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हिंसा की आग में जली मुंबई

हिंसा की आग में जली मुंबई

by माधव भांडारी
in सामाजिक, सितंबर- २०१२
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तोड़फोड़, आगजनी से जनता भयभीत
राज्य भर में रहा भय तथा तनाव का वातावरण

मुंबई के आजाद मैदान में विगत 11 अगस्त, 2012 को किया गया दंगा हर दृष्टि से विशिष्ट था। यह दंगा लगभग आधा-पौना घंटे तक चला। दंगे में दो लोग मारे गये और घायल लोगों में पुलिस कर्मियों की संख्या अधिक थी। जिन वाहनों को तोड़ा-फोड़ा या आग के हवाले किया गया, उनमें भी पुलिस के वाहन अधिक थे। बंदोबस्त में लगी महिला पुलिस के साथ दुर्व्यवहार किया गया, उनके हाथ से लाठी और रायफल छीनकर पुलिस वालों के खिलाफ ही उसका प्रयोग किया गया। जो दो प्रदर्शनकारी मारे गए, उन्हें किसकी गोली लगी, इसका उत्तर अभी तक नहीं मिला है। इनके अलावा जो प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं, उनके घाव पैर में लगे हैं। पुलिस ने यदि गोली चलाया, तो उसे आदेश किसने दिया? यह भी अब तक स्पष्ट नहीं है। जब कभी प्रदर्शनकारी हिंसक होने लगते हैं, तो पुलिस द्वारा पहले उन पर लाठीचार्ज किया जाता है, आंसू के गोले छोड़े जाते हैं। इतने पर भी हिंसक प्रदर्शनकारी यदि तितर-बितर नहीं होते है; तो पुलिस द्वारा गोलीबारी की जाती है। पुलिस अपनी इच्छानुसार गोली नहीं चला सकती। किन्तु महाराष्ट्र सरकार और पुलिस प्रशासन ने शनिवार की मुंबई की घटना के संदर्भ में किसी-भी प्रकार की तैयारी नहीं की थी। गोली चलाने का आदेश किसने दिये, यह भी पुलिस पता नहीं लगाई पाई है, इसके विपरीत दंगा रोकने का प्रयत्न करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ बातें समाचार पत्रों में छपी हैं। अभी तक इन खबरों का खंडन भी नहीं किया गया है। इसके साथ प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे मौलाना और मौलवियों के हिंसा को भड़काने वाले भाषण को मंच के सामने खड़े दक्षिण मुंबई के जिला पुलिस अधीक्षक कृष्ण प्रकाश शान्तिपूर्वक सुन रहें थे। यह चित्र भी समाचार पत्रों मे छपा है। क्या कृष्ण-प्रकाश मंच पर गये थे? अगर वे गये थे तो मंच से दिये जा रहे हिंसा को भड़काने वाले भाषण को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया? इनका स्पष्टीकरण भी पुलिस प्रशासन और सरकार ने देना ठीक नहीं समझा। कृष्ण-प्रकाश का इतिहास भी वैशिष्ट्यपूर्ण है। इससे पूर्व वे सांगली के जिला पुलिस अधीक्षक थे, उनके कार्यकाल में वर्ष-2008 में सांगली-मीरज में भीषण धार्मिक दंगे हुए थे।

मुंबई में मुस्लिम प्रदर्शनकारियों द्वारा किया गया दंगा अनेक गंभीर व दूरगामी परिणाम वाले प्रश्न छोड़ गया है। इन प्रश्नों का उत्तर देने की जिम्मेदारी सरकार के साथ ही स्वयं को ‘सेकुलर’ कहने वाले प्रसार माध्यमों और ‘बुद्धिजीवी’ कहलाने वाले पत्रकारों की है। मुंबई का दंगा पूर्णत: सुनियोजित था, यह अब स्पष्ट हो गया है। जनता को इस बात का उत्तर चाहिए कि जब दंगे की पूर्व सूचना थी, तब सरकार ने उसे रोकने के समुचित कदम क्यों नहीं उठाये? राज्य सरकार की ओर से क्या किसी ने ऐसा आदेश दिया था कि दंगा होने पर भी उसे रोकने का प्रयास न किया जाए। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि यदि ऐसा कोई आदेश दिया गया था, तो वह क्या था? सरकार के जिस किसी में भी इस प्रकार का आदेश दिया था, उसे आगे आकर जिम्मेदारी लेनी चाहिए और अपने आदेश का खुलासा करना चाहिए।

11 अगस्त का मुंबई का दंगा पूर्व नियोजित था, इसकी अनेक खबरें अब सामने आ रही हैं। ऐसे अनेक तथ्य सामने आये हैं, जिसमें स्पष्ट है कि दंगाइयों ने योजानाबद्ध तरीके से पहले समाचार माध्यमोंं पर और फिर पुलिस पर हल्ला बोला। यह भी अचरज का विषय है कि मोर्चे का आयोजन करने वाले संगठन ‘रजा अकादमी’ के ऊपर पुलिस ने तत्काल कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? रजा अकादमी का इतिहास जगजाहिर है। इसके पहले भी मुंबई में हुई अनेक हिंसक घटनाओं के पीछे रजा अकादमी का हाथ रहा है। इसलिए इस मोर्चे के आयोजन की अनुमति किसी अप्रचलित छोटे संगठन द्वारा मांगी गयी थी, किंतु मोर्चे की अनुमति मांगने वाले संगठन ने आयोजकों के इरादों को भांपकर अपना हाथ पीछे खींच लिया था। अल्पसंख्यकों की पैरोकार समाजवादी पार्टी ने भी आखिरी क्षणों में मोर्चे से खुद को अलग कर लिया था। समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय नेता ने कहा है कि प्रदर्शन में हिंसा की आशंका के चलते वे स्वयं प्रदर्शन स्थल पर नहीं गये। इन सबसे घटना का आशय स्पष्ट हो जाता है।
दंगे केवल पूर्व नियोजित ही नहीं थे, अपितु इसकी पूरी जानकारी मुंबई पुलिस और सरकार को पहले से ही थी, ऐसा दावा भी किया जा रहा है कि मुंबई पुलिस की इफ्तार पार्टी के दौरान मुख्यमंत्री जी को भी इस दंगे की योजना की जानकारी दी गयी थी। ऐसा भी कहा जा रहा है कि मुंबई पुलिस ने हिंसा की आशंका के चलते प्रदर्शन की अनुमति रद्द कर दी थी, किन्तु मुंबई निवासी महाराष्ट्र सरकार के एक मंत्री के दबाव में पुन: अनुमति देनी पड़ी। उल्लेखनीय है कि प्रदर्शन में भाग लेने और दंगा करने वाले अधिकांश लोग उन्ही मंत्री महोदय के कार्य क्षेत्र से आये थे। कांग्रेस के सांसद संजय निरूपम ने लोकसभा में दिये गये अपने भाषण में कहा कि महाराष्ट्र सरकार के दो मंत्री घटना के समय आजाद मैदान में उपस्थित थे। ऐसी चर्चा है कि महाराष्ट्र सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री नसीम खान दंगे के समय आजाद मैदान में थे। संजय निरूपम के लोकसभा में दिये गये भाषण और उसके अनुरूप नसीम खान की आजाद मैदान में उपस्थिति की चर्चा यदि सत्य है, तो यह एक अत्यंत गंभीर बात है। मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को इसका स्पष्टीकरण देना अत्यावश्यक है।

असम और म्यांमार में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में मुंबई में 11 अगस्त को प्रदर्शन का आयोजन किया गया था। किन्तु म्यामांर में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। मुंबई पुलिस के एक अधिकारी का कहना है कि प्रचार साहित्य में जो फोटो छापा गया है, वह म्यांमार का नहीं है और उसमें दिखाया गया अत्याचार ग्रस्त युवक भी मुसलमान नहीं है, ऐसा है तो यह दुष्प्रचार कौन कर रहा है? असम में बोडो और बांग्लादेशी घुसपैठियों के बीच जो संघर्ष हो रहा है, उससे इस्लाम और भारत के मुसलमानों का क्या संबंध है? असम की घटना का मुंबई में विरोध करने का यह कौन सा तरीका है? यह भी एक महत्व पूर्ण प्रश्न है। किंतु इसका उत्तर देने के लिए कांग्रेस पार्टी और महाराष्ट्र सरकार का नेतृत्व तैयार नहीं है। सचमुच में पिछले कुछ दिनों में महाराष्ट्र में घटीं अलग-अलग घटनाओं का अपना महत्व है। जुलाई महीने के आखिर में पुणे में रहने वाले पूर्वोत्तर राज्यों के नौकरी-पेशा करने वाले और विद्यार्थियों पर हमले शुरू हुए। उस घटना पर लोगों का ध्यान जाने और उस पर चर्चा शुरू होने के साथ ही 11 अगस्त को पुणे में बम विस्फोट हो गया। बम विस्फोट पर चर्चा समाप्त भी नहीं हुयी थी कि पुन: पूर्वांचल के लोगों पर हमले होने लगे। हमले की घटनाएं बढ़ती गयीं और वह अहमदनगर, नासिक के बाद मुंबई तक पहुंची। इसी की पृष्ठभूमि में मुंबई में दंगे हुए। ये सारी घटनाएं भले ही अलग-अलग हैं, किन्तु इनमें घनिष्ठ अंतरसंबंध हैं। इनके पीछे समान सूत्र हैं। ये घटनाएं सामान्य उपद्रव या सिरफिरे लोगों की करतूतें नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे संगठित रूप से सुनियोजित राष्ट्रघाती षडयंत्र है। ये सभी घटनाएं जान-बूझकर रमजान महीने में हुई। इन घटनाओं के पीछे के षडयंत्रकारियों को मालूम है कि महाराष्ट्र पुलिस रमजान के महीने में दंगा करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं करती है, इसलिए बेखौफ उनके कार्य चल रहे हैं।

देशद्रोही कार्य करने वाले संगठनों और शक्तियों के इरादे स्पष्ट हैं। उन्हें इस देश में अस्थिरता फैलाना है, जितना हो सके देश भर में दहशत का माहौल बनाना है, इसके लिए किसी भी सीमा तक जाने की तैयारी इन संगठनों की है। किन्तु केंद्र और महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकारें इन देशद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई करने से टाल-मटोल कर रही हैं। उनके कारनामों की ओर से ध्यान न देकर उनका मनोबल ही बढ़ा रही हैं। पूर्वांचल के लोगों पर हमला, पुणे में बन विस्फोट, मुंबई में भीषण दंगा हुआ, किन्तु यहां की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। पुणे में बम विस्फोट की घटना की आशंका खुफिया विभाग को थी, पुख्ता सूचना भी थी, किन्तु उसे रोकने के लिए सरकार द्वारा समग्र रहते कोई कदम नहीं उठाया गया। बम विस्फोट किसने किया, यह पता नहीं लगाया जा सका। पुलिस ने किसी को अब तक गिरफ्तार नहीं किया।

मुंबई में दंगा किसने और क्यों किया? इस परा राज्य सरकार द्वारा क्या कार्रवाई की गयी? ये दोनों प्रश्न ऊपर के अन्य सभी प्रश्नों से जुड़े हैं। मुंबई में 11 अगस्त को किया गया दंगा पूर्वनियोजित था और इसके आयोजन की सूचना सरकार कों दी गयी थी। पुलिस के हथियार उनसे छीनकर, उसी के द्वारा सुरक्षा बलों के साथ मारपीट की गयी। महिला पुलिस के साथ दुर्व्यवहार किया गया। दंगा करने वाले लोग दिन भर मुंबई के अनेक भागों में घूमते, हल्ला मचाते, सामान्य लोगों को कष्ट पहुंचाते हुए आजाद मैदान में पहुंचे थे। उनके सामने आग उगलते हुए हिंसा भड़काने वाले भाषण दिये गये। दंगा करने वालों ने आजाद मैदान और उसके बाहर एक झलक पेश की और जैसे आये थे, वैसे ही लौट गये। अब प्रदर्शन का आयोजन करने वालों से लेकर मुंबई की पुलिस तक सभी इसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इन सबके पीछे एक स्पष्ट उद्देश्य दिखायी पड़ रहा है। वह है कि ‘इस देश मेें हम जो चाहेंगे, वह करेंगे। हम इस देश के नियम-कानून को नहीं मानते और इस देश की सरकार हमारे खिलाफ मामला भी दर्ज नहीं कर सकती।’ ऐसा करके भी उन्होंने दिखा दिया। आज देश में वैसा ही वातावरण बन गया है, जैसा कि देश के विभाजन से पूर्व बना था। हम कितनी विस्फोटक स्थिति में जी रहे हैं। देश ज्वालामुखी के मुंह के पास कैसे पहुंच गया है, इसका ज्ञान हमें पिछली घटनाओं से हो जाता है। राज्य की कांग्रेस सरकार से हम किसी प्रकार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। अब समाज को स्वयं आगे आना होगा और देश की सुरक्षा के लिए कमर कसकर खड़ा होना पड़ेगा।
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