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सेवा से राजस्थान की माटी हुई गौरवांचित

सेवा से राजस्थान की माटी हुई गौरवांचित

by विशेष प्रतिनिधि
in मई २०१३, व्यक्तित्व, सामाजिक
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सच्चा समाजसेवी वही होता है, जिसे दूसरों की सेवा करने में आनन्द आता हैै। सेवाधाम आश्रम के प्रमुख सुधीर गोयल भी इसी श्रेणी के व्यक्ति हैं। गोयल ने सेवा शब्द को ही अपने जीवन का मुख्य आधार बना लिया है। सेवा को विविध रूप में देखने वाले गोयल का मानना है कि पीड़ितों को जब‡जब जरूरत हो, उस समय उसकी सेवा करनी चाहिए । सेवा नि:स्वार्थ होनी चाहिए, उसकी कोई कीमत नहीं वसूलनी चाहिए । सेवा के बदले अर्थ की कामना करना सच्ची सेवा नहीं मानी जा सकती।

भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, रोगी को दवा बेसहारों को सहारा, बेघरों को घर उपलब्ध कराना सेवा के ही रूप हैं । उज्जैन के ग्रमीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए स्कूल की स्थापना करने वाले सुधीर गोयल राजस्थान के मूल निवासी हैं, उनके रग‡ रग में सेवा का ऐसा जज्बा भरा हुआ है कि लोग उनकी सेवा भावना को देखकर दंग रह जाते हैं । गोयल का कहना है कि बचपन से ही उन्हें दूसरों की समस्या जानने तथा उसका समाधान करने की जिज्ञासा रही है । पिताजी की दुकान पर आने वाले लोगों से उनकी समस्याओं को जानने की उत्सुकता ने गोयल के मन मे दूसरों के लिए कुछ करने की ऐसी उत्कंठा पैदा की कि सेवा को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया । गोयल बताते हैं कि उनके पिता की आजतोठी गांव में स्थित दुकान में उनके एक दोस्त सत्यनारायण जी आये । जब उनसे बातचीत हुई तो पता चला कि उनके गांव में कोई विद्यालय नहीं है । यह सुनकर सुधीर गोयल ने उनके गांव के एक मन्दिर मेंही विद्यालय शुरू किया। तात्पर्य यह है कि सेवा किसी भी रूप में हो सकती है । बच्चों को पढ़ाना भी एक प्रकार की सेवा ही है ।

स्वामी विवेकानंद जी से प्रभावित सेवाधाम आश्रम के सुधीर गोयल का कहना है कि स्वामी विवेकानंद ‘समाज के अन्तिम व्यक्ति तक सेवा का लाभ पहुंचे’ को ही ईश्वर की सेवा मानते थे । स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व देखकर सेवा का जो उद्दात्त स्वरूप नेत्रों के सामने आता है, वही सुधीर गोयल की सेवा भावना का मूलाधार है। माता‡पिता से मिले संस्कार को अपने जीवन की सबसे बड़ी पूंजी समझने वाले सुधीर गोयल के सेवाधाम आश्रम में लाचार, निराश्रित और मरणासन्न लोगों के अलावा मनो रोगी, कुष्ठ रोगी, अन्य रोगों से ग्रसित गरीब लोग, विकलांग, निराश्रित बच्चे, जीवन से तंग आ चुकी महिलाएं, उपेक्षित वरिष्ठ नागरिकों की मदद जैसी सेवा के हर रूप का दर्शन होता है । कहते हैं कि हर मानव में भगवान का अंश होता है । व्यक्ति के अन्दर का यह भगवान उसके कार्यो के माध्यम से देखा जाता है । दूसरों की सेवा में भगवान के दर्शन को देखने वाले सुधीर गोयल मध्य प्रदेश के उज्जैन में दीन‡दुखियों के दु:खों का हरण करने में बड़ी शिद्दत से जुटे हैं । उनका हर कार्य सेवा का पर्याय बन गया है । सुखी‡संपन्न लोगों की दुनिया से दूर अभाव व संघर्ष के बीच जीवन जीने की जद्दोजहद सेवा कार्य के जज्बे को और मजबूत बनाती है । परेशान लोगों के चेहरे पर खिलने वाली हर मुस्कुराहट को अपना समझने वाले सुधीर गोयल का कहना है कि गरीब, उपेक्षित लोगों के बीच पर्व-त्यौहार मनाने मेंबहुत प्रसन्नता होती है ।

आश्रम में दीपावली, जन्माष्टमी, महाशिवरात्री, महावीर जयन्ती समेत कई अवसरों पर जलसा होता है । इस जलसे में आश्रम के सभी लोग शामिल होते हैं ।

मानव सेवा को मूलमन्त्र मानने वाले सुधीर गोयल का कहना है कि मानव सेवा ही माधव सेवा है । आध्यात्म और सेवा एक सिक्के के दो पहलू हैं, जो इसका पालन करता है, वही आध्यात्म का सबसे अधिक पालन करता है । दूसरों की पीड़ा का शमन करने के मकसद से 1970 में जब सुधीर गोयल ने स्वामी विवेकानंद मण्डल की स्थापना की तो सभी ने गोयल के कार्यों की प्रशंसा की । एक व्यापारी परिवार से सम्बन्ध रखने के बावजूद सेवा के प्रति सुधीर गोयल का जो भाव है, वह बहुत कम लोगों में दिखायी पड़ता है । व्यापारी घराने से नाता होने के कारण ज्यादातर लोगों के मन में यही प्रश्न होता है कि गोयल परिवार समाज‡सेवा में कैसे? सुधीर गोयल ने धन अर्जित करने की मूल धारणा के स्थान पर सेवा कार्य को प्रधानता दी । मानव सेवा के प्रति सुधीर गोयल का रुझान उनके अध्ययन क ी रफ्तार के साथ‡साथ बढ़ता गया । झुग्गी‡झोपड़ियों, ग्रमीण और श्रमिक बस्तियों में जाकर वहां के बच्चों को शिक्षा देना, उनके स्वास्थ्य तथा स्वावलम्बन के प्रति रुचि इत्यादि गुण सुधीर गोयल का भीड़ में एक अलग चेहरा बनाते हैं ।

राजस्थानी, मुख्यत: मारवाड़ी समाज के प्रति लोगों के मन में यह धारणा होती है कि वे व्यापारी ही होते हैं, परन्तु हर समाज की तरह यहां भी कुछ अपवाद हैं, जिन्होंने व्यापार को जीवन का लक्ष्य न चुनकर सेवा कार्यों को चुना । इन लोगों ने दीन‡दुखियों की सेवा करने में ही अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। महाकाल की नगरी उज्जैन में सेवाधाम आश्रम के माध्यम से सुधीर गोयल भी ऐसा ही कार्य कर रहे हैं । उन्होंने पर पीड़ा को समझकर उसे दूर करने का आजीवन व्रत लिया है ।

सेवा कार्य करने वाले लोगों से मेल-जोल बढ़ाने के कारण सुधीर गोयल ने अपने सेवा कार्यों को निरन्तर परिमर्जित किया। पांच तत्वों सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सद्भाव तथा स्वावलम्बन को अपने जीवन का सार बनाने वाले सुधीर गोयल सन 1974 में आचार्य विनोबा भावे से मिले और उनके समक्ष अपने सेवा कार्यों की रूपरेखा रखी। उस वक्त विनोबा भावे जी ने सुधीर गोयल से कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है और आप ग्रमीण भागों में ही कार्य कर रहे हैं, आप अपने कार्य को इसी तरह पूरी लगन के साथ आगे बढ़ाएं । विनोबा जी के आदेश पर जब सुधीर गोयल ने गांव‡गांव में जाकर सेवा कार्य शुरू किया तो लोगों ने उनके कार्यों की सराहना की । कुष्ठ रोगियों की सेवा करने में भी सुधीर गोयल अग्रणी रहे किसी कुष्ठ रोगी की सहायता कैसे की जाये, इसी को सुधीर गोयल हमेशा साधते रहते हैं। समाजसेवा करते समय जो भी सामने आया, उसकी मदद करने की मंशा के कारण सुधीर गोयल ने बाबा आमटे से भी मुलाकात की और इस मुलाकात ने सुधीर गोयल की जीवनधारा को ही बदल दिया। पीड़ितों की सेवा करते समय उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास ही सेवा धाम आश्रम के सेवा कार्यों मे लगातार वृद्धि करता जा रहा है । सेवा कार्य को बढ़ाने के उद्देश्य से सन 1986 में उज्जैन के वरिष्ठ नागरिकों के लिए उज्जैन वरिष्ठ नागरिक संगठन का गठन किया गया।

दु:खी व्यक्तियों की अन्तिम सांस तक सेवा का संकल्प सामने रखकर स्थापित की गयी सेवाधाम आश्रय ने कई ऐसे लोगों के जीवन को प्रदान किया है, जिन्होंने अपने जीवन को खत्म करने का मन बना लिया था । आश्रम में जो आता है, वह अपने परिवार को छोड़कर आता है, इसलिए आश्रय में आने वाले हर व्यक्ति को परिवार की तरह का वातावरण दिया जाता है । प. पू. रणछोड़दासजी महाराज, प. पू. अडाणेश्वरजी महाराज, गुरुदेव पूजनीय प्रखर जी महाराज की प्रेरणा और शिक्षा से सेवा कार्य में जुटे सुधीर गोयल ‘इंसान का इंसान से हो भाई चारा, यही सन्देश हमारा’ न केवल उज्जैन के ग्रमीण क्षेत्रों में प्रसारित कर रहे हैं, अपितु उनके इस सेवा आश्रम के कार्यों के बारे में पूरे देश को जानकारी मिल चुकी है ।

इस आश्रम में समाज के उन उपेक्षित लोगों की सेवा की जाती है, जो अपनों के द्वारा ही त्याग दिये गए हैं। कुछ मरीजों के पैर सड़ चुके हैं तो कुछ मरणासन्न अवस्था में हैं । कुछ वर्षों पूर्व यहां 18‡19 वर्ष का एक युवक आया था, जिसकी ऊंचाई केवल एक‡डेढ़ फुट ही थी, उसकी मां ने अपनी मृत्यु तक उसकी सेवा की। मां के गुजर जाने केे बाद वह घर छोड़कर निकल गया। कई दिनों के बाद वह यहां पहुंचा। सुधीर गोयल ने उसकी सेवा की, उसका उपचार करवाया। आज वह व्यक्ति विवाहित है और उस आश्रम के जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में कार्य कर रहा है । यहां आये लोगों का शारीरिक बल बढ़ाने से ज्यादा उनका आत्मबल बढ़ाने की जिम्मेदारी होती है, जो कि सुधीर गोयल अच्छी तरह से निभाते हैं।

सेवा कार्य में अग्रणी सेवाधाम आश्रम को अपने उत्कृष्ट कार्यों के कारण कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है । कभी इस आश्रम को सर्वोत्कृष्ट समाजसेवी संस्था का पुरस्कार मिला तो कभी इसे महात्मा गांधी अवॉर्ड प्रदान किया गया । कभी इस आश्रम को गॉड फ्रेफिलिस स्वर्ण अवॉर्ड (क्षेत्रीय) एवं नेशनल कांस्य अवॉर्ड प्रदान किया गया, तो कभी भारत सरकार के सामाजिक न्याय मन्त्रालय की ओर से राष्ट्रीय सर्वोत्कृष्ट वयो संस्था अवॉर्ड प्रदान किया गया । इस संस्था को लाला अमरनाथ स्मूर्ति, द इस्कॉन प्राउड ऑफ उज्जैन अवॉर्ड‡2008 पुरस्कार से सम्मानित किया गया । राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, प्रादेशिक व स्थानीय संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित सेवाधाम आश्रम को मध्याजी दानी सेवा न्यास इन्दौर की ओर से प्रथम सेवा पाथिक सम्मान भी मिल चुका है। इतना ही नहीं इस आश्रम को मध्यप्रदेश शासन का महर्षि दधीचि प्रथम राज्यस्तरीय पुरस्कार सन् 2010 में मिल चुका है। पुरस्कार के लिए कार्य न करते हुए ‘सेवा ही मेरा कर्म हैं’, इस विचारधारा वाले सुधीर गोयल का सेवा कार्य जब से शुरू हुआ है, तब से लेकर अब तक लगातार लोगों के लिए आदर्श कार्य बनकर सामने आता रहा है । उल्लेखनीय है कि जिस तरह का कार्य सेवाधाम आश्रम में किया जा रहा है, उस तरह का कार्य देश के हर जिले, हर शहर में होना चाहिए । अगर सुधीर गोयल जैसी सेवा भावना व्यापारिक सोच रखने वाले हर व्यक्ति की हो जाये तो प्रगति तथा समृद्धि का एक साथ वास होगा । सेवा तथा आध्यात्म के माध्यम से दु:खी लोगों के जीवन को सुखद बनाने का सुधीर गोयल का यह प्रयास सराहनीय है और इस कार्य की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम ही होगी।

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प्रेरणा स्त्रोत – इन्द्र कुमार पाटोदिया

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