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अक्षय ऊर्जा में भारत की ऊंची उड़ान

अक्षय ऊर्जा में भारत की ऊंची उड़ान

by हिंदी विवेक
in अगस्त-२०१२, सामाजिक
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भारत में जिस गति से जनसंख्या का विस्तार हो रहा है, उसी तरह ऊर्जा के विविध स्रोतों की तलाश भी निरंतर की जा रही है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों की तलाश भी इसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। देश में सौर,पवन,कृषिगत अवशिष्टों सहित बॉयोमॉस जैसे प्राकृतिक संसाधनों का पर्याप्त भंडार है। विशेषकर दूरस्थ और दूर-दराज के गांवों में उनकी ऊर्जा संबंधी परेशानियों के निराकरण के लिए उक्त संसाधनों को प्रयोग में लाया जाता है।

महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों पर भारी निवेश

देश में ग्रिड-इंटरएक्टिव अक्षय विद्युत क्षमता 23,179 मेगावॉट तक पहुंचे गई है, जो देश में कुल ग्रिड संस्थापित क्षमता का लगभग 11.5 प्रतिशत है और इसका बिजली उत्पादन में लगभग 45 फीसदी योगदान है। जवाहर लाल नेहरु राष्ट्रीय सौर मिशन के कारण 11 वीं योजना अवधि के दौरान सौर ऊर्जा स्रोतों में काफी वृद्धि हुई। ग्रिड इंटरएक्टिव अक्षय विद्युत के अलावा ग्रामीण अनुप्रयोग के लिए ऑफ- ग्रिड सवितरित अक्षय विद्युत और विक्रेदित अक्षय विद्युत ऊर्जा की संस्थापना के लिए महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। ऊर्जा क्षेत्र में वित्तीय निवेश भी खूब किया गया है। दूसरे क्षेत्रों में खर्च किए गए वित्तीय निवेश की तुलना में ऊर्जा के क्षेत्र में काफी ज्यादा निवेश किया जा चुका है और भविष्य में भी किया जाएगा। छठवीं पंचवर्षीय योजना में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 134 करोड़ रुपए की सकल बजटीय मदद का प्रयोग किया गया, जो नवीं योजना तक आते-आते 1670 तथा 10 वीं योजना तक 1718 करोड़ रुपए हो गया। 11 वीं योजना में यह आकड़ा 4000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। भारत में विविध अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का विस्तार अनेक प्रकार के नीतिगत और वित्तीय मदद उपायों के कारण संभव हो सका है। सीमा शुल्क की रियासती दरें, उत्पाद शुल्क से छूट, उदार ऋण जैसे प्रोत्साहन दिए गए हैं। अधिकांश मामलों में सब्सिड़ी की श्रेणी 20 से 30 प्रतिशत है, लेकिन विशेष श्रेणी में 90 प्रतिशत तक जाती है। छठवीं तथा सातवीं योजना में प्रदर्शन और अनुसंधान एवं विकास चरण से अक्षय ऊर्जा कार्यान्वयन कार्य योजना ग्यारहवीं योजना में शुद्ध रूप से वाणिज्यिक कार्य योजना चरण में परिवर्तित हो चुकी है।

अक्षय पोर्ट फोेलियो दायित्व

अक्षय पोर्ट फोेलियो की पहचान अक्षय पोर्ट फोलियो के मानक के रुप में की गई है, जो सामान्यतः अक्षय ऊर्जा स्रोतों से अपनी बिजली के उत्पादन के लिए विभिन्न बिजली आपूर्ति कंपनियों पर दायित्व निश्चित करता है। राज्य बिजली विनियामक आयोग के अनुसार हिमाचल प्रदेश ( 11.10 प्रतिशत) अग्रणी राज्य है। हिमाचल के बाद राजस्थान ( 9.8 प्रतिशत) दूसरे स्थान पर है, इसके बाद महाराष्ट्र (7 प्रतिशत), गुजरात, उत्तराखंड, मणिपुर, मिजोरम, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, झारखंड और असम का नंबर आता है।

अक्षय ऊर्जा प्रमाण पत्र

ऊर्जा के अक्षय स्रोतों समर्थन करने तथा बिजली में बाजार का विकास करने के लिए अपने आदेश को स्वीकार करने में केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीईआरसी) की ओर से अक्षय ऊर्जा प्रमाण पत्र संबंधी एक विनियम को अधिसूचित किया गया है। इस प्रमाण पत्र की ट्रेडिंग के लिए 1065 अक्षय ऊर्जा उत्पादकों तथा एजेंसियों का पंजीयन किया गया है। इस तरह देश में वर्तमान में लगभग 731962 अक्षय ऊर्जा प्रमाण-पत्र जारी किए गए हैं, जिनमें से 609773 अक्षय ऊर्जा प्रमाण-पत्रों को पुनः प्राप्त किया गया है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। इस क्षेत्र में पिछले तीन दशकों में काफी प्रगति हुई है और आने वाले एक दशक में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में काफी ज्यादा प्रगति होगी और देश में बिजली संकट जरा भी नहीं रहेगा। आज अक्षय ऊर्जा देश में ऊत्पादित होने वाली विद्युत क्षमता में साढ़े ग्यारह प्रतिशत का योगदान दे रही हेै।
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Tags: bio energybio fuelshindi vivekhindi vivek magazinenon-conventional energyrenewable energysolar energywind energy

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