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कश्मीरी पंडित आखिर कब लौटेंगे अपने घर

कश्मीरी पंडित आखिर कब लौटेंगे अपने घर

by नवनीत कौशिक
in अक्टूबर-२०१२, सामाजिक
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कश्मीर की समस्याओं के निराकरण के लिए हमारे देश का एक विशेष वर्ग निरतंर प्रयास करता रहा है, लेकिन इस वर्ग के सहारे कश्मीरी पंडितों की घर वापसी होना असंभव ही नजर आ रहा है। ज्ञात हो कि इस विशेष वर्ग ने अब तक इस मुद्दे को कभी गंभीरता से उठाया ही नहीं है। कश्मीरी पंडितों की समस्याओं को लेकर इन लोगों का मानवतावादी दृष्टिकोण कहां चला जाता है, अगर कोई इस प्रकार का प्रयास करता भी है तो उसे सांप्रदायिकता के रंग में रंग दिया जाता है।

जिस देश में भगवान श्रीराम को भी 14 वर्ष के वनवास के बाद घर वापसी का सौभाग्य मिल गया था, उसी देश में कश्मीरी पंडितों को 21 वर्ष बीत जाने के बाद भी वनवास ही झेलना पड़ रहा है। लगभग तीन लाख कश्मीरी पंडित परिवार भारत के विभिन्न हिस्सों तथा रिफ्यूजी कैंपों में रहने के लिए बाध्य हैं। कश्मीरी पंडितों को किस तरह से एक साजिश के तहत कश्मीर छोड़ने के लिए विवश किया गया, यह बात किसी से छिपी नहीं है। 1990 के दशक में आईएसआई ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकालने का षडयंत्र रचा, उसका मानना था कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकाले बगैर वहां से आतंकवादी गतिविधियों को संचालित नहीं किया जा सकता, इसीलिए आईएसआई ने एक सोची-समझी साजिश के तहत कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर का रास्ता दिखाने का कुचक्र रचा और उसमें कामयाबी भी हासिल कर ली। शेख अबदुल्ला ने अपनी आत्मकथा में आतिश-ए-चिनार में कश्मीरी पंडितों को दिल्ली के पांचवें स्तंभकार और जासूस कहकर संबोधित किया है। कश्मीर घाटी में भारतीय जनता पार्टी सबसे मजबूत राजनीतिक दल माना जाता है। कश्मीरी पंडित परिवार के कई लोगों का संहार किए जाने पर भी कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के प्रति उदासीनता ही दिखाई गई। आतंकवादियों की बर्बरता से त्रस्त होकर कई कश्मीरी पंडित परिवारों को अपनी जन्मभूमि को छोड़कर दूसरे स्थान पर शरणार्थी बनकर जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीर की धरती पर जितना अधिकार अन्य भारतीयों का का है, उनता ही अधिकार कश्मीरी पंडितों का भी है। भारत में कुछ लोग तुष्टिकरण की राजनीति कर लोकतंत्र के मंदिर संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु की माफी की बात तो बड़ी जोर-शोर से रखते हैं, लेकिन कश्मीरी पंडितों के घर वापसी के मसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करते। राज्य तथा केंद्र सरकारें तो यह दावा करती हैं कि कश्मीर अब कश्मीरी पंडितों के लिए खुला है और वे चाहें तो अपने वतन वापस आ सकते हैं, इस दावे में कितनी सच्चाई है, यह तो किसी से छिपी नहीं है। आज चाह कर भी कश्मीरी पंडित अपने घर नहीं लौट सकते, क्योंकि आतंकवादियों ने उनके घरों को नष्ट कर दिया है। अगर विस्थापित कश्मीरी पंडित अपने वतन लौटते हैं तो भी उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?

उल्लेखनीय है कि पूर्व में जिन नौ परिवारों ने घर वापसी की थी, उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा, उनका कहना है कि कश्मीर के सरकारी अधिकारी उन्हें वहां बसने पर सामने आने परेशानियों का हवाला देकर वहां से चले जाने के लिए कहते रहते हैं । इस आधार पर यह कहना गलत नहीं कि कश्मीर में अभी-भी कश्मीरी पंडितों के लिए वातावरण ठीक नहीं है। वस्तुतः कश्मीर में हालात ऐसे हैं, वहां कश्मीरी पंडितों को रहने नहीं दिया जा रहा, उन्हें किसी भी तरह की सुविधाएं नहीं दी जा रहीं, तो दूसरी ओर यहां के अलगाववादियों को सरकार की ओर से हर तरह की सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, बावजूद इसके वे भारत को अपना देश नहीं मानते और कश्मीर को भारत से अलग करने की साजिश रचते रहते हैं।

डल झील तथा गुलमर्ग के फूलों की खूबसूरती कश्मीरी पंडितों के बगैर अधूरी है। कश्मीर फिर से सही मायने में धरती का स्वर्ग बन पाएगा, तभी कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी होे पाएगी और घाटी एक बार फिर कश्मीरी पंडितों के मंत्रों से गूंज उठेगी।
बॉक्स
1990 के दशक में आईएसआई ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकालने का षडयंत्र रचा, उसका मानना था कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकाले बगैर वहां से आतंकवादी गतिविधियों को संचालित नहीं किया जा सकता, इसीलिए आईएसआई ने एक सोची-समझी साजिश के तहत कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर का रास्ता दिखाने का कुचक्र रचा और उसमें कामयाबी भी हासिल कर ली। शेख अबदुल्ला ने अपनी आत्मकथा में आतिश-ए-चिनार में कश्मीरी पंडितों को दिल्ली के पांचवें स्तंभकार और जासूस कहकर संबोधित किया है। कश्मीर घाटी में भारतीय जनता पार्टी सबसे मजबूत राजनीतिक दल माना जाता है। कश्मीरी पंडित परिवार के कई लोगों का संहार किए जाने पर भी कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के प्रति उदासीनता ही दिखाई गई। आतंकवादियों की बर्बरता से त्रस्त होकर कई कश्मीरी पंडित परिवारों को अपनी जन्मभूमि को छोड़कर दूसरे स्थान पर शरणार्थी बनकर जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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