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स्वाभिमान शून्य नेतृत्व

स्वाभिमान शून्य नेतृत्व

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल -२०१३, संपादकीय
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स्वाभिमान का अर्थ स्वत्व को पहचान कर व्यवहार करना होता है। जिस स्वाभिमान के कारण नयी ऊर्जा का संचार होता है, ऐसे स्वाभिमान को अभिमान भी कहते हैं, यह स्वाभिमान व्यक्ति, समाज और राष्ट्र इन सभी में होना जरूरी होता है। लेकिन वर्तमान में क्या भारत के राजनीतिक स्तर पर स्वाभिमान शून्य नेतृत्व कार्यरत है? वर्तमान में ऐसा सवाल अधिकांश भारतीय लोगों के मन में उठ रहा है। भारत के प्रति लम्बे समय से द्वेष रखने वाले पाकिस्तानी सरकार के प्रधानमन्त्री राजा परवेज अशरफ अजमेर की दरगाह में माथा टेकने के लिए भारत में आये। पाकिस्तान के सैनिकों ने कुछ दिनों पूर्व ही अपने भारतीय जवानों के सिर काट दिये थे। इस घटना के प्रति पूरे भारत में उठा आक्रोश अभी ठण्डा भी नहीं पड़ा था कि यू.पी.ए. सरकार ने ‘रेड कार्पेट’ बिछाकर पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री राजा परवेज अशरफ का स्वागत किया। उनको शाही मेजबानी दी। यह तो समस्त भारतीय लोगों के जख्म पर नमक मसलने जैसी घटना है। जिस पाकिस्तान ने भारतीय जवानों के सिर काटे, उस कपटी, कायराना पाकिस्तानी प्रवृत्ति का विरोध करने के स्थान पर उसको स्वागत की सलामी देने की लाचारी तथा स्वाभिमान शून्य कृत्य यू.पी. ए. सरकार तथा उसके विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने किया है।

लेकिन इस घटना को अजमेर दरगाह के मुख्य दीवान जैनुल आबेदिन अली खान ने भारतीय सैनिकों का शिरोच्छेदन करने वाले पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री का स्वागत न करने का निर्णय लिया। अजमेर-जयपुर के वकील संगठन, व्यापारी संगठनों तथा सभी सामान्य जनता ने काम-काज बन्द करके अशरफ के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त किया, ऐसा होते हुए भी यू.पी.ए. सरकार को भारत की जनता का मत क्या है, यह पता नहीं चला, इसे क्या कहा जाये, विदेश नीति या स्वाभिमान शून्य लाचारी? पाक सैनिकों के कायरतापूर्ण कृत्य का संसद में विरोध करते समय पाकिस्तान के प्रति नरम नीति अमल में नहीं अपनायी जाएगी, ऐसा भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में स्पष्ट किया था। पर संसद में कही गयी बात को भुलाकर उनके ही मन्त्रिमण्डल के विदेश मन्त्री ने पाकिस्तान के अशरफ का स्वागत किया। विदेशी मन्त्री ने यह सब कुछ सरकार की सहमति से ही किया। अशरफ की खातिरदारी करने का सीधा मतलब है शिरोच्छेद करने वाले भारतीय सैनिकों तथा सम्पूर्ण भारत का अपमान करना होगा।

अतिथियों का स्वागत ‘अतिथि देवो भवः’ जैसा होता है, अपनी भारतीय परम्परा से भले ही जुड़ा हो तो भी पाकिस्तान लगातार भारत का अहित देखने वाला, सदैव खुराफात करने वाला एक बेईमान पड़ोसी देश है। पाकिस्तान की बेईमानी की सूची इससे भी बड़ी है। पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने अजमेर शरीफ पर माथा टेकने का प्रदर्शन कर सिर्फ एक ढोंग ही किया है।विश्व में शान्ति रहे तथा पाकिस्तान की प्रगति हो, ऐसी राय उन्होंने अजमेर शरीफ के रजिस्टर में दर्ज की। यह राय कथनी तथा करनी में अन्तर दिखाने वाली ही कही जाएगी। शान्ति की भाषा बोलकर, युद्ध का नगाड़ा बजाने की पाकिस्तानी प्रवृत्ति से भारत को अच्छी तरह से समझना जरूरी है। अजमेर शरीफ का दौरा करने के बाद पाकिस्तान ने इसी प्रवृत्ति को उजागर किया है। जम्मू-कश्मीर में सी.आर. पी. एफ. सैनिकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करके पांच जवानों को मार डाला। भारत सरकार ने बिरियानी से स्वागत करके आस्वस्त किया। पाकिस्तान ने तुरन्त ही पांच दिन में पाक समर्थित आतंकवादियों की ओर से गोलीबारी करवा कर भारत को आस्वस्त किया। भारत की आस्वस्त करने तथा पाकिस्तान की आस्वस्त करने की प्रवृति सामने आयी। भारत के प्रत्येक सकारात्मक कदम का पाकिस्तान ने सदैव नकारात्मक उत्तर दिया है। कश्मीर पर दृष्टि रखकर आतंकवादियों ने एक छद्म युद्ध ही छेड़ रखा है। इन आतंकियों ने भारतीय संसद पर हमला, मुबई में हमला करके सैकड़ों लोगों की जान ली है। कभी मुंबई के उपनगरीय रेलवे स्टेशनों पर बम विस्फोट तो कभी हैदराबाद में बम विस्फोट, इस तरह से पाकिस्तान समर्थित बम धमाकों की शृंखला लगातार जारी है। बन्धुत्व की भाषा का उपयोग करके पाकिस्तान ने आस्तीन में सांफ वाली कहावत को ही चरितार्थ किया है। ऐसी मानसिकता रखने वाले पाकिस्तान को सौजन्य दिखाने का अर्थ है सिर देकर पगड़ी खरीदना। इसी तरह अपने देश के नेता कार्य कर रहे हैं। परहेज न करने से रोग ठीक नहीं होता, या आत्मा को गिरवी रखकर राष्ट्र का गौरव नहीं बढ़ाया जा सकता। इस तरह की लाचारी से परिणाम के रूप में ऐसी ही अशान्ति के बीज बोये जाते हैं। यू.पी.ए. सरकार के प्रधानमन्त्री डॉ मनमोहन सिंह तथा इसी सरकार के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद जैसे निस्तेज भारतीय नेताओं की मण्डली भारतीय समाज के सामने नकारात्मक छवि प्रदर्शित कर रही है। हम खुद ही अपने शत्रु बन बैठे हैं, क्योंकि हम सभी ने इस स्वाभिमान शून्य, निस्तेज, विचारहीन लोगों को देश की सरकार चलाने का अधिकार दे रखा है।

जिस देश, समाज, व्यक्ति ने अपना स्वाभिमान गंवाया है, वह समाज दुर्बल और कर्तव्य शून्य हो जाता है, पर अपने भारत देश में जब-जब समाज का स्वाभिमान गिरा है, तब-तब साधु-सन्तों ने अपने त्यागमय जीवन तथा ओजस्वी वाणी से देश तथा समाज में स्वाभिमान को फिर जगाने में अहम योगदान दिया है। महान शक्ति अपने हृदय में वास कर रही है। इस बात का साक्षात्कार महात्माओं ने भारतीय समाज में कराया है और इसी माध्यम से बचेंगे तो और भी लड़ेंगे, ‘अपनी झांसी नहीं दूंगी’, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, ‘उतिष्ठ, जाग्रत!’ तथा ‘हां मैं कहता हूं यह हिंदू राष्ट्र है’ ऐसी ललकार भी देश में उठती रही है।

नरेन्द्र यानी स्वामी विवेकानंद के विचारों का विश्व में जो प्रभाव पड़ा, वह उनके वस्त्रों तथा अध्ययन का नहीं, अपितु उनके शब्दों के पीछे की श्रद्धा, त्याग, सेवा-भावना, तपस्या तथा ज्वलंत राष्ट्राभिमान की भावना जैसी बातों के कारण था। इस कारण उनके मुंह से निकला हर शब्द तेजस्वी तथा प्रभावशाली बन गया। भारत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए आप हम सबको नरेन्द्र जैसे व्यक्तित्व एवं नेतृत्व की
नितान्त आवश्यकता है, जो भारतीयों के आन्तरिक तथा वाह्य तेजस्विता का आह्वान करने वाला साबित होगा, जो इस देश को पुनः तेजस्वी बनाएगा।

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