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रद्दी में से टिकाऊ

रद्दी में से टिकाऊ

by महेश अटाले
in जून -२०१३, पर्यावरण, सामाजिक, साहित्य
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आदमी ने अभी तक बहुत सारे आविष्कार किये हैं। इन सभी आविष्कारों में से पिछली दो सदियों में हुए आविष्कारों ने मानव जीवन में बड़ा परिवर्तन किया है। चाहे वे आविष्कार चिकित्सा शास्त्र में हों या खगोल शास्त्र में, इनमें से लगभग सभी आविष्कारों ने मानव जीवन के प्रवाह का रुख ही बदल दिया है। बदला हुआ यह रुख उचित है या अनुचित, इसका निर्णय तो आने वाला कल ही कर सकता है, क्योंकि ये सभी आविष्कार दुधारी हथियार के समान हैं। इसमेंकोई सन्देह नहीं कि इससे आदमी को तात्कालिक लाभ होता है, लेकिन कुछ काल के बाद उससे होने वाली हानि कई बार अपनी कल्पनाशक्ति के परे की होती है। इसमें एक बड़ा भारी हिस्सा है दवाइयों का तथा दूसरा हिस्सा है प्लास्टिक का।

लगभग 200 साल पहले प्लास्टिक का आविष्कार हुआ और आज तो प्लास्टिक हम सभी के जीवन का एक अभिन्न अंग बना हुआ है। सबेरे‡सबेरे उठते ही दांतों पर चलाये जाने वाले ‘टूथ ब्रश’ से लेकर रात को सोते समय मच्छरों को भगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले यन्त्र तक, सभी कुछ प्लास्टिक ने घेर रखा है। सिर में लगायी जाने वाली हेयर पिन से लेकर, कंघी और बटनों तक, आंखों पर पहने चश्मे की सलाइयों से लेकर पांवों में पहने जाने वाले चप्पल‡जूतों तक अनगिनत चीजें इस प्लास्टिक की ही बनी होती हैं। इसे अब साथ मिला है शीत पेयों और पानी की बोतलों का। ‘पानी की हर बूंद में अमृत होता है, की तर्ज पर अब पानी की हर बोतल में प्लास्टिक है’ कहना ही अब उचित होगा। इन बोतलों का पुनर्प्रयोग सम्भव होते हुए भी किया नहीं जाता। लेकिन इसके पुनर्प्रयोग की निहायत आवश्यकता है, क्योंकि प्लास्टिक मूलत: विघटित नहीं होता। इतना ही नहीं अनगिनत पशु‡पक्षियों के पेट मेंप्लास्टिक पहुंचने से उनकी मौत बड़ी ही विदारक तथा अल्पायु में ही होती है।

कुछ समय पहले आबादी से काफी दूर एक निर्जन द्वीप पर अमरीका का एक शौकिया छाया चित्रकार पहुंचा। वहां उसने मरे हुए पक्षियों के शरीर में प्लास्टिक की अनगिनत चीजें पायीं। ये पक्षी मछलियां खाकर जीते हैं। उनके दांत न होने से हर एक चीज निगलकर वे अपने पेट में पहुंचाते हैं। प्लास्टिक की बोतलों के ढक्कनों को खाद्य मानकर उन्हें निगलते हैं। लेकिन प्लास्टिक के विघटनशील न होने से वह उनके पेट में जमा ही होता रहता है। उसकी मात्रा बढ़ती जाती है, तो आखिर उनकी मौत होती है। इस प्रकार अनगिनत पक्षी वहां मरे‡पड़े दिखायी देते हैं। और तो और उनके शरीर मेंवह प्लास्टिक भी वैसा पड़ा रहता है, जो फिर से दूसरे पक्षियों को नुकसान पहुंचाते हैं।

इसका इलाज क्या है? इस प्लास्टिक रूपी भस्मासुर का कम से कम इस्तेमाल करना तथा सबसे महत्त्व की बात उसके समुचित विकल्प के निर्माण करने का प्रयास करना, साथ ही इस्तेमाल किये प्लास्टिक का पुनर्प्रयोग करना।

बहुत से लोग प्लास्टिक की इन बोतलों का अपने‡अपने ढंग से पुनर्प्रयोग करने का प्रयास करते हैं। इनमें से कुछ संकल्पनाओं की जानकारी यहां दी जा रही है। हम भी ऐसा कर सकते हैं। यह पुनर्प्रयोग उपयुक्त तो होगा ही, साथ ही वह रंजक भी होगा।

प्लास्टिक की बोतलों का पुनर्प्रयोग

प्रकार 1 : साज-सज्जा हेतु

इसमें इस्तेमाल की हुई बोतलों का समुचित प्रयोग करके हम कई नित्योपयोगी चीजें अपने ही घर में बना सकते हैं, जैसे शोभा की वस्तुएं।

प्रकार 2 : अन्य साधारण प्रयोग हेतु

इसमें इस्तेमाल की गयी बोतलों के विभिन्न हिस्सों का या पूरी बोतलों का दूसरी कई बातों के लिए इस्तेमाल हो सकता है, जैसे कुछ रखने के लिए, जमा करनेके लिए।

प्रकार 3 : कुछ खास प्रयोगों हेतु

इसमें भी इस्तेमाल की हुई बोतलों के विभिन्न हिस्सों का अथवा पूरी बोतलों का प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन इसमें से बनने वाली चीजें कुछ अलग सी होती हैं। उदाहरण के तौर पर लैंप शेड, पिन‡छोटे गहने रखने हेतु आदि।

प्रकार 4 : निहायत जरूरी उपयोग हेतु

आज के जमाने की सबसे महत्त्वपूर्ण बात है गरीबोंके लिए काफी सस्ते, टिकाऊ तथा मजबूत घर उपलब्ध कराना। प्लास्टिक की इन इस्तेमाल की गयी बोतलों का पुनर्प्रयोग कहीं‡कहीं सीधे घर बनाने में किया जाता है। इन बोतलों से बने हुए घर सस्ते और मजबूत तो होते ही हैं और साथ ही दीमकों से मुक्त भी होते हैं।

कहीं‡कहीं तो इन बोतलों में मिट्टी भरकर मिट्टी से ही उन्हें लीपा जाता है। ऐसी बनायी हुई बोतलों का ईटों के बदले में बड़ी सफलता से प्रयोग किया जाता है।

उसी तरह इन बोतलों को एक दूसरी से उचित तरीके से जोड़कर आपात काल में उनकी नावें भी बनायी जाती हैं।
इसके अतिरिक्त अपनी कल्पनाशक्ति को कुछ आगे बढ़ाकर, बोतलों के पुनर्प्रयोग द्वारा हमेंअलग ही विश्व के दर्शन हो सकते हैं।
मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया यह सुन्दर पुनर्प्रयोग। इसमें प्लास्टिक की एक बोतल काटकर जमीन में गाड़ दी जाती है। उसमें पानी भरकर उसके ऊपरनीचे की ओर से काटी हुई एक बड़ी बोतल रखी जाती है। सूरज की रोशनी से अन्दर का पानी को धीरे‡धीरे भाप बनता है, लेकिन वह बाहर की बोतल में ही अटक कर धीरे‡धीरे जमीन में जाती है और उससे जमीन को कम मात्रा में परन्तु लगातार पानी मिलता रहता है।
इसी कारण प्लास्टिक की बोतलों को इस्तेमाल करने के पहले भी और बाद में भी जरूर सोचिए।

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Tags: biodivercityecofriendlyforestgogreenhindi vivekhindi vivek magazinehomesaveearthtraveltravelblogtravelblogger

महेश अटाले

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