हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
संघभावना की प्रतिमूर्ति

संघभावना की प्रतिमूर्ति

by अमोल पेडणेकर
in अक्टूबर-२०१२, संपादकीय
0

प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि जन्म लेने वाले हर प्राणी की आत्मा उसकी भौतिक काया को छोड़कर एक दिन परम आत्मा ईश्वर में विलीन हो जाती है। यह मृत्यु लोक है। यहां शरीर धारण करने वाला कोई भी मनुष्य अमर नहीं है। किन्तु कुछ ऐसे कृर्तृववान व्यक्ति भी जन्म लेते हैं, जो अपने कर्म, धर्म कार्य, समाजसेवा, राष्ट्रसेवा और उत्तम आचरण से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं, जिनकी कीर्ति सदियों तक लोकमानस में छायी रहती है। उनके जीवन के विविध प्रसंग लोकगाथा की तरह लोगों की चर्चा और प्रेरणा के विषय बने रहते हैं। वे अशरीरी रूप में सब के साथ जुड़े होते हैं।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक मा. कुप्पनहल्ली सीतारमैया सुदर्शन जी ऐसे ही व्यक्तित्व थे, जिनके स्वर्गारोहण के उपरांत भी उनकी यशगाथा, कीर्तिगाथा, सेवागाथा आने वाली पीढ़ियों के लिये अनुकरणीय बनी रहेगी।अपने पूर्ववर्ती चारों सरसंघचालकों के पदचिन्हों पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने संघ कार्य को दसों दिशाओं में बढ़ाते हुए सात समुद्र पार दुनिया भर के देशों में पहुंचाया और सुदृढ़ किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नागपुर में सम्पन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में दिनांक 10 मार्च, सन् 2000 ई. को मा. सुदर्शन जी को चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया के उत्तराधिकारी के रूप में सरसंघचालक का दायित्व सौंपा गया। संघ राष्ट्रभक्तों का केवल संगठन ही नहीं है, अपितु यह सर्वसमावेशक विचार है।जीवन को जागृत करने वाली एक पद्धति है।संघ की एक इसी भावना से एकरूप होकर मा. सुदर्शन जी ने अपने जीवन, अपने चिन्तन, अपने कर्म और वाणी द्वारा संघ का आदर्श प्रस्तुत किया। वर्ष 1954 में शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने अपना जीवन संघ प्रचारक के नाते राष्ट्रहित में समर्पित कर दिया। उस समय संघ से जुड़ी उनकी जीवन-नाल जीवन भर कायम रही। सर्वप्रथम उन्हें रायगढ़ भेजा गया। जिला और विभाग प्रचारक की जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए वर्ष 1964 में उन्हें मध्य भारत का प्रांत प्रचारक बनाया गया। उसके पाँच वर्षों के बाद वर्ष 1969 में सुदर्शन जी अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख पद पर नियुक्त हुए। वर्ष 1979 में वे अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख बने और वर्ष 1990 में सहसरकार्यवाह का अत्यंत महत्वपूर्ण दायित्व संभाला। वर्ष 1977 में जब उनका केंद्र कोलकाता बनाया गया तो उन्हें पूर्वोत्तर भारत का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया। इन सभी जिम्मेदारियों को मा. सुदर्शन जी ने बड़ी प्रामाणिकता तथा सूझ-बूझ के साथ पूरा किया। उनके समय में अनेक नये कार्य शुरू किये गये। शारीरिक प्रमुख पद पर रहते हुए मा. सुदर्शन जी ने खड्ग-शूल, छुरिका आदि प्रचीन शस्त्रों के साथ नियुद्ध, आसन, खेल को संघ शिक्षा वर्ग के शारीरिक पाठ्यक्रम में शामिल कराया।

बौद्धिक प्रमुख रहते हुए दैनिक, साप्ताहिक, मासिक और समय-समय पर होने वाली अन्य बैठकों को एक सुव्यवस्थित स्वरूप तैयार कराया। एकात्मता स्त्रोत तथा एकात्मता मंत्र का प्रचलन उन्होंने ही कराया। मा. सुदर्शन जी नौ वर्षों तक सरसंघचालक पद पर रहे। अपने पूर्ववर्ती सरसंघचालक प्रो. रज्जू भैया की परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्होंने 21 मार्च, सन् 2001 ई. को सरकार्यवाह श्री मोहन भागवत जी को छठें ससंघचालक का कार्यभार सौंप दिया।

मा. सुदर्शन जी शिक्षा पूरी करके संघ कार्य में जुट गये।विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण उनके चिंतन में ऊर्जा, कृषि, उद्योग सहित अन्य व्यावसायिक वैज्ञानिक विषय छाये रहते थे। अध्ययनशीलता और विषय को गहराई तक समझने की उनकी प्रवृत्ति थी, इसलिए समाज और देश की अनेक समस्याओं का सटीक और दीर्घकालिक समाधान सहजता से प्रस्तुत किया। पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रचारक होने के नाते उन्होंने असम, नागालैंड आदि समस्याओं का गंभीर अध्ययन करके अपना विचार व्यक्त किया था। उन्होंने उस समय स्पष्ट शब्दों में कहा था कि बांग्लादेशी मुसलमान शरणार्थी नहीं, घुसपैठिए हैं। उन्हें तुरंत वापस भेजा जाना चाहिए। जबकि वहां से लुट-पिट कर आ रहे हिन्दुओं को सहानुभूतिपूर्वक शरण देनी चाहिए। इसी तरह पंजाब समस्या के बारे में उनकी सोच थी कि प्रत्येक केशधारी हिन्दू है तथा प्रत्येक वह हिन्दू सिख है, जो दसों गुरुओं और उनकी वाणी के प्रति आस्था रखता है। खालिस्तान आन्दोलन के समय उन्होंने राष्ट्रीय सिख संगत की नींव रखी थी, जो आज विश्वभर के सिखों की एक सशक्त संस्था है। इसी तरह महाराष्ट्र में सवर्ण-दलित के बीच बढ़ती दूरी, धर्मांतरण की समस्या, मुस्लिम समस्या जैसे विषयों सहित देश की विभिन्न राष्ट्रीय एवं सामाजिक समस्याओं के प्रति उनकी स्पष्ट तथा दूरगामी प्रभाव वाली राय होती थी।

मा. सुदर्शन जी गहन अध्येता थे। हिन्दू ग्रंथों के साथ ईसाई और इस्लाम ग्रंथों बाइबिल तथा कुरान का उन्होंने बारीकी से अध्ययन एवं विश्लेषण किया था। वे इस मत के थे कि देश के सभी धर्मावलंबियों के पूर्वज राम तथा कृष्ण ही हैं। इस्लाम की उनमें गहरी समझ थी। उनके भाषण को सुनकर लगता कि जैसे कोई इस्लामी विद्वान बोल रहा हो। राष्ट्रीय मुस्लिम संघ की स्थापना में उनका विशेष योगदान था। अनेक मुस्लिम और ईसाई धर्मगुरुओं से उनकी नियमित चर्चा होती रहती थी।विभिन्न समुदायों के बीच कटुता समाप्त करने के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहा करते थे। उन्होंने इस दिशा में कार्य करने के लिए वरिष्ठ स्वयंसेवकों से कहा था।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinerashtriya swayamsevak sanghrss

अमोल पेडणेकर

Next Post
भारतीय फिल्में गंभीरता से हो-हंगामे तक का

भारतीय फिल्में गंभीरता से हो-हंगामे तक का

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0