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भारत का वास्तुशास्त्र

भारत का वास्तुशास्त्र

by डॉ. रविराज अहिरराव
in मार्च २०१३, वास्तुशास्त्र
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ये समूचा विश्व ही मेरा घर है, ऐसी संकल्पना सामने रखकर यदि संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर की भूमिका के बीच इस विश्व के वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से विवेचन किया गया तो कई उद्बोधक निष्कर्ष सामने आएंगे। उनकी उक्ति के आधार पर समूची पृथ्वी को एक वास्तु, एक घर मान लिया गया तो इस वास्तु का प्रवेश द्वार जापान देश को मानना पड़ेगा, जबकि ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों की खुली जगह तथा उसके आसपास का पानी वाले क्षेत्र को घर का आंगन मानना चाहिए। इस घर का दिवानखाना भव्यता का प्रतीक अर्थात अमरीका है तो घर का कीचन युरोप है। इस घर के बच्चों के शयनकक्षों को एशिया तथा अफ्रिका खंड माना जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं मानी जाएगी। इस घर के मुख्य शयनकक्ष को चीन तथा घर के देवालय को भारत कहना अनुचित नहीं कहा जाएगा। यह जगह कोई और ले ही नहीं सकता।
वास्तुशास्त्र के अनुसार प्रत्येक देश एक बहुत बड़ा भूखंड है। जब किसी भूखंड का हम वास्तुशास्त्र के आधार पर विश्लेषण करते हैं तब उसका चौकोना या आयताकृत होना जरूरी होता है। पृथ्वी के सभी देशों के नक्शे अगर हमने देखे तो एक बात प्रमुख रूप से दिखाई देती इस देश की पूर्व दिशा बढ़ी अथवा अधिक विस्तारित हुई है। इसके अलावा पूर्व की ही ओर बंगाल का उपसागर तथा उसके माध्यम से आए हुए पानी भूखंड के उत्तर से पूर्व की ओर हुआ तो उसे प्रगति की दृष्टि से उत्कृष्ट माना जाता है। भारत के पूर्व की ओर बढ़ा हुआ तथा पानी युक्त होने के कारण इस क्षेत्र में प्रगति का ग्राफ लगातार बढ़ते क्रम में रहता है।

प्राचीन काल से ही भारतीय ऋषियो-मुनियोें ने वेद, उपनिषद के माध्यम से विश्व की चौदह विद्या और चौसठ कलाओं का विस्तृत अध्ययन किया है। इस समृद्ध, बौद्धिक तथा वैज्ञानिक स्तर पर पिछले कई शतक में भारत का स्थान उगते सूर्य की ही तरह मान्य किया गया है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमरीका जैसे विकसित तथा विश्व के पहले नंबर पर स्थान पाने वाले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पहले ही भारतीय शिक्षा व्यवस्था की तुलना करते हुए भारत शिक्षा के मामले मेंं अमरीका से थोड़ा पीछे है। सूचना तथा तकनीकी शिक्षा, मानव संसाधन विकास तथा विश्व के हरेक नए क्षेत्र में भारतीयों ने लगातार प्रगति की है।

भारत के नक्शे पर ध्यान डालने पर झेलम, सतलज, ब्यास अथवा गंगा, ब्रम्हपुत्र जैसी विशाल नदियों का अस्तित्व उत्तर पूर्व भारत में ज्यादा दिखाई देता है। उत्तर पूर्व में भारत में पानी का अस्तित्व बना रहना वास्तुशास्त्र की दृष्टि से अच्छा माना जाता है, इसलिए इस माध्यम से संचित किया गया जल भंडारण भारत की प्रगति के लिए लाभदायक साबित हुआ है। अर्थात वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर ईशान्य तथा पूर्वी परिक्षेत्र खुला होना चाहिए, लेकिन भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में हिमालय पर्वत की शिखाएं होने के कारण यह क्षेत्र ज्यादा कठोर हो गया है। इस दिशा से आने वाली सभी सात्विक ऊर्जा अपने देश तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा है और स्वाभाविक तौर पर यह इस देश की प्रगति में बाधक साबित हो रही है। हिमालय का अस्तित्व तथा उससे सृजित होने वाले जडत्व की बात देश की प्रगति के लिए हानिकारक साबित हो रही है। इसी हिमांचल की गोद में मानस सरोवर, अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे अत्यंत पवित्र देवालयों
भी इसी दिशा में होने के कारण ईशान्य दिशा के देवालयों की पवित्रता तथा उनसे के निर्मित होने वाली सात्विक ऊर्जा की अनुभूति इस देश को निश्चित रूप से मिली है। हिमालय की हिमनग बर्फ ही जलतत्व का मुख्य आधार है। यह भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुरूप बिल्कुल सटिक पक्ष है।

देश के पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में जमीन कम होती चली गई है। बंगाल के उपसागर तथा हिंद महासागर के माध्यम से जलतत्व का साम्राज्य फैला हुआ दिखाई देता है, इसका आशय यह हैै कि आग्नेय दिशा में बड़ा कट है। इसके साथ ही साथ अग्नितत्व में जलतत्व के अस्तित्व के कारण प्रगति के हर कार्य में परेशानी आना।

इस देश का दक्षिण भाग अत्यंत नुकीला है और फिर दक्षिण से नैऋुत्य से पश्चिम तक का परिक्षेत्र भी नोकदार है। भौगोलिक रूप से केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे राज्य दक्षिण से पश्चिम तक का समुद्री किनारा वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण-पश्चिम भाग नोकदार होने के साथा-साथ हिंद महासागर तथा अरब सागर के माध्यम से महाकाय जल-भंडारण का अर्थ भारी अस्थिरता है। इसी वास्तु दोष के कारण इस भूखंड पर रहने वाले लोगों को अथवा देश को भारी पैमाने पर आर्थिक अस्थिरता का सामना करना पड़ता है। वायव्य हिस्से में महाराष्ट्र उत्तर की ओर, गुजरात, राजस्थान तथा जम्मू-कश्मीर ये तीनों राज्य वायव्य दिशा में हैं। जब पश्चिम वायव्य हिस्सा घुमावदार हो तो इससे कलह, लड़ाई, मारपीट की आशंका बनी रहती है, इससे पैदा होने वाली अस्थिरता वास्तुशास्त्र के दुष्परिणाम को और बढ़ा देती है। पाकिस्तान के निर्माण के कारण उत्पन्न स्थिति को भी इसी तरह की वास्तुदोष में शुमार किया जा सकता है।

राजधानी नई दिल्ली देश के उत्तरी भाग में स्थित है। वास्तुशास्र के अनुसार गृह प्रमुख (अर्थात राष्ट्र प्रमुख) को नैऋत्य दिशा की ओर स्थानान्तरित करना ठीक रहता है, ऐसा करने से प्रभावशाली नेतृत्व सामने आ सकता है। प्रभावशाली नेतृत्व के कारण वास्तु (देश) का सुख तथा स्थिरता में वृद्धि होती है। उत्तर दिशा की ओर स्थानान्तरित नेतृत्व सदैव कमजोर तथा बचाव की दरकार वाला होता है।
अगर भारत को कुशल तथा प्रभाव नेतृत्व की दरकार है तो देश की राजधानी बंगलूरू में होनी चाहिए।

बंगलुरु देश के नैऋत्य की ओर है, यदि राजधानी बंगलुरु को बनाया गया तो भारत की स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी। चीन के नैऋत्य दिशा में विशालकाय हिमाचल पर्वत होने के कारण इस देश का नैऋत्य क्षेत्र कठोर हो गया है, इसके कारण चीन देश पूरे विश्व में कुशल नेतृत्व के लिए ख्यात है। यहां की खबरें विश्व स्तर पर चर्चित होती हैं।

भारतीय संसद की इमारत गोलाकार है। ये गोलाकार इमारत कई घोटालों, भ्रष्टाचार के मामलों पर राष्ट्रीय बहस की साक्षी बन रही है। यह इमारत वास्तु दोष से ग्रसित है, उसे वास्तु दोष मुक्त कर दिया गया तो इस इमारत के अंदर होने वाली घोषणाएं देश हित वाली होंगी। अगर अमरीका के वाइट हाऊस के वास्तु के बारे में विचार करें तो वाइट हाऊस की इमारत चौकोनी है, जो वास्तुशास्र के अनुसार पूरी तरह फिट है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार पश्चिम और वायव्य ये दोनों क्षेत्र व्यावसायिक दृष्टि से अतिशय महत्वपूर्ण हैं और इसी के अनुरूप मुंबई, राजस्थान और गुजरात ये राज्य उत्कृष्ट व्यापार केंद्र के रूप में चर्चित हैं। मुंबई, राजस्थान और गुजरात राज्य में वास्तु की दृष्टि से अनेक दोष हैं, इस दोष के कारण ही इन राज्यों को लगातार संकट तथा संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ रहा है। विपरीत परिस्थिति को मात देकर भारत ने कच्छप की गति से ही क्यों, नहीं, पर की है। इसका कारण वास्तु की सकारात्मक स्थिति ही है। देश में चल रही अध्यामिक गतिविधियों के कारण भी देश में आये संकट के बादल जल्दी छंट गए। भारतीय संस्कृति ने यह बार-बार सिद्ध किया है कि जहां वास्तु तथा आध्यात्म का संगम होता है,तभी सच्चे अर्थों में मानसिक शांति और समाधान प्राप्त होता है और इसी कारण देश की प्रगति का ग्राफ संघर्ष तथा विपरीत स्थिति में भी बढ़ता ही जा रहा है। सार रूप में कहें तो देश की वास्तविक प्रगति वास्तु तथा अध्यात्म दोनों पर ही टिका हुआ है।
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