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एलीना : अकेली औरत की त्रासदी

एलीना : अकेली औरत की त्रासदी

by मनमोहन सरल
in जुलाई -२०१३, साहित्य
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बहुत कठिन होता है बिन ब्याही अथवा अकेली औरत के लिए जिन्दगी ग्ाुजारना; और अगर वह मां भी हो, वह भी बिन ब्याही, तब तो जैसे उसके सामने कठिनाइयों का पहाड़ ही आ खड़ा हो जाता है । यों भी समाज बड़ा निष्ठुर है । अकेली मां के सामने तरह-तरह की चुनौतियां पैदा करता रहता है । ऐसी ही एक मां हैं एलीना बानिक, जो नारी विषयक कला-आन्दोलन की सक्रिय सूत्रधार होने के साथ-साथ चर्चित चित्रकार भी हैं । इस युवा चित्रकार ने अकेले दम पर तमाम चुनौतियों का सामना किया है और अपने चित्रों में भी इन चुनौतियों को चित्रित करती रही हैं । युवती एलीना बानिक के अपने जीवन में भी ऐसी चुनौतियां आती हैं, क्योंकि वेे स्वयं आठ महीने की बच्ची की मां हैं ।

शांति निकेतन में पढ़ीं और प्रख्यात चित्रकार जोगेन चौधरी की शिष्या रहीं । बाद में चार्ल्स वैलेस स्कॉलरशिप पर ब्रिटेन के लासगो में विजिटिंग स्कॉलर के रूप में रहीं और साथ ही यूरोप के अनेक देशों के कला जगत से परिचय प्राप्त किया । वहीं नारी-विमर्श और नारी-स्वातंत्रता के मूवमेंट से जुड़ीं । यहां तक कि तब वहां उन्होेंने ‘काली’ के सद़ृश्य रूप भी धारण किया । एलीना कहती हैं, ‘‘लेकिन मैं नारी-स्वातंत्रता का विध्वंसात्मक तरीका अपनाना नहीं चाहती, जैसा कि पश्चिम में हुआ था, बल्कि मैं इस आन्दोलन के जरिये विश्व को शान्ति, प्रेम और सेवाभाव का सन्देश देने की मुहिम चलाना चाहती हूं, जैसा कि फ्लोरेंस नाइटेंगेल या मदर टेरेसा ने किया था।’’ आज भी वे ‘फैमिनिस्ट आर्ट मूवमेंट’ और ‘वीमेन इन क्रिएटिविटी’ का अभियान चला रही हैं।

कला और रचनात्मक सोच की श्ाुरुआत स्कूल में ही हो गयी थी। कोलकाता के विख्यात पठभावन स्कूल के आर्ट टीचर गौतम चौधरी को वे आज भी नहीं भूली हैं । शांति निकेतन में जोगेन चौधरी का आभार भी मानती हैं, पर सबसे ज्यादा प्रभावित किया उनको ग्ाुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने । उनकी कला से भी अधिक, उनके गीतों ने । बंगाल में पैदा हुईं, बड़ी हुईं, रहीं और पढ़ीं । फिर भी उन्होंने कला के टिपिकिल बंगाल स्कूल को नहीं अपनाया, बल्कि पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों, जीवन-शैली तथा कलारू पों को आत्मसात करके अपनी स्वतंत्र शैली विकसित की । एलीना बताती हैं, ‘‘नीलाम्बना छाया, प्रफुल्लों कदम्ब बोनो, रवि बाबू का गीत और उनके अन्य गीत ही मेरे चित्रों में कल्पना का आधार हैं। मैं अपने घर की छत से नारियल के पेड़ों को देखा करती और उनको ही सबसे पहले अपने चित्रों में पेंट किया ।’’ यों तो वॉन गॅाग और फिल्मकार सत्यजीत रॉय और ॠत्विक घटक का प्रभाव भी कम न रहा ।

एलीना यह भी बताती हैं कि लाल रंग आज भी मेरे चित्रों का मुख्य रंग है । खून जैसा लाल रंग ही नहीं, सिन्दूरी, स्कॉरलेट और लाल रंगों के तमाम शेड मेरी पेंटिंगों में खासकर आते हैं । बैंगनी रंग भी होता है जो ठीक वैसा ही है कि जब नीली नसों से बहता लाल-लाल खून दिखायी देता है । हवाई जहाज से यात्रा करते समय खिड़की से जैसा द़ृश्य दिखता है, वह बडर्स आई व्यू मैं अपने भू-द़ृश्यों में पेंट करती हूं ।
एलीना बचपन से ही बड़ी शरारती रही हैं, जिसका प्रभाव आज भी उनके चित्रों में देखा जा सकता है । उनकी सोच है कि हमारा समाज बचपन से ही लड़के और लड़की में भेद करता रहा है । लड़कों को बचपन में कारें और बंदूकें खिलौनों के रू प में दिये जाते हैं, जबकि लड़की को मिलती है ग्ाुड़िया। यहीं से दोनों का मानसिक विकास अलग तरह से होता है, जो बाद में बड़े होने तक और भी मुखर होता जाता है ।

एलीना के चित्रों में अक्सर यीश्ाू भी होते हैं, पर उनका मानना है कि वे ईसाई धर्म के प्रतीक की तरह नहीं हैं, बल्कि मानवता को सलीब पर जिस तरह राजनीति ने चढ़ा दिया है, उसका चित्रण है। यद्यपि एलीना किसी राजनीतिक विचारधारा की समर्थक नहीं हैं, पर इधर जो घटता है, उसकी प्रतिध्वनि उनके चित्रों में अनजाने में आ जाती है। जैसे, ‘बंगाल में नंदीग्रम का मुद्दा’ या ‘रिजवनूर की घटना।’ बलात्कार तथा औरतों पर लगातार होते जुल्मों की प्रतिध्वनि उनके चित्रों में आती है, पर बड़ी सूक्ष्मता से । उनके चित्रों की स्त्री कामोत्तेजकता के लिए नहीं है, बल्कि वह भावना प्रवण है। उनके चित्रों की नारी वैश्विक है। किसी एक देश, प्रांत, जाति या वर्ग की नहीं। वह पूरी नारी जाति का प्रतिनिधित्व करती है। हम उसे पराऐतिहासिक नारी भी कह सकते हैं, जो युगों-युगों से चली आ रही है ।

एलीना बानिक का स्वभाव ज्वालामुखी जैसा है । एक आग उनमें अनवरत सुलगती रहती है, इस जंगल से उस जंगल तक, इस पेड़ से उस पेड़ तक। वही उनसे चित्र बनवाती है, मूर्ति-शिल्प गढ़वाती है या विडियो-आर्ट श्ाूट कराती है। शायद इसी कारण उन्हें 2008 में स्वयंसिद्धा एवॉर्ड मिला था । उन्हेंविश्वभारती पुरस्कार और संस्कृति विभाग की छात्रवृत्ति भी मिली । वे अहमदाबाद के कनोड़िया सेण्टर में फेलो भी रहीं।

इंलैण्ड में पढ़ते समय तो लासगो में उनके चित्रों की प्रदर्शनी हुई ही थी, बाद में 2005 में लंदन के नेहरू सेण्टर में और मॉस्को, सिंगापुर तथा अमेरिका में भी उनके चित्र प्रदर्शित होते रहे हैं ।

एलीना शास्त्रीय संगीत से प्रेरणा पाती हैं । कविता भी लिखती हैं और स्वयं गाती भी हैं । उनका मानना है कि ये तमाम कलाएं एक ही स्त्रोत से निकली हैं । यह एकात्म उनके चित्रों को अपूर्व बनाता है ।

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