दही-हंडी का पर्व अत्यंत उत्साह से मनाने के बाद निश्चिंत हुए मुंबई वासियों को अगले ही दिन भारी दहशत का सामना करना पड़ा। आसाम और म्यानमार में घुसपैठी मुसलमानों पर हो रहे तथाकथित अत्याचार के विरोध में रजा अकादमी तथा अन्य मुस्लिम संगठनों ने प्रदर्शन किया। आसाम में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के बारे में समाचार ठीक ढ़ंग से नहीं दिखाते, इसलिए उन मुस्लिम संगठनों ने हिंसक प्रदर्शन किया और इस प्रदर्शन के दौरान मीडिया तथा कई पुलिस वैन को जलाया गया, इसके साथ ही बेस्ट की कई बसों के कांच भी तोड़ दिए। इस प्रदर्शन में दो दंगाइयों की मौत हो गई, जबकि 55 गंभीर रूप से घायल हो गए। इन 55 गंभीर रूप घायलों में पुलिस तथा पत्रकारों की अच्छी खासी संख्या है। रजा अकादमी तथा अन्य मुस्लिम संगठनों की ओर से किए गए इस प्रदर्शन का उद्देश्य आसाम में जारी हिंसा का विरोध न होकर भारत के प्रति द्वेष भावना प्रदर्शित करना ही नजर आ रहा था। इस्लाम खतरे में ऐसा नारा बुलंद करते हुए प्रदर्शनकारियों ने भारत के प्रति अपना द्वेष ही उजागर किया। इस बात को नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता। आसाम में घुसे बांग्लादेशियों के समर्थन में मुंबई में प्रदर्शन करके जो हिंसा फैलाई है, उससे उनका कसाबी धर्मांंधता का खुला परिचय हो गया है।
‘रजा अकादमी’ ने जब यह प्रदर्शन आयोजित किया, तब आजाद मैदान में मुस्लिम समाज के आध्यात्मिक रूप का दर्शन होगा, ऐसी भावना मुंबई पुलिस की बनी थी क्या? दंगे के चार दिन पहले से ही फेसबुक, एस. एम. एस. जैसे सोशल नेटवर्क के माध्यम से भड़काऊ संदेश भेजे जा रहे थे। मस्जिदों के जरिए उत्तेजक भाषण दिए जा रहे थे। इतना ही नहीं दीवारों पर सांप्रदायिक भावना उत्तेजित करने वाले पोस्टर चिपकाए गए थे। इसी कारण बांद्रा, कुर्ला, मुंब्रा, भिवंडी, कामाठीपुरा, जोगेश्वरी समेत महाराष्ट्र के अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों से आंदोलनकारी झुंड के झुंड आजाद मैदान में पहुंचे। अण्णा हजारे के आंदोलन के लिए आजाद मैदान देने से इंकार करने वाली मुंबई पुलिस ने किस आधार पर इन धर्माधों को आजाद मैदान प्रदर्शन करने के लिए उपलब्ध कराया, यह बात समझ से परे है। सन् 2003 में इराक में सद्दाम हुसैन के पराजित होने के बाद इसी रजा अकादमी ने मुंबई में हिंसक प्रदर्शन किया था। डेनमार्क में हुई मोेहम्मद पैंगबर की अवमानना की घटना के विरोध में इसी रजा अकादमी ने मोर्चा निकाला था। इस मोर्चे में हुई हिंसा में 15 लोगों की मौत हुई थी। इसी संगठन ने भिवंडी में 2 पुलिस कर्मियों को जिंदा जलाकर मार दिया था।
विश्व के किसी भी हिस्से में मुसलमानों के विरोध में जरा सी बात होने पर उसके लिए आवाज उठाना अपना लक्ष्य ही मना लिया है। दुनिया भर के मुसलमानों को जरा सी तकलीफ नहीं हुई कि इस्लाम खतरे में, का नारा बुलंद कर आंदोलन शुरु कर दो।
दक्षिण मुंबई में विगत 11 अगस्त को हुई हिंसा के दौरान उग्र हुए लोगों ने पथराव किया। चॉपर, हॉकी, सीकड़ की मदद से तोड़-फोड़ की तथा जगह-जगह पेट्रोल डालकर आगजनी की। पुलिस, पत्रकार को जान से मार डालने का प्रयास किया। अमर ज्योति स्मृति स्मारक को तोड़ डाला। पाकिस्तानी झंडा लहराते हुए भारत विरोधी नारेबाजी की। महिला पुलिस कर्मचारियोंं के साथ अभद्रता की। इतना ही नहीं दंगाई पुलिस कर्मचारियों के हथियार भी लेकर भाग गए, बावजूद इसके पुलिस ने संयम बरता। पुलिस का यह संयम ही प्रश्न खड़ा करता है। जब शिक्षक,मजदूर, किसान अपनी मांगोंं के समर्थन में आंदोलन करते हैं, तब पुलिस फायरिंग करती हैं, जोरदार लाठीचार्ज करती है, पर इन ‘कसाबी’ मनोवृत्ति वाले हिंसक मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग दो घंटे मुंबई में दहशत फैलाते हैंं तब संयम पालने का संयम मुंबई पुलिस में कहां से आ जाता है।
यह मुस्लिम दंगाईयों की मस्ती व सरकार-पुलिस की सुस्ती देश को महंगी पड़ेगी। 11 अगस्त को मुंबई में जो जबर्दस्ती की हिंसा हुई, वह अंचभित करने वाली है। यह अराजकता का आरंभ है। हमसे जो टकराएगा, मिट्टी में मिल जाएगा, ऐसा कहते हुए देश के विरोध में, सरकार के विरोध में इतना बड़ा षडयंत्र रचा जा रहा था और इसकी जानकारी मुंबई पुलिस को न हो, इस पर विश्वास नहीं होता। जैसा प्रश्न मुंबई पुलिस की अकार्यक्षमता, गैर जिम्मेदारी का है, वैसा ही प्रश्न सत्ता चलाने वाले लापरवाह तथा ढीले नेतृत्व का भी है।
हजारों की संख्या में दंगाई थे, उनमें से सिर्फ कुछ ही दंगाईयों को पकड़ा जाना हजम नहीं हो रहा। हिंदुओं के श्रद्धा-स्थान शंकराचार्य पर झूठा आरोप लगाकर दीपावली के दिन उनको गिरफ्तार किया गया था। महाराष्ट्र स्थित मिरज में गणेश मूर्ति की अवमानना के बाद हुई हिंसा के दौरान हिंदुओं के घरों में घुसकर बच्चों, बुर्जुगों तथा महिलाओं पर अमानुषीय अत्याचार करके उन्हें गिरफ्तार करने वाली पुलिस एवं सरकार अब इन मुस्लिम दंगाईयों को क्यों छूट दे रही है।
मुंबई के आजाद मैदान में जिन धर्मांधों ने हिंसा, तोड़फोड़ की, उन सभी दंगाइयों, आयोजकों के खिलाफ अपराध दर्ज होना ही चाहिए। 26/11 के आतंकवादी हमले में मारे गए शहीदों के स्मारक को तोड़ने वाले ‘कसाबी’ मनोवृत्ति के लोगों के प्रति मुंबई की आम जनता में ही नहीं, देश के सभी नागरिकों के मन में रोष धधक रहा है। इस्लाम खतरे में’ कहकर तनाव तथा हिंसा को बढ़ावा देने का काम कुछ नापाक इरादे वाले मुस्लिम संगठन कर रहे हैं। इस तरह की घटना भविष्य में फिर न हो, इस बात की फिक्र प्रशासन को करनी पड़ेगी, अन्यथा लोगों के मन में इस घटना के कारण जो गुस्सा उपजा है, उसका विस्फोट होने में देर नहीं लगेगी।
————–