैं’ यह महज सिध्दांत नहीं है, लेकिन आचरण में लाने की चीज है। जब तक सभी स्तरों पर समानता का अनुभव नहीं होता तब तक सभी दिशाओं से जोरदार प्रयास करने की जरूरत है। सामाजिक समता और सामाजिक समरसता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। समता का संबंध व्यवहार से है तो समरसता हृदय परिवर्तन का अस्त्र है। इन दोनों बातों के आधार पर श्री कांबले नई समाज रचना के लिए प्रयत्नशील हैं। पिछले पांच‡छह वर्षों में डिक्की के माध्यम से श्री कांबले ने जो ऊंची उड़ान भरी है, वह उल्लेखनीय है। समाज का विकास करते समय, संगठन करते समय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों का अधिष्ठान मानकर कृति करने वाले श्री कांबले को उनके कार्यों के लिए शुभकामनाएं!

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