हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
गुमराह होती जिंदगियां

गुमराह होती जिंदगियां

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई -२०१३, सामाजिक
0

मृत्यु कैसी भी हो, उसमें एक समानता यह होती है कि वह जीवन का अन्त कर देती है । हर मृत्यु के कारण उत्पन्न वेदना अलग‡अलग तीव्रता की होती है । जब कोई व्यक्ति खुद ही अपने जीवन का अन्त कर ले तो मन मेंअनेक सवाल उठते हैं और अगर यह व्यक्ति कम उम्र का हो जिसने अभी जीवन का पूर्ण अनुभव भी न किया हो, तब तो मन पूरी तरह से विचलित हो जाता है । क्यों, किसलिए आदि सवालों के जवाब न मिल पाने के कारण हम ‘निःशब्द’ हो जाते हैं।

लखनऊ के एक युवक ने अपनी प्रेमिका से विडियो चौटिंग करते‡करते आत्महत्या कर ली। ग्यारह साल के एक किशोर को उसके माता‡पिता ने मोबाइल खरीदकर नहीं दिया तो उसने भी आत्महत्या कर ली और उसने एक चिट्ठी में लिखा कि अब आपको परेशान करने के लिए मैं इस दुनिया में नहीं रहूंगा। पढ़ाई न करने पर एक विद्यार्थी की मां ने उसे फटकार लगायी तो उसने पंखे से फंदा लगाकर अपनी जान दे दी। पति के साथ जीवन निर्वाह न होने के कारण एक महिला ने अपने बच्चों के साथ चलती ट्रेन से छलांग लगा दी।10 वीं की परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के कारण गीले कपड़े में बिजली के तार को स्पर्श करके अपना जीवन खत्म कर लिया। अभिनेत्री जिया खान ने अपने प्रेमी से वियोग और कैरियर में असफलता से निराश होकर आत्महत्या कर ली। हम रोज ही इस तरह की घटनाओं के बारे सुनते रहते हैं। परन्तु अब रोज ही ये घटनाएं होती रहती हैं, अत: हम उनके प्रति उदासीन रवैया अपनाते हैं। किसी सेलिब्रिटी की आत्महत्या के बाद कुछ चर्चा भी होती है, परन्तु हमारेरिश्तेदारों, सगे‡सम्बन्धियों, मित्रों या आस‡पड़ोस में रहने वाले किसी कम उम्र के विद्यार्थियों में से जब कोई ऐसा करता है, तब हमारा मन व्याकुल हो उठता है।अत्यन्त उद्विग्न मन से हम अनेक प्रश्नों जैसे- क्या हम इसे टाल सकते थे? उन्होंने युवावस्था में अपना जीवन समाप्त क्यों कर लिया? उनपर ऐसा क्या संकट आ गया जिसे वे किसी और से कह भी नहीं पाये?, आदि के कारण हम निःशब्द हो जाते हैं।

जिन युवक‡युवतियों ने अभी तक दुनिया ठीक से देखी भी नहीं, उन्हें अपना जीवन खत्म करने की इच्छा क्यों हुई? छोटी‡छोटी बातों के लिए लोग जान दे रहे हैं। मनुष्य का मन एक अजीब रसायन से बना है। वह नहीं जानता कि किस समय उसे कितना चाहिए। जो चाहिये वह मिलने के बाद भी वह असंतुष्ट रहता है। मुंबई की एक लड़की ने रियलिटी शो में पहला क्रमांक नहींआने के कारण आत्महत्या कर ली। किसी विशिष्ट कार्यक्रम में अपनी वरीयता सिद्ध करना अच्छी बात है, परन्तु इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि यह कार्य अपनी खुशी के लिए किया जा रहा है या अपनी या अपने अभिभावकों के अहंकार की पुष्टि करने के लिए। कोेई नृत्य, गीत अथवा नाटक प्रस्तुत करते समय प्रस्तुतिकरण का आनन्द मिलता है, परन्तु साथ ही उस प्रतियोगिता में प्रथम क्रमांक पर आने का भूत भी सवार हो जाता है । ये रियलिटी शो आनन्द देने के लिए हैं या किसी रेस की तरह अपने घोड़े दौड़ाने के लिए? इस प्रश्न की ओर बच्चों के साथ ही अभिभावकों को भी ध्यान देना आवश्यक है । 25 वर्ष की उम्र में आत्महत्या करने वाली अभिनेत्री जिया खान की भी यही समस्या है। फिल्म जगत में पदार्पण करते ही अमिताभ बच्चन के साथ ‘निःशब्द’, आमिर खान के साथ ‘गजनी’ और अक्षय कुमार के साथ ‘हाउसफुल’ जैसी सुपर‡डुपर हिट फिल्मेंउसके नाम थीं। इस यश के साथ आगे बढ़ने के लिए उसके पास पूरी जिन्दगी थी। परन्तु कैरियर की ऊंचाई और प्रेमी का साथ दोनों ही पाने की उसे जल्दी थी। यह दोनों ही न मिल पाने के कारण उसने आत्महत्या कर ली। ऐसे लोगों को इस बात का अनुमान ही नहीं होता कि अन्य लोगों के मुकाबले उन्हें कुछ अधिक मिला है। सबकुछ उनके पास होने के बावजूद भी उन्हें कुछ पाने की लालसा होती ही है और उसे पाने के लिए आवश्यक संयम, कष्ट नहीं करना होता है । सबकुछ अभी, इसी वक्त पाने की लालसा ही आज के युवाओं को विनाश की गर्त मेंले जा रही है।
जीवन का आनन्द प्राप्त करने के लिए, अच्छी तहर से जीवन यापन करने के लिए युवाओंको उसी तरह की शिक्षा देनी आवश्यक है। प्रथम क्रमांक पर आने की दौड़ ही अगर बच्चों का उद्देश्य बना दिया जाये तो वे दबाव और कुछ समय बाद निराशा का शिकार हो ही जाएंगे। हमारे मन मेंयह भावना है कि टर्नर‡़फिटर का डिप्लोमा निम्न और डॉक्टर‡इंजीनियर की डिग्री उच्च है। इसके कारण 70 प्रतिशत अंक लाने वाले विद्यार्थियोंके माता‡पिता उन्हें 85 प्रतिशत अंक लाने का आग्रह करते हैं । अंकों के चक्रव्यूह में फंसे कई ‘अभिमन्यु’ हम अपने आसपास देख सकते हैं। प्रतियोगिता के इस दौर में अपने बच्चों को कहां धकेला जाये यह निर्णय माता‡पिता को लेना होगा।

आत्महत्या की समस्या का एक ही रामबाण उपाय है और वह है, सतत संवाद। यह संवाद बच्चों और अभिभावकों, विद्यार्थियों और शिक्षकों, बड़ों और बच्चों तथा मित्रों के साथ किया जा सकता है। आज जिस उम्र में बच्चों को माता‡पिता का साथ चाहिए उन्हें नहीं मिलता। एक परिवार के रूप में व्यतीत किये जाने वाले समय की अवधि कम हो गयी है। बच्चों को संस्कार देने के लिए उन्हें संस्कार वर्गों में भेजने का चलन बढ़ गया है। यह सोचना मूर्खता ही कही जाएगी कि पैसे देकर संस्कार खरीदे जा सकते हैं। ‘संस्कार’ का अर्थ है ‘स्व’ को आकार देना। यहां दो ‘स्व’ हैं। पहला बच्चे का और दूसरा अभिभावकों का। इन दोनों के ‘स्व’ के मिलन को ही संस्कार कहा जाता है। हम कल्पना करें कि अगर हम एक बच्चे को किसी पेड़ का चित्र बनाने को कहते हैं तो वह साधारणत: तना, उसकी डालियां,पत्ते और अधिक से अधिक फल‡फूल का चित्र बनाएगा, अर्थात जो वह देखता है वही बनाएगा। पेड़ों की जड़ें जमीन के अन्दर फैली होती हैं जो दिखायी नहीं देतीं। असल बात तो यह है कि जमीन के ऊपर पेड़ जितना हरा-भरा दिखता है जमीन के नीचे उतने ही अन्दर तक उसकी जड़ें होती हैं। वे एक‡दूसरे को मजबूती से जकड़े हुए हैं। हमारा जीवन भी इसी तरह है । दादा‡दादी,नाना‡नानी, माता‡पिता, मित्र‡रिश्तेदार इत्यादि लोगों से मिलने वाले विश्वासपूर्ण संस्कार भी इसी तरह का है। आज की परिवार पद्धति में यह विश्वास दिखायी नहीं देता। रिश्तों में पड़ती इस दरार के कारण ही व्यक्ति निराशा की ओर अग्रसर होता है। जब व्यक्ति असफल होता है तो उसे समझने वाला या उससे संवाद करने वाला कोई नहीं होता जिसके कारण निराशा उत्पन्न होती है। क्या हमने ध्यान दिया है कि पिछले दो दशकों में हमारे बच्चों पर किस तरह के संस्कार पड़े हैं? एक परिवार पद्धति के कारण बच्चों को संस्कार देने वाले दादा‡दादी नहीं रहे। माता‡पिता को अपनी आजीविका चलाने के लिए नौकरी पर जाना होता है और बच्चे अकेले रह जाते हैं। उन्हें कभी आया सम्भालती है तो कभी बाल आश्रम में रखा जाता है।

बच्चे जब घर में अकेले रहते हैं तो वे लगातार टी.वी. देखते हैं। उस पर आने वाले अश्लील गाने, नायिकाओं के अर्द्धनग्न शरीर, हिंसा, बलात्कार के दृश्य,शान-शौकत की जिन्दगी, अवास्तविक वैभव इत्यादि का बाल-सुलभ मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह ‘हाई सोसाइटी’ का रहन‡सहन हमेशा के लिए उनके मन पर अंकित हो जाता है। बचपन से लेकर किशोरावस्था तक आते‡आते यही संस्कार उनके मन पर असर डालते हैं। अभिभावकों के पास भी क्या अच्छा है, क्या बुरा है यह बताने का समय नहीं होता है। अपने संस्कारों का जतन करने के लिए बच्चों को मालगुड़ी डेज, चंदा मामा, नीति के दोहे इत्यादि जैसी पुस्तकें नहीं दी जाती हैं। अत: सही‡गलत, नैतिक‡अनैतिक का फर्क समझे बिना ही बच्चे बड़े हो जाते हैं। महाविद्यालयीन जीवन तक आते‡आते तो वे अपने अभिभावकों की भी नहीं सुनते । इस तरह के संस्कारों में बढ़ने वाले बच्चे आगे चलकर परिवार और समाज दोनों को नुकसान पहुंचाते हैं।

इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि समाज में जो आत्महत्याएं हो रही हैं वह हम सभी के द्वारा मिलकर किया हुआ ‘आत्मघात’ है। एक और बात पर चिन्तन किया जाना चाहिए कि जहां युवक हैं वहां आनन्द और उत्साह का वातावरण होता है और है भी, परन्तु जीवन के किसी मोड़ पर जब उनको असफलता मिलती है तो वे हताश हो जाते हैं,क्योंकि उनके जीवन में केवल एक ही खिड़की खुली होती है और वो है कामयाबी की। फिर यह कामयाबी नौकरी‡व्यवसाय में हो या प्रेम सम्बन्धों में। अत: आज के युवा वर्ग किसी भी प्रकार की असफलता को स्वीकार नहीं कर सकते। उनके मन में यह विचार नहीं आता कि जीवन अमूल्य है। जीवन में जिस तरह प्रेम और कामयाबी होती है उसी तरह नाकामयाबी भी होती है। आज उन्हें यह सिखाना आवश्यक है कि अगर जीवन रूपी डाली रही तो उस पर फिर से कोपलें आएंगी। आज की युवा पीढ़ी अति और गति के झंझावात में फंसी है। उनके मन में एक क्षण में सब कुछ पाने की लालसा है। अत: जिस गति से यह दौड़ती है, उसी गति से गिरती भी है। उन्हें सक्षम बनने में नहीं, दिखने में अधिक विश्वास है। पन्द्रह वर्ष पूर्व ‘कभी हां कभी ना’ नामक फिल्म में नायिका नायक से हमेशा के लिए दूर चली जाती है। तब वह नायक जीवन का अर्थ समझकर नये प्रेम को तलाशता है। जीवन में भी यही सत्य है। अगर एक मौका जाता है तो दूसरे कई मौके मिलते हैं। इस मौके को पहचानने के लिए चाहिए सही संस्कार। मेरा एक मित्र है। वह एक लड़की से प्रेम करता था। उन दोनों का निस्सीम प्रेम देखकर लगता था मानों वे एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। अचानक उस लड़की के साथ दुर्घटना हो गयी। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उपचार के दौरान उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु के समय मेरा मित्र उसके पास ही था। उसकी दर्दनाक मृत्यु को देखकर वह बहुत हताश हुआ। उस लड़की का कमरा अस्पताल की ग्यारहवीं मंजिल पर था। मेरा मित्र उस ग्यारहवीं मंजिल से कूदकर जान देने ही वाला था कि उसके मन में एक विचार कौंधा कि मैं तीन वर्ष एक लड़की से प्रेम करने के बाद उसका वियोग सहन नहीं कर सकता तो जिन माता‡पिता ने 25 वर्ष मुझे प्रेम दिया,मेरा पालन-पोषण किया वे यह वेदना कैसे सहन कर पाएंगे? उसी क्षण उसने आत्महत्या का विचार मन से निकाल दिया और जीवन में आगे बढ़ने का फैसला लिया। आज उसका जीवन नन्दन वन की तरह खिला हुआ है। नाकामयाबी के एक अनुभव में भी प्रचण्ड ऊर्जा होती है। प्रेम में भी सकारात्मक ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा को पहचानकर उस नाकामयाबी को कामयाबी में परिवर्तित करना चाहिए। जीवन के प्रत्येक मोड़ पर सफलता की कल्पना अलग‡अलग रूपों में सामने आती है। अर्थ शास्त्र में कहा जाता है कि ‘मैन इज अ बण्डल ऑफ डिजायर्स’। इच्छा, अपेक्षा, संकट कभी भी जीवन से खत्म नहीं होते। वह बढ़ते ही जाते हैं। जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। आत्महत्या उसका उपाय नहीं है। संकटों का सामना करते हुए आगे बढ़ने वाले और सफलता हासिल करने वाले हजारों लोग हमारे आस‡पास हैं। जीवन केवल सुखों का सागर नहीं, बल्कि सुख और दुख की गागर है। इस जीवन संघर्ष में असली जीना किसे कहते हैं और आदमी के जिन्दा होने का मतलब क्या है, यह जावेद अख्तर की रचना से स्पष्ट होती है-

दिलों में तुम अपनी बेताबियां लेकर चल रहे हो, तो जिन्दा हो तुम।
नजर में ख्वाबों की बिजलियां ले कर चल रहे हो, तो जिन्दा हो तुम।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: astrayhindi vivekhindi vivek magazinelifelifestylelostmisleadmisunderstanding

अमोल पेडणेकर

Next Post
भगवा…

भगवा...

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0