ग्रीष्मावकाश: कला और गुणों को पहचानने का समय

स्कूलों में गर्मी का अवकाश शुरू होते ही बच्चों का अभिभावकों से यही सवाल होता है, मैं बोर हो रहा हूं, मैं क्या करूं? सवाल जितना मासूम और आसान लगता है, उसका हल उतना ही मुश्किल है। अपनी दैनिक दिनचर्या में स्कूल के दिनों में ये बच्चे जितने व्यस्त होते हैं, उतना ही व्यस्त इन्हें अवकाश में रखने के लिए जरूरी है पढ़ाई से अलग इन्हें कुछ अलग काम करने के लिए प्रेरित करना। उनकी ऐसी रुचियों को बढ़ावा देना, जिन्हें वे स्कूल के दिनों मेंं पूरा नहीं कर पाते हैं।

आजकल तकनीकी शिक्षा, कम्प्यूटर की शिक्षा भी जरूरी हो गयी है और जागरूक तथा समय के साथ चलने वाले अभिभावक अपने बच्चों को इनमें भी प्रवीण बनाना चाहते हैं। आजकल बच्चे अपनी दिनचर्या का आधे से ज्यादा समय मेज-कुर्सी पर बैठे-बैठे बिताते हैं, जिससे उनका शारीरिक व्यायाम नहीं हो पाता। बच्चे शारीरिक रूप से बढ़ते तो हैं, परन्तु स्वस्थ शरीर का निर्माण व्यायाम के अभाव में नहीं होता। ऐसे में गर्मी की छुट्टियां उनके शारीरिक स्वस्थ के लिए लाभदायक है। मैदानी खेल, कसरत, सूर्य नमस्कार आदि से वे अपने शरीर को स्वस्थ बनाते हैं।

इन दिनों बच्चों का न केवल शारीरिक स्वास्थ्य सम्भव है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी किया जा सकता है। आजकल समाज में जिस प्रकार का वातावरण है, उनमें कई ऐसे तत्व हैं, जो बच्चों में गलत संस्कार डाल रहे हैं, ऐसे में उन्हें अपनी संस्कृति के करीब लाने, उसकी पहचान कराने, हमारे सभी महापुरुषों और श्रद्धा-स्थलों की जानकारी देने से वे हमारी संस्कृति से अवगत होंगे। इस सभी बातों को दो माह में एक साथ करना थोड़ा मुश्किल लगता है। आज जब माता-पिता दोनों ही कामकाजी हैं और एकल परिवार प्रणाली बढ़ रही है, ऐसे दौर में बच्चों को इन सब कार्यों के लिए प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक है कि कोई स्वयं प्रेरणा से इनकी जिम्मेदारी उठाएं। समाज में कई ऐसे विद्यालय हैं, कई ऐसी संस्थाएं और समाजसेवी संगठन हैं, जो ग्रीष्म कालीन शिविर या समर कैम्प के माध्यम से बच्चों को ये सभी सुविधाएं मुहैया कराते हैं। एक ही स्थान पर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य बढ़ाने के दृष्टिकोण से ये शिविर विभिन्न स्थानों पर आयोजित किये जाते हैं।

सन 2000 से जबलपुर के माबर्र्ल रॉक्स विद्यालय में इस प्रकार के ग्रीष्म कालीन शिविर लगाये जा रहे हैं। 1 मई से 30 जून के बीच चलने वाले इन शिविरों की अवधि 15 दिन की होती है। तीसरी कक्षा से लेकर कॉलेज स्तर तक के विद्यार्थियों के लिए लगाये जाने वाले इन शिविरों में बच्चों के सर्वांगीण विकास की ओर ध्यान दिया जाता है। पूरी तरह से रहिवासी इन शिविरों की शुरुआत योग, प्राणायाम सेे होती है। इसके बाद इन्हें रामायण और गीता जैसै धार्मिक ग्रन्थों से मिलने वाले उपदेशों से अवगत कराया जाता है। इनके भविष्य की दृष्टि से आवश्यक कुछ विषयों जैसे गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि का अभ्यास करवाते हैं। इनके भोजन में शुद्ध शाकाहारी पदार्थ होते हैं, जिन्हें अत्यन्त शुद्धता से पकाया जाता है। शाम चार बजे से ड्रॉइंग तथा पेन्टिग और कलात्मकता को बढ़ावा देने वाले अन्य अलग-अलग कार्य करवाये जाते हैं। शाम का समय होता है मैदानी खेलों का जिनमें क्रिकेट, बास्केटबॉल, तैराकी,घुडसवारी आदि खेेलों का समावेश है।
सप्ताह में एक बार इन्हें शिविर से बाहर ट्रेकिंग करने या नेशनल पार्क जैसे स्थानों पर सैर के लिए भी ले जाया जाता है।

इसी प्रकार इन्दौर के सत्य साई विद्यालय में भी ग्रीष्म कालीन शिविर लगाया जाता है। इस शिविर का नाम है – इंडियन कल्चर एण्ड स्पिरिचुएलिटी कैम्प। आठ दिन के इस कैम्प में भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का ज्ञान देने, इसका प्रचार-प्रसार करने तथा नयी पीढ़ी से इसका परिचय कराने के उद्देश्य से सभी कार्य किये जाते हैं। इनकी दिनचर्या की शुरुआत भी योग, ध्यान और प्राणायाम से ही होती है। बच्चों को कहानियों और लेक्चर के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जाता है। उनके अन्दर के कला गुणों के विकास के लिए उन्हें कोई पटकथा दी जाती है, जिसके अलग-अलग पात्रों को चुनकर उन्हें अभिनय करना होता है। बच्चों को जो ज्ञान दिया जाता है, जो सिखाया जाता है, उस पर आधारित प्रश्न-मंच प्रतियोगिता होती है, इससे यह पता चलता है कि शिविर में आने के बाद से बच्चों ने कितना ग्रहण किया है। शारीरिक क्षमताओं के विकास के लिए यहां मैदानी खेल भी होते हैं। बास्केटबॉल बॉलीबॉल, क्रिकेट जैसे समूह में खेले जाने वाले खेलों से उनमें सामूहिकता की भावना का विकास होता है।

अभिभावकों की सभी अपेक्षाओं को पूर्ण करने वाले ये शिविर बच्चोंं के अवकाश को पूर्णता देने वाले होते हैं। बाहर घूमने,जी भरकर टी.वी. देखने, कम्प्यूटर पर गेम खेलने, कॉमिक्स पढ़ने के साथ-साथ अगर कुछ दिन इन शिविरों में बिताये जाएं तो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास होगा और समाज को सात्विक तथा सकारात्मक सोच वाले नागरिक मिलेंगे।

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