हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
स्त्रियों के प्रति स्वामी विवेकानंद की भूमिका

स्त्रियों के प्रति स्वामी विवेकानंद की भूमिका

by मंगला ओक
in महिला, मार्च २०१३, सामाजिक
0

देखते-देखते 21 वीं सदी के 12 साल गुजर गये। आज स्त्री शिक्षा और अर्थाजन के क्षेत्र में पुरुषों के बराबर किंबहुना आगे ही नजर आती है। व्यक्ति स्वतंत्रता की पहचान, पुरुषों के कन्धे से कन्धा मिलाकर स्वत: का स्थान निर्माण करने की सिद्धता, समाज में सहज और स्वतंत्र बर्ताव, रहन-सहन में परिवर्तन इन सभी के साथ जीवन को जो एक गति मिली है उसने एक शतक में बहुत बडा परिवर्तन किया है। कई समाज सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर जोर दिया वे सोचते थे कि स्त्रियों की शिक्षा प्राप्ति के बाद कई प्रश्नों का हल अपने आप निकल आयेगा। एक बात माननी पडेगी कि पिछले शतक तक संकुचित और बंदी जीवन, कई रुढ़ियों, परंपराओं आदि से मुक्त होकर आज की नारि खुली हवा में सांस लें रही है।

इसलिये, आज की स्त्री के जीवन का निरीक्षण किया जाये तो क्या यह परिवर्तन उन्हें विकास की ओर ले जानेवाला है? विकास किसे कहा जाये? क्या स्त्रियों का स्वयं की ओर देखने का दृष्टिकोन बदला है? क्या समाज का स्त्रियों की ओर देखने का दृष्टिकोन बदला है? बदलती समाज व्यवस्था, कुटुंब व्यवस्था, औद्योगिकरण, संस्कार हीनता, जीवन मूल्यों के प्रति उदासीनता इत्यादि का परिणाम सभी की तरह स्त्री पर भी हुआ है। अपने स्त्रीत्व की रक्षा और शालीनता क्या पिछडेपन की निशानियां बनती जा रही हैं? और सुधार का अर्थ पुरुषों की बराबरी से बोलना, रहना व्यवहार करना इत्यादि बनाता जा रहा है। स्त्री-पुरुष समानता शब्द ही मूल रुप से अनाकलनीय है। स्त्री-पुरुष दोनों ही भिन्न गुणधर्मों के जीव हैं। तो वे समान कैसे हो सकते है? स्त्रीत्व को कम आंकना ही गतल है। स्त्रियों पर होनेवाले अत्याचार और उनकी भीषणता बढ़ती ही जा रही है। यह सब कहां जाकर थमेगा? क्या इसका कोई मार्ग मिलेगा?

स्वामी विवेकानंद के विचार पश्चिमी राष्ट्र भी स्वीकार कर रहे हैं, क्योंकि ये विचार मूलभूत हैं जिसमें अखिल मानव जाति का विचार किया गया है। स्त्री, चाहे वह भारतीय हो या विदेशी स्वामी विवेकानंद का का दृष्टिकोन दोनों के लिये ही आदरपूर्ण था। उनका संस्कृति और तत्वज्ञान का अभ्यास सूक्ष्म था। स्त्रियों के विषय में बात करते समय वे कहते थे कि भारतीय स्त्रियों का आदर्श, सीता, सावित्री, दमयंती इत्यादि हैं। वेद, पुराण भले ही नष्ट हो जायें परंतु इनके चरित्र जीवित रहने चाहिये। हम इन्हीं की संतानें हैं। वैदिक काल में लडकियों को लडकों के साथ ही शिक्षा दी जाती थी। गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा, सुलभा, वाचकनवी, लीलावती इत्यादि कई महिलाएं विदुषि और ब्रह्मवादिनी थीं। उन्हे विद्वानों की सत्रा में सम्मान प्राप्त था। उन्हें हर तरह की स्वतंत्रता थी। भारत के इतिहास में यहां की संत परंपरा में भी कई महान स्त्रियों का समावेश रहा। स्वामी जी कहते हैं कि सेवाभाव और आध्यात्मिकता उन स्त्रियों के स्वभाव में ही था।

स्वामी जी अत्यंत वैराग्य संपन्न संन्यासी थे। उनकी परम शिष्या भगिनी निवेदिता कहती हैं कि ‘उनको स्त्रियों से डर नहीं लगता था। उनकी अनेक शिष्याएं थीं, सहकर्मी महिलाएं थीं और सहेलियां भी थीं। वे इन लोगों के श्रेष्ठ गुण और चरित्र देखते थे। पवित्रता का जो आदर्श उनके सामने प्रगट होता था वे उसकी उपासना करते थे। वे अपने शिष्यों से कहते थे कि ‘हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिये कि हमारा उद्देश्य पिछडे लोगों और स्त्रियों का उद्धार करना है। पश्चिमी देशों के प्रवास में उनका अनेक स्त्रियों से परिचय हुआ। सुशिक्षित, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, निर्भय और प्रेम से ओत प्रोत नारि गुणों का उन्हें दर्शन हुआ। स्त्रियों ने वात्सल्य भाव से उनकी देखभाल की। वे कहने हैं कि स्त्रियों प्राप्त पुत्रवत् प्रेम के लिये शब्द भी कम पड जायेंगे। उन्होंने कई संसार देखे, आध्यात्मिक रुप से उन्नत नारियां देखीं। शिकागो में जिनका घर उनका निवासस्थान रहा उन मेरी हेल को वे ‘मदर’ कहते थे। उनकी 2 बेटियां और उनके जेठ की दो बेटियां चारों ही स्वामी जी की बहनें थीं। केंब्रीज की ओली बुल को जिन्होंने कलकत्ता में भगिनी निवेदिता विद्यालय को आर्थिक सहायता दी, स्वामी जी धीरामाता कहते थे। मिशिगन की एमिली जॉन लॉयन के पास उसी तरह स्वामी जी अपने पैसे सुरक्षित रखा करते थे जैसे कोई अपनी मां के पास रखता है। एक बार स्वामी जी ने कहां कि ‘मुझे प्रेम हो गया है’ तो एमिली लायन ने पूछा ‘वो भाग्यवान लडकी कौन ह?’’ स्वामी जी ने हंसकर जवाब दिया कि ‘वह कोई लडकी नहीं संगठन है।’’ स्वामी जी के विचारों और कर्मों का प्रभाव इतना था कि कई विदेशी स्त्रियों ने भारत में आकर सेवा कार्य की शुरुवात की। इंग्लैंड की श्रीमती चार्लोटी सोवियर अपने पति के साथ स्वामी जी की शिष्या बनी और बाद में यह दंपत्ती अपनी मालमत्ता बेचकर भारत आ गये। स्वामी जी इच्छानुसार उन्होंने हिमालय में मायावती नामक स्थान पर अद्वैत आश्रम की स्थापना की। जोसेफाइन मैलिलअड , हेनरिटा मूलर, क्रिस्ताइन ग्रीन स्टायड्ल, मैडम एम्मा काफ इत्यादि अनेक रुप गुण संपन्न, धनवान स्त्रियां अध्यात्म भाव से प्रेरित हुईं। स्वामी जी से आठ साल बडी श्री रामकृष्ण परमहंस जी की सहधर्मचारिणी शारदा मां को स्वामी जी माता मानते थे। और अपने से केवल चार वर्ष छोटी भगिनी निवेदिता को वे अपनी कन्या मानते थे। उनका विलक्षण भाव इसी से प्रतीत होता है।

स्वामी जी जब युवा थे उसी समय बंगाल में स्त्री शिक्षा का प्रसार धीरे-धीरे शुरु हो गया था। कुछ बंगाली बालाएं तो स्नातक भी थीं। स्वामी जी का विश्वास था कि ‘‘लडकियों को शिक्षा देने पर वे स्वत: ही अपने प्रश्नों को हल कर लेंगी। स्त्री शक्तिस्वरुपा हैं, वह रुप से साक्षात लक्ष्मी हैं, गुणों से सरस्वती है, वह साक्षात जगदंबा है। जब ऐसी हजार जगदंबा तैयार हो जायेगी तो मैं सुख से देह त्याग कर सकूंगा। संपूर्ण समाज की धात्री भारतीय स्त्री हृदय से कार्य करेगी और अपने साथ ही समाज की भी उन्नती करेगी।’’ वे आव्हाहन करते थे कि स्त्रियों को मूल्याधारित शिक्षा, पारंपरिक और आधुनिक शास्त्र, इतिहास और कला की शिक्षा दें, जिससे वे आत्मनिर्भर बनेंगी। लडकियों को सिखाएं कि न कम उम्र में विवाह करें, न गर्भधारण करें और न ही कमजोर बच्चों को जन्म दें। ‘कन्याप्यव पालनीया शिक्षणीय अतियत्नतया’।
विवाह केवल इंद्रीय सुखों के लिये नहीं करना चाहिये। प्रार्थना, व्रत, उपासना से वंश को बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिये। मातृत्व एक मंगल वरदान है। पति-पत्नि के बीच का संबंध परस्पर पूरक, एक दूसरे को आधार देनेवाला होना चाहिये। मातृत्व की कल्पना में स्वार्थ भाव नहीं है। संत ज्ञानेश्वर के अनुसार यह भावना ‘अनाक्रोश क्षमा’ के समान है। इससे केवल परिवार का ही नहीं समाज का स्वास्थ्य सुधारेगा। इस प्रकार के मंगलमय वातावरण में निर्माण होने वाली, बढनेवाली पीढ़ी व ऐसा गृहस्थाश्रम संपूर्ण समाज की देखभाल करता है। वे एक उज्ज्वल विचार करते हैं कि स्त्री संन्यास धर्म अधिकारिणी है क्योंकि उसमें स्वभावत: ही वैराग्य होता है। उसपर विवाह के लिये जबरजस्ती नहीं करना चाहिये। परंतु यह व्रत कठिन है और विवाह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसी से पति-पत्नी सहभाव, निष्ठा, रिश्तों की मिठास, जिम्मेदारी का कर्तव्य का बोध होता है। और पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारों का आदान-प्रदान होता है।

पूर्वी और पश्चिमी समाज का स्त्री की ओर देखने का दृष्टिकोन बहुत भिन्न है। पाश्चात्य दृष्टिकोन में नारिशक्ति का केन्द्र पत्नित्व में है। वह पत्नी, सखी, सहेली हो सकती है। पूर्वी दृष्टिकोण में स्त्री को मां का सम्मान प्राप्त है। पश्चिमी सभ्यता में घर की जिम्मेदारी पत्नी संभालती है और पूर्वी सभ्यता में यह जिम्मेदारी मां, सास तब तक संभालती है जब तक नई बहू में भी मातृत्व का विकास न हो जाये।
स्वामीजी कहते हैं ‘हे नारी तुझे केवल हांड-मांस के शरीर संबंधों में बांधा जाना सही नहीं है। जिसके सामने जाने की काम भावना की हिम्मत न हो और जिसे पशुत्व छू भी न सके ऐसा शब्द है केवल ‘मां’।’ उनके अनुसार स्त्री-पुरुष समाजरुपी पक्षी के दो पंख हैं। दोनों समाज रुप से सामर्थ्यवान होंगे तभी समाज का विकास होगा। स्वयं की रक्षा के लिये आत्मसंरक्षण की विधिवत शिक्षा लेने पर भी उनका जोर रहता था। स्त्री अबला है, उसे आधार की आवश्यकता है जैसी पारंपरिक समझ से अलग हटकर वे कहते हैं कि स्त्री सामर्थ्यवान बने। स्त्री का स्त्रीत्व कायम रखते हुए उसकी उन्नती और विकास होना चाहिये।

स्वामी जी के विचार अत्यंत उदात्त और आदर्श है। आज की परिस्थिति में इन विचारों को प्रत्यक्ष जीवन में कैसे अपनाया जाये? क्या यह दायित्व केवल स्त्रियों का है। दोषों की विवेचना करते हुए बैठे रहने की जगह सकारात्मक वातावरण निर्माण करने के लिये स्वामी जी के विचारों का बहुत अभ्यास करना पडेगा। कवियत्री स्व. पद्मा गोले के अनुसार मैं शक्तिस्वरुपा छूं- यह कार्य मुझे करना है और मैं कर सकती हूं ऐसा आत्मविश्वास मन में रखना चाहिये। मैं-हम संगठित होने का प्रयत्न करेंगे। तभी इस समाज का भविष्य निखरेगा। जिन-जिन क्षेत्रों में महिलाएं होंगी वहां वे परस्पर ईर्ष्या न कर, अभ्यास, चिंतन, मनन, ध्यान, बुद्धि का समतोल, आहार, सामाजिक, राजनैतिक, वैश्विक जगत के प्रति जागरुकता, आत्मविश्वास, निर्भयता, व्यायाम, देशधर्म परंपरा इत्यादि केवल शब्द नहीं रहेंगे। परिवार एक संगठन है। उसके ताने-बाने सभी जानते हैं। भारत की 50-60 करोड़ महिलाओं ने केवल महिलाओं का ही नहीं वरन संपूर्ण समाज का विशाल चित्र अपनी दृष्टि में रखकर अपने छोटे से परिसर में ‘कृणवंतो विश्वं आर्यम’ की उक्ति के अनुसार कार्य करें। स्वामी की 150 वी जयंती के उपलक्ष्य पर यही उन्हें सही मायनों में श्रद्धांजली होगी।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: empowering womenhindi vivekhindi vivek magazineinspirationwomanwomen in business

मंगला ओक

Next Post
भारत की  विदूषी महिलाएं

भारत की विदूषी महिलाएं

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

1