हर्षोल्लास का महापर्व होली

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होलिकादहन में अग्नि की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि अग्नि को परमात्मा का स्वरूप माना गया है। इनकी वन्दना से हमें दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिलती है। यदि हम लोग होलिका दहन के सही अर्थ को समझें तो सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद जैसी समस्या ही न रहे क्योंकि यह समस्या मुख्य रूप से दुर्भावना की ही देन है।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

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भगवान श्रीकृष्ण का स्वयं का भी जीवन उतार-चढ़ाव से ओत-प्रोत है। वे जेल में पैदा हुए, महल में जिये और जंगल से विदा हुए। उनका यह मानना था कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। उनके द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता-ज्ञान का ऐसा उपदेश दिया गया जो कर्तव्य से विमुख हो रहे हर व्यक्ति को दिशा व उर्जा प्रदान करने वाला है। वस्तुतः श्रीमद्भगवद्गीता उनके उपदेश का एक ऐसा दर्शन है जो हमें नश्वर जगत में अपना कर्तव्य निस्पृह भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है।

ब्रज की विश्व प्रसिद्ध होली

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ब्रज में होली का रंग बसंत पंचमी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक पूरे 50 दिनों तक समूचे ब्रज के कण-कण में छाया रहता है। धुलेंडी के दिन सारे देश में होली समाप्त हो जाती है; परंतु ब्रज में इसके 10 दिन बाद तक भी होली किसी न किसी रूप में निरंतर चलती रहती है।

आस्था व भक्ति का कुंभ हरिद्वार

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हरिद्वार में आयोजित होने वाला कुंभ का मेला उत्तराखंड राज्य का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। जो कि यहां के गंगा घाट पर 14 जनवरी मकर संक्रांति से चल रहा है। हरिद्वार कुंभ इतना अधिक प्राचीन है कि उसका सर्वप्रथम वर्णन सन 1850 के इंपीरियल गजैटियर में मिलता है। इस मेले में इस समय न केवल अपने देश के अपितु विदेशों तक के हर एक कोने से विभिन्न धर्म-जाति व संप्रदाय के असंख्य संत-महात्माओं, धर्मगुरुओं एवं भक्तों-श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा हुआ है।

संक्रांति पूजा में कहीं कुछ छूट न जाए, जनिए मुहूर्त, पूजाविधि और तिल गुड़ का महत्व

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मकर संक्रांति का महत्व मकर संक्राति हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान और दान किया जाता है। इस त्यौहार का नाम मकर संक्रांति कैसे पड़ा है? दरअसल सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है और जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश…

सर्वोपरि है प्रयाग कुंभ की महत्ता

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  तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों ही नदियों का संगम है। इसके समान तीनों लोकों में न तो अभी तक कोई तीर्थ हुआ है और न ही होगा। इसकी अनेक विशेषताएं वेदों, पुराणों व महाभारत आदि ग्रंथों में बताई गई हैं। प्रयाग को प्रजापति की यज्ञभूमि

पांच पर्वों का महापर्व

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दीपावली की रात्रि को यक्ष रात्रि भी कहा जाता है। वराह पुराण एवं वात्स्यायन के कामसूत्र में भी इसका उल्लेख है। बाद में शुभ्र ज्योत्सना के पर्व दीपावली से अनेक संदर्भ जुड़ते चले गए।ज्योति पर्व दीपावली अ

 गंगा की अस्मिता को बचाइए

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गंगा साक्षात नारायण स्वरूपा है। उनका अमृतरूपी जल असंख्य वर्षों से समस्त जीवधारियों का पोषण कर रहा है। गंगा जल की शक्ति, तत्व व महत्व अनंत है। मां गंगा मानव के जन्म से मृत्यु तक जुड़ी हुई है। कोई भी पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन, अनुष्ठान, अभिषेक गंगाजल बगैरे कदापि संभव नहीं है।

वृन्दावन में आयी फूल बंगलों की बहार

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मन्दिर हो या कोई उत्सव अथवा शादी‡ब्याह, फूलों का श्रंगार हर जगह की शान है। श्रंगार में तरह‡तरह के फूलों का अलग‡अलग महत्व होता है। फूल श्रंगार में चार चांद लगा देते हैं।

ब्रज की होली

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ब्रज में होली की मस्ती में धुलेंडी से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक जगह- जगह चरकुला नृत्य, हल नृत्य, हुक्का नृत्य, चांभर नृत्य एवं झूला नृत्य आदि अत्यंत मनोहारी नृत्य भी होते हैं। चैत्र कृष्ण तृतीया से लेकर चैत्र कृष्ण दशमी तक निरंतर सात दिनों तक ब्रज के प्रायः समस्त मंदिरों में फूलडोल की छटा छाई रहती है।

जय गिरिधारी, जय गिरिराज

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गिरिराज गोर्वधन की महिमा अपरंपार है। इसका जयनाद अहर्निश हो रहा है। ऐसी कोई तिथि नहीं, ऐसा कोई वार नहीं, ऐसा कोई दिन नहीं जब गिरिराज महाराज के भक्तगण उनका जयघोष करते हुए उनकी व उनकी परिक्रमा करते हुए अपने जीवन को धन्य न करते हो।

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