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वृन्दावन में आयी फूल बंगलों की बहार

वृन्दावन में आयी फूल बंगलों की बहार

by गोपाल चतुर्वेदी
in जून -२०१३, सामाजिक
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मन्दिर हो या कोई उत्सव अथवा शादी‡ब्याह, फूलों का श्रंगार हर जगह की शान है। श्रंगार में तरह‡तरह के फूलों का अलग‡अलग महत्व होता है। फूल श्रंगार में चार चांद लगा देते हैं। फूलों के बिना श्रंगार अधूरा प्रतीत होता है। ग्रीष्म काल में ब्रज के मन्दिरों भगवान को गर्मी से राहत देने के लिए श्रद्धालु फूल बंगले बनवाते हैं। फूल बंगलों को बनाया जाना ब्रज की सदियों पुरानी एक प्रमुख लोक कला है। वृन्दावन में प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल एकादशी से श्रावण कृष्ण अमावस्या (हरियाली अमावस्या) तक फूल बंगलों की जबरदस्त बहार रहती है। फूलों के यह बंगले मुख्यत: यहां के ठाकुर बांके बिहारी मन्दिर, राधा वल्लभ मन्दिर, राधा रमण मन्दिर एवं राधा दामोदर मन्दिर आदि में श्रद्धालु भक्तगणों द्वारा मन्दिरों के गोस्वामियों के सहयोग से नित नये रूप में बनवाये जाते हैं, जिनमें कि प्रतिदिन सायं काल ठाकुर जी मन्दिर के गर्भ गृह से बाहर निकल कर जगमोहन में विराजते हैं। साथ ही वे मन्दिर प्रांगण में उपस्थित हजारों श्रद्धालु‡भक्तों को अपने दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं। फूलों के इन बंगलों को देखने के लिए अपने देश के कोने‡कोने से असंख्य लोग वृन्दावन पहुंचते हैं। फूल बंगले धर्म, संस्कृति एवं कला के अद्भुत समन्वयक होने के साथ‡साथ प्रभु को रिझाने का एक सशक्त माध्यम भी है। प्रभु को प्रसन्न करने वाली यह फूल सेवा पहले प्रतीकात्मक रूप से की जाती थी, परन्तु अब यह अपने चरमोत्कर्ष पर है। भीषण ग्रीष्म की झुलसाती तपिश में अपने आराध्य ठाकुर जी को गरमी के प्रकोप से बचाने एवं उन्हें पुष्प सेवा से आह्लादित कर रिझाने हेतु हालांकि वृन्दावन के प्राय: सभी प्रमुख मन्दिरों में फूल बंगले बनते हैं, परन्तु फूल बंगले बनाने का सर्वेंत्कृष्ट स्वरूप यहां के विश्व प्रसिद्ध ठाकुर बांके बिहारी मन्दिर में देखने को मिलता है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में ठाकुर बांके बिहारी महाराज की सेवा करने हेतु उनके प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास जी महाराज व उनके शिष्य जंगलों से तरह‡तरह के फूल एकत्रित कर यहां लाते थे, जिन्हें बिहारी जी के सम्मुख रख दिया जाता था। साथ ही स्वामी हरिदास जी बिहारी जी को रायबेल व चमेली के फूलों की माला भी पहना दिया करते थे। बाद में वे फूलों की छोटी‡छोटी पोशाक बनाकर उन्हें पहनाने लगे। तत्पश्चात् वे फूलों के छोटे‡छोटे बंगले बनाने लगे। इस प्रकार वृन्दावन में सर्व प्रथम फूल बंगला रसिकेश्वर स्वामी हरिदास ने ठाकुर बांके बिहारी महाराज के लिए बनाया। बाद में इस कला का स्व. फुन्दीलाल गोस्वामी, स्व. बिहारीलाल गोस्वामी, स्व. शरण बिहारी गोस्वामी, स्व. चन्द्र कृष्ण गोस्वामी, स्व. ब्रज गोपाल गोस्वामी (कानपुर वाले), स्व. श्री छबीले वल्लभ गोस्वामी आदि के द्वारा संवर्धन हुआ। इन सभी से यह कला बिहारी जी के अन्य गोस्वामियों ने सीखी। गोंस्वामियों के द्वारा बांके बिहारी मन्दिर में फूल बंगलों को बनाये जाने के मूल में यह भावना निहित थी कि इससे उनके आराध्य ठाकुर को गर्मियों में कुछ ठण्डक मिलेगी। अतएव वह प्रतिवर्ष गर्मियों में उनके मन्दिर में अपने निजी खर्चे पर फूल बंगले बनाते थे। बाद में इन बंगलों को बनाये जाने का खर्चा श्रद्धालु जनता द्वारा उठाया जाने लगा। इनको बनाने का कार्य आज भी बिहारी जी के गोस्वामियों के द्वारा ही किया जाता है। क्योंकि यह कला इनको अपने पूर्वजों से विरासत में प्राप्त है। इसलिए वह मन्दिर में फूल बंगलों को बनाने का कार्य बगैर किसी पारिश्रमिक के अत्यन्त श्रद्धाभाव से करते हैं।

बिहारी जी के लगभग डेढ़ सौ गोस्वामी परिवारों में आज कोई भी परिवार ऐसा नहीं है, जिसमें कोई न कोई व्यक्ति फूल बंगलों को बनाने का कार्य न जानता हो। यह सब अपनी सुविधानुसार फूल बंगले बनाते हैं। फूल बंगलों में केवल केले के पत्ते आदि का कार्य करने के लिए ही कुछ व्यक्ति मजदूरी पर बाहर से बुलाने पड़ते हैं।

फूल बंगलों के बनाने में रायबरेल, बेला, चमेली, चम्पा, गुलबीस, गुलदाऊ, सोनजुही, मोतिया, मौलश्री, लिली, रजनीगंधा, गुलाब, कमल, कनेर, गेंदा आदि के फूलों का उपयोग किया जाता है। एक दिन के फूल बंगले में पचास क्विंटल तक फूल लग जाते हैं। इतनी बड़ी तादाद में यह फूल वृन्दावन में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। अतएव उन्हें प्रतिदिन मथुरा, आगरा, अलीगढ़, हाथरस, दिल्ली, अहमदाबाद, सूरत, बंगलौर, कोलकाता, मुंबई आदि स्थानों से मंगाया जाता है। अब कुछ भक्त विदेशों से भी विदेशी फूल मंगवाने लगे हैं। दूरवर्ती स्थानों से फूलों को बर्फ की सिल्लियों पर रखकर वायुयान से दिल्ली व आगरा तक मंगाया जाता है। तत्पश्चात उन्हें सड़क मार्ग से वृंदावन लाया जाता है। फूल बंगलों में फूलों के अलावा तुलसी दल, केले के पत्तों, सब्जियों, फलों, मेवों, मिठाइयों और रुपयों का भी इस्तेमाल होता है। एक दिन का फूल बंगला बनाने में पच्चीस हजार रुपयों से लेकर पांच लाख रुपयों तक व्यय हो जाते हैं। फूल बंगलों को बनाने का कार्य यद्यपि ब्रज की एक लोक कला है, किन्तु यह धार्मिकता से जुड़ी होने के कारण यहां का एक धार्मिक अनुष्ठान बन गया है। मन्दिर ठाकुर बांके बिहारी में दूर-दराज से आये उनके तमाम श्रद्धालु प्राय: मनौतियां आदि कर जाते हैं, जिनके पूरे होने पर वह यहां अपने खर्चे पर मन्दिर के गोस्वामियों के द्वारा फूल बंगले बनवाते हैं।

इस कार्य में सभी जाति सम्प्रदाय के लोग बढ़‡चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। यहां प्रतिवर्ष गर्मियों में फूल बंगलों के बनाये जाने के जो लगभग चार महीने होते हैं,उनमें किस दिन किस व्यक्ति के खर्चे पर फूल बंगला बनेगा, इसकी बुकिंग लगभग एक वर्ष पूर्व ही हो जाती है। फिर भी फूल बंगला बनवाने के इच्छुक तमाम लोगों को निराश होना पड़ता हैं।

वृंदावन के ठाकुर बांके बिहारी मन्दिर में फूल बंगलों के बनाने का कार्य बड़े जोर‡शोर से होता है। यहां के गोस्वामी कलाकारों का उत्साह व तल्लीनता देखते ही बनती है। वे यहां नित्य प्रति बनने वाले फूल बंगलों को बनाने का कार्य एक दिन पूर्व ही शुरू कर देते हैं, तब कहीं दूसरे दिन जाकर फूल बंगला बन पाता है।

फूलों के बंगले बनाने हेतु सर्वप्रथम बांस की खपच्चियों से बने फ्रेमों पर डोर, सुतली व कीलों आदि की मदद से रायबेल के फूलों के द्वारा विभिन्न प्रकार के जाल बुने जाते हैं। इन जालों के चौमासी, छैमासी, बारहमासी, सांकर व सतिया आदि नाम होते हैं। फिर इन जालों के फूलों को गोस्वामी कलाकार अपने हाथों से इधर‡उधर खिसका कर चक्रव्यूह प्रणाली में तरह‡तरह की डिजाइनें डालते हैं, जिन्हें फूल बंगले की भाषा में जाल का तोड़ना कहते हैं। इन जालों की यह विशेषता होती है कि इनका आदि व अन्त ढूंढ़े नहीं मिलता है। तत्पश्चात चार‡चार मंजिल तक के फूलों के बंगले देखते ही देखते खड़े कर दिये जाते हैं, जिनमें खिड़कियां, दरवाजे, छज्जे, जीने, अट्टालिकाएं वगैरह सभी कुछ होते हैं। इन बंगलों की छतें पिरामिडनुमा होती हैं, साथ ही इनकी संरचना उद्यान की तरह होती है। इन बंगलों में प्रतिदिन सायं काल बिहारी जी विराजते हैं। बिहारी जी की पोशाक व आभूषण आदि भी फूलों से ही बनाये जाते हैं। केले के वृक्ष के तने को काटकर उसमें से निकाली गयी परतों के द्वारा बिहारी जी का बिछौना बनाया जाता है। कलाकारों द्वारा लकड़ी की चौखटों पर केले के तने की परतें लगा कर उन पर रंगीन कपड़ा कागज या गोटा आदि चिपका कर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का सजीव चित्रण भी किया जाता है। साथ ही मन्दिर प्रांगण में विभिन्न प्रकार के फूलों से बड़े‡बड़े झाड़ व फानूस आदि बनाये जाते हैं। फूलों के द्वारा गाय, मोर, तोता आदि पशु‡पक्षियों की रचना करके उनको फूल बंगलों में विचरण कराया जाता है। फूल बंगलों का निर्माण करते समय उसके कारीगरों का ध्यान निकुंज भाव में ललिता, विशाखा आदि सहचरियों की लीला पर केन्द्रित रहता है। इन फूल बंगलो पर गोस्वामीगण निरन्तर गुलाब जल छिड़कते रहते हैं, जिससे इनकी सुगन्ध व ठण्डक में कई गुना इजाफा हो जाता है। फूल बंगलों के इर्द‡गिर्द शीतल जल के फव्वारे भी चला करते हैं। इसके अलावा बिहारी को विभिन्न शीतल पेय पदार्थों से भोग भी लगाये जाते हैं।

फूल बंगले नित्य प्रति नयी‡नयी डिजाइन के बनाये जाते हैं। यह डिजाइनें यहां के गोस्वामीगण स्वयं ही पूरे वर्ष ग्रफ पेपर पर आड़ी‡तिरछी रेखाएं खींच कर ईजाद करते हैं। फूल बंगले के दर्शन केवल सायं काल मन्दिर खुलने के समय ही होते हैं। एक बंगले को बनाये जाने में जो फूल प्रयोग में आ चुका होता है उसे दूसरा फूल बंगला बनाने हेतु किसी भी सूरत में प्रयोग में नही लाया जाता है। एक बार प्रयोग में आ चुका फूल बतौर प्रसादी भक्तगणों में वितरित कर दिया जाता है, अथवा यमुना में विसर्जित कर दिया जाता है। फूल बंगले बनाने हेतु प्रतिदिन ताजे फूल ही इस्तेमाल होते हैं। दोपहर के समय यहां विभिन्न मन्दिरों में फूल बंगले बनाने के कार्य अपने चरमोत्कर्ष पर होता हैं।

वृन्दावन के विभिन्न मन्दिरों में कभी‡कभी एक रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक के नोटों को कलात्मक रूप से सजा कर भी फूलों के बंगले बनने लगे हैं। इन बंगलों की लागत चार‡पांच लाख रुपये तक जा पहुंचती है। इन बंगलो में सिक्कों का भी प्रयोग होता है। ये बंगले अत्यन्त चित्ताकर्षक होते हैं। इन्हें देखने के लिए दूर‡दराज के असंख्य दर्शक वृन्दावन में उमड़ पड़ते हैं

वृंदावन के मंदिरों में बनने वाले फूल बँगले अब मंदिरों की परिधि से बाहर निकल कर धार्मिक, वैवाहिक व सामाजिक समारोहों आदि में भी बनने लगे हैं। इसके चलते फूल बँगले बनाने वाले कलाकारों की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ है। साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हुई है।

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