एक विदेशी खेल क्रिकेट पर जरूरत से ज्यादा खर्च और अन्य खेलों की तरफ जरा भी ध्यान न देने की रणनीति के कारण भारतीय खिलाड़ियों के हौसले बुलंद होने के बाद भी ओलंपिक स्पर्धाओं में देश का प्रदर्शन अच्छा नहीं रह पाता। आखिर ओलंपिक खेलों में हमारा प्रदर्शन इतना खराब क्यों हैं? हम 92 वर्ष की लंबी ओलंपिक स्पर्धा में 22 बार भाग लेने के बावजूद सिर्फ 9 स्वर्ण पदक ही जीत सके, इस पर ध्यान देना जरूरी है। हमें अमेरिका, स्वीडन, ब्रिटेन के खिलाड़ियों से क्या सीखना है और क्या नहीं, यह भी जानना और समझना जरूरी है, जो देश ओलंपिक में लगातार स्वर्ण पदकों में वृद्धि कर रहे हैं, वहाँ ओलंपिक खेलों के प्रति सरकार खेल मंत्रालय का क्या रवैया है, यह जानने के बाद अगर ओलंपिक में चयनित खिलाड़ियों को अच्छी सुविधाएं और प्रशिक्षण दिया जाए, तो भारतीय खिलाड़ी भी देश को ज्यादा से ज्यादा स्वर्ण पदक दिलाने में कामयाब होंगे।
खेलों के इस महाकुंभ में भारत के 81 खिलाड़ियों के मुकाबले अमेरिका के 525, रूस के 436 तथा चीन के 330 खिलाड़ियों की खेल प्रतिभा देखने को मिलेगी। इस खेल महाकुंभ में भारत के सिर्फ 81 खिलाड़ियों को ही स्थान क्यों मिला? हम सभी खेलों में खिलाड़ियों की टीम क्यों नहीं उतार सके, इस पर चिंतन करना जरूरी है। बहरहाल, लंदन ओलंपिक खत्म होने के तत्काल बाद से ही अगले ओलंपिक की तैयारियां शुरू कर दी जाए, ताकि ओलंपिक की पदक तालिका में पहले पांच देशों में भारत का नाम दर्ज हो सके।
क्रिकेट की तरह ओलंपिक स्पर्धा में हमें सफलता न मिलना वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है। 27 जुलाई से शुरू हुए इस खेल महाकुंभ में भारत को पदक तालिका में कौन सा स्थान मिलेगा? क्या भारतीय खिलाड़ी इस बार पिछले ओलंपिक के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन दिखाकर 9 से ज्यादा स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब हो पाते हैं, इसी पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।
हाकी
गत वैभव पाने की हसरत
ओलंपिक भी हाकी स्पर्धा में भारत का प्रदर्शन अन्य खेलों की तुलना में काफी अच्छा रहा है। भारत आठ बार हाकी स्पर्धा में चैंपियन रहा है। ओलंपिक के 92 वर्ष के इतिहास में पहली बार बीजिंग ओलंपिक में भारतीय हाकी टीम को खेलने का मौका नहीं मिल सका था, लेकिन इस बार भारतीय हाकी टीम को अपना जौहर दिखाने का पूरा मौका मिलेगा।
ओलंपिक में भारत के ध्वजवाहक वर्ष
वर्ष खिलाड़ी खेल
1- 1920 पूर्णा बनर्जी एथलेटिक्स
2- 1932 लाल शाह बोखारी हाकी
3- 1936 ध्यानचंद्र हाकी
4- 1952 बलवीर सिंह (सिनीयर) हाकी
5- 1956 बलवीर सिंह (सिनीयर) हाकी
6- 1964 गुरवचन सिंह रंधावा हाकी
7- 1972 डी.एन.डेविन जोंस एथलेटिक्स
8- 1984 जाफर इकबाल हाकी
9- 1988 करतार सिंह हाकी
10- 1992 सायनी विल्सन एथलेटिक्स
11- 1996 परगत सिंह हाकी
12- 2000 लिएंडर पेस हाकी
13- 2004 अंजू जॉर्ज एथलेटिक्स
14- 2008 राजवर्धन राठौड़ निशानेबाजी
15- 2012 सुशील कुमार कुश्ती
चीन के सैरियागो शहर में सन् 2008 में योग्यता स्पर्धा में ब्रिटेन (इग्लैंड) से पराजित होने के कारण भारत पहली बार ओलंपिक में अपनी हाकी की टीम नहीं उतार सका था। ग्वांगज एशियाई स्पर्धा में स्वर्ण पदक गंवाने के कारण भारत को बीजिंग ओलंपिक में खेलने का मौका नहीं मिल पाया, लेकिन दिल्ली में हुई अंतिम योग्यता स्पर्धा में विजयश्री प्राप्त होने के बाद भारतीय हाकी टीम ने लंदन ओलंपिक में अपना स्थान पक्का कर लिया। इस बार में भारत को हाकी की स्पर्धा में इंग्लैंड, बीजिंग, ओलंपिक के पूर्व स्वर्ण पदक विजेता जर्मनी, न्यूजीलैंड, कोरिया और बेल्जियम जैसी दिग्गज टीमों के साथ ‘ब’ वर्ग में स्थान मिला है। इस वर्ग में बेल्जियम की टीम को छोड़कर शेष सभी टीमें पदक तालिका में भारत से आगे हैं। भारत की टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। इस बार हाकी स्पर्धा में भारतीय टीम की जीत के लिए मिड फील्डर सरदार सिंह की स्टिक की जादू पर निर्भर रहना होगा। उप कप्तान पद पर आसीन सरदार सिंह ‘प्ले मेकर’ के रूप में पहचाने जाते हैं। सरदार सिंह के अलावा भारतीय हाकी टीम में संदीप, शिवेंद्र सिंह, तुषार खांडेकर, एस. पी. सुनील, गुरबाज सिंह की स्टिक से भी मुकाबले में उतरने वाली टीम को गोल खाने पड़ सकते हैं। संदीप तथा इग्नेश नामक खिलाड़ी हालांकि पहली बार ओलंपिक खेलों में भारतीय हाकी टीम का प्रतिर्िंनधित्व कर रहे हैं, पर टीम मैनेजर तथा कप्तान को पूरा भरोसा है कि इन दोनों खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहेगा। सच तो यह है कि अगर भाग्य ने साथ दिया और सभी भारतीय खिलाड़ियों का ताल-मेल अच्छा रहा तो भारतीय हाकी टीम एक बार फिर ओलंपिक खेलों में चैंपियन बन सकती है।
बाक्सिंग में मिलेगा स्वर्ण- विजेंद्र सिंह
सन् 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारत को पहली बक्सिंग में कांस्य पदक दिलवाने वाले विजेद्र सिंह को पूरा भरोसा है कि लंदन ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक मिलेगा। सन् 2009 में मिलान में हुई विश्व बाक्सिंग स्पर्धा में भारत को कांस्य पदक दिलाने वाले विजेंद्र सिंह ने राष्ट्रकुल स्पर्धा में भी अच्छा प्रदर्शन कर भारत को पदक दिलाया था। सन् 2006 में आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में हुई राष्ट्रकुल स्पर्धा में विजेंद्र सिंह ने देश को रजत पदक दिलाकर भारत की शान बढ़ाई थी। इसी तरह नई दिल्ली में सन् 2010 में हुई राष्ट्रकुल स्पर्धा में भी विजेंद्र सिंह को कांस्य पदक मिला था। एशियाई क्रीड़ा स्पर्धा में सन् 2006 में दोहा में कांस्य तथा सन् 2010 में ग्वांगज में विजेंद्र ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। अपनी उम्दा खेल प्रतिभा के कारण सन् 2007 में पदम श्री तथा सन् 2009 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से नवाजे जा चुके विजेंद्र सिंह को पूरा भरोसा है कि इस बार वे भारत को बाक्सिंग में स्वर्ण पदक दिलवाएंगे। मुझ पर किसी भी प्रकार का बोझ नहीं है और मैं इस बार दुगुनी क्षमता के साथ उतरुंगा और देश के लिए स्वर्ण पदक लाऊंगा।
पदक ही होगी सायना की गुरुदक्षिणा
अपने प्रदर्शन को लगातार सुधारते हुए गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान के आधार पर निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने वाला कभी विफल नहीं होता, ऐसी टिप्पणी करते हुए बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल का कहना है कि ओलंपिक में पदक प्राप्त करना ही मेरे लिए सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा है। अपने गुरु (प्रशिक्षक) पुलेला गोपीचंद की प्रशंसा करते हुए सायना ने दावा किया कि वे इस बार भारत को बैडमिंटन में स्वर्ण पदक दिलवाएंगी। गत दिनों कोच्चीवाली में गोपीचंद बैंडमिंटन अकादमी में ओलंपिक खेलों की तैयारियों के दौरान सायना ने यह स्पष्ट किया कि अच्छे प्रशिक्षक तथा प्रशिक्षण के बगैर किसी भी क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार नहीं मिलता, इस आधार पर यह कहना गलत नहीं कि प्रशिक्षक के बगैर स्वर्ण पदक पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। दूसरी ओर आल इंग्लैंड विजेता मलेशियन बॅडमिंटन खिलाड़ी मोहम्मद हाशिम ने भरोसा जताया है कि सायना नेहवाल ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाएंगी। अब यह तो समय ही बताएगा कि सायना को स्वर्ण पदक मिल पाएगा या नहीं, पर जिस तरह से सायना हर दिन अभ्यास कर रही हैं, उससे यह लगता है कि वह अपनी प्रतिस्पर्धी खिलाड़ियों में कड़ा मुकाबला जरूर करेगी।
तीरंदाजी में दीपिका कुमारी पर टिकी निगाहें
तीरंदाजी में ओलंपिक स्तर पर भारत का प्रदर्शन इस बार ज्यादा अच्छे होने के आसार हैं। भारतीय टीम की दीपिका कुमारी ने सन् 2006 में मेक्सिको में हुई विश्व जूनियर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। इसी तरह सन् 2009 में ओगडेने (अमेरिका) में हुई 11वीं युवा विश्व तीरंदाजी स्पर्धा में विजेता घोषित की गई दीपिका कुमारी ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया, इतना ही नहीं, दीपिका कुमारी ने सन् 2010 में नई दिल्ली में हुई राष्ट्रकुल क्रीड़ा स्पर्धा में सफल तथा युगल स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने में कामयाबी पाई थी। ग्वांग्जु में सन् 2010 में हुई एशियाई क्रीड़ा स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने वाली दीपिका कुमारी ने सन् 2011 में रांची (बिहार) में हुई 34 वीं राष्ट्रीय क्रीड़ा स्पर्धा के व्यक्तिगत मुकाबले में एक रजत तथा युगल मुकाबले में दो स्वर्ण पदक जीते थे। सन् 2011 में इस्तंबूत में हुई तीरंदाजी विश्वकप में दीपिका कुमारी ने रजत पदक जीत कर सभी को चौंका दिया, इसी तरह सन् 2012 में तुर्की के अंतात्या में हुई विश्वकप प्रतियोगिता में दीपिका कुमारी ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। इस तरह दीपिका कुमारी का विजय अभियान सन् 2006 से जारी है, उसने इस कालावधि में कांस्य, रजत तथा स्वर्ण पदक जीतने में सफलता अर्जित की है, उसके विगत 6 साल के प्रदर्शनों को ध्यान में रखकर यदि यह कयास लगाए जाए कि दीपिका कुमारी तीरंदाजी में भारत को स्वर्ण पदक दिलवाएगी तो शायद गलत नहीं होगा, अब देखना है कि दीपिका कुमारी देश के स्वर्ण पदक जीतकर देशवासियों का सपना पूरा कर पाती है, या नहीं । भारत के शीर्ष स्तर के टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस के पिता वेस पेस का कहना है कि लिएंडर लंदन ओलंपिक में टेनिस में भारत को स्वर्ण पदक दिलाएंगे। लिएंडर को ओलंपिक के लिए मुख्य दौर में सीधा प्रदेश मिला है। पेस के साथ युगल मुकाबले में महेश भूपति या रोहन बोपण्णा और पुरुष-महिला मुकाबले में पेस के साथ सानिया मिर्जा को उतारने का निर्णय अखिल भारतीय टेनिस महासंघ ने लिया था, पर भूपति तथा बोपण्णा ने पेस के साथ खेलने से इंकार कर दिया, इसके बाद टेनिस महासंघ ने भूपति-बोपण्णा तथा लिएंडर तथा सानिया की जोड़ी उतारने का निर्णय लिया है। हालांकि लिएंडर पेस ने इस बात का खंडन किया है कि भूपति या बोपण्णा ने उनके साथ खेलने से इंकार किया है। पेस के पिता ने कहा है कि लिएंडर ओलंपिक खेल में टेनिस की स्पर्धाओं में भाग लेंगे और भारत की झोली में स्वर्ण पदक डालेंगे।
एथलेटिक्स में जीत भाग्य भरोसा
एथलेटिक्स में भारतीय दल की जीत भाग्य पर आधारित बताई जा रही है। एशियाई स्पर्धा में 800 मीटर दौड़ में दो बार स्वर्ण पदक जीतने वाले श्रीराम सिंह का कहना है कि अगर भारतीय एथलेटिक्स दल का भाग्य प्रबल रहा तो देश की झोली में कुछ स्वर्ण पदक भी आ सकते हैं। अगर भारतीय दल एथलेटिक्स में पदक जीतने में सफल हुआ तो यह मेरे तथा देश के लिए सबसे ज्यादा आनंददायी पल होगा, ऐसा कहते हुए श्रीराम सिंह ने दावा किया कि उड़नपरी पी. टी. ऊषा ने मार्गदर्शन में तैयार हुए भारतीय एथिलेटिक्स दल की ओर से कई पदक जीतने की उम्मीद बढ़ी हैं। इस दल के टिटू लुका से स्वर्ण पदक जीतने की आशा पल्लवित हुई है। लुका ने हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय एथलेटिक्स स्पर्धा में अच्छा प्रदर्शन किया था। हालांकि पी. कुंड्डु मोहम्मद तथा जोसेफ अब्राहम का धनाभाव के कारण भारतीय दल में प्रवेश नहीं हो पाया, इसलिए इन दोनों का खेल भारतीय लोग नहीं देख पाएंगे। 400 मीटर दौड़ (पुरुष) स्पर्धा में भारत को पदक दिलाने की आशा जिस खिलाड़ी से बंधी थी, उसे ही टीम में स्थान नहीं मिल पाया है, इससे एथलेटिक्स प्रेमियों में निराशा हुई है। बताया जाता हैं कि पी. कुंड्डु मोहम्मद तथा जोसेफ अब्राहम के पास तीस हजार रुपये नहीं थे, इसलिए ये दोनों भारतीय एथलेटिक्स दल में शामिल नहीं हो पाए। अफसोस की बात यह है कि किसी ने भी इन दोनों उदीयमान खिलाड़ियों को ओलंपिक की टीम में प्रवेश के लिए जरूरी रकम (तीस हजार रुपए) की मदद नहीं की, इससे यह बात स्पष्ट हो गई है कि उदीयमान खिलाड़ियों की मदद न मिलने से भारतीय दल के एथलेटिक्स में मिलने वाले पदकों की संख्या पर असर पड़ सकता है।
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि इस बार ओलंपिक में भारतीय दल का प्रदर्शन पिछले प्रदर्शन की ही तरह का रहेगा, क्योंकि भारतीय दल के चयन से लेकर उसके प्रशिक्षण तथा उन्हें सर्व-सुविधाओं से लैस करने की दृष्टि सें कोई कारगर प्रयास नहीं किए गए। हाकी, तीरंदाजी, मुक्केबाजी में हालांकि पिछले वर्षों के प्रदर्शनों को देखकर पदक मिलने की उम्मीद दर्शाई जा रही है, पर राष्ट्रीय या एशियाई स्तर पर किए गए प्रदर्शन की बदौलत ओलंपिक में स्वर्ण पदक पाने की आस रखना बेमानी ही माना जाएगा, इसलिए भाग्य व लगातार अभ्यास के बाद समय पर अगर अच्छा प्रदर्शन भारतीय टीम के खिलाड़ी कर सके तो पिछले ओलंपिक के मुकाबले भारतीय टीम के खिलाड़ियों की स्थिति थोड़ी अच्छी होगी और पदक तालिका में उसका नाम दो-तीन पायदान ऊपर आ जाएगा।