ड्रेगन का दंश

चीन की भारतीय प्रदेशों में घुसपैठ कोई नयी बात नहीं है। भारत को घेरने की उसकी सोची-समझी चाल के अन्तर्गत यह घुसपैठ होती रहती है। हर बार अड़ियल रुख अपनाकर चीनी सेना बाद में वापस लौटने को तैयार हो जाती है। चीन हर बार नये-नये इलाकों में दावा पेश करता है और बातचीत की ग्ाुत्थी उलझ जाती है। चीन की फौजी ताकत के कारण कूटनीतिक दबाव के अलावा भारत के पास कोई विकल्प नहीं होता। चीन के भारत से ही सीमा विवाद हों, ऐसी बात नहीं है। रू स, जापान, फिलिपीन्स, वियतनाम से भी उसके सीमा विवाद चल रहे हैं।
चीन की रणनीति यह है कि जब चीनी नेता भारत यात्रा पर आने वाले हों या भारतीय नेता चीन यात्रा पर जाने वाले हों, तब वह नये-नये विवादों को जान बूझकर उठाता है। चीन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री चौ एन लाय की 1958 में भारत यात्रा हो या 2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा हो अथवा 2010 में चीन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री वेन जिया बाओ की भारत यात्रा हो, हर बार चीनी घुसपैठ या चीन के नये दावे सामने आये हैं। इस बार भारतीय विदेश मन्त्री सलमान खुर्शीद की चीन यात्रा और चीनी प्रधानमन्त्री ली की मई में भारत यात्रा के पहले यह घुसपैठ हुई है। जवाहरलाल नेहरू की चीनी नीति की सबसे ब़डी खामी यह रही कि उन्होंने तिब्बत को चीन का अंग मान लिया। 2003 में भारत के उसी वचन को वाजपेयी ने निभाया और इसकी औपचारिक घोषणा की। चौ एन लाय की यात्रा के बाद 1962 में चीन का हमला हुआ। अटलजी की यात्रा के दौरान तिब्बत के बारे में औपचारिक घोषणा होते ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर दावा ठोक दिया और उसे झांग नान यानी दक्षिण तिब्बत का नाम दे दिया। 2006 में चीनी राजदूत ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश का पूरा 90,000 किलोमीटर का क्षेत्र चीन का प्रदेश है और भारत ने उस पर जबरन कब्जा कर रखा है।

जिया बाओ ने अपनी भारत यात्रा के दौरान सार्वजनिक रूप से कहा था कि भारत के साथ 2000 किलोमीटर लम्बी सीमा को लेकर विवाद है, हालांकि भारत-चीन सीमा 4056 किलोमीटर लम्बी है। चीन ने इसका विवरण इस प्रकार दिया था- मध्य क्षेत्र 554 किलोमीटर, सिक्किम 198 किलोमीटर और पूर्वी क्षेत्र 1226 किलोमीटर अर्थात कुल 1978 किलोमीटर या मोटे तौर पर कहें तो 2000 किलोमीटर। इसके मायने यह हैं कि कम से कम जम्मू-कश्मीर की चीन से लगी सीमा के बारे में कोई विवाद नहीं है। फिर अचानक लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी में करीब 750 किलोमीटर के भारतीय प्रदेश में चीनी घुसपैठ का तो कोई प्रश्न ही नहीं होना चाहिए।

2009 में चीनियों ने पाकिस्तान को खुश करने के लिए कश्मीरी नागरिकों को स्टैपल्ड वीजा जारी करना श्ाुरू किया। मामला किसी तरह शान्त हुआ तो जुलाई 2010 में लेफ्टिनेंट जनरल बी. एस. जायसवाल को वीजा देने से इनकार किया। चीन का कहना था कि जायसवाल को भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का प्रमुख न बनाया जाये, जिसे भारत ने इनकार किया। अखबारों में चीन के एक सेनाधिकारी ग्ाुओ होंगताओ का बयान छपा है कि पाकिस्तान का मन रखने के लिए ये कदम उठाये गए हैं, क्योंकि पाकिस्तान ने भी उसके कब्जे वाला कश्मीर का बहुत बड़ा हिस्सा चीन को दान में दे दिया था। पाकिस्तान ने सामरिक महत्व का कराकोरम दर्रा चीन को सौंप दिया है। चीन ने वहां महामार्ग बना दिया है और इस तरह चीन से पाक अधिकृत कश्मीर अर्थात पाकिस्तान का सीधे सम्पर्क बन गया है। इसी मार्ग से चीनी फौज पाक अधिकृत कश्मीर में आती-जाती है और वहां सामरिक महत्व के ठिकाने पर चीनी अधिकारी तैनात हैं। पूर्व भारतीय सेना प्रमुख वी. के. सिंह ने 2011 में साफ कह दिया था कि कोई 3500 से 4000 चीनी फौजी पाक अधिकृत कश्मीर में तैनात हैं। पूर्व, उत्तर और पश्चिम में भारत को घेरने की चीन की रणनीति है। दौलत बेग ओल्डी में 19 किलोमीटर अन्दर घुसकर राकी नाला में चौकी स्थापित करने के पीछे भी यही मंशा है।

कराकोरम श्रंखला का यह बंजर पहाड़ी इलाका है। उत्तरी लद्दाख के चिपचाप नदी के दक्षिण में यह इलाका पड़ता है। लद्दाख से चीन के जिजियांग प्रदेश को जो़डने वाला पुराना व्यापारिक मार्ग यहीं से जाता है। नियोमा क्षेत्र में जहां से सिंधु नदी भारत में प्रवेश करती है, यह वही इलाका है। दौलत बेग से दक्षिण में 30 किलोमीटर दूर स्थित राकी नाला में चीनियों ने अपनी चौकी कायम की। दूसरी ओर चूमर क्षेत्र है, जहां भारत ने अपनी चौकी, बंकर आदि बनाये हैं और चौकी तक मार्ग बनाने का कार्य जारी है। यह इलाका भारतीय प्रदेश है। चूमर से कराकोरम दर्रा, सीमा से लगे चीनी महामार्ग और चीनी फौजियों की हलचलों पर आसानी से नजर रखी जा सकती है। चीन ने नियंत्रण रेखा से लगे अपने इलाकों में मार्गों आदि का तेजी से विकास किया है और उसकी फौजी मारक क्षमता में इजाफा हुआ है। इसकी तुलना में भारतीय प्रदेशों में विकास की गति बहुत धीमी है। भारत ने सीमावर्ती इलाकों में परिवहन विकास की 26 हजार करोड़ रु. की योजना बनायी है। सीमावर्ती इलाकों में कोई 49 मार्ग बनने हैं, जिनमें से अभी केवल 19 ही बने हैं। इससे हमारी सामरिक प्रगति का पिछ़डापन साबित होता है। कहा जाता है कि अब यह योजना 2021-22 में पूरी होगी। इसी के तहत भारत ने चूमर में निर्माण कार्य जारी रखा है। यह चीन को क्यों सुहायेगा? इसी का बदला लेने के लिए चीनी फौज राकी नाला की चोटी पर घुस आयी और वहां उसने अपने तम्बू लगा दिये। इन पंक्तियों को लिखने तक भारत चीन समझौता हो चुका था। चीनी सेना दौलत बेग से हट चुकी है और बदले में भारत को चूमर की चौकी से वापस लौटना होगा और वहां निर्माण कार्य रोकना होगा। इस तरह चीन ने बाजी मार ली और हम चीन पर उतना कूटनीतिक दबाव नहीं बना सके। यह हमारी चीन नीति की विफलता ही कहनी होगी। चीनी मामलों के अन्तरराट्रीय विशेषज्ञ क्लाउड एरपी ने ठीक कहा है, ‘‘चीनी ऐसे प्रदेशों पर दावा कर रहे हैं, जिस पर 20 साल पहले उन्होंने कभी नहीं किया था। इस बार वे भारतीय प्रदेश में 19 किलोमीटर तक घुस आये हैं, शायद वे लौट भी जायें, लेकिन फिर अगले मौसम में वे लौट आएंगे। और अपना दावा बरकरार रखेंगे।’’

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर वार्ताएं दो समझौतों के तहत होती हैं। अप्रैल 2005 में दोनों देशों के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में शान्ति के लिए समझौता हो चुका है। इसी तरह के दो समझौते 1993 और 1996 में हो चुके हैं। सन 2005 का समझौता इन दो समझौतों का कार्यरूप है। समझौते के अनुच्छेद 4 में कहा गया है कि ‘प्रत्यक्ष नियन्त्रण रेखा पर विवाद या अन्य किसी कारण से यदि दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ जाती हैं तो वे आत्मसंयम बरतेंगी और स्थिति को नहीं बिगड़ने देने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगी।’’ 15 अप्रैल को भारतीय फौज ने चीनी फौजियों से राकी नाला में तम्बू न लगाने के लिए आगाह किया, लेकिन चीनी नहीं माने। समझौते में कहा गया है ‘दोनों सेनाएं आमने-सामने आने पर दोनों उस क्षेत्र में अपनी-अपनी हलचलें तुरन्त रोक देंगी और अपने-अपने इलाकों में लौट जाएंगी।’ साफ है कि चीनियों ने इस समझौते का स्पष्ट उल्लंघन किया है।

भारत के पास अन्तरराष्ट्रीय कूटनीतिक दबाव का ही विकल्प फिलहाल है। चीन से सीमा विवाद वाले रूस, जापान, वियतनाम और फिलिपीन्स का सामरिक समूह बनाने की भारत को कोशिश करनी चाहिए। दूसरी ओर उसे उत्तरी और पश्चिमी सीमा पर सामरिक विकास को अत्यन्त महत्व देना चाहिए। रास्ता तभी निकलता है, जब दोनों पक्ष बराबर के हों। एक ताकतवर और दूसरा कमजोर होने से शक्ति-सन्तुलन नहीं बनता और ताकतवर हावी हो जाता है। पिछले साठ साल की हमारी चीन नीति को खंगालने की जरू रत है।
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