एक उपभोक्ता के तौर पर यह जरूरी है कि हम अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझें। हमें अपने हितों के प्रति उत्साही और चौकन्ना रहना चाहिए। यदि हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और उत्साही नहीं हैं तो उपभोक्ता अदालतें हमारी मदद नही करेंगी।
ध्यान रहे कि जब भी हम कोई सामान या सेवा शुल्क देकर खरीदते हैं तो हम उपभोक्ता होते हैं। समाज में रहने वाला हर व्यक्ति किसी न किसी सामान या सेवा का उपभोक्ता होता है। ग्राहक के तौर पर जब एक आम आदमी बाजार में जाता है तो प्राय: वह खुद को असहाय पाता है। उसे लगता है कि उसके हक में कोई नियम-कानून है ही नहीं। वह सोचता है कि जो बात दुकानदार बोले वही कानून है जबकि वस्तुस्थिति यह है कि अब उपभोक्ता राजा है। उसके हितों की रक्षा के लिए दर्जनों कानून बनाये गये हैं। यदि वह समुचित सावधानी बरते और अपने अधिकारों का उपयोग करने लगे तो सेवा और माल बेचने वालों की मनमानी काफी हद तक रुक सकती है। यदि हम कोई सामान खरीदते हैं तो हमारी शिकायतें उसकी गुणवत्ता, मूल्य, माप, वजन, तथा बिक्री बाद की सेवाओं के संबंध में होती है। इसी तरह यदि हम किसी सेवा के उपभोक्ता हैं तो हमारी शिकायतें सेवा की गुणवत्ता, कीमत तथा शिष्टाचार से संबंधित होती हैं। आपको अपने शिकायत करने के अधिकार का प्रयोग करने में तत्परता दिखानी चाहिए। जब भी आपको अच्छा सामान न मिले, कीमतें बढ़ी चढ़ी हों, माप-तौल में गड़बड़ी हो, वस्तु की शुद्धता में या उसमें मिलावट की शंका हो, यदि आपको हल्का या नकली सामान मिले, यदि आपको अच्छी सेवा सुविधा न मिले तो शिकायत कीजिए।
जब भी आप कोई सामान खरीदते हैं सही वजन पर जोर दें। संदेह होने पर वजन और माप करने के उपकरणों पर प्रमाणीकरण स्टैंप की जांच करें। धोखाधड़ी रोकने के लिए अपने घर आकर अपने किचन तराजू पर वजन करें। कम वजन और माप संबंधित शिकायत अपने राज्य के विधिक माप पद्धति नियंत्रक, अपने जिलों या शहर के विधिक माप पद्धति नियंत्रक से करें। अपने शिकायत की प्रति निदेशक विधिक माप पद्धति नई दिल्ली को भी भेंजे। इसका पता है- निदेशक, विधिक माप पद्धति निदेशालय, खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय, 12 ए, जामनगर हाऊस, अकबर लेन, नई दिल्ली-110011।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब भी कोई सामान खरीदते हैं बिल जरूर लें। बिल के अभाव में किसी भी तरह का विवाद होने पर आप यह साबित ही नहीं कर पाएंगे कि आपने किस दुकान से और किस कीमत पर सामान खरीदा था। दुकानदार साफ-साफ कह देगा कि आपने उसके यहां से सामान खरीदा ही नहीं था।
खाद्य पदार्थ खरीदते समय जहां तक संभव हो डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ ही खरीदें। डिब्बाबंद जो भी सामान खरीदते हैं उस पर उत्पादक का नाम और पता, सामान की शिनाख्त करने वाला ट्रेड मार्क, शुद्ध मात्रा, मूल्य, उत्पादन की तारीख आदि बातें लिखी होनी चाहिए। आईएसआई, एम मार्क या एफपीओ मार्क आदि वस्तुओं की गुणवत्ता-प्रमाणित करते हैं। ज्यादा अच्छा होगा कि ग्राहक ऐसी हो वस्तुएं खरीदें जिन पर कि इस तरह के चिह्न अंकित किए गए हों। यदि आईएसआई मार्क वाले उत्पाद के संबंध में कोई शिकायत हो तो महानिदेशक, भारतीय मानक ब्यूरो, मानक भवन, 9 बहादूरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002 को लिखें। मक्खन, शहद, मिर्ची, काली मिर्च आदि एगमार्क वाले कृषि उत्पादों में कोई भी शिकायत होने पर कृषि विपणन सलाहकार, भारत सरकार, केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड, फरीदाबाद- 121001 से शिकायत करें।
यदि खरीदे गये सामान में कोई गड़बड़ी होती है तो दुकानदार से तत्काल लिखित शिकायत करें। इस शिकायत की एक प्रति स्थानीय उपभोक्ता संगठन को भी भेजें। शिकायत के साथ बिल की एक जिरोक्स प्रति भी जोड़ें। ध्यान रहे कि बिल की मूल प्रति अपने पास सुरक्षित रखें। अदालत में सुनवाई के समय मूल प्रति की जरूरत पड़ सकती है। शिकायत की प्रति दुकानदार को देने के बाद उससे एकनॉलेजमेंट जरूर ले लें। यदि वह एकनॉलेजमेंट नहीं देता है तो उसे अपनी शिकायत रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजें। एक बार शिकायत करने के बाद चुपचाप न बैठ जाएं। मामले को अंत तक ले जाएं।
यदि सामान खरीदने के बाद आप पाते हैं कि सामान में कोई गड़बड़ी है तो पहले उस स्टोर से संपर्क करें जहां से आपने सामान खरीदा है। स्टोर में बिक्री करने वाले व्यक्ति से सामान की त्रुटि के बारे में शिकायत करें। यदि वह आपकी बात पर ध्यान नहीं देता है तो स्टोर प्रबंधक से मिलें। संभव है कि स्टोर प्रबंधक आपको उत्पादक से शिकायत करने की सलाह दे। यह भी संभव है कि स्टोर प्रबंधक आपकी शिकायत पर संतोषजनक कार्रवाई न करे। ऐसी स्थिति में आप सीधे उत्पादक कंपनी
के शीर्ष अधिकारी को लिखें। उत्पादक कंपनी के प्रबंध निदेशक, चेअरमैन या अध्यक्ष का नाम टेलीफोन डायरेक्टरी या चेम्बर ऑफ कॉमर्स से प्राप्त कर सकते हैं। उत्पादक को पत्र हमेशा रजिस्टर्ड ए डी से ही भेजें।
आपके पत्र पर यदि उत्पादक महज क्षमा प्रार्थना करता है या निरर्थक उत्तर देता है तो उसे फिर से पत्र लिखें। इस बार थोड़ा सख्ती से लिखें। पत्र, रजिस्टर्ड ए डी से ही भेजें। शिकायत की प्रति संबंधित संगठनों को भी भेजें।
यदि इन सबसे आपकी समस्या हल नहीं होती है तो आप समुचित उपभोक्ता अदालत में दस्तक दे सकते हैं। छोटी-मोटी बातों पर उपभोक्ता अदालत मे शिकायत न करें। जब आपकी शिकायत सुस्पष्ट और आवश्यक हो तभी उपभोक्ता अदालत में दस्तक दें। जहां तक संभव हो व्यक्ति के खिलाफ शिकायत करने के बदले प्रणाली के बारे में शिकायत करें क्योंकि प्रणाली में सुधार ज्यादा महत्वपूर्ण है। जिससे आपकी शिकायत है उसे अपनी बात स्पष्ट करने का पूरा मौका दें। उसके जवाब से असंतुष्ट होने पर हो उपभोक्ता अदालत मे दस्तक दें।