बाज़ारवाद के इस दौर में क्या ग्राहक वाकई राजा है?

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आज हम जिस दौर में जी रहे हैं वो है बाज़ारवाद और उपभोक्तावाद का दौर। अब पहला प्रश्न यह कि इसका क्या मतलब हुआ? परिभाषा के हिसाब से यदि इसका अर्थ किया जाए तो वो ये होगा कि आज उपभोक्ता (यानी किसी भी वस्तु का उपयोग करने वाला) ही राजा…

जागरूक उपभोक्ता ही है विकास का प्रतीक

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अर्थ चिंतन की पूंजीवादी अवधारणा में यह स्वीकार्य था कि समाज में उपभोक्ता ही राजा होते हैं क्योंकि इनकी रूचि, पसंद और मांग ही पूरी अर्थव्यवस्था की दिशा तय करने में निर्णायक होती है। इस स्थिति को अमेरिका के विलियम हेराल्ड हट ने पहली बार 'उपभोक्ता की सार्वभौमिकता' शब्द से…

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस: ग्राहक जानें अपना अधिकार

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  इस दुनिया में इस्तेमाल करने योग्य लाखो सामान है जिसे कंपनी या फिर कारखानों में तैयार किया जाता है और फिर उसे आम जनता अपने इस्तेमाल के लिए खरीदती है। सामान को तैयार करने वाले की लागत और लाभ से लेकर दुकानदार के लाभ के साथ सभी पैसे खरीदने…

राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस

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विश्व स्तर पर काम करनेवाले जागतिक संगठनों में ग्राहकों का प्रतिनिधित्व करनेवाले स्वैच्छिक संस्थाओं के एक विश्व संगठन की जरूरत महसूस की जाने लगी।

उपभोक्ता अदालतें और हम

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एक उपभोक्ता के तौर पर यह जरूरी है कि हम अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझें। हमें अपने हितों के प्रति उत्साही और चौकन्ना रहना चाहिए। यदि हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और उत्साही नहीं हैं तो उपभोक्ता अदालतें हमारी मदद नही करेंगी।

उपभोक्ता कानून के तहत न्याय व्यवस्था

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उपभोक्ताओं को शीघ्र और सस्ते में न्याय दिलाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के तहत तीन स्तर पर न्यायिक मशीनरी यानी उपभोक्ता अदालतें स्थापित की गई हैं।

हर कोई हर समय ग्राहक होता है

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ग्राहक कार्यकर्ताओं और संगठनों के दबाव पर ग्राहक हित में ग्राहक संरक्षण कानून, 1986 लागू हुआ है। यह एक क्रांतिकारी कानून है, जिसमें उपभोक्ताओं को शोषण से मुक्ति के प्रावधान हैं। उनके अधिकारों को सुरक्षा मिली है। इस कानून ने इस वर्ष अपनी रजत जयंती पूरी की है।

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