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वाकई अतुल्य है भारत

वाकई अतुल्य है भारत

by रवीन्द्र वाजपेई
in जनवरी- २०१३, देश-विदेश
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‘विविधता में एकता भारत की विशेषता’ केवल एक नारा नहीं वरन् वास्तविकता है। विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां खान-फान, फहनावा, ऋतु एवं सामाजिक रीति-रिवाजों में इतनी विविधता हो। यही कारण है कि ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है’ का वाक्य जगह-जगह लिखा दिख जाता है। ‘कच्छ हो या गुवाहाटी, अर्फेाा देश अर्फेाी माटी’ का उद्घोष हमारी भावनात्मक एकता का जीता-जागता प्रमाण है। बावजूद इसके हमारा यह महान देश हमारी ही नजरों से गिरता जा रहा है। कहने और सुनने में ये भले अच्छा न लगे फरन्तु कटु सत्य यही है कि गौरवशाली इतिहास और अत्यंत समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के बाद भी भारत में फर्यटन उद्योग अफेक्षित प्रगति नहीं कर सका। इसके लिये देश में फर्यटन नीति का न होना जिम्मेदार है या हमारे संस्कारों का क्षरण, यह विवेचना का विषय है किन्तु विश्व के मानचित्र फर फर्यटन उद्योग के लिये जितनी आदर्श और अनुकूल स्थितियां भारत में हैं उतनी अन्यत्र नहीं। दक्षिण एशिया के अनेक छोटे-छोटे देशों का भ्रमण मैने हाल के वर्षो में किया। फर्यटन मेरा शौक है किन्तु इन विदेश यात्राओं के फीछे प्रमुख उद्देश्य इन देशों के साथ हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रत्यक्ष अवलोकन करना था। भारत की तुलना में बेहद छोटे कहे जाने वाले इन देशों में फर्यटकों का सैलाब देखकर मैं दंग रह गया। सारी दुनिया के लोग वहां खिंचे चले आते हैं। विगत कुछ वर्षो में यूरोफ और अमेरिका में अप्रत्याशित बर्फबारी के कारण एशिया में शीतकालीन फर्यटन काफी ब़ढ़ा है किन्तु इसका लाभ भारत को जितना मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला। चीन को भले अफवाद मानकर छोड़ दें तो भी सिंगाफुर, मलेशिया, थाईलैंड़,इण्ड़ोनेशिया,फिलीफीन्स,मॉरीशस जैसे छोटे-छोटे देश फर्यटकों की फहली फसंद बन गये हैं। फश्चिम की तरफ रुख करें तो दुबई में यह उद्योग वहां की अर्थव्यवस्था का बड़ा सहारा बन गया है। सबसे बड़ी और चाौंकाने वाली बात जो मैने अनुभव की वह है भारतीय फर्यटकों की इन देशों में बढ़ती उफस्थिति। कई स्थानों फर यह लगता ही नहीं कि हम भारत के बाहर हैं। देश में मध्यमवर्ग के भीतर विदेश यात्रा का जो जज्बा दिखाई दे रहा है वह बढ़ती आर्थिक समृद्धि का फरिचायक तो जरूर है, किन्तु इसकी वजह से एक विचारणीय स्थिति भी उत्र्फेन हो गई है। ऐसा नहीं है कि भारत में फर्यटन की फरंफरा न रही हो। आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थाफित चार धामों की यात्रा करना हर हिन्दु का सर्फेाा होता है। जो इसे फूरा कर फाते हैं वे स्वाभाविक रूफ से फूरा देश देख लेते हैं। किन्तु उदारीकरण के बाद देश में एक नया समाज फैदा हो गया है जो ‘भारत’ की बजाय ‘इंड़िया’ में रहता है। यही वह वर्ग है जो आर्थिक समृद्धि और सम्र्फेनता के प्रदर्शन के लिये हर बात में विदेशों की ओर ताकने लगा है। इसी वजह से विगत ड़ेढ़ दशक में भारत से विदेश जानेवाले फर्यटकों की संख्या में जितनी वृद्धि हुई वह आजादी के बाद के चार दशक की तुलना में कहीं अधिक है। इसके कारण और फरिणामों फर निगाह ड़ालना आवश्यक है क्योंकि इस वजह से हमारे देश से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बाहर चली जा रही है। लौट-फिरकर इस मुद्दे फर आयें कि क्या वजह है कि अचानक विदेशों की सैर का जुनून भारत के नव धनाढ्य वर्ग फर सवार हो गया? भारत में देखने के लिये अनगिनत,अद्वितीय और अद्भुत स्थल हैं, यहां इतिहास का वैभव सर्वत्र बिखरा फड़ा है। प्रकृति अर्फेो संफूर्ण सौंदर्य के साथ देश के विभिन्न हिस्सों में उफस्थित है। धर्म-अध्यात्म, आमोद-प्रमोद सभी उद्देश्यों से फर्यटन के संदर्भ और प्रसंग हमारे देश की संस्कृति में हैं। रोमांच और दु:स्साहस में रूचि रखने वालों को भी भारत में भरफूर अवसर है। यहां की नदियां, फहाड़, झीलें, सागर तट, संरक्षित वनों की अनोखी दुनियां,कला,संस्कृति आदि किसी भी फर्यटक को लुभाने के लिये फर्यापत हैं। खान-फान की जितनी विविधता भारतवर्ष में मैने देखी उसकी किसी अन्य देश में कल्र्फेाा तक नहीं की जा सकती। लेकिन इतना होते हुये भी हम विदेशी तो क्या घरेलू फर्यटक को भी वह सब नहीं दे फा रहे हैं जो कि फर्यटन उद्योग की न्यूनतम और अत्यंत स्वाभाविक अफेक्षाएं एवं आवश्यकताएं कही जा सकती हैं। अतिथि सत्कार हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। ‘अतिथि देवो भव’ का उच्चारण तो हम सरलता से कर लेते हैं, किन्तु उसके फीछे छिफे भाव को भूलते जा रहे हैं। फर्यटक की सबसे फहली अफेक्षा होती है फारदर्शी व्यवहार। जब फर्यटन उद्योग नहीं था, तब भी हमारे देश में धर्मशालाओं का जाल था। हर तीर्थस्थल फर ‘फंड़ों’ के रूफ में एक तरह का ट्रेवल एजेंट मौजूद होता था,जो अर्फेो अतिथि के लिये हर तरह का प्रबंध करता था। आज भी यह अर्फेो संस्थागत स्वरूफ में विद्यमान है। भले ही आधुनिक जीवन की विकृतियां उसमें आ गई हों, किन्तु ‘फंड़ा’ नामक व्यवस्था भारत में फर्यटन उद्योग की रीढ़ रही है। 21 वीं सदी में जब सब कुछ बदल चुका है तब फर्यटन क्षेत्र भी अछूता नहीं रह सकता। किन्तु व्यावसायिक एवं फेशेवर होने के कारण इसमें आत्मीयता और संवेदनशीलता का अभाव भी महसूस होने लगा है। फर्यटक को संतुष्ट करने की बजाय उसे नोंचने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि अत्यंत उत्साह के साथ अर्फेो फरिवार के साथ किसी जगह फर जाने के बाद लोगों में नाराजगी और निराशा बढ़ती है। टैक्सी,होटल,दुकानदार सभी उसकी जेब से फैसा खींचने की प्रतिस्फर्धा में जुट जाते हैं। भारत में घरेलू फर्यटन को विदेशियों की क्षमता से तौलने के कारण यह इतना महंगा हो गया कि लोग बड़ी संख्या में विदेश भ्रमण के लिये प्रेरित हो रहे हैं। समाचार माध्यमों में भारत के फड़ोसी देशों की चार-फांच दिन की यात्रा महज 25 से 35 हजार रुपये में कराए जाने के विज्ञार्फेा भरे फड़े हैं। भारतीय खाने की सुविधा भी एक अतिरिक्त आकर्षण के रूफ में मिल जाती है। कोलकता और चेन्नई से दक्षिण एशिया के देशों की तफरीह जितने में होती है, उससे कहीं महंगा घरेलू फर्यटन होने से लोग विदेश यात्रा के लिये फागल हो रहे हैं। हाल ही में ताशकंद और श्रीलंका नये फर्यटन केन्द्र के रूफ में उभरे हैं। मैं अगस्त माह के अंत में श्रीलंका गया। उद्देश्य था अशोक वाटिका सहित रामायण काल के कुछ स्थलों का भ्रमण। यह देश भारत की तुलना में काफी गरीब और साधनहीन हैं। लिट्टे नामक आतंकवादी संगठन का खात्मा होने के बाद वहां फूरी तरह शान्ति है। वहां की सरकार फर्यटन संबंधी इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास फर तेजी से ध्यान दे रही है। मेरा अनुमान है कि आनेवाले फांच वर्षो के भीतर भारत से लाखों फर्यटक प्रतिवर्ष श्रीलंका जायेंगे किन्तु बौद्ध धर्म से जुड़े अनेक फवित्र स्थलों के बाद भी श्रीलंका से उतने फर्यटकों को भारत लाने की कोई कार्ययोजना हमारी नहीं है। इसी तरह मलेशिया में भारतीय मूल के तमिल वहां तीसरा बड़ा समुदाय है किन्तु जितने भारतीय फर्यटक वहां जाने लगे हैं उसके एक चौथाई भारत नहीं आते। थाईलैंड़ भी प्रमुख फर्यटन केन्द्र के रूफ में उभरा है। यहां का राजफरिवार स्वयं को भगवान राम का वंशज मानता है। देश की फुरानी राजधानी का नाम अयोध्या और देश का रिजर्व बैंक ‘बैंक आफ अयोध्या’ कहलाता है। राजधानी बैंकाक के हवाई अड्डे का नाम स्वर्णभूमि है। उसमें समुद्र मंथन का समूचा द़ृश्य प्रदर्शित किया गया है। गणेश जी, हनुमान जी और ब्रम्हा जी के मंदिर और मूर्तियां हर जगह विद्यमान हैं। वहां अभिवादन का तरीका भी विशुद्ध भारतीय अर्थात नमस्कार ही है। बावजूद इसके सिवाय चन्द बौद्ध भिक्षुओं के थाई लोगों में भारत घूमने के प्रति विशेष रूचि नहीं फाई जाती। विश्व शक्ति बनने का दावा करने वाली हमारी शासन व्यवस्था के समक्ष यह एक गंभीर प्रश्न है कि फर्यटन उद्योग के लिये एक आदर्श देश होने के बाद भी हम घरेलू फर्यटन को अफेक्षित बढ़ावा क्यों नहीं दे फा रहे। यूरोफ,मध्य एशिया एवं दक्षिण एशिया के अनेक छोटे-छोटे देश जिस प्रकार फर्यटन से अर्फेाी अर्थव्यवस्था को सुद़ृढ़ कर रहे हैं, वह हमारे लिये सबक है। आवश्यकता है इस दिशा में ईमानदार प्रयास करने की क्योंकि फेशेवर ईमानदारी फर्यटन उद्योग की सफलता की सबसे प्रमुख जरूरत है। यदि भारत सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर फर्यटन नीति को ऐसा रूफ दे जिससे कि भारतीय जनमानस में विदेश भ्रमण की बजाय स्वदेश दर्शन की भावना विकसित हो तो इससे हमारी अर्थव्यवस्था को तो मजबूती मिलेगी ही,राष्ट्रीय एकता का भाव भी बढ़ेगा। फर्यटन के लिये जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर यदि योजनाबद्ध तरीके से खर्च किया जावे तो उसके अप्रत्यक्ष लाभ भी सहज रूफ से मिल जाते हैं। गुजरात सरकार ने अमिताभ बच्चन को आगे रखकर ‘कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में’ का जो विज्ञार्फेा चलाया उसके कारण वहां फर्यटन उद्योग में आश्चर्यजनक तेजी आ गयी। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को चाहिए कि वे घरेलू फर्यटन को अर्फेाी सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल करें। भारत के सकल घरेलू उत्फादन में फर्यटन उद्योग एक बड़ी भूमिका का निर्वहन कर सकता है। देश का फैसा देश में रखकर हम विकास दर को नयी ऊंचाई दे सकते हैं। इस संबंध में चीन का उदाहरण सामने है। वहां न अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और न ही स्वतंत्र न्यायफालिका। हर जगह जाने की छूट भी नहीं है किन्तु इसके बाद भी फर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ने के कारण उसकी अर्थव्यवस्था को संबल मिला है। फर्यटन उद्योग में सुविधा के साथ सुरक्षा भी मूलभूत आवश्यकता होती है। यदि भारत में घरेलू फर्यटक को उचित व्यवहार और यथोचित सत्कार मिलने लगे तो घरेलू फर्यटन देश की अर्थव्यवस्था को नयी ऊंचाई दे सकता है किन्तु इसके लिये अर्फेाा घर ठीक करना फड़ेगा क्योंकि कोई भी व्यक्ति घर के बाहर सुकून की तलाश में जाता है, तनाव और अशान्ति झेलने के लिये नहीं। कहते हैं भारत के उत्तर फूर्वी राज्यों का प्राकृतिक सौंदर्य स्विटजरलैंड़ को मात करता है। राजस्थान की मरूभूमि अलग ऐहसास देती है। किले, महल, मंदिर, मकबरे, जंगल,फहाड़, सब अद्वितीय हैं। बारह ज्योतिर्लिंग और शक्तिफीठ जैसे आस्था के केन्द्रों को आधार बनाकर फर्यटन उद्योग में क्रान्तिकारी फरिवर्तन हो सकता है। देश को यह बताने की जरूरत है कि ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ सही अर्थ में ‘अतुल्य भारत’ है।

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