सेवाव्रती सत्यनारायण लोया

* आपने उद्योग, आध्यात्म और सेवा इत्यादि क्षेत्रों में यश अर्जित किया है। हमें आपका तथा आपके परिवार का परिचय दीजिए?

राजस्थान के नागौर शहर में अप्रैल 1930 को मेरा जन्म हुआ। विद्यालयीन शिक्षा पूर्ण करने के बाद मुंबई में 1951 में बांगड‡सोमानी ग्रुप में साधारण लिपिक के रूप में नियुक्त हुआ। कोई डिग्री नहीं थी। मैंने कभी नौकरी को नौकरी की तरह नहीं देखा, मुझे जो अवसर मिला, मैं काम करता गया। इसी कारण मुझे वहां से धीरे‡धीरे अवसर मिले और मेरी पदोन्नति होती रही। 54 वर्षों की अविरल सेवा के बाद एग्जिक्युटिव पोस्ट से निवृत्त हुआ। इसी दौरान मैंने काम को ही अपना भगवान समझा। जिस तरह हम भगवान की पूजा करते हैं, उसी तरह मैंने अपना काम किया और इसी कारण मुझे अच्छा फल मिला। उसके पश्चात मैं राम रत्ना समूह की राम रत्ना वायर्स लि. एवं आर.आर.केबल्स लि. का डायरेक्टर रहा हूं।

मेरी धर्मपत्नी श्रीमती सरस्वती देवी बोरीवली क्षेत्रीय महिला समिति की स्थापना काल से वरिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में सेवारत रही हैं। इसी समिति की प्रथम अध्यक्षा भी रही हैं।

मेरे तीन पुत्रों में से एक अनन्त दिल्ली में निवास करते हैं व गौरी शंकर एवं अशोक मुंबई में मेरे साथ निवास करते हैं। ज्येष्ठ पुत्री उमा श्री रामेश्वर लाल जी काबरा के ज्येष्ठ पुत्र त्रिभुवन प्रसाद काबरा से ब्याही गयी हैं। दूसरी पुत्री पुष्पा स्व. सुगम चन्द्र जी लाहोरी के पुत्र अनील लाहोरी से ब्याही गयी हैं। तीनों पुत्रों का व्यवसाय के साथ आध्यात्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं में हमेशा से ही योगदान रहा है।

* आपके सामाजिक कार्य की शुरुआत कहां से हुई? आपकी प्रेरणा क्या है?

सन 1968 में मेरा सम्पर्क रामेश्वर लाल जी काबरा से हुआ। वे ही मेरे सामाजिक कार्य के गुरु हैं और मेरी प्रेरणा भी। पिछले 43 वर्षों से मैंने माहेश्वरी प्रगति मण्डल (मुंबई माहेश्वरी समाज की एक मात्र संस्था) के विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए चार सत्र तक मन्त्री पद तथा दो सत्र तक अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभायी है। अखिल भारत वर्षीय माहेश्वरी महासभा का सन 1972 से कार्यकारिणी समिति सदस्य रहा हूं। नागौर (राजस्थान) नागरिक संघ, मुंबई का वरिष्ठ मार्गदर्शक तथा लायन्स क्लब मालाड‡बोरीवली का मार्च 1981 से सदस्य के रूप में कार्यरत हूं। अखिल भारतीय वनबन्धु परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी है। इस संस्था से पिछले 14 सालों से जुड़ा हुआ हूं। इस संस्था का सेवा प्रकल्प देश‡विदेश में भव्य रूप में शुरू है। भारत के वनवासी क्षेत्र मे शिक्षा, स्वास्थ, स्वावलम्बन, स्वाभिमान जागरण का कार्य करते हुए 46 हजार एकल विद्यालयों का संचालन वनबन्धु परिषद के माध्यम से हो रहा है। इसके साथ ही अनेक स्थानीय संस्थाओं से जुड़ा हुआ हूं। मुझे हमेशा से ही पद प्रतिष्ठा से संकोच होता है। मेरा हमेशा से ही मानना रहा है कि हम कार्यकर्ता हैं और हमें काम करते रहना है। मैं किसी भी सामाजिक पद को जिम्मेदारी के रूप मे ंदेखते हुए कार्य करता रहा हूं। मेरा अनुभव रहा है कि अगर नि:स्वार्थ भाव से बिना प्रतिष्ठा की आस के काम किया जाये तोे पद अपने आपपीछे दौड़ता हुआ आएगा।

* आपने सेवा, उद्योग दोनों में प्रगति की है। इसका तालमेल आप किस तरह से रखते हैं? क्या आपको लगता है समाज में सेवा का कार्य सही दिशा में हो रहा है?

अगर कोई भी काम मन से, लगन से करना चाहे तो उसके लिए समय मिलता ही है। आप इसे टाइम मैनेजमेंट कह सकते हैं। मैंने कभी अपना समय घूमने‡फिरने में खर्च नहीं किया। जब मैं ऑफिस का काम करके थक जाता था, तब मैं अपने माहेश्वरी प्रगति मण्डल के कार्यालय में चला जाता था। वहां जाने से मुझे आनन्द तथा समाधान मिलता था। अगर आप सच्चे मन से सेवा करते हैं तो आपको ऊर्जा मिलती है, आपकी ऊर्जा नष्ट नहीं होती। यह मेरा अनुभव रहा है। इसी ऊर्जा के कारण समाजिक कार्य भी करता रहा और उद्योग में भी सफल होता रहा।

मुंबई के माहेश्वरी प्रगति मण्डल के दोनों भवनों के निर्माण एवं बोरीवली प्लॉट क्रय में तथा माहेश्वरी मण्डल, दिल्ली के भवन निर्माण में मेरा सहयोग रहा है। सुजानगढ़ के माहेश्वरी भवन निर्माण में तथा केदारनाथ तीर्थ क्षेत्र में एक कमरा निर्माण में विशेष सहयोग रहा है। नागौर राजस्थान की गोशाला तथा खिंबसुर में आयी बाढ़ में भी मेरा समुचित योगदान रहा है।

समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो केवल आत्मसम्मान, प्रतिष्ठा के लिए सामाजिक काम कर रहे हैं। मेरा मानना है कि इस तरह की सोच-विचार से ऐसे लोगों की कीमत घटती है बढ़ती नहीं। जो मान‡सम्मान मन से मिलना चाहिए वो नहीं मिलता है। सेवा का काम ‘ईश्वरीय कार्य’ समझकर जो भी करता है, उसे किसी आत्मसम्मान, प्रतिष्ठा के पीछे भागना नहीं पड़ता।

* आप कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हैं। शुरू में आपकी कल्पना क्या थी और अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं?

जब हमने सामाजिक संस्था का काम प्रारम्भ किया था, तब संगठन बहुत छोटा था। मेरा मानना है कि सामाजिक संस्थाओेंं में संगठन अत्यन्त आवश्यक है। पदाधिकारी आते रहेंगे जाते रहेंगे, पर संस्थाओं की आयु हजारों वर्षो की है। कार्यकर्ता संगठन की नींव है, इनमें मत भिन्नता हो सकती है, किन्तु मन भिन्नता नहीं होनी चाहिए। जिस प्रकार ऑर्केस्ट्रा में सभी वाद्य‡यन्त्र एक सुर-ताल व लय में बजते हैं तभी एक मधुर धुन का निर्माण होता है, उसी प्रकार जब संस्थाओं के सभी कार्यकर्ता एक सुर,आपसी तालमेल के साथ कार्य करते हैं तभी संस्था उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होती है। यह मेरा कई वर्षो का अनुभव रहा है। मुझे सामाजिक कार्य करते हुए बहुत आनन्द एवं समाधान मिलता रहा है। मुझे काम करने की प्रेरणा भी यहीं से मिलती है।

* आपकी यह भी एक खासियत रही है कि आपने कभी प्रसिद्धि की इच्छा नहीं रखी, मात्र कार्य ही जीवन का उद्देश्य रखा। इस राजस्थान गौरव विशेषांक के माध्यम से आप हमारे देशभर पाठकों को क्या सन्देश देंगे।

मुझे ऐसा लगता है कि आज की युवा पीढ़ी को अच्छे संस्कारों की आवश्यकता है। मैंने देखा है कि संघ की शाखाओं में जाने वाला युवा वर्ग और अन्यों के संस्कारों में काफी अन्तर होता है। संघ की शाखाओं में जाने वाला युवक संस्कारों के कारण राष्ट्र निर्माण तथा सामाजिक कार्यों में जल्दी जुड़ जाता है। आदमी को अपना निजी काम करते हुए सामाजिक कार्यो के लिए समय देना चाहिए। हर तरह से अपनी उन्नति करनी चाहिए। इसी तरह सभी सामाजिक संस्थाओं, संगठनों का होना बहुत जरूरी है।

आज समाज में शादी‡ब्याह के अवसरों पर जिस तरह का खर्च, दिखावा और आडम्बर हो रहा है, प्रतिष्ठा के लिए इसमें आपस मे होड़ हो रही है, यही समाज का बहुत बड़ा नुकसान है। मध्यम वर्ग मजबूरी मेंपिस रहा है। इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि एक आदर्श बनना चाहिए। जो लोग सक्षम हैं वे इस तरहशादी-ब्याह पर खर्च न करें। जिनके पास पैसा नहीं है, अगर वो खर्च कम कर रहा है तो वह कोई बड़ी बात नहीं है। समाज में इस तरह का सुधार बहुत जरूरी है।

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