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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की भरसक पहल

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की भरसक पहल

by कर्नल सारंग थत्ते
in जनवरी २०१९, देश-विदेश
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रक्षा के क्षेत्र में पहली बार स्वदेश में साजोसामान के उत्पादन पर बल दिया जा रहा है और जहां संभव है उन आयातों को रोक दिया गया है। रक्षा उत्पादन निरंतर विकसित होने वाला क्षेत्र है। इसलिए हमें भी नित नए प्रयोग कर व निजी क्षेत्र को भी साथ लेकर चलना होगा, तभी इस क्षेत्र में कुछ हद तक आत्मनिर्भरता प्राप्त हो सकेगी।

अंतरराष्ट्रीय संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट, (सिपरी) की मई 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने विश्व में सर्वाधिक रक्षा सामान आयात करने का तमगा हासिल किया है। इस पर हमें गर्व करना चाहिए या नही यह हम पर निर्भर है। इस समय देश के आसपास मंडराता ख़तरा और उससे निबटने के लिए जरूरी रक्षा साजोसामान, गोलाबारूद, मिसाइल, लड़ाकू जहाज़, पनडुब्बियां, संचार के बेहतर विकल्प और तोपों की जरूरत पर सरकार ने पिछले वर्षों में तवज्जो दिया है। इसी वजह हमने बेहद जरूरी रक्षा सामान को विश्व बाजार से खरीदा है, इसीलिए हम विश्व में नंबर वन रक्षा आयातक बन गए थे। आर्टिलरी की तोपें पुरानी हो चुकी हैं, जिन्हें बदलना बेहद जरूरी हो गया था। भारत का रक्षा खर्च 3.1 प्रतिशत बढ़कर 66.5 बिलियन डॉलर हुआ। 14 लाख की सेना और 20 लाख के सेवानिवृत्त पेंशनर के लिए रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल होता है। आने वाले समय में लगभग 100 बिलियन डॉलर की जरूरत हमें अपनी सेना को नए कलेवर में लाने में जुटानी पड़ेगी।

हमें आत्मनिर्भर होना ही होगा!

भारतीय रक्षा मंत्रालय ने विगत दिनों में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए रक्षा क्षेत्र में ’आत्मनिर्भर भारत’ को तव्वजो दिए जाने के लिए बड़ी घोषणा कर दी है। देश में रक्षा उपकरणों का उत्पादन बढ़ाने के लिए 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगाई गई है। इन वस्तुओं में बड़ी तोपों से लेकर मिसाइल तक शामिल हैं। इसका मकसद रक्षा उपक्रमों को यह बताना है कि रक्षा मंत्रालय को किन-किन चीजों की जरूरत है और वे इसके लिए स्वयं को तैयार करें। रक्षा मंत्रालय ने कई दौर की बातचीत के बाद ही यह लिस्ट तैयार की है। यह एक ऐतिहासिक निर्णय है और इसके कई आयाम हैं जिन्हे समझना जरूरी है।
101 रक्षा उपकरणों के आयात पर लगे इस नए प्रतिबंध के चलते सरकार को अनुमान है कि अगले पांच से सात वर्षों के भीतर स्वदेशी घरेलू उद्योग में लगभग 4 लाख करोड़ रुपये के अनुबंध किए जाएंगे। अनुमानित तौर पर इसमें से सेना और वायु सेना के लिए लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये के उपकरण और 1.4 लाख करोड़ रुपये के उपकरण नौसेना के लिए होंगे। मंत्रालय ने 2020-21 के पूंजी खरीद बजट में घरेलू और विदेशी पूंजी खरीद के लिए भी बंटवारा किया गया है। चालू वित्त वर्ष में घरेलू पूंजीगत खरीद के लिए लगभग 52,000 करोड़ रुपये का एक अलग बजट बनाया गया है। पिछले कई वर्षों से स्वदेशी मेक इन इंडिया नारे के अंतर्गत रक्षा संयत्रों में भारतीयता को लाने का जिम्मा आगे बढ़ाने का निर्णय सरकार ने लिया है। मेक इन इंडिया का शेर पिछले कुछ सालों में ज़्यादा दहाड़ नहीं मार सका। इसके चलते पिछले तीन सालों में भारत विदेशों से रक्षा सामग्री की खरीद फरोख्त करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा था।

बड़े सवाल उभर कर सामने उठते हैं कि विश्व के कई देशों में सुरक्षा को लेकर असहज होने के सिवाय दूसरा चारा नही है। देशों को अपने आसपास खतरा मंडराता नजर आता है और उससे बचने के लिए अपने देश के रक्षा और सुरक्षा खर्च में हर साल बढ़ोतरी होती रही है। मानवता के लिए इस किस्म का खर्च जबरन हो रहा है। देशों को मिल बैठकर अब सोचना होगा कि इतने हथियार और सेना में क्या कटौती हो सकती है? सरकार के सामने यह विकल्प एक चुनौती ही माना जा रहा था। अब जो निर्णय लिए गए हैं उनका उद्भव इसीका नतीजा है। हम विश्व के दूसरे देशों पर रक्षा सामग्री खरीदने में निर्भर है तथा हमें आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है।

यह नई पहल रक्षा मंत्रालय की रक्षा खरीद नीति के मसौदे को प्रकाशित करने के एक सप्ताह के बाद सामने आई है। इस मसौदे में भारतीय रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2025 तक रक्षा विनिर्माण में 1.75 लाख करोड़ रुपये (25 अरब डॉलर) के कारोबार का अनुमान लगाया है। भारत शीर्ष वैश्विक रक्षा कंपनियों के लिए सबसे आकर्षक बाजारों में से एक है, यह अब स्थापित सत्य है। पिछले आठ वर्षों से भारत सैन्य साजोसामान के शीर्ष तीन आयातकों में शामिल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय सशस्त्र बल अगले पांच वर्षों में 130 अरब डॉलर की खरीद करने वाले हैं। ऐसे में नई नीति का कितना असर इस सब पर पड़ेगा इसका आकलन भी आने वाले कुछ महीनों में इस वर्ष की देनदारी के पश्चात सामने आएगा।

आत्मनिर्भर भारत का प्रारूप आने वाले समय में रक्षा विनिर्माण कंपनियों को अपनी उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण बल प्रदान करेगा। लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (बीईएल) और कोचीन शिपयार्ड (सीएसएल) जैसी कंपनियां आर्टिलरी सिस्टम, मिसाइल सब-सिस्टम, एयरोस्पेस, रडार, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम, शिपबिल्डिंग, आदि जैसे उत्पादों में मजबूत स्वदेशी क्षमताओं के साथ नज़र आने की संभावना है। इसके अलावा भारत डायनेमिक्स (बीडीएल), हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स (एचएएल), बीईएमएल, महिंद्रा डिफेंस सिस्टम (एमडीएसएल), टाटा एडवांस सिस्टम्स (टीएएसएल) जैसी कंपनियों को अपने विभिन्न उत्पादों के लाभ के लिए कदम लेने होंगे। अभी तो यह उम्मीद की ही जानी चाहिए कि लंबे समय में उठाए गये इन कदमों से देश को लाभ ही होगा।

हालांकि इस सूची का स्वरूप काफी सरल एवं सकारात्मक नजर आता है, लेकिन तेजी से स्वदेशीकरण के मामले में जमीन पर निष्पादन, ऑर्डर करने में तेज़ी, जो आमतौर पर थोड़ा अधिक समय लेता है और देरी हो जाती है। रक्षा पूंजी व्यय के लिए सरकार व्दारा धन का आवंटन और कार्यशील पूंजी प्रबंधन को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण निगरानीकर्ता के कार्य को भी तवज्जो देना होगा। तभी हमें आने वाले समय में वांछित परिणाम मिलेंगे। मीडिया में मौजूद जानकारी के अनुसार इस सूची की 101 वस्तुओं में से एक तिहाई से अधिक में एलएंडटी की उपस्थिति है – जिसमें पनडुब्बी, जहाज, मिसाइल लांचर, रडार और तोपखाने जैसी कुछ प्रमुख वस्तुएं शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में एल एंड टी ने क्षमताओं का निर्माण किया है और सेना और नौसेना की जरूरतों में निवेश किया है, जो लगभग 2.6 लाख करोड़ रुपये के स्वदेशीकरण का अवसर प्रदान करता है।

प्रतिबंधित सूची

इस नई नीति के अंतर्गत रक्षा उपकरण एवं प्रणालियों, जिस पर रोक लगाई गई है, की सूची लंबी है लेकिन 101 उपकरणों में से अहम है -हाईटेक हथियार जैसे आर्टिलरी तोपें, असॉल्ट राइफलें, कोरवेट्स, सोनार सिस्टम, परिवहन विमान, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (एलसीएच), रडार समेत रक्षा सेवाओं की कई अन्य जरूरी वस्तुएं, पहियों वाले बख्तरबंद लड़ाकू वाहन (एएफवी), पनडुब्बियां टोएड आर्टिलरी तोपें, कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, क्रूज मिसाइलें, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, अगली पीढ़ी के मिसाइल पोत, फ्लोटिंग डॉक, पनडुब्बी रोधी रॉकेट लॉन्चर, कम दूरी के समुद्री टोही विमान हल्के रॉकेट लॉन्चर, मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, मिसाइल डेस्ट्रॉयर रॉकेट, दृश्यता की सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें अस्त्र एमके1, जहाजों पर लगने वाली मध्यम श्रेणी की तोपें।

स्वदेशी क्षमता का विकास

आत्मनिर्भर भारत रक्षा क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। भारतीय रक्षा उद्योग को इस सूची में शामिल वस्तुओं का अपने स्वयं के डिजाइन व विकास क्षमताओं का उपयोग करके या डीआरडीओ द्वारा विकसित व डिजाइन की गई प्रौद्योगिकियों को अपनाकर इस नई जरूरत का फायदा उठाने का अवसर देगा। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में घरेलू खरीद के लिए करीब 52 हजार करोड़ रुपये का एक अलग बजट बनाया है। इस सूची में शामिल किए गए उपकरणों का घरेलू विनिर्माण तय समय सीमा के भीतर सुनिश्चित करने के लिए भी सभी आवश्यक कदम उठाये जाएंगे। इन उपायों में रक्षा सेवाओं के द्वारा उद्योग जगत को ऊपर उठाने का एक एकीकृत ढांचा भी शामिल किया जाएगा। दरअसल आयात पर इस रोक को 2020 और 2024 के बीच धीरे धीरे अमल में लाने की योजना आंकी गई है। रक्षा मंत्री ने अपनी प्रेस वार्ता में इस प्रतिबंधित सूची की घोषणा के पीछे का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा था कि सशस्त्र बलों की प्रत्याशित और जरूरी आवश्यकताओं के बारे में भारतीय रक्षा उद्योग को जानकारी देना है। इससे वे स्वदेशीकरण के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बेहतर रूप से तैयार हो सकेंगे।

रक्षा मंत्री ने बड़े आसान शब्दों में बताया कि प्रतिबंधित सूची में पहिये वाले बख्तरबंद लड़ाकू वाहन (एएफवी) भी शामिल किए गए हैं। जिनके लिए अमल की सांकेतिक तिथि दिसंबर 2021 दी गई है। थल सेना के द्वारा पांच हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से ऐसे 200 वाहनों के अनुबंध दिए जाने के अनुमान हैं। इसी तर्ज पर नौसेना के द्वारा दिसंबर 2021 की तारीख के साथ पनडुब्बियों की खरीद के अनुमान है जिसमें नौसेना करीब 42 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली छह पनडुब्बियों के अनुबंध दे सकती है। वायु सेना के लिए हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके 1ए को सूची में शामिल करने का निर्णय भी लिया गया है, जिनके लिए अमल की सांकेतिक तारीख दिसंबर 2020 है। वायु सेना के द्वारा 85 हजार करोड़ रुपये से अधिक की अनुमानित लागत पर 123 ऐसे विमानों के अनुबंध दिए जाने के अनुमान हैं।

एक सरकारी दस्तावेज के अनुसार, 69 वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध दिसंबर 2020 से लागू होगा। जबकि अन्य 11 वस्तुओं पर प्रतिबंध दिसंबर 2021 से लागू किया जाएगा। दिसंबर 2022 से आयात प्रतिबंधों के लिए चार वस्तुओं की एक अलग सूची की पहचान की गई है, जबकि आठ वस्तुओं के दो अलग-अलग खंडों पर प्रतिबंध दिसंबर 2023 और दिसंबर 2024 से लागू किया जाएगा। लंबी दूरी के लैंड अटैक क्रूज मिसाइलों पर आयात प्रतिबंध दिसंबर 2025 से लागू होगा। बहरहाल, लद्दाख में एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल (एलएसी) पर चीन के साथ तनाव के बीच रक्षा मंत्री के इस ऐलान को रक्षा क्षेत्र में काफी अहमियत दी जा रही है। आने वाले समय में और भी वस्तुओं को इस सूची में जोड़ा जा सकता है। घरेलू स्तर पर इन वस्तुाओं के उत्पादन की समी सीमा को सुनिश्चित करना भी एक बेहद ज़रूरी हिस्सा रहेगा। सरकार को इस पर नियमित रूप से नियंत्रण रखना ही होगा।

आने वाले समय में भारत के स्वदेशी टैंक – अर्जुन पर सरकार का ध्यान केंद्रित करने के लिए आत्मनिर्भर भारत के लिए एक सुनहरा मौका होगा। यह अभियान स्थानीय रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने का सेना द्वारा युद्ध में उपयोग किए जाने वाले हथियारों के संयत्रों को अधिक से अधिक स्वदेशी बनाने में प्रमुख भूमिका निभाएगा। रक्षा मंत्रालय पहाड़ी इलाके में हल्के टैंक इस्तेमाल करने की योजना पर भी कार्यरत है। देखना होगा की इस क्षेत्र में सरकारी अमले को टैंक बनाने की दिशा में कुछ नया करने के लिए क्या प्रोत्साहन मिलेगा।

भारत का स्वदेशी टैंक – अर्जुन के निर्माण की कहानी 1996 में शुरू हुई थी। भारत सरकार ने आवडी, चेन्नई में हैवी व्हीकल फैक्ट्री (एच व्ही एफ) में बड़े पैमाने पर टैंक बनाने का निर्णय लिया था। 124 अर्जुन टैंक (एमके ई) के लिए आदेश वर्ष 2000 में दिया गया था। भारत ने इस प्रयास से दुनिया भर के 10 देशों के चुनिंदा समूह में शामिल होने का तमगा हासिल किया था। भारत ने अपने स्वयं के बल पर मुख्य बैटल टैंक का डिजाइन विकसित कर निर्माण किया था। अन्य देश जिन्होने अपने स्वयं के एमबीटी डिजाइन विकसित किए हैं – यूके, फ्रांस, जर्मनी, यूएसए, इजरायल, दक्षिण कोरिया, रूस, जापान और चीन हैं।

पिछले कुछ वर्षों में, सेना की आवश्यकताओं के आधार पर, अर्जुन एमके आई में 89 सुधार किए गए हैं। इसने अर्जुन को एक अत्यधिक उन्नत प्लेटफॉर्म में बदल दिया गया है, जो विश्व स्तर पर सबसे अधिक तकनीकी रूप से उन्नत एमबीटी की तुलना में है, जिसमें इज़राइल से मर्कवा, अमेरिका से एम 1 ए 2 अब्राम्स और ग्रेट ब्रिटेन से चैलेंजर शामिल हैं। उन्नत अर्जुन एमके आई ए को दिसंबर 2019 में सेना में सफलतापूर्वक प्रदर्शित भी किया गया था। इस समय यह एक प्रासंगिक सवाल उठता है कि यदि अर्जुन कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर टी – 90 पर अपनी श्रेष्ठता साबित कर सकता है, तो निश्चित रूप से, महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति के साथ अर्जुन एमके आई ए, आक्रामक और रक्षात्मक कार्यों दोनों के लिए बेहतर स्थिति में होगा।

चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने अपने पश्चिमी कमान में यंत्रीकृत संरचनाओं के निर्माण के साथ तीव्र गति से आधुनिकीकरण किया है, हमारे अपने यंत्रीकृत संरचनाओं के संबंध में एक समानांतर क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है। वर्तमान में भारतीय सेना के बख्तरबंद फॉर्मूले में रूसी निर्मित टी -72 और टी -90 एमबीटी से लैस हैं, जिनमें सीमित संख्या में स्वदेशी रूप से निर्मित अर्जुन टैंक भी है। ये मूल रूप से मध्यम / भारी टैंक हैं जो पश्चिमी भारत के मैदानी और रेतीले इलाकों के लिए अधिक अनुकूल है। विशेषज्ञों के अनुसार, पहाड़ों में एक टैंक की आवश्यकता अनिवार्य रूप से सर्वप्रथम तेजी से तैनाती की सुविधा के लिए चपलता, गतिशीलता और तेज़ी से रास्ते में बदलाव करने की क्षमता शामिल होगी। मशीनीकृत / बख़्तरबंद इकाइयों को मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में दुश्मन के टैंकों का मुकाबला करने के लिए विरोधी कवच प्लेटफार्मों के रूप में कार्य करने की आवश्यकता ज़रूरी है।

रक्षा बजट और ज़रूरतें

भारत का रक्षा बजट हमरे सकल घरेलू उत्पाद का 3.1 प्रतिशत है। हमारा रक्षा बजट 2018 में 66.5 बिलियन डॉलर था, जबकि चीन का बजट 250 बिलियन डॉलर से अधिक रहा था। चीन के साथ में हमारे संबंध पिछले कुछ वर्षों में बेहद खराब रहे हैं। पहले डोकलाम और अब गलवान की हिंसक झड़प और चीन व्दारा अपने पैर पीछे खींचने में आनाकानी। इस वजह से भी देश को रक्षा क्षेत्र के लिए और अधिक खर्च करना ज़रूरी हो गया है।

द स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की अप्रैल-2020 रिपोर्ट कहती है कि सेना पर खर्च करने के मामले में अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर भारत आता है। रिपोर्ट के अनुसार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के कारण भारत का सैन्य खर्च बढ़ गया है। 2019 में भारत ने अपनी सेना पर 71.1 अरब डॉलर डालर खर्च किए थे। 2018 से यह 6.8% ज्यादा है। सिपरी की ही एक रिपोर्ट- ट्रेंड्स इन इंटरनेशनल आर्म्स ट्रांसफर्स 2019 के मुताबिक सऊदी अरब के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा डिफेंस इम्पोर्टर है। इसके मुताबिक भारत के रक्षा आयात में बड़ी हिस्सेदारी रूस (56%) की है और इसके बाद ही अमेरिका और इजरायल का नंबर आता हैं। भारत ने डेनमार्क से स्कैनर -6000 रडार, जर्मनी से एक्टस सोनार सिस्टम, ब्राजील से एम्ब्रेयर ईआरजे-154 जेट, दक्षिण कोरिया से के-9 थंडर आर्टिलरी गन और इटली से सुपर रैपिड 76 मिमी नेवल गन्स खरीदे हैं। सिपरी की रैंकिंग में एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम, फ्रिगेट्स और एके203 की मैन्युफेक्चरिंग, एमएच-60 आर हेलिकॉप्टर समेत कुछ अन्य डील्स शामिल नहीं हैं।

सही माइने में कहें तो देश को अपनी सुरक्षा की व्यवस्था स्वयं करनी चाहिए, जिससे युद्ध के हालत में हमें दूसरे देश पर आश्रित ना रहना पड़े। सैन्य सामान खर्चीला है यह सर्वविदित है। उसे बनाना अर्थात एक लंबे समय तक प्रौद्योगिकी की जरूरत को खंगालना पड़ता है और प्रोटोटाइप से असली अंतिम मॉडल तक ले जाने में सालों लग जाते हैं। हमारे युद्धक विमान तेजस की शुरूवात 1969 में हुई थी और पहली टेस्ट फ़्लाइट 4 जनवरी 2001 में सफलता से देखी गई। वायुसेना में 17 जनवरी 2015 में शामिल किया गया था।

अभी तक देश में 41 आर्डिनेंस फैक्ट्रियां और 12 रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां ही देश की रक्षा ज़रूरतों का तानाबाना बुन रही थीं। अब सरकार ने मेक इन इंडिया के खाते में देश की निजी कंपनियों को भी रक्षा क्षेत्र में अहम हिस्सा दिया है। नौसेना ने इसमें पहल दिखाकर कई बड़े युद्ध पोत और अन्य ज़रूरी निर्माण किए हैं। भारत एलेक्ट्रॉनिक्स, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स एवं मझगांव गोदी के साथ मिलकर इसमें भागीदारी कर रहे हैं। नौसेना के आधुनिकरण में निजी उद्योग ने एक अहम भूमिका निभाई है। निजी क्षेत्र की कोई भी कंपनी अपने स्वयं के बलबूते पर रक्षा क्षेत्र में पदार्पण नहीं कर सकती। सैन्य संसाधन बनाने के मापदंड विश्व बाजार में बेहद जटिल व्यवस्था से गुज़रते हैं एवं विदेशी कंपनी से हाथ मिलाकर संयुक्त उद्यम स्थापित करना ही एक जरूरत बन गया है।

नौसेना के लिए नए हेलिकॉप्टर

भारतीय नौसेना के पास फिलहाल मौजूद चेतक हेलिकॉप्टर 60 के दशक का है। जिसके रखरखाव पर भारी खर्च हो रहा है। भविष्य की ज़रूरत के लिए 111 नए और उन्नत हेलिकॉप्टर खरीदने को सरकार ने हरी झंडी दी है। इस प्रॉजेक्ट के तहत 16 हेलिकॉप्टर बनी बनाई हालात में खरीदे जाएंगे और बाकी के 95 भारत में बनाए जाएंगे जिसमें एक भारतीय कंपनी साझेदारी करेगी किसी विदेशी कंपनी के साथ। हेलिकॉप्टर की खरीद के लिए भारतीय कंपनियां – लार्सन एंड टुब्रो, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा ग्रुप एवं अडानी ग्रुप शामिल होने की उम्मीद है। अब जो हेलिकॉप्टर इस नए प्रॉजेक्ट के अंदर दिखाई देने की उम्मीद हैं उनमें मुख्यतः – एयरबस का एएस पैंथर, अगस्ता वेस्टलैण्ड का एडब्ल्यू109 लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर, एनएच90 डबल इंजन हेलिकॉप्टर, सुपर प्यूमा, मित्शुबिशी एच60 हो सकते हैं। इस समय सबसे उन्नत किस्म का पनडुब्बी विरोधी हेलिकॉप्टरों में सिकोरस्की एयरक्रॅफ्ट कॉरपोरेशन का एमएच60 आर रोमीयो नामक हेलिकॉप्टर है। हेलिकॉप्टर, जिसकी मदद से भी समुद्र के नीचे की पनडुब्बी को खोजा जा सकता है। समुद्र में भेजे जाने वाले मिसाइल को तारपिडो कहते हैं। इस तारपिडो को अपने निशाने की ओर बढ़ने के लिए हेलिकॉप्टर से गाइडंस दिया जा सकता है।

पिछले सप्ताह नौसेना को लेकर एक अहम खबर मीडिया में लिखी गई है। सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एरोनौटिक्स लिमिटेड (एच ए एल) को 22,500 करोड़ (3 बिलियन डॉलर) के नौसेना में उपयोगी – नेवल यूटीलिटी हेलिकॉप्टर एन यू एच) की निविदा में न शामिल किया जाए। दरअसल नौसेना ने रक्षा मंत्रालय को इस बाबद कई बार अपनी मंशा रखी है। उनका तर्क है कि एचएएल नौसेना की ज़रूरत को पूरा नही कर सकेगा। हेलिकॉप्टर में कई दोष निकले थे जिसमें सबसे अहम था कि इस हेलिकॉप्टर को उड़ान से पहले इसके पंखों को खोला जाता है (जो एयरक्रॅफ्ट कॅरियर पर पूर्व में मुड़े हुए रहते हैं – जगह बचाने के लिए) तब इसमें समय ज्यादा लगता है, नौसेना को एचएएल की क़ाबलियत पर विश्वास नहीं है।

रक्षा प्रौद्योगिकी शिक्षा

पिछले दिनों में सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की है। इसमें स्कूल की पढ़ाई के ढांचे को बदलने का प्रयास है और नया स्वरूप दिया गया है। यह एक बेहतरीन बदलाव माना जा रहा है। इसी तर्ज पर हमें देश के विश्विद्यालयों में रक्षा क्षेत्र में उपयोग में आने वाले धातु विज्ञान, मिसाइल प्रौद्योगिकी, परमाणु प्रौद्योगिकी एवं कौशल विकास के लिए नए प्रयास सीखने के लिए कोर्स उपलब्ध कराने होंगे। हमें नए अध्यापक जोड़ने होंगे जो सिस्टम डिजाइन और एकीकरण, बैलिस्टिक्स, विस्फोटक तंत्र के गुणदोष एवं उच्च अद्धयन को कॉलेज के स्तर से आगे पढ़ाए। देश की अग्रणी सैन्य अनुसंधान की संस्था डी आर डी ओ की छत्रछाया में मौजूद सैन्य संस्थान डी आई टी – रक्षा प्रौद्योगिकी संस्थान पुणे में इन विषयों को पढ़ाया जाता है। लेकिन विद्यार्थी प्रमुखता से सेना से आते हैं। इस बाबद हमे सोचना पड़ेगा कि हम देश की रक्षा ज़रूरतों के विकास की यात्रा का रोडमैप किस तरह बनाएं। क्या रक्षा विषय स्कूलों में पदार्पण कर पाएगा, क्या छात्र इस तरफ आसानी से आकर्षित होंगे? स़िर्फ इंजीनियर बनकर हमारी कल की जरूरतों को आसानी से पाया नहीं जा सकेगा। हमें उसे पाने के रास्ते नीतिबद्ध करने होंगे, तभी हम मिसाइल तकनीक से जुड़े कलाम जैसे वैज्ञानिक अन्य विधाओं में भी जोड़ पाएंगे।

विश्वविद्यालय ऐसा होना चाहिए जो रक्षा प्रौद्योगिकी से संबंधित विषयों को पढ़ाए और पास होने वाले स्नातकों के लिए नौकरियां दिलवाएं। विश्वविद्यालय में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी स्तर के पाठ्यक्रम और संकाय होने चाहिए। पढ़ाने के लिए शिक्षकों की खोज अभी से करनी होगी, तभी नए छात्र उच्च स्तर का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। भारत की रक्षा की जरूरतें केवल समय के साथ बढ़ेंगी, और आत्मनिर्भरता स़िर्फ एक नारा नहीं है। इसे वास्तविकता में बदलने के लिए सरकार को चाहिए कि वह निजी रक्षा निर्माण कंपनियों को साथ लेकर आगे बढ़े। रक्षा संस्थान और नियमित कोर्स एवं पाठ्यक्रम, संकाय बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसीके साथ कुशल कर्मियों को प्रशिक्षित कर एक अलग वर्ग बनाए, जो रक्षा उद्योग को स्वदेशी बनाने के लिए हमारी रक्षा विनिर्माण इकाइयों में स्थायी रूप से केंद्रित हो और उच्च कोटि के संयत्र और संस्थान चला सके।

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